स्वच्छता के जन आंदोलन को आगे बढ़ाने और सशक्त बनाने में ‘मन की बात’ का बड़ा योगदान

स्वच्छ भारत के प्रति प्रधानमंत्री मोदी के इस समर्पण ने 130 करोड़ देशवासियों को स्वच्छ भारत मिशन के साथ भावनात्मक रूप से जोड़ा है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 20 Nov 2018 11:37 PM (IST) Updated:Wed, 21 Nov 2018 05:00 AM (IST)
स्वच्छता के जन आंदोलन को आगे बढ़ाने और सशक्त बनाने में ‘मन की बात’ का बड़ा योगदान
स्वच्छता के जन आंदोलन को आगे बढ़ाने और सशक्त बनाने में ‘मन की बात’ का बड़ा योगदान

[ रोल्फ लुवंजक ]: वर्ष 2014 में भारत में ग्रामीण स्वच्छता कवरेज मात्र 39 प्रतिशत था। आज वह 96 प्रतिशत से अधिक हो गया है। इस सफलता में व्यवहार परिवर्तन पर केंद्रित संवाद की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। स्वच्छ भारत मिशन इन अर्थों में भाग्यशाली है कि इसके कम्यूनिकेटर-इन-चीफ स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। 15 अगस्त, 2014 को लाल किले की प्राचीर से कार्यक्रम की उद्घोषणा से लेकर 2 अक्टूबर, 2018 को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन में विश्व को संदेश देने तक प्रधानमंत्री ने स्वच्छता के महत्व को दर्शाने और उसे जन आंदोलन बनाने के प्रत्येक अवसर का पूरा उपयोग किया। इस संवाद प्रक्रिया में सबसे प्रभावी माध्यम रहा रेडियो। आकाशवाणी प्रसार की दृष्टि से सबसे व्यापक और सुलभ है।

देश के 95 प्रतिशत से अधिक लोगों तक पहुंच वाले इस माध्यम से उन्होंने राष्ट्र से मासिक संबोधन की शृंखला आरंभ की। यह संवाद ‘मन की बात’ सबसे प्रभावी माध्यम साबित हुआ। ‘मन की बात’ का पहला प्रसारण स्वच्छ भारत अभियान के आगाज के अगले ही दिन यानी 3 अक्टूबर, 2014 को हुआ। तबसे ‘मन की बात’ स्वच्छता के जन आंदोलन को आगे बढ़ाने और सशक्त करने का बड़ा स्नोत बना हुआ है। इसके माध्यम से प्रधानमंत्री ने उन आम नागरिकों की प्रेरक कहानियों को सामने रखा जिन्होंने समाज में स्वच्छता सुनिश्चित की और लाखों अन्य नागरिकों को प्रेरणा दी। ‘मन की बात’ में प्रसारित कुछ विशेष थीम्स की चर्चा आवश्यक है।

पहली, सितंबर, 2016 में उन्होंने व्यापार जगत का आह्वान किया कि जमीनी स्तर पर स्वच्छता का कार्य करने हेतु युवाओं को लामबंद करें। इससे सबसे सफल कॉरपोरेट युवा कार्यक्रम ‘जिला स्वच्छ भारत प्रेरक’ की शुरुआत हुई जो अन्य सरकारी कार्यक्रमों और कॉरपोरेट के लिए अनुकरणीय बना। अप्रैल 2018 में उन्होंने पुन: युवाओं का आह्वान किया कि वे स्वच्छ भारत ग्र्रीष्म इंटर्नशिप का हिस्सा बनें। उनके आह्वान पर चार लाख से अधिक छात्रों ने इंटर्नशिप के लिए आवेदन किया ताकि ग्र्रीष्म अवकाश में वे जमीनी स्तर पर स्वच्छता हेतु गांवों में काम कर सकें। इससे पहले 2015 में भी प्रधानमंत्री ने एक सुझाव दिया कि लोग महान व्यक्तियों की प्रतिमाएं स्वच्छ रखने में योगदान दें। तबसे सैकड़ों स्वयंसेवकइस कार्य को कर रहे हैं। ‘स्वच्छता ही सेवा’ से लेकर ‘स्वच्छ संकल्प से स्वच्छ सिद्धि’ तक कई अन्य पहल में प्रधानमंत्री ने जन-जन को जोड़ने का आह्वान किया। उनके आह्वान पर करोड़ों लोग देश की सफाई में अपना समय और स्वच्छता के प्रयासों में अपना योगदान देकर स्वच्छता अभियान से जुड़ गए।

