भारत के लिए अच्छा संदेश नहीं कि बांग्लादेश के बाद एक और पड़ोसी देश में आइएस के आतंक ने दी दस्तक

भारत के लिए यह अच्छा संदेश नहीं कि बांग्लादेश के बाद उसके एक और पड़ोसी देश में आइएस ने शांति भंग कर दी।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 28 Apr 2019 05:06 AM (IST) Updated:Sun, 28 Apr 2019 05:29 AM (IST)
भारत के लिए अच्छा संदेश नहीं कि बांग्लादेश के बाद एक और पड़ोसी देश में आइएस के आतंक ने दी दस्तक
भारत के लिए अच्छा संदेश नहीं कि बांग्लादेश के बाद एक और पड़ोसी देश में आइएस के आतंक ने दी दस्तक

[ संजय गुप्त ]: पिछले रविवार को श्रीलंका में दिल दहलाने वाले बम धमाकों के बाद दक्षिण एशिया एक बार फिर खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। इन धमाकों में करीब ढाई सौ लोग मारे गए और पांच सौ लोग घायल हुए। इस भीषण आतंकी हमले के लिए स्थानीय संगठन नेशनल तौहीद जमात यानी एनटीजे को जिम्मेदार माना गया। यह भी साफ हो गया है कि इस हमले की जिम्मेदारी लेने वाले इस्लामिक स्टेट यानी आइएस ने एनटीजे के एक आत्मघाती दस्ते के जरिये ये भीषण हमले कराए। 2009 में लिट्टे के खात्मे के बाद श्रीलंका पहली बार किसी बड़े आतंकी हमले से दो-चार हुआ है। इस हमले का असर न केवल पीड़ित परिवारों, बल्कि वहां के सुरक्षा तंत्र और अर्थव्यवस्था पर भी लंबे समय तक रहने वाला है। श्रीलंका और आतंकी हमलों के अंदेशे से ग्रस्त है। वहां एनटीजे के आतंकियों की धरपकड़ के बीच विस्फोटक सामग्री भी बरामद हो रही है। साफ है कि एनटीजे ने अपना सघन जाल फैला लिया था।

समझना कठिन है कि लिट्टे जैसे खूंखार संगठन से जूझ चुका श्रीलंका एनटीजे के उभार को क्यों नहीं भांप पाया? ईस्टर के दिन जिस तरह तीन चर्चों को निशाना बनाया गया और पश्चिमी देशों के नागरिकों से गुलजार रहने वाले तीन होटलों में भी विस्फोट किए गए उससे स्पष्ट है कि आतंकी ईसाई समुदाय के साथ विदेशियों को भी मारना चाहते थे। वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय और खास तौर पर पश्चिमी देशों को संदेश देना चाह रहे थे।

श्रीलंका में हुआ हमला कुछ समय पहले न्यूजीलैंड में हुई उस आतंकी वारदात का जवाब माना जा रहा है जिसमें मस्जिदों पर गोलियां बरसाकर 49 लोगों की जान ले ली गई थी। एक श्वेत चरमपंथी के इस हमले ने न्यूजीलैैंड को सन्न कर दिया था, क्योंकि इसके पहले यह देश ऐसे आतंक का गवाह नहीं बना। सामाजिक और आर्थिक रूप से विकसित न्यूजीलैंड तो इस आतंकी हमले से जल्द उबर सकता है, लेकिन श्रीलंका जैसे विकासशील और राजनीतिक रूप से अस्थिर देश के लिए इतने बड़े हमले का सही तरह सामना करना मुश्किल है। इसलिए और भी, क्योंकि वह सामाजिक बिखराव से मुक्त नहीं हो पाया है।

लिट्टे के खात्मे के बाद अशांति और अस्थिरता के दौर से निकलने की कोशिश में लगे श्रीलंका के लिए यह हमला एक बड़ी मुसीबत बनकर आया है। एक तो सामाजिक अशांति का खतरा है और दूसरे, पर्यटन उद्योग की कमर टूटने का। आतंकी हमले के बाद श्रीलंका के वे होटल खाली से हो गए हैैं जहां अच्छी-खासी संख्या में विदेशी पर्यटक रुकते थे। श्रीलंका आतंकी हमले से बच सकता था, अगर उसने भारत की ओर से भेजी गई खुफिया सूचना पर सतर्कता बरती होती। इस खुफिया सूचना में साफ कहा गया था कि आतंकी चर्चों के साथ भारतीय उच्चायोग को भी निशाना बना सकते हैं। कोई नहीं जानता कि इस खुफिया सूचना की अनदेखी क्यों की गई?

