निर्भया कांड से लेकर मुंबई दुष्‍कर्म, अब तक नहीं मिली फांसी, फैसले के बावजूद न्‍याय दूर की कौड़ी

दुष्कर्म के मामलों में संवेदनशीलता और सक्रियता की उम्मीद न सिर्फ ट्रायल कोर्ट से बल्कि उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय से भी की जानी चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 12 Dec 2019 12:07 PM (IST) Updated:Thu, 12 Dec 2019 12:44 PM (IST)
निर्भया कांड से लेकर मुंबई दुष्‍कर्म, अब तक नहीं मिली फांसी, फैसले के बावजूद न्‍याय दूर की कौड़ी
निर्भया कांड से लेकर मुंबई दुष्‍कर्म, अब तक नहीं मिली फांसी, फैसले के बावजूद न्‍याय दूर की कौड़ी

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। देश भर में आजकल अनेक दुष्कर्म कांड पर बहस जारी है। तरह-तरह के विचार व्यक्त किए जा रहे हैं। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कई तरह के सुझाव दिए जा रहे हैं। हैदराबाद में हुए एनकाउंटर के बाद तो यह भी कहा जाने लगा है कि समय रहते न्याय मिलने की उम्मीद होती तो शायद ऐसा नहीं होता। यानी बात सिर्फ न्याय पर आकर अटकती है। प्रश्न यह है कि यह न्याय हर स्तर पर मिले कैसे?

मुंबई में शक्ति मिल कंपाउंड कांड

दिल्ली में हुए निर्भया कांड के आठ माह के अंदर ही मुंबई में शक्ति मिल कंपाउंड कांड हो गया था। महालक्ष्मी स्टेशन के बिल्कुल पास एक पुरानी मिल के खंडहर में एक महिला फोटो पत्रकार अपने एक पुरुष साथी के साथ पहुंच गई। विशालकाय भुतही मिल के अंदर बड़ी-बड़ी वनस्पतियां उगी हुई थीं। वहां किसी का आना-जाना था नहीं। चरस पीनेवाले आवारा लड़कों ने शक्ति मिल को अपना ठिकाना बना लिया था। वह उनके लिए सुरक्षित पनाहगाह बन चुकी थी।

एक लड़की को अपने पुरुष साथी के साथ देख उनके मन का शैतान जाग उठा, और वह महिला पत्रकार उन आवारा लोगों की शिकार बन गई। चूंकि महिला और उसका साथी दोनों पत्रकार थे, इसलिए उन्होंने आवाज उठाई। पहले उसका साथी लड़की को अस्पताल ले गया। फिर मामला पुलिस तक पहुंचा। हाथ मीडिया पर डाला गया था, इसलिए मीडिया का भी दबाव बढ़ा। मामला अखबारों की सुर्खियां बना। पुलिस को समय पर सक्रिय होना पड़ा। समय पर फोरेंसिक जांच हुई। दुष्कर्मी पकड़े गए।

महिला पत्रकार जितनी हिम्मत नहीं जुटा सकी

महिला पत्रकार के साथ दुष्कर्म की यह घटना 22 अगस्त, 2013 को हुई थी। इस मामले की जांच चल ही रही थी कि एक और लड़की पुलिस के पास पहुंची और बताया कि उसी शक्ति मिल कंपाउंड में कुछ लोगों ने उसके साथ भी 31 जुलाई, 2013 को दुष्कर्म किया था। वह भी अपने पुरुष साथी के साथ उस मिल के अंदर गई और उन आवारा लोगों के चंगुल में फंस गई। वह 21 वर्षीय लड़की एक साधारण टेलीफोन ऑपरेटर थी। सामूहिक दुष्कर्म का शिकार होने के बाद वह महिला पत्रकार जितनी हिम्मत नहीं जुटा सकी। इसलिए वह और उसका साथी हताशा ओढ़े मुंबई छोड़कर चले गए।

