सौ करोड़ टीके लगने की उपलब्धि पर देश के कई विपक्षी दल सस्ती और संकीर्ण राजनीति का दे रहे हैं परिचय

दुनिया भर के लोग भारत की प्रशंसा कर रहे हैं और इस अभियान को अन्य देशों के लिए प्रेरक बता रहे हैं तब देश के कई विपक्षी दल सस्ती और संकीर्ण राजनीति का परिचय दे रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा कांग्रेस आगे है। उसे यह उपलब्धि रास नहीं आई ।

By Sanjay GuptaEdited By: Publish:Sun, 24 Oct 2021 08:07 AM (IST) Updated:Sun, 24 Oct 2021 08:07 AM (IST)
सौ करोड़ टीके लगने की उपलब्धि पर देश के कई विपक्षी दल सस्ती और संकीर्ण राजनीति का दे रहे हैं परिचय
देश सौ करोड़ टीके लगाए जाने की अपनी अद्भुत उपलब्धि का जश्न मना रहा (फाइल फोटो)

[संजय गुप्त] : करीब डेढ़ वर्ष पहले जब कोरोना वायरस से उपजी कोविड महामारी ने पूरे विश्व की सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को ठप करके रख दिया था, तब विज्ञानियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस महामारी से लड़ने वाले टीके की खोज करना था। भारत सहित विश्व के तमाम विज्ञानी इसमें जी जान से जुटे और उन्होंने नौ-दस महीने के अंदर टीके विकसित कर लिए। दिसंबर में ये टीके लगने शुरू हो गए। भारत में भी 16 जनवरी से टीकाकरण कार्यक्रम शुरू हो गया। यह इसलिए संभव हो पाया, क्योंकि देश की दो फार्मा कंपनियों-सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक ने टीकों का निर्माण शुरू कर दिया। भारत बायोटेक ने बिना किसी बाहरी मदद अपने बलबूते टीके बनाने शुरू किए, इसलिए उसके विज्ञानियों की विशेष सराहना हुई। सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक ने न केवल देश की साख को बढ़ाने का काम किया, बल्कि दुनिया को यह संदेश भी दिया कि हम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। इन कंपनियों की ओर से बनाए गए टीके दुनिया के कई देशों को भी भेजे गए। इस तरह भारत ने अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्व को पूरा किया, जिसकी दुनिया भर में तारीफ हुई।

मोदी सरकार की इसके लिए प्रशंसा करनी होगी कि उसने सभी बालिग लोगों के टीकाकरण का बीड़ा उठाया। जब टीकाकरण की शुरुआत हुई, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि नौ महीने के अंदर टीकों की सौ करोड़ खुराक देने का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा, लेकिन भारत ने यह कर दिखाया और अपनी सामर्थ्य का परिचय दिया। अभी तक करीब 75 प्रतिशत आबादी को टीके की एक खुराक दी जा चुकी है और लगभग 30 प्रतिशत वयस्क दोनों खुराक ले चुके हैं। जल्द ही बच्चों और किशोरों के लिए टीकाकरण अभियान शुरू होने वाला है। इससे टीकाकरण अभियान और गति पकड़ना चाहिए। यह गति पकड़े, इसे लोगों को भी सुनिश्चित करना चाहिए।

इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि जब देश सौ करोड़ टीके लगाए जाने की अपनी अद्भुत उपलब्धि का जश्न मना रहा है और दुनिया भर के लोग भारत की प्रशंसा कर रहे हैं और इस अभियान को अन्य देशों के लिए प्रेरक बता रहे हैं, तब देश के कई विपक्षी दल सस्ती और संकीर्ण राजनीति का परिचय दे रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा कांग्रेस आगे है। उसे न तो यह उपलब्धि रास आई और न ही इस पर प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन।

