माफिया सरगना पर मेहरबानी: आखिर मुख्तार अंसारी को अपने यहां बनाए रखने से पंजाब सरकार के कौन से हित सध रहे थे?

किसी नेता नौकरशाह और सरकार को यह बताने के लिए विवश नहीं किया जा सकता कि वह मुख्तार अंसारी सरीखे माफिया सरगना पर मेहरबान क्यों है? उद्धव ठाकरे बदमाश किस्म के पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाझे पर इतने मेहरबान क्यों थे?

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 07 Apr 2021 02:37 AM (IST) Updated:Wed, 07 Apr 2021 02:37 AM (IST)
माफिया सरगना पर मेहरबानी: आखिर मुख्तार अंसारी को अपने यहां बनाए रखने से पंजाब सरकार के कौन से हित सध रहे थे?
पंजाब सरकार की कोशिश रही नाकाम, सुप्रीम कोर्ट में हुई फजीहत।

[ राजीव सचान ]: आखिरकार कुख्यात गैंगस्टर मुख्तार अंसारी को पंजाब से उत्तर प्रदेश ले जाया जा रहा है, लेकिन इस पर चर्चा के पहले लंदन से आई एक खबर का संज्ञान लें। 27 मार्च की इस खबर के अनुसार दाऊद इब्राहिम के गुर्गे जाबिर मोतीवाला को ब्रिटेन से अमेरिका प्रत्यर्पित होने से रोकने के लिए पाकिस्तान एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है। मोतीवाला फिलहाल लंदन की एक जेल में है। वहां की एक अदालत उसे अमेरिका को सौंपने के आदेश पारित कर चुकी है। इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की गई। मोतीवाला पर काले धन को सफेद करने और दाऊद के ड्रग कारोबार को चलाने का आरोप है। लंदन स्थित पाकिस्तानी राजनयिक उसे अपने देश का सम्मानित और शरीफ कारोबारी बता रहे हैं, जबकि अमेरिकी अधिकारी ऐसे सुबूतों से लैस हैं कि वह दाऊद के इशारे पर यूरोप-अमेरिका में ड्रग सप्लाई करता है। खबरों के अनुसार पाकिस्तान के अधिकारियों को इस बात का डर सता रहा है कि यदि मोतीवाला का अमेरिका प्रत्यर्पण हो गया तो दाऊद इब्राहिम का सारा कच्चा-चिट्ठा सामने आने के साथ उसकी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ से साठगांठ की पोल भी खुल जाएगी। अमेरिका पहले ही दाऊद को वैश्विक आतंकी घोषित कर चुका है। लंदन उच्च न्यायालय में मोतीवाला के वकील की ओर से यह दलील दी गई कि वह अवसाद से ग्रस्त है और ऐसी हालत में उसे अमेरिका को नहीं सौंपा जाना चाहिए।

पंजाब सरकार की कोशिश रही नाकाम, सुप्रीम कोर्ट में हुई फजीहत

जाबिर मोतीवाला के मामले में लंदन उच्च न्यायालय का फैसला जो भी हो, गौर करने की बात यह है कि उसे अमेरिका को सौंपने से रोकने के लिए जैसे जतन पाकिस्तान कर रहा है, वैसे ही, बल्कि उससे भी अधिक पंजाब सरकार ने इसके लिए किए कि कुख्यात गैंगस्टर मुख्तार अंसारी को उत्तर प्रदेश पुलिस के हवाले न किया जाए। पंजाब सरकार की कोशिश नाकाम रही। सुप्रीम कोर्ट में उसे मुंह की तो खानी ही पड़ी, फजीहत के साथ इस सवाल का भी सामना करना पड़ा कि एक राज्य सरकार दूसरे राज्य में 50 से ज्यादा वांछित मामलों में आरोपित गैंगस्टर के बचाव के लिए इतनी बेचैन क्यों थी? आखिर मुख्तार अंसारी को अपने यहां बनाए रखने से पंजाब सरकार के कौन से हित सध रहे थे? पंजाब सरकार ऐसे किसी झूठ का सहारा भी नहीं ले रही थी कि वह मुख्तार अंसारी को अपने यहां दर्ज मामले में दंडित करना चाह रही है। पंजाब की रोपड़ जेल में बंद रहने के दौरान मुख्तार एक बार भी अदालत में पेश नहीं हुआ। उसने खराब सेहत का हवाला देकर 54 बार तारीखें टालीं। उसके खिलाफ उगाही मांगने का मामला मोहाली में दर्ज है और इसी सिलसिले में उसे बांदा, उत्तर प्रदेश की जेल से पंजाब लाया गया था। यह बात है जनवरी 2019 की। तब से वह पंजाब की जेल में ही है। इस दौरान उगाही मामले में न तो उसके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया और न ही खुद उसने जमानत मांगने की कोई कोशिश की।