यह पर्याप्त नहीं कि श्रीलंका के राष्ट्रपति ने एनटीजे और एक अन्य चरमपंथी संगठन पर पाबंदी लगा दी, क्योंकि यह काम तो बहुत पहले हो जाना चाहिए था। यह बात अब और स्पष्ट हो जानी चाहिए कि जब सरकारें समय पर सही निर्णय नहीं लेतीं तो उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। आज कोई भी देश आतंकवाद संबंधी खुफिया सूचनाओं की अनदेखी करने की स्थिति में नहीं, लेकिन यह पहली बार नहीं जब कहीं पर आतंकी हमले संबंधी खुफिया जानकारी की अनदेखी की गई हो या फिर पर्याप्त चौकसी न बरती गई हो। अभी कुछ दिनों पहले पुलवामा में हुआ आतंकी हमला खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की चूक का ही नतीजा माना जा रहा है। इससे संतुष्ट हुआ जा सकता है कि भारतीय खुफिया एजेंसियों को श्रीलंका में आतंकी हमले की भनक लग गई, लेकिन इसकी जरूरत बनी हुई है कि भारतीय सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियां अतिरिक्त चौकसी बरतें। इस जरूरत की पूर्ति तो सभी देशों को करनी होगी कि आतंकवाद से निपटने में कोई कोताही न बरती जाए।

श्रीलंका में हुए आतंकी हमले के बाद पूरी दुनिया का ध्यान एक बार फिर इस्लामिक स्टेट की ओर जाना स्वाभाविक है, लेकिन इस हमले ने पश्चिमी देशों के इस दावे की पोल खोल दी कि पश्चिम एशिया से आइएस का खात्मा हो गया है। हालांकि सीरिया में आइएस के आतंक को नियंत्रित करने में पश्चिमी देशों को कामयाबी मिली है, लेकिन उसके आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि आइएस पूरी तरह खत्म हो गया है। सच तो यह है कि न तो सीरिया जिहादी आतंकवाद से मुक्त हो सका है और न ही अफगानिस्तान तालिबान, अलकायदा और आइएस के आतंक से।

दुनिया के अन्य देश जिन जिहादी संगठनों से ग्रस्त हैैं उनमें आइएस प्रमुख है। आइएस एक आतंकी संगठन से अधिक मानसिकता है और उसे खत्म करना आसान नहीं। इस मानसिकता ने दुनिया के अलग-अलग देशों के मुस्लिम समाज के एक वर्ग को अपने प्रभाव में ले लिया है, जिनमें पढ़े-लिखे लोग भी शामिल हैं। जब तक कट्टरता की यह मानसिकता पूरी तरह समाप्त नहीं की जाती तब तक आइएस जैसे संगठनों को खत्म करना संभव नहीं। कट्टरता के इसी प्रसार के कारण मुस्लिम समाज पर सवाल उठने लगे हैं। तमाम मुस्लिम बुद्धिजीवी इसे समझ रहे हैं, फिर भी उनकी आवाज आइएस जैसे संगठनों के आगे दब रही है।

स्पष्ट है कि चरमपंथी और आतंकी संगठनों के खिलाफ और ऊंचे स्वर में एकजुट होकर आवाज बुलंद करने की आवश्यकता है। आखिर आइएस जैसे आतंकी संगठनों को आतंक फैलाने के लिए धन कहां से मिल रहा है? क्या कारण है कि पढ़े-लिखे मुस्लिम युवा भी इस आतंकी संगठन में शामिल होने को तैयार हैैं? इन सवालों के जवाब खोजना ही होंगे। आज पूरा मुस्लिम जगत आतंक के ठप्पे से आहत है, लेकिन आम मुसलमान पाकिस्तान जैसे आतंकी संगठनों को पालने-पोसने और उनकी खुली पैरवी करने वाले देशों के समक्ष असहाय है। उनका उन धार्मिक-राजनीतिक नेताओं पर भी कोई बस नहीं जो अपने सियासी लाभ के लिए मजहबी कट्टरता को हवा देते हैैं। भारत में भी अक्सर मुस्लिम तुष्टीकरण का खेल खेला जाता है। इस राजनीति के कारण ही मजहबी कट्टरता के खिलाफ उपयुक्त माहौल बनाना मुश्किल होता है।

देखना यह होगा कि श्रीलंका में नेशनल तौहीद जमात की अनदेखी क्यों हुई? श्रीलंका में हुए आतंकी हमले ने दक्षिण एशिया में आतंक के खतरे को गहराने का काम किया है। एक ऐेसे समय जब कश्मीर में पाकिस्तान की हरकतें पहले से ही भारत की चिंता का कारण हैैं तब श्रीलंका में नेशनल तौहीद जमात की कारगुजारी इस चिंता को और बढ़ाने वाली है। भारत के लिए यह अच्छा संदेश नहीं कि बांग्लादेश के बाद उसके एक और पड़ोसी देश में आइएस ने शांति भंग कर दी। श्रीलंका में हमले के बाद भारत की सुरक्षा एजेंसियां अवश्य ही सतर्क हुई होंगी। उन्हें होना भी चाहिए, क्योंकि नेशलन तौहीद जमात की जड़ें तमिलनाडु में भी होने का अंदेशा है। अंदेशा यह भी है कि इस संगठन का सरगना तमिलनाडु आता-जाता रहा है और उसे दक्षिण भारत से आर्थिक मदद भी मिलती रही है।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक  के संपादक हैं ]

chat bot
आपका साथी