यह शर्मनाक है कि कांग्रेस के नेता अपने देश की सरकार पर भरोसा करने के बजाय चीन के इन संदिग्ध दावों पर यकीन कर रहे हैं कि वहां दो सौ करोड़ टीके लग चुके हैं। जब दुनिया कोरोना वायरस की उत्पत्ति और महामारी पर लगाम लगाने के मामले में चीन के दावों पर भरोसा नहीं कर रही, तब कांग्रेस टीकाकरण संबंधी उसके दावे पर क्यों यकीन कर रही है? क्या कांग्रेस चीन के इस दावे को भी सही मान रही है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति उसके यहां नहीं हुई? क्या यह अजीब नहीं कि जिस चीन पर किसी को भरोसा नहीं, उस पर कांग्रेस भरोसा कर रही है? आखिर चीन के प्रति इतना विश्वास क्यों? क्या इसलिए कि भारत सरकार को नीचा दिखाया जा सके? यह हास्यास्पद है कि कांग्रेस यह भी चाह रही है कि प्रधानमंत्री को वही बोलना चाहिए, जो वह कहे।

यह पहली बार नहीं जब टीकाकरण पर क्षुद्र राजनीति हो रही है। यह राजनीति टीकाकरण अभियान शुरू होते ही प्रारंभ हो गई थी। कभी टीके को भाजपा की वैक्सीन कहा गया और कभी टीकों की कमी को तूल देकर ऐसे हल्के सवाल उछाले गए गए कि मोदी जी, हमारे बच्चों की वैक्सीन विदेश क्यों भेज दी? इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पहले यह कहा गया कि प्रधानमंत्री खुद टीका क्यों नहीं लगवाते और जब उन्होंने ऐसा कर लिया तो भी सवाल उठाए गए। कभी यह कहा गया कि भारत सरकार का टीकाकरण कार्यक्रम पूरी तरह विफल हो गया है और कभी यह मांग की गई कि राज्यों को विदेश से टीके खरीदने की इजाजत क्यों नहीं दी जा रही है? जब विपक्षी नेताओं की मांग पर सरकार ने इसकी अनुमति दे दी और राज्य सरकारें अपने स्तर पर टीकों की खरीद कर पाने में नाकाम रहीं तो फिर केंद्र सरकार पर यह कहकर हमला बोला गया कि यह काम तो उसे ही करना चाहिए। यह वह दौर था, जब कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के कारण राज्य सरकारों के हाथ-पांव फूल रहे थे। आखिरकार केंद्र ने यह काम फिर से अपने हाथ में लिया। क्या टीकाकरण अभियान में अपेक्षित तेजी न देख रहे विपक्षी दल इस पर ध्यान देंगे कि उन्होंने किस तरह टीकों को लेकर लोगों को भ्रमित किया था और आम जनता को प्रेरित करने-भरोसा दिलाने के लिए थाली बजाने-दीये जलाने के आयोजनों की खिल्ली उड़ाई थी? विपक्षी दलों की सस्ती-संकीर्ण राजनीति के बाद भी यदि भारत में टीकाकरण का कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ा तो इसका श्रेय मोदी सरकार को जाता है। उसने एक ऐसा माहौल बनाया, जिससे टीका लगवाने के मामले में लोगों की हिचक टूटी। हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि भारत से ज्यादा अमेरिका के लोगों में टीका लगवाने को लेकर हिचकिचाहट है।

बेहतर हो कि विपक्षी दल अपेक्षित संख्या में टीके की दूसरी खुराक न लेने वालों का उल्लेख करने के बजाय ऐसा वातावरण बनाएं, जिससे लोग समय पर दोनों खुराक लेने के लिए आगे आएं। वे शायद ही ऐसा करें, लेकिन लोगों को सजग रहना चाहिए, क्योंकि कोविड एक ऐसी महामारी है, जो बार-बार सिर उठा लेती है। कोरोना वायरस अपना प्रतिरूप बदलने में माहिर है। सजगता बरतने की आवश्यकता इसलिए भी है, क्योंकि एक तो भारत बड़ी आबादी वाला देश है और दूसरे त्योहार निकट आ रहे हैं। यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए यह अपील की कि महामारी के खिलाफ हमारा कवच कितना भी मजबूत हो, लेकिन जब तक युद्ध चल रहा है, तब तक हथियार नहीं डालना चाहिए। यह समय बताएगा कि टीके की तीसरी खुराक के रूप में बूस्टर डोज लगवानी पड़ेगी या नहीं, लेकिन उचित यह होगा कि जब तक इस बारे में कुछ तय नहीं होता, तब तक लोग टीके की दोनों खुराक समय पर लेने के लिए तत्पर रहें। अब तो देश में पर्याप्त संख्या में टीके भी उपलब्ध हैं।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]

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