शराब कारोबार के राजस्व से ही सरकार की विकास योजनाओं को लगते हैं पंख, बढ़ रहा कारोबार

प्रदेश सरकारों के लिए शराब कारोबार से आने वाला राजस्व काफी अहम होता है। इन पैसों से ही सरकार विकास की योजनाओं को आकार देती हैं। साल दर साल शराब के कारोबार से राजस्व में अच्छी खासी बढ़ोतरी हो रही है। यानी बिना ड्यूटी कर जमा किए जो सामान बाजार में आता है वह काफी सस्ता होता है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Wed, 31 Mar 2021 12:59 PM (IST) Updated:Thu, 01 Apr 2021 09:16 AM (IST)
शराब कारोबार के राजस्व से ही सरकार की विकास योजनाओं को लगते हैं पंख, बढ़ रहा कारोबार
साल दर साल शराब के कारोबार से राजस्व में अच्छी खासी बढ़ोतरी हो रही है।

गुरुग्राम, [आदित्य राज]। प्रदेश सरकारों के लिए शराब कारोबार से आने वाला राजस्व काफी अहम होता है। इन पैसों से ही सरकार विकास की योजनाओं को आकार देती हैं। साल दर साल शराब के कारोबार से राजस्व में अच्छी खासी बढ़ोतरी हो रही है। लेकिन वास्तविकता यह भी है कि ग्राहक वहीं से सामान लेना पसंद करता है, जहां उसे सस्ता मिलता है।

और अपेक्षा से अधिक सस्ता सामान बाजार में तभी उपलब्ध होता है जब वह फैक्ट्री से सीधे बाजार में पहुंचे। यानी बिना ड्यूटी कर जमा किए जो सामान बाजार में आता है वह काफी सस्ता होता है। शराब तस्करी के पीछे मुख्य वजह यही है।

फैक्ट्रियों से शराब सीधे बाजार में पहुंच रही है। यानी बिना ड्यूटी कर जमा किए कंपनियां शराब बाजार में भेज रही हैं।
उदाहरण के तौर पर ठेके पर जो शराब की बोतल 50 रुपये में मिलती है उसकी लागत फैक्ट्री में 10 से 15 रुपये होती है। फैक्ट्री मालिक उस पर पांच से 10 रुपये मुनाफा रखकर बेचते हैं। शराब तस्कर आगे 10 से 15 रुपये रखकर उसे ग्राहक को बेचते हैं। इस तरह ग्राहक को सस्ती शराब मिल जाती है और फैक्ट्री संचालक से लेकर तस्कर तक का कारोबार
तेजी से फलता-फूलता रहता है।

यह बात तो उन राज्यों की हुई जिनमें शराब बनाने, बेचने व खरीदने पर प्रतिबंध नहीं है। जिन राज्यों में शराब बनाने, बेचने व खरीदने पर प्रतिबंध है वहां शराब की मुंहमांगी कीमत दी जाती है। अधिक मुनाफे के लालच में तस्कर उन राज्यों में अधिक माल भेजते हैं जहां इस पर प्रतिबंध है। प्रतिबंधित राज्यों में 50 रुपये की बोतल 200 से 400 रुपये तक में बेची जाती है।

सख्ती है जरूरी

हरियाणा ही नहीं बल्कि कई अन्य राज्यों से दिल्ली में शराब पहुंच रही है। अब सोचने वाली बात यह है कि सरकार में बैठे

लोगों की शह के बिना यह सब कैसे संभव है। अधिकारियों की हिम्मत तभी बढ़ती है जब उन्हें पता होता है कि सरकार में बैठे लोग भी इसमें संलिप्त हैं। जाहिर है इससे राजस्व का काफी नुकसान हो रहा है। जिस दिन प्रदेश सरकारें इसको लेकर सख्त
हो जाएंगी, उस दिन से अवैध शराब का यह कारोबार भी खत्म हो जाएगा। आवश्यकता है फैक्ट्रियों पर लगाम
लगाने की।
जहां तक ठेकों की बात है तो इसके माध्यम से बहुत ही छोटे स्तर पर तस्करी होती है। इससे सरकार के राजस्व को नुकसान नहीं होता है, क्योंकि इसका टैक्स जमा होता है। कई बार ठेका संचालक अपना माल खपाने के लिए दूसरे इलाके में इसे
बेचना शुरू कर देते हैं। हालांकि यह भी गलत है, लेकिन इससे राजस्व पर असर नहीं पड़ता है। राजस्व को घाटा तब होता है जब बिना ड्यूटी कर जमा किए शराब बेची जाए।
राज्य सरकारों को मिलकर करने होंगे प्रयास
लंबे समय से शराब की कीमतों में एकरूपता को लेकर बहस चल रही है। लेकिन हमें यह समझना होगा कि यह मसला प्रदेश सरकार का है, केंद्र का नहीं। तो फिर इसमें एकरूपता कैसे संभव है। हर सरकार की अपनी आबकारी नीति है। हां, यदि प्रयास किए जाएं तो दिल्ली-एनसीआर में एकरूपता आ सकती है।

लेकिन इसके लिए हरियाणा, दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश की सरकारों को संयुक्त रूप से प्रयास करने होंगे। इससे स्थानीय स्तर की

तस्करी पर रोक लग सकती है। नई आबकारी नीति के तहत दिल्ली में शराब पीने वालों की उम्र 21 करने की बात है जबकि हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश में उम्र सीमा 25 है। ऐसे में 25 साल से कम उम्र वालों का झुकाव दिल्ली की तरफ बढ़ेगा।

जब तक सरकार में बैठे लोगों के साथ-साथ शराब बनाने वाली फैक्ट्रियों के मालिक निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर नहीं सोचेंगे तब तक तस्करी पर रोक संभव नहीं है। फैक्ट्री संचालक अधिक कमाने के चक्कर में सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाने के साथ तस्करी को भी बढ़ावा दे रहे हैं।

एससी दहिया, (सेवानिवृत्त उपायुक्त, आबकारी एवं कराधान विभाग (आबकारी), गुरुग्राम।)
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