Interest Rate Policies: विकासशील देशों में ब्याज दर में बदलाव करने का व्यावहारिक निर्णय

यह सही है कि देश में पिछले कुछ समय से सरकारी लघु बचत योजनाओं के तहत ब्याज दरों में कटौती की गई है। ब्याज दरों में हाल के वर्षो में की गई कमी को यदि वैश्विक लिहाज से देखा जाए तो तर्कसंगत कहा जा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 09 Apr 2021 09:33 AM (IST) Updated:Fri, 09 Apr 2021 09:34 AM (IST)
Interest Rate Policies: विकासशील देशों में ब्याज दर में बदलाव करने का व्यावहारिक निर्णय
पोस्ट ऑफिस के माध्यम से सरकारी लघु बचत योजनाओं में निवेश के प्रति कायम है आकर्षण। फाइल

प्रो. लल्लन प्रसाद। हमारी अर्थव्यवस्था में लघु बचतों का बड़ा योगदान है। ऐसे में ब्याज दर में परिवर्तन चाहे वह बचत खातों पर हो या बैंकों द्वारा आम लोगों और व्यापारियों को दिए जाने वाले कर्ज पर हो या रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को उसके पास जमा राशि एवं उनको दिए जाने वाले कर्ज पर हो, अर्थव्यवस्था की न केवल स्थिति दर्शाते हैं, बल्कि उसे प्रभावित भी करते हैं। ये निवेश, बचत, उत्पादन, रोजगार, कीमतों और मुद्रा के प्रवाह पर असर डालते हैं।

हाल ही में वित्त मंत्री द्वारा सरकारी बचत योजनाओं में जमा राशि पर ब्याज दर में कटौती की घोषणा से लोग आशंकित हो गए। यद्यपि उन्होंने कुछ ही घंटों में इसे वापस ले लिया, जो राजनीतिक कारणों से प्रेरित माना जाता है और उसका दोष नौकरशाही पर मढ़ दिया गया। हालांकि इसका दूसरा पहलू यह है कि ब्याज दर में कटौती की प्रक्रिया विश्वव्यापी है। अधिकांश देशों, विशेष कर विकसित और विकासशील देशों में ब्याज दर में लगातार गिरावट आ रही है। दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां बैंकों में जमा राशि पर शून्य या नाम मात्र का ब्याज मिलता है। जापान इन देशों में एक है। स्वीडन, स्विट्जरलैंड और डेनमार्क भी इन देशों में शामिल हैं। ब्याज दर में कटौती के पीछे एक तर्क यह है कि लोग रुपया बैंकों या बचत योजनाओं में रखने की अपेक्षा अधिक से अधिक खर्च करें, ताकि चीजों और सेवाओं की मांग बढ़े जिससे उत्पादन और रोजगार में वृद्धि हो और अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास हो।

कम ब्याज दर पर कर्ज की व्यवस्था के पीछे भी यही तर्क है। सस्ता कर्ज अधिक खर्च और अधिक निवेश को बढ़ावा देने में कारगर होता है। वित्तीय घाटे से जूझती सरकारें ब्याज दर घटाकर अपना दायित्व कम करती हैं, आकर्षक ब्याज दर की योजनाएं निकालती हैं, किंतु बजटीय घाटे में बढ़त होने पर ब्याज दर में कटौती करने लगती हैं। अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति में भी ऐसे निर्णय लिए जाते हैं, जैसा जापान में पिछली सदी के आखिरी दशक में हुआ, जब रीयल स्टेट और शेयर कीमतें जमीन छूने लगीं, अर्थव्यवस्था तेजी से नीचे जाने लगी और ब्याज दर छह प्रतिशत से 0.25 प्रतिशत पर आ गया। लोगों के पास अधिक मुद्रा हो और लोग खर्च करें, इसके लिए ब्याज दर में कटौती के साथ साथ सरकार ने भारी राहत पैकेज भी दिए।

