हमारे देश में अर्थव्यवस्था को तेज गति प्रदान करने वाला सबसे प्रभावी और बड़ा वर्ग मध्य वर्ग

भारत का अधिकांश मध्य वर्ग शहरी है और यह अर्थव्यवस्था की धड़कन है। हमारी अर्थव्यवस्था खपत आधारित रही है। जीवंत मध्य वर्ग एक उपभोक्ता है जो उत्पादक को निवेश करने की प्रेरणा देता है। वह अर्थव्यवस्था का पोषण करने वाला भी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 27 Feb 2021 10:08 AM (IST) Updated:Sat, 27 Feb 2021 10:08 AM (IST)
हमारे देश में अर्थव्यवस्था को तेज गति प्रदान करने वाला सबसे प्रभावी और बड़ा वर्ग मध्य वर्ग
हमारे देश में अर्थव्यवस्था को तेज गति प्रदान करने वाला सबसे प्रभावी और बड़ा वर्ग मध्य वर्ग ही है। फाइल

डॉ. विकास सिंह। हमारे देश में एक बड़ा मध्य वर्ग है जिसका अधिकांश हिस्सा शहरों में निवास करता है। यह वह वर्ग है जिस पर सरकार को अपनी ओर से तुलनात्मक रूप से अन्य वर्गो के मुकाबले कम खर्च करना पड़ता है। राजनीतिक दृष्टि से देखें तो इस वर्ग को हमेशा उसकी क्षमता से कम ही हासिल हो पाया है। देश का एक बड़ा वर्ग तो यह भी मानता है कि मध्य वर्ग राजनीतिक कथानक में अप्रासंगिक होता जा रहा है।

दरअसल हमारे नीति निर्माण में टिकल-डाउन सिद्धांत का वर्चस्व कायम हो गया लगता है और यह इस गलत धारणा के आसपास केंद्रित है कि असमानता तेज विकास का एक सह-उत्पाद है। यह अपने आप में एक गुमराह करने वाला तथ्य है कि शीर्ष पर रहने वालों का लाभ धीरे धीरे नीचे तक जाएगा। इसे टिकल-डाउन सिद्धांत के रूप में बताया जाता है। लेकिन वर्तमान में इसे पलटने की जरूरत है। इसका कारण यह है कि उठता हुआ ज्वार सभी नावों को उठा पाने में सक्षम नहीं होता है।

यही समय है जब नीति निर्माताओं को यह समझना होगा कि वास्तव में आíथक विकास का एक वैकल्पिक सिद्धांत भी है। दशकों से नीति निर्माताओं ने दो सामाजिक समूहों पर ध्यान केंद्रित किया है, परिणामस्वरूप उच्च और निम्न आय वर्ग और आíथक विकास में मध्य वर्ग की सामाजिक व आíथक भूमिका की उपेक्षा हुई है। जबकि मध्य वर्ग न केवल देश के आíथक विकास में अहम भूमिका निभाता है, बल्कि परोक्ष रूप से अन्य कई वर्गो का भार भी उठाता है।

गरीबों के पास वोट की ताकत : मध्य और वेतनभोगी वर्ग की निराशा को समझना बहुत मुश्किल काम नहीं है। वे उपेक्षित तो हैं ही, सरकार के परोपकारिता के लाभों से भी वंचित हैं। सीमांत और मध्य आय वाले किसानों के लिए कर छूट को जो समझता है, उसके लिए यह समझना मुश्किल हो जाता है कि अमीर और संपन्न वर्ग को टैक्स के दायरे से बचने की सुविधा क्यों दी जाती है। यह पूरी तरह से गलत व्यवस्था है।

दरअसल हमारा मध्य वर्ग अर्थव्यवस्था में एक उपभोक्ता के रूप में निवेश करता है और इस प्रकार से वह सरकारी खजाने में योगदान देता है। वह न केवल गरीबों, बल्कि उन लोगों का भी बोझ उठाता है, जो सरकारी खजाने में योगदान नहीं करते हैं। समानांतर रूप में देखें तो परोक्ष करों पर सरकार की निर्भरता और बढ़ गई है। परोक्ष करों का हिस्सा अब सकल कर राजस्व का लगभग आधा है। लगभग एक दशक पहले यह 40 प्रतिशत से भी कम था। अर्थव्यवस्था के लिए यह सही स्थिति नहीं है। यह भी देखने में आया है कि गरीबों और मध्य वर्ग के लोगों से परोक्ष कर उनकी आय के अनुपात के रूप में अधिक प्राप्त होता है।

