संकट में अवसर की खोज करने वाले लोगों का जीवन नदी के पानी जैसा निरंतर बहते रहने जैसा होता है

वह घाट-घाट का पानी पी चुके हैं तब भी जहां कहीं पर चुल्लू भर पानी दिख जाता है तो वह वहां पर अपना मुंह सबसे पहले आगे कर देते हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 07 Jul 2019 01:04 AM (IST) Updated:Sun, 07 Jul 2019 01:04 AM (IST)
संकट में अवसर की खोज करने वाले लोगों का जीवन नदी के पानी जैसा निरंतर बहते रहने जैसा होता है
संकट में अवसर की खोज करने वाले लोगों का जीवन नदी के पानी जैसा निरंतर बहते रहने जैसा होता है

[ सूर्यकुमार पांडेय ]: भाई साहब हमारे कस्बे के भगीरथ कहे जाते हैं। दूर-दराज के इलाकों में भी उनके ही टैंकर पानी पहुंचाते हैं। वह विनम्रता की प्रतिमूर्ति हैं। जब भी मिलते हैं, अपनी अंजुरी फैलाए हुए मिलते हैं। उनके होंठों से सदैव अजीब किस्म की प्यास टपकती रहती है। वह ताल, तलैया, पोखर, नदी और यहां तक कि समंदर को भी सोखने की शक्ति रखते हैं। नहरों और रजबहों की तो खैर उनके आगे औकात ही क्या है? छोटी-मोटी जलधाराएं तो उलटा उनसे ही पानी की गुहार लगाती हैं।

बड़ों-बड़ों को पानी पिला देने की क्षमता

वह चीज ही कुछ ऐसी हैं कि स्वयं प्यास संपन्न होते हुए भी बड़ों-बड़ों को पानी पिला देने की क्षमता रखते हैं। इतना ही नहीं, हमारे इलाके के सभी लोग इस बात से भी वाकिफ हैं कि भाई साहब सरेराह किसी को भी पानी-पानी कर सकते हैं। हालांकि वह घाट-घाट का पानी पी चुके हैं, तब भी जहां कहीं पर चुल्लू भर पानी दिख जाता है तो वह वहां पर अपना मुंह सबसे पहले आगे कर देते हैं।

ज्ञानी का स्वभाव जल जैसा होता है

पानी के मामले में वह समदर्शी हैं। गटर का पानी हो अथवा मिनरल वाटर, वह दोनों पर समान दृष्टि रखते हैं। कोई हाथ लगाए, उससे पहले वह अपना दावा ठोक देते हैैं। द्रवित होना तो कोई उनसे सीखे। देश-प्रदेश में जिस भी दल की सरकार होती है, वह उसी पार्टी के खेमे की ओर बह जाते हैं। द्रव बनने के मामले में वह ठोस होने की काबिलियत रखते हैं। भाई साहब का मानना है कि इस धरती पर मूर्ख ही प्यासे रहते हैं। ज्ञानी तो वह होता है जो रेगिस्तान के बीच में खड़ा होकर भी अपनी खातिर नखलिस्तान तलाश लेता है। उनका स्वभाव भी जल जैसा ही तरल है। जब जिस पात्र में रहे, वैसा ही आकार ग्रहण किया। जब भी जिससे मिले, उसकी कृपा के जल से नहाकर ही लौटे। तालाब, बावड़ी या कुएं के पानी जैसा ठहराव उन्हें कतई नापसंद है।

बहती गंगा में हाथ धोना

वह नदी-नहर के पानी जैसा निरंतर बहते रहने के हिमायती हैं। हालांकि भाई साहब इससे भलीभांति अवगत हैं कि नहर में जरूरत के वक्त ही पानी छोड़ा जाता है। इसलिए वह हमेशा ऐसे ही किसी अनुकूल अवसर की तलाश में लगे रहते हैं। वक्त-जरूरत पड़ने पर अपनी आंखों में पानी भर लेने की कला हमारे इन भाई साहब से सीखी जा सकती है। उन्हें नाली के पानी की तरह बहने से भी कोई गुरेज नहीं है, बशर्ते इसमें निजी लाभ की संभावना दिखलाई पड़ती हो! मीडिया वालों को देखते ही उनके मुंह मे पानी सा आ जाया करता है। गोया औरों को पानी पर चढ़ाने और खुद बहती गंगा में हाथ धोने में वह सिद्धहस्त हैं।

जीने की कला

भाई साहब की इस कला की ख्याति का आलम है कि यदि वह नदी के तट पर जाकर बस खड़े भर हो जाएं तो संभव है कि उसके किनारे खुद दो-चार सेंटीमीटर अंदर खिसक जाएं। वह लहर गिनकर पैसे कमाना जानते हैं। लहरें उठें या न उठें, भाई साहब में उन्हें भी पैदा करने की सामर्थ्य है। वैसे भी, चुनाव वगैरह के टाइम वह किसी के भी पक्ष में लहर मोड़ने में मैनेजमेंट के उस्ताद समझे जाते हैं। ऐसे मौकों पर वह खाने के साथ पीने का प्रबंध करने में माहिर हैैं। उनकी यही कला उन्हें सदाबहार बनाए रखती है।

पानी की समस्या और जल संरक्षण

भाई साहब की गिनती इलाके के पानीदार लोगों में होती है। इसीलिए जब हमारे यहां पानी की समस्या विकराल हो गई तो सभी को सबसे पहले भाई साहब ही याद आए। जब से प्रधानमंत्री ने अपनी ‘मन की बात’ में जल संरक्षण पर खासा बल दिया है, भाई साहब भी लहालोट हैं। अब उन्हें आए दिन हमारे इलाके में ‘पानी बचाओ’ अभियान की अगुआई करते हुए देखा जा सकता है। जल-संकट का निदान करने से कितना पुण्यलाभ होगा, भाई साहब ने इसका गुणा-भाग कर लिया है। यह तो पीढ़ियों को तारने का काम है।

जल संकट से उबारने के भगीरथ प्रयास

सूखे में नाव चलाने की उनकी बरसों की अतृप्त कामना कंठ के मार्ग से झरने की मानिंद फूट पड़ी है। पिछले हफ्ते भाई साहब ने अपनी वाणी को और अधिक धाराप्रवाह बनाते हुए कहा था, ‘आज से मैं नाम से ही नहीं, अपने काम से बनूंगा इस कस्बे का नया भगीरथ।’ और अब भगीरथ बनने की दिशा में उनके प्रयास अपना रंग भी दिखलाने लग गए हैं।

जल को शक्ति देने का काम

कल ही कस्बे के मेन मार्केट में भाई साहब के भांजे की हैंडपंप की होलसेल एजेंसी खुल गई है। उनका कहना है कि इसके जरिये वह जल को शक्ति देने का काम कर रहे हैैं। वह ऐसी ही बातें करते हैैं और कभी-कभी तो यह दावा करने लगते हैैं कि उनके पुरखों ने ही पानीपत का युद्ध भी लड़ा था।

हर संकट में अवसर खोज लेने की क्षमता

यदि भविष्य में उनके विरोधियों ने उनके किए-कराए पर पानी नहीं फेरा तो कल को यह भी हो सकता है कि हमारे कस्बे के लिए प्रस्तावित नई पानी की टंकी के निर्माण का ठेका भी उनके ही किसी रिश्तेदार के पास होगा। ऐसी विकट संभावना से भी इसलिए इन्कार नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह हर संकट में अपने लिए अवसर खोज लेते हैैं।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]

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