इस बीच हमारे देश में कोरोना की मार से आहत अर्थव्यवस्था से उबरने के लिए भारत सरकार ने भी बड़े राहत पैकेज दिए। रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कमी किए बैंकों द्वारा दिए जाने वाला कर्ज सस्ता किया, किंतु बैंक बचत खातों और सरकारी बचत योजनाओं की ब्याज दर में उस समय कटौती नहीं की। कीमतों में अत्यधिक उतार चढ़ाव को नियंत्रण में लाने के लिए भी ब्याज दर में परिवर्तन किया जाता है। चढ़ती कीमतों को रोकने के लिए ब्याज दर बढ़ाया जा सकता है और जब कीमतें गिर रही हों तो ब्याज दर घटाया जा सकता है। अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति में जब कीमतें ढलान पर होती हैं रिजर्व बैंक रेपो रेट में कमी करता है, ताकि कॉमर्शियल बैंक उससे अधिक कर्ज लें और ग्राहकों को सस्ते दर पर कर्ज दें जो उनकी क्रय और निवेश की क्षमता बढ़ाए। इसी उद्देश्य की पूíत के लिए रिजर्व बैंक ने फरवरी 2019 से अब तक रेपो रेट में 185 बेसिक प्वाइंट की कमी की और रेपो रेट को चार प्रतिशत पर स्थिर किया है। हाल के महीनों में जब कीमतों में वृद्धि होने लगी तो रेपो रेट में कटौती रोक दी।

विश्व की सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्था अमेरिका में वर्षो से ब्याज दर दो प्रतिशत के आसपास रही है। यूरोपीय देशों में एक से दो प्रतिशत वर्ष की जमा राशि पर औसत ब्याज दर 0.8 से 3.8 प्रतिशत के बीच में है। इसी तरह से पोलैंड, जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, नीदरलैंड, ग्रीस, फ्रांस एवं बुल्गारिया में ब्याज दर एक से लेकर तीन प्रतिशत के आसपास है। अंतरराष्ट्रीय बैंकों में ब्याज दर तीन से चार प्रतिशत और चीन में पांच प्रतिशत के करीब है।

इस संबंध में उल्लेखनीय है कि कम विकसित देशों के बैंक अधिक ब्याज देते हैं। टीबीसी बैंक एवं बैंक ऑफ जार्जयिा एक वर्ष की जमा राशि पर 9.4 प्रतिशत, ईवोका बैंक आर्मेनिया 9.5 प्रतिशत, एक्सेसरीज बैंक अजरबैजान 10 प्रतिशत, खान बैंक मंगोलिया 14 प्रतिशत, एशिया एलायंस 15 प्रतिशत एवं असाका बैंक उजबेकिस्तान 17 प्रतिशत ब्याज देते हैं। सबसे अधिक ब्याज अफ्रीका के पिछड़े देशों के बैंक देते हैं। युगांडा में 16 प्रतिशत, बुरुंडी में 16.6 प्रतिशत, रवांडा में 17.9 प्रतिशत, गांबिया में 21.1 प्रतिशत और मलावी में 21.8 प्रतिशत ब्याज दर है।

विकास के साथ अर्थव्यवस्था में स्थिरता आती है, मुद्रा मजबूत होती है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलन में स्वीकृत होती है। बैंकों में रकम डूबने का डर कम होता जाता है, निवेश के अवसर बढ़ते हैं, कीमती वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है। बैंक की जगह लोग रीयल स्टेट, शेयर बाजार और सुरक्षित बांडों में निवेश पसंद करते हैं। अमेरिका में ढाई लाख डॉलर तक एवं यूरोपियन यूनियन के देशों में एक लाख यूरो तक खाताधारक की जमा राशि भुगतान की गारंटी के अंदर होती है। भारत में यह पांच लाख रुपये है।

भारत में बचत खाते पर ब्याज दर ढाई प्रतिशत से चार प्रतिशत और सावधि खाते पर तीन से सात प्रतिशत के आसपास है। पोस्ट ऑफिस बचत खाते पर ब्याज दर चार एवं सावधि खाते पर 6.9 से 7.7 प्रतिशत के बीच है। सरकारी बचत योजनाओं जैसे पीपीएफ, सीनियर सिटिजन सेविंग्स एवं सुकन्या समृद्धि में ब्याज दर अवश्य कुछ आकर्षक हैं। दरअसल ये योजनाएं जब प्रारंभ की गई थीं तब ब्याज दर कहीं अधिक थे। निवेशकों को यह भी समझना होगा कि इनकी ब्याज दरों में समयानुकूल कमी-बेसी करने का सरकार का फैसला युक्तिसंगत है और वह देश-दुनिया की आर्थिक स्थितियों के हिसाब से इसमें बदलाव करने का व्यावहारिक निर्णय ले सकती है।

[पूर्व विभागाध्यक्ष, बिजनेस इकोनॉमिक्स विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय]

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