जनवरी 2019 से यूपी पुलिस को कोई न कोई बहाना बना रही थी पंजाब पुलिस

जनवरी 2019 से अभी हाल तक उत्तर प्रदेश पुलिस ने मुख्तार अंसारी को अपने यहां लाने की कई बार कोशिश की, लेकिन पंजाब की ओर से हर बार कोई न कोई बहाना बना दिया जाता। कभी कहा जाता कि वह उच्च रक्तचाप से पीड़ित है, कभी कमर दर्द का बहाना बनाया जाता और कभी त्वचा की एलर्जी की आड़ ली जाती। हाल के समय में कोरोना और लॉकडाउन की भी आड़ ली गई। ऐसा कुल 26 बार हुआ। कृपया इसे गौर से पढ़ें कि उसके खिलाफ जारी 26 वारंट नाकाम हुए। थक-हारकर उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट की मानें तो पंजाब सरकार मुख्तार को उत्तर प्रदेश स्थानांतरित करने में बहाने बना रही। वह ऐसा न भी कहता तो भी इसे उच्च कोटि की बहानेबाजी के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। मुख्तार को पंजाब में बनाए रखने की पंजाब सरकार की इसी अतिरिक्त दिलचस्पी के कारण उसे विधानसभा में यह सुनना पड़ा कि आखिर अमरिंदर सरकार एक गैंगस्टर को राजकीय अतिथि क्यों बनाए हुए है? यह आरोप लगाने वाले विधायक दरअसल मुख्तार को जेल में मिल रही वीआइपी सुविधाओं की ओर संकेत कर रहे थे। आखिर पंजाब में कौन यह चाहता था कि मुख्तार को उत्तर प्रदेश न भेजा जाए? क्या वहां के पुलिस अधिकारी या जेल अधिकारी या नेता या मंत्री या फिर उनके भी ऊपर का कोई?

पंजाब सरकार बेशर्मी के साथ एक गैंगस्टर को बचा रही

पता नहीं पंजाब में मुख्तार का शुभचिंतक कौन-कौन है, लेकिन यह सबको मालूम है और सबको खबर है कि उसे उत्तर प्रदेश स्थानांतरित न करने देने के लिए पंजाब सरकार के वकील सुप्रीम कोर्ट में जा खड़े हुए। दुष्यंत दवे नाम है इनका। सुप्रीम कोर्ट में खुद मुख्तार ने वकील मुकुल रोहतगी को खड़ा किया। मतलब जो मुख्तार चाह रहा था, वही पंजाब सरकार भी चाह रही थी। शायद इसी जुगलबंदी के कारण उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पंजाब सरकार बेशर्मी के साथ एक गैंगस्टर को बचा रही है। वाकई इसे बेशर्मी के अलावा और क्या कहा जा सकता है, लेकिन आखिर यह बेशर्मी क्यों दिखाई जा रही थी? वास्तव में यही वह यक्ष प्रश्न है, जिसका जवाब मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा होने के आसार कम ही हैं। वैसे भी किसी नेता, नौकरशाह और सरकार को यह बताने के लिए विवश नहीं किया जा सकता कि वह मुख्तार अंसारी सरीखे माफिया सरगना पर मेहरबान क्यों है? आखिर यह तथ्य है कि किसी को नहीं पता कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बदमाश किस्म के पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाझे पर इतने मेहरबान क्यों थे? जब ऐसे सवालों के जवाब नहीं मिलते तो फिर जनता इसी निष्कर्ष पर पहुंचती है कि माफिया किस्म के लोग सरकारों से सहयोग, समर्थन और संरक्षण पाते हैं।

( लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं )

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