बेलगाम इंटरनेट मीडिया कंपनियां: अभिव्यक्ति की आजादी को रोकने के लिए नहीं, कंपनियों के नियमन के लिए लाए गए आइटी नियम

आइटी नियम अभिव्यक्ति की आजादी को रोकने के लिए नहीं बल्कि बेलगाम इंटरनेट कंपनियों का नियमन करने के लिए लाए गए हैं। इंटरनेट मीडिया कंपनियां इसलिए बेलगाम हो रही हैं क्योंकि उन्हेंं कोई देसी कंपनी चुनौती देने की स्थिति में नहीं है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 03:59 AM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 07:06 AM (IST)
बेलगाम इंटरनेट मीडिया कंपनियां: अभिव्यक्ति की आजादी को रोकने के लिए नहीं, कंपनियों के नियमन के लिए लाए गए आइटी नियम
भारत इंटरनेट मीडिया कंपनियों के लिए बड़ा बाजार

[ संजय गुप्त ]: अमेरिका की दिग्गज इंटरनेट मीडिया कंपनियों गूगल, फेसबुक और ट्विटर ने दुनिया भर के सामाजिक व्यवहार पर व्यापक प्रभाव डाला है। जहां गूगल एक सर्च इंजन है, वहीं फेसबुक और ट्विटर सूचना एवं संवाद के लगभग एक जैसे प्लेटफार्म हैं। इन पर कोई भी अपनी बात लिख सकता है। फेसबुक और ट्विटर के प्रभाव और उनकी पहुंच से समाज में एक क्रांति सी आ गई है। इस क्रांति के साथ कुछ दुष्परिणाम भी सामने आए हैं। सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह है कि कोई कितनी भी आपत्तिजनक या भड़काऊ टिप्पणी करे, उसके खिलाफ ये प्लेटफार्म मुश्किल से ही कोई कार्रवाई करते हैं। इसका नतीजा यह है कि इन प्लेटफार्म पर गाली-गलौज करने, माहौल बिगाड़ने और अशांति फैलाने वाले भी सक्रिय हैं। इस समय ट्विटर और फेसबुक का इस्तेमाल लगभग सारी राजनीतिक पार्टियां कर रही हैं। इन प्लेटफार्म के जरिये उनके लिए अपनी बात लोगों तक पहुंचाना बहुत सुगम हो गया है।

लोगों के डाटा का इस्तेमाल

इन प्लेटफार्म के अलावा दुनिया में ऐसी भी कंपनियां हैं, जो लोगों के डाटा का कई तरह से इस्तेमाल करती हैं। ऐसी ही एक कंपनी है कैंब्रिज एनालिटिका, जिसने फेसबुक से लाखों लोगों का डाटा हासिल कर कई देशों के चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की थी। उनमें भारत के भी लोग थे। कैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनियां लोगों की मन:स्थिति और उनकी रुचि के आधार पर विज्ञापन एवं अन्य सामग्री लोगों तक पहुंचाने का काम करती हैं। कभी-कभी वे गुपचुप रूप से लोगों की राजनीतिक पसंद को प्रभावित करने का भी काम करती हैं। आम तौर पर ट्विटर और फेसबुक जैसे प्लेटफार्म ही लोगों का डाटा इन कंपनियों को उपलब्ध कराते हैं।

भारत इंटरनेट मीडिया कंपनियों के लिए बड़ा बाजार

इंटरनेट मीडिया कंपनियां यह दावा करती हैं कि वे एक सोशल नेटवर्क प्लेटफार्म हैं और जो लोग उनके प्लेटफार्म का इस्तेमाल करते हैं, उनकी टिप्पणियों के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, पर पिछले दिनों यूरोपियन यूनियन ने सख्त कानून बनाकर इन इंटरनेट मीडिया कंपनियों को नियंत्रित किया है और उनकी जबावदेही तय की है, ताकि वे गलत जानकारी और हिंसक विचारों को बढ़ावा न दे सकें। भारत इन इंटरनेट मीडिया कंपनियों के लिए बहुत बड़ा बाजार है। इन कंपनियों की आय उनके प्लेटफार्म पर आने वाले यूजर्स की संख्या से निर्धारित होती है। जहां परंपरागत मीडिया कंपनियों के लिए हर देश में यह कानून है कि उसे अपनी सामग्री के लिए जिम्मेदार होना पड़ेगा, वहीं इंटरनेट मीडिया कंपनियां इससे बचना चाह रही हैं।

जिम्मेदारी से बचने के लिए इंटरनेट कंपनियां ले रहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ 