मध्य वर्ग एक बड़े निर्वाचन क्षेत्र की तरह है जिसका दायरा व्यापक है। उसकी खर्च करने की क्षमता (90 हजार रुपये से लेकर साढ़े तीन लाख रुपये तक सालाना है) के पैमाने में लगभग 40 प्रतिशत देशवासी शामिल हो जाएंगे। भोजन, आश्रय और अन्य मूल बातों के बाद वे अपनी आमदनी का लगभग एक तिहाई हिस्सा उपभोक्ता वस्तुओं, स्वास्थ्य देखभाल और आवास में निवेश आदि में व्यय करते हैं। निम्न मध्य वर्ग औसतन सवा लाख रुपये सालाना खर्च करते हैं। इनमें से अधिकांश प्लंबर, बढ़ई, इलेक्टिशियन से लेकर अनेक प्रकार के संगठित कारोबार से जुड़े हैं। एक बड़ा हिस्सा बाहरी लोगों यानी प्रवासियों का भी है जो देश का अपरिहार्य कार्यबल है। कई लोग आसानी से इस समूह के भीतर आगे बढ़ते हैं और इसी तरह मध्य वर्ग में प्रवेश कर रहे हैं।

मध्य वर्ग का निरंतर विस्तार : इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कई काम सही हुए हैं। पिछले तीन दशकों के तीव्र विकास ने बहुत से लोगों को गरीबी के दायरे से बाहर निकाला है। विकास और जनसांख्यिकी के कारण परिवर्तन और गतिशीलता सहज है। यहां तक कि यदि आधे गरीब मध्य-आय में परिवíतत होते हैं, तो हम आगामी पांच वर्षो में लगभग 70 करोड़ की आबादी के मध्य वर्ग को देख पाएंगे। इस संबंध में किए गए एक हालिया अध्ययन से यह बात सामने आई है कि मध्य वर्ग में यह विस्तार सामान्य रूप से घरेलू खपत में तेजी लाएगा और विवेकाधीन खर्च को बढ़ाएगा, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू है। वर्ष 2030 तक दुनिया में एक अरब उपभोक्ता मध्य वर्ग में शामिल हो जाएंगे और हर चौथा मध्यवर्गीय उपभोक्ता भारत में निवास करेगा।

मध्य वर्ग (आकांक्षी) के लगभग 20 प्रतिशत का उपभोग पैटर्न अलग है। वे युवा हैं तथा इनमें से अधिकांश महानगरों में रहते हैं। मनोरंजन, स्वास्थ्य, लक्जरी, ड्यूरेबल्स और गतिशीलता पर खर्च करने की संभावना उनमें अधिक है। क्रय शक्ति अनुरूपता उनकी आय को मजबूती प्रदान करती है और जैसे ही उनकी आय का स्तर समान जीवन शैली में उनके अमेरिकी साथी की आय के एक तिहाई के आसपास पहुंचता है तो ऐसे परिवार वाहन और अपने घर का खर्च वहन करने में सक्षम हो जाते हैं। इससे भोजन, आवास और कपड़े से लेकर विवेकाधीन वस्तुओं की खपत में तेजी आने की संभावना है। इसी तरह प्रत्येक परिवार में कमाई करने वाले सदस्यों की संख्या में बढ़ोतरी समग्र उपयोग (खपत) को बढ़ाती है जिससे अर्थव्यवस्था को बड़ी मजबूती मिलती है।

विवेकाधीन खर्च एक ताकतवर मल्टीप्लायर : किसी खपत संचालित अर्थव्यवस्था में पैटर्न उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उपभोग का आकार। यह भारत जैसी असमान अर्थव्यवस्थाओं में अधिक प्रासंगिक है, जहां एक तिहाई लोग केवल मौलिक जरूरतें पूरी कर पाने में सक्षम हैं। ऐसा अब और नहीं होना चाहिए। मध्य वर्ग की आíथक व्यापकता पर 16 राज्यों में खपत और आय वर्गो की विविधता पर केंद्रित एक हालिया अध्ययन यह दर्शाता है कि सामान्य रूप से विकास के जटिल तंत्र और विशेष रूप से आíथक विकास को समझने के लिए केवल आकार पर्याप्त नहीं है। अध्ययन में उपभोग और विकास के बीच संबंध पर नीति निर्माताओं के बीच समझ की कमी पर भी प्रकाश डाला गया है।

