दक्षिण अफ्रीका में प्रताड़ित भारतवंशी: जिस देश में गांधी जी ने नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी वहां गांधी के देशवासियों संग हो रहा घोर अन्याय

भारत की ख्वाहिश रही है कि अफ्रीका के बाजार में भारत को और जगह मिले। भारत की समूचे अफ्रीका के प्रति सद्भावना को लगता है कि दक्षिण अफ्रीका में समझा ही नहीं गया। इसीलिए वहां भारतवंशी हमलों के शिकार हो रहे हैं। ये हमले फौरन थमने चाहिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 20 Jul 2021 05:00 AM (IST) Updated:Tue, 20 Jul 2021 05:00 AM (IST)
दक्षिण अफ्रीका में प्रताड़ित भारतवंशी: जिस देश में गांधी जी ने नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी वहां गांधी के देशवासियों संग हो रहा घोर अन्याय
कई दक्षिण अफ्रीकी शहरों में भारतवंशियों पर हमले हो रहे

[ आरके सिन्हा ]: यह कितनी बड़ी विडंबना है कि जब भारत में दक्षिण अफ्रीका के मुक्ति योद्धा नेल्सन मंडेला की जयंती पर उनका स्मरण करने का उपक्रम हो रहा था, तब कई दक्षिण अफ्रीकी शहरों में भारतवंशियों पर हमले हो रहे थे। वहां बसे भारतीयों के घरों और दुकानों को निशाना बनाया जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका में 20 लाख से अधिक भारतीय मूल के लोग हैं। भारतीय मूल के लोगों को जोहानिसबर्ग और क्वाजुलु नटाल में निशाना बनाया जा रहा है। आप पूछेंगे कि हिंसक तत्वों के निशाने पर भारतीय ही क्यों हैं? इसका जवाब जानना जरूरी है। यह सब दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा को 15 महीने कैद की सजा सुनाए जाने के बाद हुआ। जुमा पर 2009 और 2018 के बीच राष्ट्रपति पद पर रहते हुए सरकारी राजस्व में लूट-खसोट का आरोप है। उन पर यह भी आरोप है कि उन्होंने भारत के उद्योगपति गुप्ता बंधुओं को खूब लाभ पहुंचाया। जिन अरबों रुपये के भ्रष्टाचार के मामलों में जुमा आरोपी हैं, उसी में गुप्ता बंधुओं का नाम भी शामिल है। आखिर जब जुमा पर दक्षिण अफ्रीकी कानूनों के तहत ही कार्रवाई की गई, तब वहां के भारतवंशियों के साथ ज्यादती करने का भला क्या तुक है?

गांधी के देशवासियों संग घोर अन्याय

अफसोस होता है कि जिस देश में महात्मा गांधी ने अश्वेतों के हक और नस्लवाद के लिए खिलाफ लड़ाई लड़ी, वहां गांधी के देशवासियों संग घोर अन्याय हो रहा है। दक्षिण अफ्रीकी सरकार हिंसा को रोकने में कमजोर क्यों पड़ रही है? क्या वह भूल गई है कि उनके देश के सर्वकालिक महानतम नेता मंडेला स्वयं गांधी जी को अपना आदर्श मानते थे? मंडेला का भारत से आत्मीय संबंध था। वह लंबी जेल यात्रा से रिहा होने के बाद 1990 में दिल्ली आए थे। वह उनकी जेल से रिहा होने के बाद पहली विदेश यात्रा थी। भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मंडेला के नाम पर एक मार्ग का नामकरण भी किया गया। मित्र राष्ट्र परस्पर सौहार्द के लिए एक-दूसरे के देशों के महापुरुषों, जननेताओं तथा राष्ट्राध्यक्षों के नामों पर अपने यहां सड़कों, पार्कों और संस्थानों के नाम रखते हैं। उसी परंपरा के अनुसार भारत सरकार ने भी एक खास सड़क का नामकरण किया। मंडेला 1995 में फिर भारत आए। उनके नाम पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया में 2004 में नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिट रिज्योलूशन की स्थापना की गई। इस केंद्र की स्थापना मुख्य रूप से इसलिए की गई, ताकि दुनिया भर में शांति और सद्भाव के लिए भारत के प्रयासों का गहराई से अध्ययन हो सके। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी अफ्रीका अध्ययन केंद्र है। वहां नेल्सन मंडेला चेयर भी है। दिल्ली विश्वविद्यालय में 1954 से डिपार्टमेंट आफ अफ्रीकन स्टडीज सक्रिय है।

