Earth Day 2021: पृथ्वी को सहेजने का अंतिम अवसर, वर्तमान पीढ़ी वह आखिरी पीढ़ी है, जो पर्यावरण असंतुलन को रोकने के लिए कुछ कर सकती है

इतिहास में बड़े परिवर्तन लोगों के एकजुट प्रयास से ही आए हैं। वर्तमान पीढ़ी वह आखिरी पीढ़ी है जो पर्यावरण असंतुलन को रोकने के लिए कुछ कर सकती है। क्या आप अपनी धरती की सेहत के सुधार के लिए प्रतिदिन कुछ करेंगे?

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 22 Apr 2021 02:58 AM (IST) Updated:Thu, 22 Apr 2021 07:13 AM (IST)
Earth Day 2021: पृथ्वी को सहेजने का अंतिम अवसर, वर्तमान पीढ़ी वह आखिरी पीढ़ी है, जो पर्यावरण असंतुलन को रोकने के लिए कुछ कर सकती है
पृथ्वी पर जितना इंसानों का हक है, उतना ही अन्य प्रजातियों का भी।

[ डॉ. अनिता भटनागर जैन ]: इस बार पृथ्वी दिवस का विषय ‘हमारी पृथ्वी का जीर्णोद्धार’ और ‘प्रत्येक व्यक्ति के पर्यावरण पर प्रभाव को कम करने’ पर केंद्रित है। सवाल है कि यह पृथ्वी किसकी है? केवल मनुष्य की या समस्त जीव-जंतुओं की? वास्तव में इस पृथ्वी पर जितना इंसानों का हक है, उतना ही अन्य प्रजातियों का भी। यह अलग बात है कि वे बेजुबान हैं और अपने लिए संविधान नहीं बना सकते। मनुष्य और अन्य जीव-जंतुओं को जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन चाहिए। पेड़-पौधे हमें यह जीवनदायिनी ऑक्सीजन देते हैं। बदले में हम पेड़-पौधों को कार्बन डाईऑक्साइड देते हैं। बिना पेड़-पौधों के तो हमें भोजन भी नहीं मिल सकता। इसीलिए हमारी संस्कृति में सदैव वृक्षों और पशु-पक्षियों की पूजा की गई है। दुख की बात है कि हम मनुष्यों की बेलगाम गतिविधियों का प्रभाव धरती की अन्य सभी प्रजातियों पर पड़ रहा है। वर्तमान में विभिन्न प्रजातियों के विलुप्तीकरण की गति सामान्य से दस हजार गुना अधिक है।

25 वर्षों में 8,462 प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं, जिनमें पशु, पक्षी, वृक्ष सम्मिलित हैं

बीते 25 वर्षों में 8,462 प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं, जिनमें पशु, पक्षी, वृक्ष आदि सभी सम्मिलित हैं। गिद्ध करीब-करीब गायब हो गए हैं। अब विश्व गौरैया दिवस मनाने की नौबत आ गई है? इसके अलावा 4,415 प्रजातियां अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की ‘रेड सूची’ में हैं। हर दूसरे दिन समाचार पत्रों में एक खबर र्सुिखयों में होती है कि आज गर्मी ने इतने वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ा। इस वर्ष फरवरी में दिल्ली में सामान्य से 4.3 डिग्री सेंटीग्रेड अधिक तापमान था, जो 1901 के बाद अधिकतम था। इन दिनों कुछ जगहों पर आकाश से आग सी बरस रही है। जब सूर्य का तापमान नहीं बढ़ा तो फिर यह स्थिति क्यों? आज ग्लेशियर डरावनी गति से पिघल रहे हैं। इससे समुद्रों का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है।

समुद्रों में जा रहे प्लास्टिक के कचरे और एसिड की बढ़ती मात्रा से 700 प्रजातियां प्रभावित

दुनिया में 80 करोड़ लोग समुद्र से 100 किमी की दूरी पर रहते हैं। इनके विस्थापन का खतरा बढ़ गया है। ऐसा अनुमान है कि 2050 तक 1.5 करोड़ लोग ‘क्लाइमेट रिफ्यूजी’ होगी। समुद्रों में जा रहे प्लास्टिक के कचरे और एसिड की बढ़ती मात्रा से 700 से अधिक प्रजातियां प्रभावित हो रही हैं। माना जा रहा है कि 2050 तक मछलियां ही नहीं बचेंगी। गत 20 वर्षों में 12,000 से अधिक मौसमी आपदाएं घटित हुई हैं। भारत में जहां सूखा पड़ता था, वहां अब बाढ़ आने लगी है। गर्मी के मौसम की अवधि में बढ़ोतरी से विशेष रूप से मच्छरजनित रोग अब और अधिक लंबे समय तक हो रहे हैं।

जंगल कटने से जीव-जंतु अपने प्राकृतिक वास से वंचित हो रहे

जंगल कटने से जीव-जंतु अपने प्राकृतिक वास से वंचित हो रहे हैं। इसके कारण ऐसे कीटाणु मनुष्यों के संपर्क में आ रहे हैं, जिनसे इबोला जैसी खतरनाक बीमारियां पैदा हो रही हैं। कोरोना वायरस से उपजी कोविड महामारी भी ऐसी ही है। सवाल है कि इन सबके लिए कौन जिम्मेदार है? विडंबना देखिए कि अधिकांश लोग यह मानते हैं कि वे इस समस्या का हिस्सा नहीं हैं। तो फिर इसका निदान कैसे होगा और कौन करेगा?