जिम्मेदारी से बचने के लिए वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ ले रही हैं। नि:संदेह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है, लेकिन इस अधिकार की अपनी सीमाएं भी हैं। यह अधिकार अतिवादी और आतंकी तत्वों को नहीं मिल सकता। यदि उन्हें यह अधिकार मिल गया तो वे अशांति, उपद्रव फैलाने का काम कर सकते हैं। ट्विटर, फेसबुक जैसी इंटरनेट मीडिया कंपनियों के आने के बाद अराजक, आतंकी और अतिवादी तत्वों को सक्रिय होने का अवसर मिल गया है। ऐसे तत्व जहां पहले पोस्टर, बैनर, पर्चे के जरिये अपनी बात कुछ लोगों तक ही पहुंचा पाते थे, वहीं अब इन मीडिया कंपनियों के जरिये मिनटों में लाखों लोगों तक अपनी बात पहुंचा देते हैं। अक्सर ये कंपनियां ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करतीं। यह एक तथ्य है कि विश्व में तमाम स्थानों पर अशांति और उपद्रव फैलाने में इन कंपनियों को ही माध्यम बनाया गया।

इंटरनेट मीडिया कंपनियों की मनमानी को काबू में करना जरूरी

इंटरनेट मीडिया कंपनियां कुछ भी दावा करें, हर देश को अब इसका अहसास हो रहा है कि अगर इन कंपनियों की मनमानी पर काबू नहीं पाया गया तो अराजकता और अशांति पर लगाम लगाना कठिन होगा। भारत सरकार ने पिछले दिनों इंटरनेट मीडिया कंपनियों के लिए सूचना प्रौद्योगिकी (आइटी) संबंधी जो नियम बनाए, उन्हें मानने से ये कंपनियां और खासकर ट्विटर इन्कार कर रहा है। इसीलिए उसे संसदीय समिति की फटकार का सामना करना पड़ा। उसकी हीलाहवाली के बाद भी सरकार अडिग है। उसने ट्विटर के इंटरमीडियरी के दर्जे को खत्म कर दिया है। आइटी नियमों के अनुसार इंटरनेट मीडिया कंपनियों को शिकायतों के समाधान के लिए शिकायत निवारण तंत्र स्थापित कर एक शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी।

अश्लीलता वाली सामग्री परोसने की नहीं होगी अनुमति

एक अन्य नियम के अनुसार इन कंपनियों को एक मासिक अनुपालन रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी और मुख्य अनुपालन अधिकारी एवं एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति भी करनी होगी। इसके अलावा इस तरह की सामग्री परोसने की अनुमति नहीं होगी, जिसमें अश्लीलता हो, किसी की मानहानि होती हो या निजता का हनन होता हो। ऐसे कंटेंट को भी प्रतिबंधित किया गया है, जिससे भारत की एकता और अखंडता को खतरा हो। भड़काऊ संदेशों के मामले में यह बताना होगा कि उन्हें सबसे पहले किसने भेजा या डाला?

देश के लोगों का डाटा देश में ही, लाया जाएगा डाटा प्रोटेक्शन एक्ट

आने वाले समय में इंटरनेट मीडिया कंपनियों पर इसके लिए भी दबाव डाला जाएगा कि वे देश के लोगों का डाटा भारत में ही रखें। इसके लिए डाटा प्रोटेक्शन एक्ट लाया जा रहा है। यह जरूरी भी है, क्योंकि देश के लोगों का डाटा किसी भी सूरत में बाहर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि उसे अवैध तरीके से बेचे जाने या फिर उसका दुरुपयोग किए जाने का खतरा है।

देसी कंपनी चुनौती देने की स्थिति में नहीं  इसलिए इंटरनेट मीडिया कंपनियां हो रहीं बेलगाम

इंटरनेट मीडिया कंपनियां इसलिए बेलगाम हो रही हैं, क्योंकि उन्हेंं कोई देसी कंपनी चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। भारत के विपरीत चीन ने गूगल, फेसबुक, ट्विटर और वाट्सएप के विकल्प बना लिए हैं और उसने इन सब अमेरिकी कंपनियों को प्रतिबंधित कर दिया है। भारत को चीन के रास्ते नहीं जाना, लेकिन उसे इन कंपनियों जैसी तकनीकी सामर्थ्य तो हासिल करनी ही चाहिए। भारत में कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर नए आइटी नियमों का विरोध कर रहे हैं, लेकिन यह अंध मोदी विरोध के अलावा और कुछ नहीं।

आइटी नियम बेलगाम इंटरनेट कंपनियों का नियमन करने के लिए लाए गए

ये लोग राजनीतिक कारणों से इसकी अनदेखी कर रहे हैं कि इंटरनेट मीडिया कंपनियां किस तरह बेलगाम होती जा रही हैं। ये लोग इससे भी अनजान बन रहे हैं कि आज जिस समस्या से मोदी सरकार जूझ रही है, वह एक वास्तविक समस्या है। क्या यह चाहा जा रहा है कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर लोगों को नफरत और अशांति फैलाने की भी इजाजत दे दी जाए? अच्छा होगा कि यह समझा जाए कि आइटी नियम अभिव्यक्ति की आजादी को रोकने के लिए नहीं, बल्कि बेलगाम इंटरनेट कंपनियों का नियमन करने के लिए लाए गए हैं।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]

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