अपने काम से नाम बनाने वाले राजनेता जगमोहन युवा पीढ़ी के लिए आदर्श बने रहेंगे

ईमानदार राजनेता और कुशल प्रशासक जगमोहन ने अपने काम से ही अपनी पहचान बनाई। ईमानदार राजनेताओं और कुशल व कर्तव्यनिष्ठ प्रशासकों की इस अकाल में अपने ‘काम को ही पूजा’ मानने वाले जगमोहन युवा पीढ़ी के लिए आदर्श बने रहेंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 11:42 AM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 11:42 AM (IST)
अपने काम से नाम बनाने वाले राजनेता जगमोहन युवा पीढ़ी के लिए आदर्श बने रहेंगे
भारत के प्रतिठति नागरिक अलंकरणों- पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

प्रो. रसाल सिंह। ईमानदार राजनेता और कुशल प्रशासक के रूप में जगमोहन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनकी छवि एक दूरदर्शी और कठोर फैसले लेने और उनका सही व समयबद्ध कार्यान्वयन कराने वाले कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की रही है। आज की समझौता परस्त, अवसरवादी और पॉपुलिस्ट राजनीति व राजनेताओं के लिए उनका जीवन मिसाल है। उन्होंने सदैव पॉपुलिज्म की जगह अपने कर्तव्य, सिद्धांतों और जनकल्याण को प्राथमिकता दी। उन्होंने अडिग-अविचल होकर अपनी कर्तव्य पूर्ति की और उसकी राह में आने वाली हर चुनौती का सामना निडरतापूर्वक किया। किसी भी कीमत पर कभी भी समझौता नहीं किया।

25 सितंबर 1927 को अविभाजित पंजाब के हाफिजाबाद में जन्मे जगमोहन ने भारत विभाजन के दर्दनाक दृश्यों को अपनी आंखों से देखा था। उन्होंने विभाजन के फलस्वरूप हुए विस्थापन के दर्द को स्वयं भी झेला था। भारत-विभाजन और उससे पैदा होने वाले विस्थापन ने न सिर्फ उन्हें सेक्युलरिज्म के खोल में भारत में पनपी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के प्रति सजग किया, बल्कि इसके खिलाफ मुखर होने का साहस और इसके संतुलन के लिए काम करने की समझ भी दी। इसीलिए मुस्लिमपरस्त सेक्युलर लॉबी ने उनकी कार्यकुशलता और कार्यशैली को ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ कहकर अवमूल्यित करने का प्रयास किया। प्रतिष्ठित भारतीय प्रशासनिक सेवा से अपने करियर की शुरुआत करने वाले जगमोहन ने पिछली सदी के सातवें दशक में दिल्ली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के रूप में सराहनीय काम करते हुए लोगों को अपनी कार्यशैली से प्रभावित किया। बहुत जल्द वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी के निकट आ गए।

आपातकाल के दौरान वे दिल्ली के उपराज्यपाल थे। उनकी पहचान एक अत्यंत कार्यकुशल, ईमानदार और अडिग इरादों वाले मजबूत प्रशासक की बन चुकी थी। पिछली सदी के नौवें दशक में जब जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पनप रहा था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें राज्यपाल बनाकर जम्मू-कश्मीर भेजा। उन्होंने आतंकवाद को परोक्ष रूप से शह दे रही अलगाववादी शक्तियों की नकेल कसना शुरू किया। इसी क्रम में उन्होंने फारुक अब्दुल्ला की सरकार को बर्खास्त कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे जम्मू-कश्मीर आते ही इस बात को समझ गए थे कि आतंकवाद और अलगाववाद की जड़ वहां के क्षेत्रीय दल हैं। उन्होंने इस गठजोड़ को काफी हद तक तोड़ भी दिया।

राजीव गांधी के बाद प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी उन्हें दोबारा जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया। हालांकि उनका यह कार्यकाल अल्पकालीन ही रहा। जब जगमोहन ने कश्मीर घाटी में हिंदुओं पर हो रहे जुल्म को रोकने की कोशिश की और ज्यादतियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की तो दिल्ली में बैठे उनके हिमायतियों ने वीपी सिंह पर दबाव बनाकर उन्हें हटवा दिया। लेकिन 19 जनवरी 1990 की काली रात में कश्मीर घाटी में होने वाले कत्लेआम से ठीक पहले ही उन्होंने बड़ी संख्या में हिंदुओं को वहां से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाकर उनकी रक्षा करने का सराहनीय कार्य किया। उन्होंने जम्मू और लद्दाख संभाग के साथ होने वाले भेदभाव और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में हावी कश्मीरियों और मुसलमानों के वर्चस्व को संतुलित करने की कोशिश की। तमाम आतंकवादी संगठनों के अलावा पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने भी उनको खुलेआम धमकियां दीं। लेकिन उन्होंने इन गीदड़भभकियों की तनिक भी परवाह किए बिना और भी मजबूत इरादों के साथ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की रीढ़ तोड़ने का काम किया। इस दौर के अपने अनुभवों को उन्होंने अपनी बहुर्चिचत पुस्तक ‘माइ फ्रोजन टर्बुलेंस इन कश्मीर’ में अभिव्यक्त किया है।

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में उन्होंने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की स्थापना करके श्रद्धालुओं के चढ़ावे के उपयोग में पारदर्शिता सुनिश्चित की। उल्लेखनीय है कि इसी राशि से श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है। अस्पताल आदि और भी अनेक सामाजिक कार्य इसी चढ़ावे से होते हैं। उन्होंने वैष्णो देवी यात्रा और अमरनाथ यात्रा को विकसित, व्यवस्थित और सुविधाजनक भी किया। जगमोहन का दृढ़ विश्वास था कि अनुच्छेद 370 राष्ट्रीय एकीकरण की सबसे बड़ी बाधा है। यह अनुच्छेद ही जम्मू-कश्मीर को भारत से अलगाता है। यही जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान के अन्य तमाम प्रविधानों को लागू नहीं होने देता। उन्होंने इसे अस्थायी और संक्रमणकालीन प्रविधान मानते हुए इसे जल्द-से-जल्द समाप्त करने की बात खुलकर की।

दिल्ली की मुस्लिमपरस्त सेक्युलर लॉबी के दबाव में जब उन्हें जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल पद से अकारण कार्यमुक्त कर दिया गया तो वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नजरों में आ गए। उनके काम करने के तरीके ने ही उन्हें आगे और अधिक काम करने के अवसर दिलाए। वे कम-से-कम चार प्रधानमंत्रियों के पसंदीदा ‘टफ टास्क मास्टर’ थे। उनकी कार्यशैली ने उनके जितने विरोधी तैयार किए, उससे कहीं ज्यादा उनके प्रशंसक भी बनाए। संघ के आग्रह पर वे भाजपा में शामिल हो गए और नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से तीन बार वर्ष 1996, 1998 और 1999 में निर्वाचित हुए। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वह शहरी विकास, संचार और पर्यटन मंत्री रहे। सार्वजनिक जीवन में उनके उल्लेखनीय योगदान और राष्ट्र-सेवा के लिए उन्हें भारत के प्रतिठति नागरिक अलंकरणों- पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

[अधिष्ठाता, छात्र कल्याण, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय]

chat bot
आपका साथी