सतह पर आया जनसंख्या का मसला: जनसंख्या विस्फोट को रोकना और आबादी में कमी से बचना भी है

यूपी सरकार द्वारा प्रस्तावित जनसंख्या नीति और असम द्वारा तैयार की जा रही दो बच्चों की जनसंख्या नीति की तरह देश के अन्य प्रदेश भी आर्थिक और बुनियादी संसाधनों की चुनौतियों के बीच उपयुक्त जनसंख्या वृद्धि दर के लिए दो बच्चों की नीति तैयार करने के लिए दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ेंगे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 13 Jul 2021 04:37 AM (IST) Updated:Tue, 13 Jul 2021 04:37 AM (IST)
सतह पर आया जनसंख्या का मसला: जनसंख्या विस्फोट को रोकना और आबादी में कमी से बचना भी है
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल में उत्तर प्रदेश जनसंख्या नीति 2021-2030 जारी की।

[ डॉ. जयंतीलाल भंडारी ]: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल में उत्तर प्रदेश जनसंख्या नीति 2021-2030 जारी की। इस नई जनसंख्या नीति का उद्देश्य जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य प्राप्त करना, मातृ मृत्यु और बीमारियों के फैलाव पर नियंत्रण, नवजात और पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की मृत्यु रोकना और उनकी पोषण स्थिति में सुधार करना है। उत्तर प्रदेश की तरह देश के अन्य राज्यों में ही नहीं, वरन राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए आगे बढ़ने की भी जरूरत है। ज्ञात हो कि इन दिनों देश की जनसंख्या से संबंधित विभिन्न रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि भारत में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण आर्थिक-सामाजिक चुनौतियां लगातार विकराल रूप लेती जा रही हैं। ऐसी स्थिति में भारत में जहां एक ओर जनसंख्या विस्फोट को रोकना जरूरी है, वहीं दूसरी ओर जनसंख्या में कमी से भी बचना होगा। इसी परिप्रेक्ष्य में जहां देश में कुछ राज्य दो बच्चों की जनसंख्या नीति के लिए आगे बढ़ रहे हैं, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर सुप्रीम कोर्ट से भी जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग की जा रही है। सप्रीम कोर्ट में जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग करने वाले याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा है कि देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन, कृषि भूमि, पेयजल और अन्य मूलभूत जरूरतों की उपलब्धता की तुलना में जनसंख्या लगातार चिंताजनक स्थिति निर्मित करते हुए दिखाई दे रही है। याचिका में यह भी मांग की गई है कि चूंकि जनसंख्या नियंत्रण समवर्ती सूची में हैं, इसलिए कोर्ट केंद्र सरकार को निर्देश दे कि वह नागरिकों के गुणवत्तापरक जीवन के लिए कड़े और प्रभावी नियम, कानून और दिशानिर्देश तैयार करे।

चूंकि संसाधनों को विकसित करने की रफ्तार जनसंख्या वृद्धि की दर से कम है इसलिए तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या देश की र्आिथक-सामाजिक समस्याओं की जननी बनकर विकास के लिए खतरे की घंटी दिखाई दे रही है। बढ़ती जनसंख्या के कारण देश गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल और सार्वजनिक सेवाओं की कारगर प्राप्ति जैसे मापदंडों पर बहुत पीछे नजर आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के मुद्दों पर प्रकाशित मानव विकास सूचकांक 2020 में 189 देशों की सूची में भारत 131वें पायदान पर है। वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में 107 देशों की सूची में भारत 94वें स्थान पर है। विश्व बैंक द्वारा तैयार 174 देशों के वार्षिक मानव पूंजी सूचकांक 2020 में भारत का 116वां स्थान है। यह सूचकांक मानव पूंजी के प्रमुख घटकों स्वास्थ्य, जीवन प्रत्याशा, स्कूल में नामांकन और कुपोषण पर आधारित है।

यद्यपि इस समय करीब 141 करोड़ आबादी वाला चीन दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश का दर्जा रखता है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा जून 2019 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 2027 तक सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के तौर पर चीन से आगे निकल जाने का अनुमान है। ज्ञातव्य है कि भारत दुनिया का पहला देश है, जिसने अपनी जनसंख्या नीति बनाई थी, लेकिन जनसंख्या वृद्धि दर आशा के अनुरूप नियंत्रित नहीं हो पाई। एक आकलन के मुताबिक 2020 में भारत की जनसंख्या करीब 138 करोड़ पर पहुंच गई थी। दुनिया की कुल जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी लगभग 17.5 फीसद है, जबकि पृथ्वी के धरातल का मात्र 2.4 प्रतिशत हिस्सा ही भारत के पास है।

एक ऐसे समय में जब चीन जनसंख्या और विकास के मॉडल में अपनी भूल संशोधित कर रहा है, तब जनसंख्या और अर्थ विशेषज्ञ चीन के जनसंख्या परिवेश से भारत को कुछ सीख लेने की सलाह देते हुए दिखाई दे रहे हैं। उनका मत है कि भारत में जहां एक ओर जनसंख्या विस्फोट को रोकना जरूरी है, वहीं जनसंख्या में ऐसी कमी से भी बचना होगा कि भविष्य में विकास की प्रक्रिया और संसाधनों का दोहन मुश्किल न होने पाए। मौजूदा परिवेश में यह जरूरी है कि ‘हम दो हमारे दो’ की नीति को दृढ़तापूर्वक अपनाया जाए। इससे जहां भविष्य में श्रमबल चिंताओं से दूर रहकर विकास की डगर पर लगातार आगे बढ़ा जा सकेगा, वहीं तेजी से बढ़ती जनसंख्या से निर्मित हो रही गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, शहरीकरण, मलिन बस्ती फैलाव जैसी कई चुनौतियों को नियंत्रित भी किया जा सकेगा।

इसमें कोई दो मत नहीं कि यदि देश में जनसंख्या नियंत्रित रही तो भारत के युवाओं को उपयुक्त शिक्षण और प्रशिक्षण से मानव संसाधन के रूप में उपयोगी बनाया जा सकता है। भारत की जनसंख्या में करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा उन लोगों का है, जिनकी उम्र 25 साल से कम है। ऐसे में वे कुशल मानव संसाधन बनकर देश के लिए आर्थिक शक्ति बन सकते हैं। कोविड-19 के बीच देश के साथ-साथ दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं को संभालने में भारत की कौशल प्रशिक्षित नई पीढ़ी प्रभावी भूमिका निभा रही है। वर्क फ्रॉम होम की प्रवृत्ति को व्यापक तौर पर स्वीकार्यता से आउटसोर्सिंग को बढ़ावा मिला है। कोरोना की चुनौतियों के बीच भारत के आइटी सेक्टर द्वारा समय पर दी गई गुणवत्तापूर्ण सेवाओं से वैश्विक उद्योग-कारोबार इकाइयों का भारत की आइटी कंपनियों पर भरोसा बढ़ा है।

हम उम्मीद करें कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित जनसंख्या नीति और असम द्वारा तैयार की जा रही दो बच्चों की जनसंख्या नीति की तरह देश के अन्य प्रदेश भी आर्थिक और बुनियादी संसाधनों की चुनौतियों के बीच उपयुक्त जनसंख्या वृद्धि दर के लिए दो बच्चों की नीति तैयार करने के लिए दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ेंगे। उम्मीद यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण के लिए उपयुक्त दिशा निर्देश देने के लिए आगे बढ़ेगा। इससे ही समाज और देश विकास की डगर पर अपेक्षित तेजी के साथ आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे सकेगा।

( लेखक अर्थशास्त्री हैं )

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