बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर के बिना भारतीय उच्च शिक्षा को विश्व स्तरीय बनाना आसान नहीं, चाहिए सक्षम नेतृत्व

सरकारी शिक्षा संस्थाओं के कमजोर होने से ही देश में निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ती जा रही है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 27 Feb 2020 01:53 AM (IST) Updated:Thu, 27 Feb 2020 01:53 AM (IST)
बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर के बिना भारतीय उच्च शिक्षा को विश्व स्तरीय बनाना आसान नहीं, चाहिए सक्षम नेतृत्व
बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर के बिना भारतीय उच्च शिक्षा को विश्व स्तरीय बनाना आसान नहीं, चाहिए सक्षम नेतृत्व

[ बद्री नारायण ]: भारत में उच्च शिक्षा एक बार फिर अपनी समस्याओं से उबरने की कोशिश कर रही है। इन समस्याओं में प्रमुख हैं आर्थिक संकट, पाठ्यक्रमों की अप्रासांगिकता, विश्वविद्यालयों में छात्र एवं प्रशासन के बीच टकराव, योग्य शिक्षकों एवं छात्रों का अभाव। कई विश्वविद्यालयों में अभी भी दशकों पुराने पाठ्यक्रम पढ़ाए जा रहे हैं। उच्च शिक्षा योग्य एवं सक्षम शैक्षिक नेतृृत्व के संकट से भी दो चार हो रही है।

उच्च शिक्षा को विश्व स्तरीय बनाना आवश्यक है

ऐसे में उच्च शिक्षा में नवाचार लाने एवं उसे विश्व स्तर के उत्कृट शिक्षा संस्थानों के समकक्ष खड़ा करने की चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। दुख की बात है कि हम उच्च शिक्षा को विश्व स्तरीय बनाने की चिंता करने के बजाय छिटपुट सुधारों पर ही ज्यादा बल देने में अपने सारी ऊर्जा लगा दे रहे हैं। सच्चाई यह है कि आज शिक्षा का हमारा घर टूटा-बिखरा हुआ है। उम्मीद की जाती है कि नई शिक्षा नीति में इसे संवारने और नया आकार देने के बारे में सोचा गया होगा।

भारतीय उच्च शिक्षा को जरूरत है बेहतरीन शैक्षिक नेतृत्व की 

आज भारतीय उच्च शिक्षा की एक बड़ी जरूरत है-योग्य एवं अकादमिक रूप से बेहतरीन शैक्षिक नेतृत्व का विकास। वर्तमान में तमाम विश्वविद्यालयों में युवा आंदोलित हैं। छात्र-प्रशासन के बीच तनाव, हिंसा-टकराव आम बात हो गई है। इसके अलावा पाठ्यक्रमों में नवाचार लाने, योग्य फैकल्टी एवं छात्र समुदाय के विकास की चुनौतियां भी विश्वविद्यालयीय शिक्षा के सामने मुंह बाए खड़ी हैं। अगर विश्वविद्यालयों को अच्छे एवं योग्य कुलपति मिलें तो इससे उनकी आधी समस्याएं हल हो सकती हैं। भारतीय उच्च शिक्षा को एक ऐसे शैक्षिक नेतृत्व की जरूरत है जिसके पास उच्च अकादमिक प्रतिमान एवं ठोस प्रशासनिक निर्णय लेने के साथ ही बढ़ती संवादहीनता को दूर करने के गुण हों।

शैक्षिक नेतृत्व देने में राज्यपालों की बड़ी भूमिका हो सकती है

उच्च शिक्षा को ऐसा शैक्षिक नेतृत्व देने में राज्यपालों की बड़ी भूमिका हो सकती है। जहां भी संवेदनापूर्ण शैक्षिक समझदारी वाले राज्यपाल एवं उनके अकादमिक सलाहकार मंडल हैं वहां बेहतर कुलपति बनाए गए हैं और जिन विश्वविद्यालयों में दक्ष कुलपति बनाए गए हैं उनमें बेहतर माहौल बनाने में मदद मिली है। आज इसकी कहीं जरूरत है र्कि ंहदी पट्टी के विश्वविद्यालय अपना खोया हुआ गौरव फिर से हासिल करें। अच्छा यह है र्कि ंहदी पट्टी में कई अनुभवी राजनेता राज्यपाल पद पर हैं। उनके पास लंबा अनुभव विद्यमान है। ऐसे में पहली उम्मीद हमें ऐसे राज्यपालों से जगती है।

विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में सतत बदलाव होते रहना चाहिए

