देश के करीब आधे राज्यों के पास ही भू-जल संबंधी कानून मौजूद हैं, जबकि समस्या विकराल है

World Environment Day सभी राज्यों को भू-जल कानूनों को भी अपने-अपने राज्यों की परिस्थितियों के अनुसार अमल में लाना होगा क्योंकि भविष्य का जल बहुत दुर्लभ होने वाला है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 12:21 PM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 12:21 PM (IST)
देश के करीब आधे राज्यों के पास ही भू-जल संबंधी कानून मौजूद हैं, जबकि समस्या विकराल है
देश के करीब आधे राज्यों के पास ही भू-जल संबंधी कानून मौजूद हैं, जबकि समस्या विकराल है

रमन कांत त्यागी। World Environment Day: वर्तमान महामारी ने देश को बहुत सीख दी है, लेकिन यह सीख तब कारगर साबित होगी, जब बाद में भी हम इस पर अमल करें। अक्सर देखा जाता है कि जब कोई कठिन समय मनुष्य के जीवन में आता है तो वह अपने ईश्वर से यही कहता है कि इस कठिन वक्त से निकाल दो, मेरी जो गलतियां या कमियां रही हैं उनको भविष्य में नहीं करूंगा या उनमें सुधार करूंगा। बगैर ठोकर खाए ही संभल जाना आत्मज्ञान है, ठोकर खाकर संभल जाना समझदारी है, लेकिन ठोकर खाकर भी नहीं संभलना मूर्खता। वर्तमान का कठिन समय भी कुछ ऐसा ही है। इस वैश्विक महामारी से संभलने में देश ने कुछ आत्मज्ञान से काम लिया है और कुछ समझदारी से, लेकिन तालाबंदी के कारण जो प्रकृति में सुधार हुआ उसे देश किस प्रकार समझता है, इसका जवाब भविष्य के गर्त में छिपा है। पर्यावरण की दृष्टि से समझें तो वायु प्रदूषण एवं नदियों में बहुत कुछ बेहतरी नंगी आंखों से देखी जा रही है। इसी से जुड़ा एक मसला भू-जल का भी है कि आखिर तालाबंदी ने भू-जल पर क्या असर डाला है?

तालाबंदी के कारण नदियों में पानी बढ़ा है, यह तथ्य समझ से परे है। ऐसा होना संभव इसलिए नहीं है, क्योंकि इस दौरान अधिकतर बड़े उद्योग बंद रहे हैं, जो अरबों लीटर भू-जल प्रतिदिन उपयोग में लाते थे और तरल प्रदूषण के रूप में नदियों में बहा देते थे। तालाबंदी के दौरान न तो उद्योग इन अरबों लीटर भू-जल को खींच पाए, न ही उसको नदियों में डाल पाए। ऐसे में नदियों में प्रदूषण के साथसाथ 15 से 20 प्रतिशत पानी की मात्रा भी कम हुई। यह तथ्य सर्वविदित है कि नदियों में नालों या सीधे जो शोधित या गैर-शोधित पानी बहाया जाता है उसमें करीब 75 से 80 प्रतिशत हिस्सा घरेलू होता है, जबकि 20 से 25 प्रतिशत ही उद्योगों की भागीदारी होती है। ऐसे में यह आंकड़ा स्पष्ट है कि तालाबंदी के दौरान नदियों के पानी में कमी आई। उत्तर प्रदेश में नदियों के बहाव में पांच से 10 प्रतिशत की कमी प्रयागराज कुंभ के दौरान भी देखी गई थी, क्योंकि उस समय भी गंगा या उसकी सहायक नदियों में तरल कचरा गिराने वाले उद्योगों को नियमानुसार कुछ-कुछ दिन के लिए बंद किया गया था।

भारत में सर्वाधिक भू-जल लगभग 80 प्रतिशत का उपयोग कृषि कार्यों में किया जाता है, जो गैर जरूरी है। नीति आयोग के अनुसार भारत राष्ट्रीय भू-जल आपदा की ओर बढ़ रहा है। नीति आयोग के तथ्य इस बात की तस्दीक करते हैं। कृषि कार्यों में बेतहाशा भू-जल दोहन के चलते देश के करीब 54 प्रतिशत ट्यूबवेल का स्तर नीचे जा चुका है। देश के करीब साठ करोड़ लोग कई प्रकारों से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। करीब 75 प्रतिशत परिवारों के पास स्वच्छ पेयजल के साधन नहीं हैं और ग्रामीण भारत के करीब 84 प्रतिशत परिवार आज भी हैंडपंप (निजी व सरकारी), कुएं या नहर आदि अन्य स्रोत से अपनी प्यास बुझा रहे हैं, जबकि शहरों में 95 प्रतिशत लोग पाइप वाटर से अपना गला तर कर रहे हैं। नीति आयोग के जल प्रदूषण संबंधी आंकड़े इससे भी भयावह हैं। देश में मौजूद कुल पानी का करीब 70 प्रतिशत प्रदूषित हो चुका है।

यही कारण है कि जल गुणवत्ता में भारत का विश्व के 122 देशों में से 120वां स्थान है। तालाबंदी के चलते इन आंकड़ों में अवश्य सुधार हुआ होगा। केंद्रीय भू-जल बोर्ड व राज्यों के जल संबंधी विभागों को इसका आकलन जरूर करना चाहिए। देश के करीब आधे राज्यों के पास ही भू-जल संबंधी कानून मौजूद हैं, जबकि समस्या विकराल है। सभी राज्यों को भू-जल कानूनों को भी अपने-अपने राज्यों की परिस्थितियों के अनुसार अमल में लाना होगा, क्योंकि भविष्य का जल बहुत दुर्लभ होने वाला है, यह हमें वर्तमान संकट ने विदित करा दिया है।

[जल संरक्षण कार्यकर्ता]

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