भारत विरोधी शक्तियां करवा रहीं हिंसा

दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ फिलहाल जो कुछ हो रहा है, वह स्पष्ट है कि कुछ भारत विरोधी शक्तियां ही यह सब करवा रही है। भारत तो सभी 54 अफ्रीकी देशों से बेहतर संबंध स्थापित करने को लेकर प्रतिबद्ध है। भारत अफ्रीका में बड़ा निवेशक है। अफ्रीका में टाटा, महिंद्रा, भारती एयरटेल, बजाज आटो, ओएनजीसी जैसी प्रमुख भारतीय कंपनियां कारोबार कर रही है और लाखों अफ्रीकी नागरिकों को रोजगार भी दे रही हैं। भारती एयरटेल ने अफ्रीका के करीब 17 देशों में दूरसंचार क्षेत्र में 13 अरब डॉलर का निवेश किया है। भारतीय कंपनियों ने अफ्रीका में कोयला, लोहा और मैंगनीज खदानों के अधिग्रहण में भी अपनी रुचि दिखाई है। इसी तरह भारतीय कंपनियां दक्षिण अफ्रीकी कंपनियों से यूरेनियम और परमाणु प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की राह देख रही है। अफ्रीकी कंपनियां एग्रो प्रोसेसिंग और कोल्ड चेन, पर्यटन एवं होटल और रिटेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं। कुछ समय पहले तक दक्षिण अफ्रीका के प्रमुख शहरों में भारतीय कंपनियों के विशाल विज्ञापन होर्डिंग्स को प्रमुख चौराहों पर लगा हुआ देखा जा सकता था।

अन्य अफ्रीकी देशों में भी भारत और भारतवंशी सक्रिय

अन्य अफ्रीकी देशों में भी भारत और भारतवंशी सक्रिय हैं। अंग्रेज 1896 से लेकर 1901 के बीच करीब 32 हजार मजदूरों को भारत के विभिन्न राज्यों से केन्या, तंजानिया, युगांडा लेकर गए थे। उन्हें केन्या में रेल पटरियां बिछाने के लिए ले जाया गया। पूर्वी अफ्रीका का समूचा रेल नेटवर्क पंजाब के लोगों ने ही विकसित किया। इन्होंने बेहद कठिन हालत में रेल नेटवर्क तैयार किया। उस दौर में गुजराती भी केन्या में आने लगे, लेकिन वे वहां कारोबार करने के इरादे से पहुंचे। रेलवे नेटवर्क का काम पूरा होने के बाद अधिकांश पंजाबी श्रमिक वहीं बस गए। अब तो पूर्वी अफ्रीका के हर बड़े छोटे शहर में भारतवंशी और उनके पूजा स्थल हैं। केन्या के तो तमाम बड़े शहरों जैसे नैरोबी और मोम्बासा में बहुत सारे मंदिर और गुरुद्वारे हैं। इन भारतवंशियों के चलते भी अफ्रीका में भारत को लेकर एक बेहतर माहौल रहा है। दक्षिण अफ्रीका की हिंसा पूर्वी अफ्रीका के इस माहौल को खराब करने का काम कर सकती है।

दक्षिण अफ्रीका में भारतवंशी हमलों के शिकार

भारत की ख्वाहिश रही है कि अफ्रीका के बाजार में भारत को और जगह मिले। भारत की समूचे अफ्रीका के प्रति सद्भावना को लगता है कि दक्षिण अफ्रीका में समझा ही नहीं गया। इसीलिए वहां भारतवंशी हमलों के शिकार हो रहे हैं। ये हमले फौरन थमने चाहिए। दक्षिण अफ्रीका की सरकार को हिंसक तत्वों से सख्ती से निपटना चाहिए। उन्हें अपने देश के भारतीय मूल के नागरिकों को सुरक्षा देनी होगी। इस माहौल में भारतीय विदेश मंत्रालय को भी चाहिए कि वह दक्षिण अफ्रीकी सरकार से राजनयिक स्तर पर इस मामले को और गंभीरता से उठाए ताकि भारतवंशियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो।

( लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )

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