विपक्ष की उम्‍मीदों पर खरा नहीं उतरा नी‍तीश का महाराष्‍ट्र पर बयान, भाजपा नेताओं के खिले चेहरे

Maharashtra Political Crisis बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू करने का समर्थन करके विपक्ष की उम्मीदों पर एक तरह से पानी ही फेरा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 16 Nov 2019 02:26 PM (IST) Updated:Sun, 17 Nov 2019 12:13 AM (IST)
विपक्ष की उम्‍मीदों पर खरा नहीं उतरा नी‍तीश का महाराष्‍ट्र पर बयान, भाजपा नेताओं के खिले चेहरे
विपक्ष की उम्‍मीदों पर खरा नहीं उतरा नी‍तीश का महाराष्‍ट्र पर बयान, भाजपा नेताओं के खिले चेहरे

बिहार, मनोज झा। Maharashtra Political Crisis: कई बार नेताओं के मुंह से निकले एक शब्द या एक वाक्य न सिर्फ तस्वीर का रुख पलट देते हैं, बल्कि उसका संदेश दूर तक जाता है। इस क्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू करने का समर्थन करके विपक्ष की उम्मीदों पर एक तरह से पानी ही फेरा है। साथ ही प्रकारांतर से बिहार में सत्तारूढ़ राजग गठबंधन की दशा-दिशा को भी स्पष्ट करने की कोशिश की है।

भाजपा विपक्षी दलों के निशाने पर

महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर चल रही रस्साकसी और आखिरकार राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर भाजपा विपक्षी दलों के निशाने पर है। साथ ही राजग से शिवसेना के बाहर निकलने के बाद विपक्ष की निगाहें भाजपा के अन्य सहयोगी दलों के रुख-रवैये पर भी लगी हुई है। ऐसे में नीतीश कुमार के ताजा बयान ने एक तरह से यह इशारा कर दिया है कि बिहार में राजग गठबंधन को लेकर किसी भी तरह की कयासबाजी की फिलहाल कोई जरूरत नहीं है। सरकार न सिर्फ मजे में चल रही है, बल्कि आगे भी यह मेल-जोल कायम रहेगा।

महाराष्ट्र के घटनाक्रम को लेकर तमाम निगाहें नीतीश पर

हालांकि बिहार में सत्तारूढ़ राजग गठबंधन में फिलहाल किसी प्रकार के विवाद या खींचतान जैसी कोई बात तो नहीं है, लेकिन पड़ोसी राज्य झारखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा की सहयोगी जनता दल (यू) और लोक जनशक्ति पार्टी के अलग राह पकड़ने को लेकर कई सवाल फिजा में तैर रहे हैं। वहां जदयू और लोजपा ने भाजपा से अलग होकर अपने बूते चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इससे ठीक पहले अभी महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने को लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। इसके ठीक बाद जदयू के नेता केसी त्यागी ने राजग में आपसी संवाद प्रक्रिया को सहज बनाने को लेकर एक समन्वय समिति के गठन की बात कह दी। इस परिप्रेक्ष्य में महाराष्ट्र के घटनाक्रम को लेकर तमाम निगाहें इस बात पर थीं कि नीतीश क्या बोलते हैं।

बिहार में राजग एकजुट

खासकर विपक्ष को उम्मीद थी कि नीतीश राष्ट्रपति शासन की निंदा करेंगे। हालांकि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा। ऐसे में मुख्यमंत्री के बयान ने विपक्ष को निश्चित रूप से निराश किया होगा। उन्होंने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन का यह कहकर एक प्रकार से समर्थन किया कि इसके अलावा वहां कोई दूसरा विकल्प था ही नहीं। इसके ठीक एक दिन पहले भी जब पत्रकारों ने उनसे शिवसेना के राजग से नाता तोड़ने के बारे में पूछा था तो भी उन्होंने दो टूक लहजे में यह कहा था कि इस बात से उन्हें या फिर जदयू का आखिर क्या लेना-देना। मतलब कि नीतीश ने महाराष्ट्र के पूरे घटनाक्रम में भाजपा या वहां के राज्यपाल के फैसले का प्रकारांतर से समर्थन किया है। इससे बिहार में संशय के थोड़े बहुत जो बादल मंडरा भी रहे थे, वे फिलहाल छंट गए हैं। साथ ही यह बात भी साफ हो गई है कि बिहार में राजग एकजुट है।

विपक्षी खेमे में शांति और मेलजोल

निश्चित रूप से नीतीश के बयान से भाजपा नेतृत्व को भी राहत मिली होगी। बिहार में जहां तक सियासी एकजुटता का प्रश्न है तो विपक्षी खेमे में भी इन दिनों थोड़ी शांति और मेलजोल दिखाई दे रहा है। पिछले दिनों सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में लोकसभा चुनाव के बाद ऐसा पहली बार हुआ, जब विपक्ष के सारे घटक दल मिल-जुलकर सड़क पर उतरे। और तो और, इसमें वाम दलों ने भी शिरकत की। यह अलग है कि रालोसपा के आह्वान पर हुए इस प्रदर्शन से राजद के नेता तेजस्वी यादव ने दूर रहकर विपक्ष की खुशियों को थोड़ा फीका कर दिया। हालांकि उनकी पार्टी ने इसमें शिरकत की, लेकिन खुद नेता की गैर-मौजूदगी के चलते फिर से कई पुराने सवाल अनसुलझे ही रह गए। माना जा रहा था कि लंबे समय के बाद विपक्षी दलों के कंधे से कंधा मिलाने के इस उपक्रम में तेजस्वी हिस्सा लेंगे। साथ ही विपक्ष की मोर्चाबंदी की कमान एक बार फिर से अपने हाथों में लेंगे। फिलहाल तेजस्वी ने दूरी बनाकर विपक्ष की गुत्थियों को अभी उलझाए ही रखा है।

मांझी और सहनी के साथ आने से विपक्ष के महागठबंधन का हौसला बढ़ा

लोकसभा चुनाव के बाद से हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी तेजस्वी पर लगातार निशाना साध रहे थे। अभी पिछले दिनों विधानसभा उपचुनाव में मांझी के अलावा विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी ने भी राजद नेता को निशाने रखा था। मांझी और सहनी ने तो कुछ सीटों पर राजद प्रत्याशियों के खिलाफ अपने उम्मीदवार भी उतारे थे। तब ऐसा लग रहा था कि विपक्ष तितर-बितर होने के करीब है। ऐसे में प्रदर्शन में मांझी और सहनी के साथ आने से विपक्ष के महागठबंधन का हौसला जरूर बढ़ा है।

बावजूद इसके, तेजस्वी की अगली चाल पर पूरे विपक्ष की नजर टिकी है। कुल मिलाकर बिहार के सियासी हाल पर यह कहा जा सकता है कि अगले साल विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों ओर से पेशबंदियां और गोलबंदियां तेज होने लगी हैं। हां, इतना जरूर है कि सत्तारूढ़ राजग में जहां चीजें स्पष्ट और एकजुट दिखाई दे रही हैं, वहीं विपक्ष का सच्चे मन से कंधे से कंधा मिलाना अभी बाकी है।

[स्थानीय संपादक, बिहार]

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