सरकारी नीतियों के तहत सौर ऊर्जा पर अच्छा काम हुआ

हालांकि सरकारी नीतियों के तहत सौर ऊर्जा पर बहुत अच्छा काम हुआ है। आधुनिक इंजन के ऐसे वाहन भी आ रहे हैं, जिनसे कम कार्बन उत्सर्जन हो। ऐसे फ्रिज, एसी भी बन रहे हैं जिनसे क्लोरो फ्लोरो कार्बन यानी सीएफसी का दुष्प्रभाव कम हो, लेकिन पृथ्वी के जीर्णोद्धार के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है। अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर सरकारों द्वारा केवल योजनाएं बनाने, सिर्फ संकल्प लेने या हस्ताक्षर अभियान चलाने या एक दिवसीय कार्यक्रमों के आयोजन से भी आगे जाकर काफी कुछ करना होगा। हम अपने परिवार में कुछ आदतें बदल कर भी अपनी धरती को सहेजने में मदद कर सकते हैं।

70 साल का व्यक्ति उतनी ऑक्सीजन का उपयोग करता है जो 65 वृक्ष अपने जीवनकाल में देते हैं

सोचिए मनुष्य केवल जीवनदायिनी ऑक्सीजन को छोड़कर जीवन के लिए उपयोगी समस्त वस्तुएं खरीदता है। 70 वर्ष की आयु का व्यक्ति उतनी ऑक्सीजन का उपयोग कर लेता है, जो 65 वृक्ष अपने जीवनकाल में देते हैं। सवाल है कि आपने कितने वृक्ष लगाए और संरक्षित किए? कागज के कम उपयोग अथवा दोनों तरफ उसका उपयोग करने से भी वृक्ष बचाए जा सकते हैं। हमारे यहां अधिकांश बिजली कोयले यानी ‘डर्टी एनर्जी’ से बनती है। दुखद है कि हमारे घरों-कार्यालयों में किसी के न होने पर भी बल्ब, पंखे, एसी, कंप्यूटर चलते रहते हैं। इससे संसाधन का ह्रास होता है और प्रदूषण एवं पृथ्वी का तापमान बढ़ता है। ऐसे में जहां संभव हो, वहां प्राकृतिक रोशनी का इस्तेमाल करना चाहिए।

पेट्रोल-डीजल के साथ जल बचाने के भी विभिन्न प्रयास करने होंगे

पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान एसोसिएशन यानी पीसीआरए की रिपोर्ट के अनुसार 2006 में प्रत्येक दिन केवल दिल्ली में ही ट्रैफिक लाइट पर इंजन बंद न करने के कारण 4.22 लाख लीटर पेट्रोल और डीजल व्यर्थ हो रहा था। आज यह आंकड़ा और बढ़ गया होगा। पेट्रोल-डीजल के साथ जल बचाने के भी विभिन्न प्रयास करने होंगे। इसके अलावा इस धरती को सहेजने के लिए चार ‘आर’ जीवन में उतारने होंगे यानी रिड्यूस, रियूज, रिसाइकिल और सबसे महत्वपूर्ण रिफ्यूज यानी मना करना।

पृथ्वी के संसाधनों को बचाना होगा 

दरअसल आज हमें सामान खरीदने की मनोवैज्ञानिक बीमारी हो गई है। जिन वस्तुओं की आवश्यकता नहीं, उन्हेंं न खरीदें और न ही किसी से लें। इससे पृथ्वी के संसाधन बचेंगे। संसाधनों के अनावश्यक उपयोग रुकने से वन, पानी, बिजली, कोयला सब बचाए जा सकते हैं। ‘सिंगल यूज’ वस्तुओं के दुष्परिणाम भी गंभीर हैं। एक आकलन के अनुसार विश्व में एक दिन में 144 करोड़ प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग होता है। यदि हर कोई अपना थैला साथ रखे तो पॉलीथीन का अनावश्यक इस्तेमाल रुक सकता है। यह सोच एक सामूहिक जिम्मेदारी जागृत करेगी कि पृथ्वी हम सबकी है। इतिहास में बड़े परिवर्तन लोगों के एकजुट प्रयास से ही आए हैं। वर्तमान पीढ़ी वह आखिरी पीढ़ी है, जो पर्यावरण असंतुलन को रोकने के लिए कुछ कर सकती है। क्या आप अपनी धरती की सेहत के सुधार के लिए प्रतिदिन कुछ करेंगे?

( लेखिका सेवानिवृत्त आइएएस एवं उप्र पब्लिक सर्विसेज ट्रिब्यूनल की सदस्य हैं )

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