दूसरी थीम आम नागरिकों का उल्लेख कर उन्हें स्वच्छता चैंपियन की पहचान देकर सम्मानित करने और उन्हें राष्ट्रीय मंच पर प्राथमिकता देने की रही। इससे अन्य भारतवासी भी ऐसी ही पहल के लिए प्रेरित हुए। मिसाल के तौर पर जून 2016 में उन्होंने एक सेवानिवृत्त सरकारी अध्यापक का उल्लेख किया जो स्वच्छ भारत के लिए हर महीने अपनी पेंशन का एक तिहाई हिस्सा दान में देते हैं। अगस्त 2016 में उन्होंने इसी तरह एक किशोरी के प्रयासों को सलाम किया जिसने शौचालय की अपनी मांग न सुने जाने पर अपने ही परिवार के विरुद्ध अनशन किया। न केवल आम लोगों, बल्कि अभिताभ बच्चन और अक्षय कुमार जैसी तमाम हस्तियों को संबोधित करने के लिए भी उन्होंने इस मंच का उपयोग किया और इस मिशन में उनके द्वारा किए गए योगदान की सराहना की। फरवरी 2017 में उन्होंने पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेश्वरन अय्यर की भी सराहना की जिन्होंने स्वयं शौचालय के गड्ढे में उतरकर अपने हाथों से सफाई की। इस उल्लेख ने देश भर के सरकारी कर्मचारियों को स्वच्छता हेतु कार्य करने की प्रेरणा दी जिससे परिवारों द्वारा स्वयं शौचालयों और शौचालय के गड्ढों की सफाई करने की हिचक दूर करने में मदद मिली।

तीसरी थीम में ऐसे संदेश हैं जो प्रधानमंत्री समय-समय पर लोगों को भेजते हैं- मौसम में बदलाव या आम त्योहारों पर उनके सफाई के आह्वान स्वच्छता में जन-भागीदारी के संदेश को प्रतिबिंबित करते हैं। मानसून की शुरुआत भारत में कई जल-जनित बीमारियां लाती है। ऐसे समय में वह लोगों को समझाते हैं कि वे अपने घरों के आसपास पानी का जमाव न होने दें और बीमारी के प्रकोप से बचने के लिए साफ-सफाई रखें। अगस्त, 2017 में उन्होंने गणेश जी की हरित मूर्तियों का उल्लेख किया जिन्हें जल को प्रदूषित किए बिना विसर्जित जा सकता है।

चौथी और संभवत: सबसे महत्वपूर्ण थीम यह है कि उनके संबोधनों में अक्सर भारत के आम लोगों के संदेश और रिकॉर्डेड कॉल शामिल होती हैं जिनके जरिये लोग अपने अनुभव और विचार प्रधानमंत्री से साझा करते हैं। ‘मन की बात’ के दूसरे संस्करण में उन्होंने मध्य प्रदेश के एक व्यक्ति के संदेश की चर्चा की जिसने बताया कि कैसे स्वच्छ भारत मिशन के शुभारंभ के एक महीने के बाद ही रेलवे में उसके सहयात्रियों ने कचरा फैलाना कम कर दिया। सितंबर 2015 का संबोधन तब विशेष रूप से यादगार रहा जब प्रधानमंत्री ने कहा, ‘लोकतंत्र की शक्ति को देखो, एक लड़के ने प्रधानमंत्री को आदेश दिया है।’ इसके बाद उन्होंने उस लड़के से प्राप्त एक ऑडियो संदेश चलाया जिसमें उसने मांग रखी थी कि देश में हर कोने और सड़क पर कचरा इकट्ठा होने से रोकने के लिए एक कूड़ेदान हो। उन्होंने उसकी भावना और युवा पीढ़ी के स्वच्छता के प्रति जुनून की सराहना की।

हाल में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन के जिन मुख्य कारकों के बारे में बात की उसमें पहला था ‘राजनीतिक नेतृत्व।’ नि:संदेह भारतीय प्रधानमंत्री अपने स्वच्छता नेतृत्व पर खरे उतरे हैं। उन्होंने अपने 49 रेडियो संबोधनों में से 36 में स्वच्छता के महत्व को रेखांकित किया। स्वच्छ भारत मिशन की सफलता सभी देशों के लिए वैश्विक स्तर पर एक सबक साबित हुई है।

स्वच्छ भारत के प्रति प्रधानमंत्री मोदी के इस समर्पण ने 130 करोड़ देशवासियों को स्वच्छ भारत मिशन के साथ भावनात्मक रूप से जोड़ा है। आज जबकि भारत खुले में शौच से मुक्ति की ओर अग्रसर है तब यह कहना उचित होगा कि भारत के स्वच्छता कम्यूनिकेटर-इन-चीफ के रेडियो संबोधनों से स्वच्छता के प्रति जनमानस में एक अभूतपूर्व चेतना का संचार हुआ है। उन्होंने अक्टूबर, 2017 में स्वयं ही इसका सार प्रस्तुत करते हुए कहा था, ‘कई लोगो ने ‘स्वच्छ भारत’ के बारे में मुझे लिखा। मुझे लगता है कि यदि मुझे उनकी भावनाओं को न्याय दिलाना है तो ‘मुझे मन की बात’, कार्यक्रम प्रत्येक दिन करना होगा।’

[ लेखक जल आपूर्ति एवं स्वच्छता सहयोग परिषद-डब्लूएसएससीसी-के कार्यकारी निदेशक हैं ]

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