पाठ्यक्रमों में समय के अनुरूप सतत परिवर्तन उच्च शिक्षा में नवाचार लाने में हमारी बड़ी मदद कर सकता है। हमारे यहां अनेक विश्वविद्यालयों में पिछले 40-50 वर्षों में पाठ्यक्रमों में बदलाव नहीं किए गए हैं। जबकि हमें स्थानीय लोक समाज, वहां की भाषा, संस्कृति, वहां के उद्योग, स्थानीय तकनीकी एवं अन्य जरूरतों के आधार पर पाठ्यक्रमों में सतत बदलाव करते रहना चाहिए। इन बदलावों में हमें स्थानीयता एवं वैश्विकता, दोनों ही परिप्रेक्ष्य को शामिल करना चाहिए।

उच्च शिक्षा बिना बदलाव के पुरानी लय में बढ़ रही है

आज भारत में विकसित हो रहा उद्योग जगत अपनी जरूरतों के आधार पर प्रशिक्षित युवा वर्ग की तलाश कर रहा है और हमारी उच्च शिक्षा बिना इसकी परवाह किए पुरानी लय में बढ़ती जा रही है। आज उच्च शिक्षा को स्थानीय, वैश्विक, सामाजिक एवं औद्योगिक जरूरतों के मुताबिक नया रूप देने की आवश्यकता है। दुनिया के बड़े विश्वविद्यालयों में लगभग हर साल शिक्षक अपने पाठ्यक्रमों में नवाचारगामी बदलाव करते रहते हैं।

 विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम बदलवाने की प्रक्रिया को सरल एवं सहज बनाना होगा

हमारे यहां पाठ्यक्रम बदलने की पूरी प्रक्रिया पर नौकरशाही की पकड़ इतनी मजबूत है कि वह हमारी ऊर्जा एवं समय का अच्छा खासा भाग ले लेती है। हमें अपने विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम बदलवाने की प्रक्रिया को सरल एवं सहज बनाना ही होगा। पब्िलक प

छात्रों एवं शिक्षकों को बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रदान करना

इसके अलावा एक उम्मीद उच्च शिक्षा में सरकारी मदद के साथ ही पबलिक प्राइवेट पार्टनरशिप की संभावनाएं तलाश कर अपने छात्रों एवं शिक्षकों को बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रदान करने से जुड़ी है। आज हमारे उद्योग जगत को अपने लिए प्रशिक्षित युवाओं की तलाश है। ऐसे में उनके भी कुछ प्रतिनिधियों को हमें अपने विश्वविद्यालयों के परामर्शदात्री समिति में रखना बेहतर होगा। बतौर उदाहरण उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्च शिक्षा को दिशा देने के लिए उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा परिषद बनाई है, जिसमें एक सदस्य उद्योग जगत से होगा। ऐसे प्रयास उच्च शिक्षा को सामाजिक जरूरतों से जोड़ने में मददगार हो सकेंगे।

उच्च शिक्षा में नवाचार परिसरों को तनाव, टकराहट एवं हिंसा से उबार सकता है

हमारे विश्वविद्यालय परिसर युवा आक्रोश के केंद्र बनते जा रहे हैं। अगर हम उच्च शिक्षा में नवाचार लाएं तो मनोवैज्ञानिक स्तर पर युवाओं को शांत करने में मदद मिलेगी। उच्च शिक्षा के संस्थानों में जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर होने से भी मनोवैज्ञानिक स्तर पर युवाओं में उपेक्षा की भावना को खत्म करने में मदद मिलेगी, जो हमारे युवाओं में कई बार आक्रोश का बड़ा कारण बनती है। जब हमारे छात्र महसूस करेंगे कि उनकी इस शिक्षा की प्रासंगिकता है और नौकरी-बाजार में उसका महत्व रहेगा तो वे अपनी शिक्षा के साथ जुड़ाव बनाए रखेंगे। विश्वविद्यालय एवं कॉलेज परिसर में हमारे शैक्षिक नेतृत्व का अपने छात्र समुदाय के साथ सकारात्मक संवाद भी शिक्षा परिसरों को तनाव, टकराहट एवं हिंसा से उबार सकेगा।

सरकारी शिक्षण संस्थाओं के कमजोर होने से निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ रही है

उच्च शिक्षा में बढ़ते संकट के प्रति सबको सजग होना होगा। सरकारी शिक्षा संस्थानों का बेहतर होना गरीबों, मध्यवर्ग, दलितों, उपेक्षितों के लिए प्राणवायु की तरह है। सरकारी शिक्षा संस्थाओं के कमजोर होने से ही देश में निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ती जा रही है। उनके इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं वेतन के बड़े पैकेज सरकारी विश्वविद्यालयों के भी नामी-गिरामी शिक्षकों एवं शोधकर्ताओं को आकर्षित करते जा रहे हैं। ऐसे में हमें शिक्षा व्यवस्था के भीतर बढ़ रही कमजोरी को जल्द से जल्द दूर करना होगा।

( लेखक गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, प्रयागराज के निदेशक हैं )

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