प्रदूषण रोकने के उपाय में करने होंगे बदलाव, 2020 में दिल्ली में गई 54 हजार लोगों की जान

दिल्ली को वायु प्रदूषण से बचाने के लिए पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना रोकने की योजनाओँ को व्यावहारिक बनाना होगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में वायु प्रदूषण के कारण भारत में 1.20 लाख लोगों की मौत हुई।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Sat, 20 Feb 2021 10:56 AM (IST) Updated:Sat, 20 Feb 2021 10:56 AM (IST)
प्रदूषण रोकने के उपाय में करने होंगे बदलाव, 2020 में दिल्ली में गई 54 हजार लोगों की जान
पराली जलाने से रोकने के लिए स्थानीय उपायों पर देना होगा जोर।

[पंकज चतुर्वेदी] दिल्ली समेत देश के अधिकांश महानगरों में वायु प्रदूषण की समस्या निरंतर बढ़ रही है। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2020 में वायु प्रदूषण के कारण भारत में 1.20 लाख लोगों की मौत हुई। इस दौरान अकेले दिल्ली में ही लगभग 54 हजार लोगों की जान गई है। हालांकि वायु प्रदूषण से निबटने के बारे में निरंतर चर्चा होती रही है, लेकिन अब तक इस दिशा में कुछ ठोस नहीं हो पाया है, लिहाजा उसके अपेक्षित परिणाम नहीं आए हैं।

यदि हम बात दिल्ली में पराली जनित वायु प्रदूषण की ही करें तो हाल ही में भारत सरकार के पर्यावरण और वन ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया कि पंजाब में पिछले साल की तुलना में कहीं ज्यादा पराली जलाई गई तो हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कुछ कम तो हुई, लेकिन इतनी नहीं कि वायु गुणवत्ता सुधर जाती। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि फसल अवषेश या पराली के निस्तारण हेतु किसान कल्याण विभाग ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में 2018 से 2020-21 की अवधि में एक योजना लागू की है जिसका पूरा धन केंद्र दे रहा है। इसके लिए केंद्र ने कुल 1,726.67 करोड़ रुपये जारी किए जिसका सर्वाधिक हिस्सा पंजाब को 793.18 करोड़ दिया गया। विडंबना है कि इसी राज्य में 2020 के दौरान पराली जलाने की 76,590 घटनाएं सामने आईं, जबकि 2019 में ऐसी 52,991 घटनाएं हुई थीं। जाहिर है कि पराली जलाने की घटना में इस राज्य में 44.5 फीसद का इजाफा हुआ। हरियाण में जहां 2019 में पराली जलाने की 6,652 घटनाएं हुई थीं, वहीं 2020 में पांच हजार के करीब रह गईं।

दिल्ली की आबोहवा जैसे ही जहरीली हुई तो पंजाब-हरियाणा के खेतों में किसान को पराली जलाने पर ठीकरा फोड़ा जाने लगा। हालांकि यह विज्ञान आधारित तथ्य है कि राजधानी के स्मॉग में पराली दहन का योगदान बहुत कम है, लेकिन यह भी बात जरूरी है कि खेतों में जलने वाला अवशेष असल में किसान के लिए भी नुकसानदेह है। पराली का धुआं उनकी सेहत का शत्रु है, खेती की जमीन की उर्वरा शक्ति कम करने वाला है। वैसे खेतों में फसल अवशेष जलाना गैरकानूनी है, फिर भी धान उगाने वाले ज्यादातर किसान फसल अवशेषों को उखाड़ने के बजाय वहीं जला देते हैं।

कानून की बंदिश और सरकार द्वारा प्रोत्साहन राशि के बावजूद पराली के निबटान में बड़े खर्च और दोनों फसलों के बीच बहुत कम समय के चलते बहुत से किसान अभी भी नहीं मान रहे। उधर किसानों का पक्ष है कि पराली को मशीन से निबटाने पर प्रति एकड़ कम से कम पांच हजार रुपये का खर्च आता है। फिर अगली फसल के लिए इतना समय होता नहीं कि गीली पराली को खेत में पड़े रहने दिया जाए।

विदित हो हरियाणा-पंजाब में कानून है कि धान की बोआई 10 जून से पहले नहीं की जा सकती है। इसके पीछे धारणा है कि भूजल का अपव्यय रोकने के लिए मानसून आने से पहले धान न बोया जाए, क्योंकि धान की बोआई के लिए खेत में पानी भरना होता है। फिर उसे काटने के बाद गेहूं की फसल लगाने के लिए किसान के पास इतना समय नहीं होता है कि वह फसल अवशेष का निबटान सरकार के कानून के मुताबिक करे। जब तक हरियाणा-पंजाब में धान की फसल का रकबा कम नहीं होता, या खेतों में बरसात का पानी सहेजने के उपाय नहीं किए जाते और उसी से धान की बोआई 15 मई से करने की अनुमति नहीं मिलती, पराली संकट का समाधान मुश्किल है।

हाल ही में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी, उत्कल यूनिवर्सटिी और नेशनल एटमॉस्फियर रिसर्च लैब के विज्ञानियों के संयुक्त समूह द्वारा जारी रिपोर्ट बताती है कि यदि खरीफ की बोआई एक महीने पहले कर ली जाए तो राजधानी को पराली के धुएं से बचाया जा सकता है। अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार यदि एक महीने पहले किसान पराली जलाते भी हैं तो हवा तेज चलने के कारण घुटन के हालात नहीं बनते और हवा के वेग में यह धुआं बह जाता। यदि पराली का जलना अक्टूबर-नवंबर के स्थान पर सितंबर में हो तो स्मॉग बनेगा ही नहीं।

कहने को राज्य सरकारें मशीनें खरीदने पर छूट दे रही हैं, परंतु किसानों का एक बड़ा वर्ग सरकार की सब्सिडी योजना से भी नाखुश है। उनका कहना है कि पराली को नष्ट करने की मशीन बाजार में करीब एक लाख रुपये में उपलब्ध है, लेकिन यदि सरकार से सब्सिडी वाली मशीन भी डेढ़ लाख से अधिक की मिलती है। जाहिर है सब्सिडी उनके लिए बेमानी है।

पंजाब व हरियाणा सरकारों ने पिछले कुछ वर्षो में पराली को जलाने से रोकने के लिए सीएचसी यानी कस्टम हायरिंग केंद्र भी खोले हैं। यह मशीन बैंक है, जो किसानों को उचित दाम पर मशीन किराये पर देती है। लेकिन किसान यहां से मशीन इसलिए नहीं लेता, क्योंकि उसका खर्चा इन मशीनों को किराये पर प्रति एकड़ छह हजार रुपये तक बढ़ जाता है। जब सरकार पराली जलाने पर 2,500 रुपये का जुर्माना लगाती है तो फिर किसान छह हजार रुपये क्यों खर्च करेगा? यही नहीं, इन मशीनों को चलाने के लिए कम से कम 75 हॉर्सपावर के ट्रैक्टर की जरूरत होती है, जिसके लिए अगल से खर्च करना पड़ता है। जाहिर है कि किसान को पराली जला कर जुर्माना देना ज्यादा सस्ता और सरल लगता है। ऐसे में जरूरत है माइक्रो लेवल पर किसानों के साथ मिल कर उनकी व्यावहारिक दिक्कतों को समझते हुए इसके समाधान के स्थानीय उपाय तलाशे जाएं।

[पर्यावरण मामलों के जानकार]

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