उद्यमिता और आविष्कार मध्य वर्ग में निहित हैं, खासकर बेहतरी के लिए। अभाव रहित जीवन उन्हें निवेश करने, तलाशने, आविष्कार करने और कुछ नया करने की सुविधा प्रदान करता है। उनमें उच्च सामाजिक स्तर के प्रति उत्साह होता है। इसके लिए अनुकूलित सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र कायम करने और स्टार्ट-अप पूंजी को बढ़ावा देने से वे कामयाब होंगे। अमीर वर्ग पर आधारित विकास की तुलना में मध्य आय आधारित विकास की कई अन्य विशेषताएं भी हैं। दरअसल मजबूत मध्य वर्ग एक आíथक संबल है, जो मंदी के खिलाफ हमारी अर्थव्यवस्था को एक सुरक्षा जाल प्रदान करता है। वे विश्वास का स्नोत और मेहनती हैं, जो व्यापारिक लेन-देन को ज्यादा कुशल बनाते हैं। वे शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करते हैं, मानव पूंजी का निर्माण करने सहित कई अन्य सामाजिक मापदंडों को आगे बढ़ाते हैं। सरकार को इस दिशा में अधिक ध्यान इसलिए भी देना चाहिए, क्योंकि एक कमजोर मध्य वर्ग शासन के लिए नुकसानदायी है। जैसे-जैसे देश का धन कुछ ही लोगों के पास केंद्रित होता जाता है, वे अनुपातहीन शक्ति का उपयोग करते जाते हैं, लिहाजा सामाजिक विसंगतियां पैदा होती हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सही मायने में इस बात की सराहना करते हैं कि स्थिर और आत्मनिर्भर लोकतंत्र को एक मजबूत मध्य वर्ग और असमानता के अपेक्षाकृत निम्न स्तर की आवश्यकता है। बढ़ती आय असमानता की समस्या से आíथक विषमता पैदा होती है। दीर्घकाल में इसके कई गंभीर दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं। यही कारण है कि मध्य वर्ग का हमारी आíथक नीति पर भी ध्यान केंद्रित होना चाहिए, न कि केवल सामाजिक नीति पर। ऐसे में मध्य-आय वर्ग के योगदान को पहचान देने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री का बड़ा लक्ष्य इस वर्ग के लोगों को अनेक प्रकार की सुविधाएं प्रदान करते हुए उन्हें उन्नति की राह पर अग्रसर करना है, ताकि देश की अर्थव्यस्था को गति मिल सके।

व्यक्तिगत आयकर से जुड़ा मिथक: मध्य वर्ग में एक बड़ा हिस्सा नौकरीपेशा लोगों का है, जो वेतनभोगी है और अपने व्यक्तिगत आयकर का थोक भुगतान करता है। इस मिथक को तोड़ने की जरूरत है कि आयकर दाता पिरामिड के निचले हिस्से के लोग सरकारी कोष में बहुत कम रकम का योगदान करते हैं। इस मामले में आंकड़े अलग ही तथ्य बयान करते हैं। कर निर्धारण वर्ष 2019 में डेढ़ लाख रुपये तक का कर अदा करने वाला यह वर्ग कुल मिलाकर छह साल पहले की 23.5 हजार करोड़ रुपये की कर राशि की तुलना में यह रकम लगभग 66 हजार करोड़ रुपये थी। नीति निर्माताओं को यह समझने और स्वीकार करने की आवश्यकता है कि सरकार इन छोटे कर चुकाने वाले व्यक्तियों, जो डेढ़ लाख रुपये से नीचे की आमदनी वाले हैं, उनके द्वारा भुगतान किए गए आय करों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अजिर्त करती है। जो लोग इसमें योगदान करते हैं, वे केवल इस बात की उम्मीद करते हैं कि उनके द्वारा किए गए योगदान का एक हिस्सा उन्हें कृपा और नकदी दोनों तरीकों से वापस मिलना चाहिए।

राजनीतिक ताकत की समझ का विकास: जैसे-जैसे अमीर मध्य वर्ग से दूर होते हैं, उनकी संबंधित राजनीतिक शक्ति से लोकतांत्रिक देश के ढांचे के विकृत होने की आशंका बढ़ती जाती है। हमारे देश में शीर्ष 10 प्रतिशत धनी लोगों के पास देश की 75 प्रतिशत से अधिक संपत्ति है। लिहाजा उनका राजनीतिक असर बढ़ना स्वाभाविक है। इससे देश के मध्य वर्ग को नुकसान होता है। उनकी किस्मत एक तरफ शासन की गुणवत्ता में जुड़ी हुई है, तो दूसरी तरफ विकास से। वे स्वाभाविक रूप से अमीरों की तुलना में दूरदर्शी और निष्पक्ष नीतियों को बढ़ावा देने में अनुकूल रुचि रखते हैं।

हालांकि वर्ष 2019 में 35,000 मतदाताओं के बीच किया गया अध्ययन एक परेशान करने वाली घटना की ओर इशारा करता है। जब कोई उम्मीद करता है कि मध्य वर्ग अधिक राजनीतिक रूप से सक्रिय हो, तो वे विपरीत दिशा में जाने की बात करते हैं। वे बहुत कम आवाज उठाते हैं और प्राय: उदासीन होते हैं। वे राजनीतिक रूप से प्रभावित करने वाले लोगों के साथ कम जुड़ते हैं और अपनी राजनीतिक ताकत को कम आंकते हुए इस प्रक्रिया में बहुत कम शामिल होते हैं। राजनीतिक वर्ग भी इन तथ्यों को अच्छी तरह से समझने लगा है। वे इनके विचारों को नजरअंदाज करते हैं और यहां तक कि उनकी जरूरतों को अनदेखा और अस्वीकार भी कर देते हैं।

[मैनेजमेंट गुरु तथा वित्तीय एवं समग्र विकास के विशेषज्ञ]

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