टिड्डियां तो खड़ी फसल ही सफाचट करतीं हैं, दादा का दल तो पूरा खेत ही चट कर जाने की फिराक में था

एक दिन काया मिट्टी में मिल जानी है उसने यह कहकर मेरे प्लॉट को हथियाने के लिए अपना विनम्र भाव दिखाया और अपने असलहाधारी साथियों समेत वापस लौट गया।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 11 Jul 2020 11:55 PM (IST) Updated:Sun, 12 Jul 2020 12:59 AM (IST)
टिड्डियां तो खड़ी फसल ही सफाचट करतीं हैं, दादा का दल तो पूरा खेत ही चट कर जाने की फिराक में था
टिड्डियां तो खड़ी फसल ही सफाचट करतीं हैं, दादा का दल तो पूरा खेत ही चट कर जाने की फिराक में था

[ सूर्यकुमार पांडेय ]: वह हमारे इलाके का सर्वपूजित दादा है। आज वह सदल-बल मेरे घर आ धमका था। गनीमत यह थी कि उसके साथ के अन्य संगी-साथियों ने फिजिकल दूरी का ध्यान रखा। तब भी मैं चौकन्ना था। उस दादा ने विनम्रतापूर्वक मेरे चरण स्पर्श करने चाहे। मैं छिटक कर पीछे हट गया। वह हंसते हुए बोला, ‘सर, मेरी आदत है। जब भी मैं अपने सामने किसी विद्वान को देखता हूं, मन में उसकी चरण-धूलि लेने की इच्छा अनायास ही जाग जाया करती है। कोरोना का भय है इसलिए आज मैं आपको हाथ भी लगाने से वंचित हूं। आप तो बस, दूर से ही सही, अपना हाथ मेरे सिर पर रख दीजिए।’ मैंने माहौल को हल्का बनाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘विवशता है, अन्यथा आपको अपने सामने झुक जाने मात्र से आज मैं इतना सम्मानित अनुभव कर रहा हूं, जितना तब भी नहीं किया था, जब मेरे ससुर ने मेरे विवाह के समय मेरे पांव पूजे थे। वैसे, आपके आगमन का क्या कोई विशेष प्रयोजन है?’

बरसों से खाली पड़े प्लॉट पर भू माफिया की नीयत खराब

वह मिठाइयों का एक पैकेट मेरे पांव के पास रखते हुए बोला, ‘आप विद्वान व्यक्ति हैं, यह मुझे जैसे ही पता चला, मैं आपको प्रणाम करने आपके द्वार तक चला आया हूं।’ यह बात सभी जानते हैं कि आज के समय में कोई किसी को बेमतलब आदर नहीं देता। वह दादा भी कोरोना काल में यूं ही नहीं आया था। मेरा नगर के मुख्य बाजार में एक बड़ा-सा प्लॉट है। बरसों से खाली पड़ा है। मैंने कई बार मन बनाया कि कुछ पूंजी का जुगाड़ हो तो वहां कुछ दुकानें बनवा दूंगा। मगर आज तक हैसियत नहीं बन पाई। लोगों ने बताया भी था कि इस पर भू माफिया की नीयत खराब हो रही है। पड़ोसी दुकानदारों ने अच्छी कीमतें भी ऑफर की थीं।

संकट में अवसर तलाशते दादा, कोरोना के चलते प्लॉट पर अस्पताल बनवाऊंगा

बहरहाल लॉकडाउन खुलने के बाद से ही मैं प्लॉट की बाउंडरी बनवाने की सोच ही रहा था कि आज यह दादा प्रकट हो गया। हालांकि वह मेरे पैर नहीं छू पाया था, लेकिन अब वह मेरे पांव के नीचे की जमीन खिसकाने ही वाला था। वह बोला, ‘न मत कीजिएगा। आपके प्लॉट पर मैं एक अस्पताल बनवाऊंगा। आपको भी पुण्य मिलेगा। जब से यह कोरोना फैला है, देश में स्वास्थ्य सेवाओं की नितांत आवश्यकता है। देशसेवा का यह अवसर हाथ से न जाने दीजिए।’ वह संकट में अवसर तलाश रहा था। मैं सब समझने के बावजूद अनजान बनते हुए बोला, ‘भैया, मैं कुछ समझा नहीं। आप तो स्वयं समर्थ हो। आपको किसी के सामने हाथ फैलाने की क्या जरूरत? आप तो रेत पर भी पांव रगड़ दोगे, तो वहां से पानी निकल आएगा।’ दादा खिलखिला उठा और कहने लगा, ‘आप तो हीरा हैं। एक बार मेरी पीठ पर अपने पांव रख दीजिए। आपकी चरण-रज से मणि-कांचन संयोग बन जाएगा।’

दादा भी अपने टिड्डी-दल जैसे साथियों के साथ आया और पूरा खेत ही चट कर जाने की फिराक में था

जैसे टिड्डी-दल झुंड में हमला करता है। वैसे ही दादा भी अपने टिड्डी-दल जैसे साथियों के साथ आया था। टिड्डियां तो खड़ी फसलों को ही सफाचट करतीं हैं, दादा का दल तो आज पूरा खेत ही चट कर जाने की फिराक में था। वह मुस्कुराता हुआ बोला, ‘मेरे रहते आपको किसी चिंता की जरूरत नहीं। बस, यूं समझ लीजिए कि ‘मैंने आपको अपनी वीटो पॉवर दे दी है। अब आपके पड़ोसी भी आपसे पंगा लेने में सौ बार सोचेंगे। इस समय वह चीन हो रहा था और मुझे पाकिस्तान और नेपाल समझ रहा था। तनिक सोचिए, एक महान समाजसेवा के कार्य में आपकी भागीदारी भी होगी और इसी बहाने अपने इलाके के अनेक रोगियों को उपचार मिलेगा।’ सच ही है कि हर चतुर व्यक्ति निजी लाभ को भी सार्वजनिक कल्याण का जामा पहनाकर उल्लू सीधा करने में सिद्धहस्त होता है।

मैंने अपनी मिट्टी की काया को छूकर देखा सिर से पांव तक पसीने से तर-ब-तर थी

एक दिन हमारी-आपकी काया मिट्टी में ही मिल जानी है, उसने यह कहकर मेरे प्लॉट को हथियाने के लिए अपना विनम्र भाव दिखाया और अपने असलहाधारी साथियों समेत वापस लौट गया। उसके जाते ही मैंने अपनी मिट्टी की काया को छूकर देखा। वह सिर से पांव तक पसीने से तर-ब-तर थी।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]

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