600 पन्नों की संयुक्त चार्जशीट दायर

जब उन्होंने महिला पत्रकार के साथ हुई घटना के बाद शक्ति मिल के आवारा लड़कों की गिरफ्तारी की खबर अखबारों में पढ़ी तो उनकी भी हिम्मत जागी, और उसने मुंबई पुलिस के पास पहुंचकर अपनी आपबीती सुनाई। पुलिस ने यह मामला भी दर्ज किया। आरोपियों की पहचान परेड में टेलीफोन ऑपरेटर लड़की ने पहले मामले के चार में से तीन आरोपियों की पहचान अपने साथ हुए दुष्कर्म के आरोपियों के रूप में की। पत्रकार लड़की का मामला 22 अगस्त को सामने आया था। टेलीफोन ऑपरेटर तीन सितंबर को पुलिस के पास पहुंची थी। पुलिस ने जांच में तीव्रता दिखाते हुए 16 दिनों के अंदर दोनों मामलों में 600 पन्नों की संयुक्त चार्जशीट दायर कर दी।

आरोपी को मृत्युदंड का प्रावधान 

12 मार्च, 1993 के सिलसिलेवार विस्फोट कांड एवं 26 नवंबर, 2008 के मुंबई आतंकी हमले जैसे मामलों में कई आरोपियों को फांसी की सजा दिलवा चुके मशहूर वकील उज्ज्वल निकम को सरकार की तरफ से इन दोनों मामलों में आरोपियों को सजा दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। 14 अक्टूबर को मामले की सुनवाई शुरू हुई। निर्भया कांड से सबक लेकर केंद्र सरकार दुष्कर्म के मामलों में आइपीसी में एक नई धारा 376 ई शामिल कर चुकी थी। यह धारा दुष्कर्म के मामले में सजा पा चुके व्यक्ति द्वारा पुन: वही अपराध दोहराने वाले आरोपी को मृत्युदंड का प्रावधान करती है।

धारा 376 ई के तहत मृत्युदंड की मांग

ट्रायल कोर्ट ने 21 मार्च, 2014 को इस मामले के चार आरोपियों- विजय जाधव, मोहम्मद बंगाली, मोहम्मद अंसारी एवं अशफाक शेख को दोषी ठहराया एवं उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। कोर्ट ने इसी दिन फोटो पत्रकार मामले में भी जाधव, बंगाली और अंसारी के साथ एक अन्य आरोपी सिराज खान को दोषी करार दिया। उज्ज्वल निकम शायद इसी पल का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने उसी दिन कोर्ट से दोनों मामलों में दोषी करार दिए गए जाधव, बंगाली और अंसारी के लिए धारा 376 ई के तहत मृत्युदंड की मांग कर दी। क्योंकि ये तीनों दुष्कर्म के मामले में ही दो बार दोषी करार दिए जा चुके थे। ट्रायल कोर्ट ने निकम की मांग को तर्कसंगत मानते हुए चार अप्रैल, 2014 को दोनों मामलों में दोषी करार दिए गए जाधव, बंगाली एवं अंसारी को मृत्युदंड की सजा सुनाई।

दुष्कर्म के मामलों में संवेदनशीलता और सक्रियता की उम्मीद 

यानी इस मामले में पुलिस ने आरोप पत्र 16 दिन में पेश कर दिया और ट्रायल कोर्ट ने सुनवाई शुरू होने से लेकर मृत्युदंड सुनाने तक का सफर सिर्फ 178 दिन में पूरा कर लिया। उसके बाद से छह वर्ष बीत चुके हैं, दोषी करार दिए गए लोगों का मामला अभी हाईकोर्ट की सीमा भी पार नहीं कर सका है। निराशा का दौर यहीं से शुरू होता है। उज्ज्वल निकम मानते हैं कि दुष्कर्म के मामलों में न सिर्फ पुलिस की विशेष टीमें बनाकर उन्हें फोरेंसिक जरूरतों के अनुसार प्रशिक्षित करने की जरूरत है, बल्कि ऐसे मामलों में हर जगह विशेष वकील और विशेष कोर्ट भी चिन्हित करने की जरूरत है। बात यहीं खत्म नहीं होती। इन मामलों में संवेदनशीलता और सक्रियता की उम्मीद न सिर्फ ट्रायल कोर्ट से, बल्कि उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय से भी की जानी चाहिए।

[मुंबई ब्यूरो प्रमुख]

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