Air Pollution in Delhi NCR: एकीकृत उपायों से ही सुधरेगी दिल्ली की आबोहवा हवा

पूर्व में की गई तालाबंदी से सीख ले कर व्यवस्थित रूप से एकाध सप्ताह की पूर्ण बंदी पर अमल किया जाए तो प्रदूषण से जूझने के लिए अरबों रुपये के खर्च और इस कारण से बीमार लोगों के इलाज पर होने वाले खर्च से बचा जा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 23 Oct 2020 11:09 AM (IST) Updated:Fri, 23 Oct 2020 11:21 AM (IST)
Air Pollution in Delhi NCR: एकीकृत उपायों से ही सुधरेगी दिल्ली की आबोहवा हवा
सुप्रीम कोर्ट का भी कहना है कि जिन देशों में सम-विषम लागू है, वहां सार्वजनिक परिवहन सुगम और सस्ता है।

पंकज चतुर्वेदी। राजधानी दिल्ली में सर्दी के आगमन को अब एक सुकून देने वाले मौसम के रूप में नहीं, बल्कि बीमारी की ऋतु के रूप में याद किया जाता है। ऐसा नहीं है कि दिल्ली और उसके आसपास के शहरों की आबोहवा पूरे साल बहुत शुद्ध रहती है, बस इस मौसम में नमी और भारी कण मिल कर स्मॉग के रूप में सूरज के सामने खड़े होते हैं, तो यह सबको दिखने लगता है।

यह बात सही है कि इस साल जाते मानसून ने दिल्ली पर फुहार बरसाई नहीं, यह भी बात सही है कि हवा की गति न्यूनतम होने से बदलते मौसम में दूषित कण वायुमंडल के निचले हिस्से में ही रह जाते हैं व जानलेवा बनते हैं। लेकिन यह भी स्वीकारना होगा कि बीते कई वर्षो से अक्टूबर माह शुरू होते ही दिल्ली महानगर और उसके आसपास के इलाकों में जब स्मॉग लोगों की जिंदगी के लिए चुनौती बन जाता है, तब उस पर चर्चा, रोक के उपाय व सियासत होती है। हर बार कुछ नए प्रयोग होते हैं, हर साल ऊंची अदालतें चेतावनी देती हैं, डांटती हैं, राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं और तब तक ठंड खत्म हो जाती है।

कोविड की त्रसदी के पूर्ण तालाबंदी के दिनों को याद करें, किस तरह प्रकृति अपने नैसर्गिक रूप में लौट आई थी, हवा भी स्वच्छ थी और नदियों में जल की कल-कल मधुर थी। बारीकी से देखें तो इस काल ने इंसान को बता दिया कि अत्यधिक तकनीक, मशीन के प्रयोग, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से जो पर्यावरणीय संकट पैदा होता है, उसका निदान कोई अन्य तकनीक या मशीन नहीं, बल्कि खुद प्रकृति ही है। इस साल तो चिकित्सा तंत्र चेतावनी दे चुका है कि दिसंबर तक हर दिन वातावरण जहरीला होता जाएगा, यदि बहुत जरूरी हो, तो ही घर से निकलें।

इस साल भी दिल्ली की हवा में सांस लेने का मतलब है कि अपने फेफड़ों में जहर भरना, खासकर कोरोना का संकट जब अभी भी बरकरार है, ऐसे हालात सामुदायिक-संक्रमण विस्तार को बुलावा दे सकते हैं। जैसाकि हर बार वायु को शुद्ध करने के नाम पर कोई न कोई तमाशा होता है, इस बार का तमाशा है- रेड लाइट पर गाड़ी बंद करना। हालांकि यह अच्छी आदत है, लेकिन क्या सुरसामुख की तरह आम लोगों के स्वास्थ्य को लील रहे वायु प्रदूषण से जूझने में यह परिणामदायी है भी कि नहीं? बीते वर्षो में वाहनों के सम-विषम के कोई दूरगामी या स्थायी परिणाम नहीं आए, ठीक इसी तरह दिल्ली में जाम के असली कारणों पर गौर किए बगैर इस तरह के पश्चिमी देशों की नकल वाले प्रयोग महज कागजी खानापूíत ही हैं।

जब दिल्ली की हवा ज्यादा जहरीली होती है तो एहतियात के तौर पर वाहनों का सम-विषम लागू कर सरकार जताने लगती है कि वह बहुत कुछ कर रही है। पिछले साल एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कह दिया था दूषित हवा से सेहत पर पड़ रहे कुप्रभाव का सम-विषम स्थायी समाधान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का भी कहना है कि जिन देशों में सम-विषम लागू है, वहां सार्वजनिक परिवहन सुगम और सस्ता है।

यदि दिल्ली की सांस को थमने से बचाना है तो यहां न केवल सड़कों पर वाहन कम करने होंगे, बल्कि आसपास के कम से कम 100 किमी के दायरे में सभी शहरों व कस्बों में भी वही मानक लागू करने होंगे, जो दिल्ली के लिए हों। लेकिन जब दिल्ली में ही इन मानकों का पालन नहीं हो रहा है, तो फिर अन्यत्र की उम्मीद कैसे की जा सकती है। यदि दिल्ली को एक अरबन स्लम बनने से बचाना है तो इसमें कथित लोकप्रिय फैसलों से बचना होगा, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है यहां बढ़ रही आबादी को कम करना।

सनद रहे कि इतनी बड़ी आबादी के लिए तमाम तरह की व्यवस्था करना और हर काम में लग रही ऊर्जा का उत्पादन दिल्ली की हवा को विषैला बनाने की ओर एक कदम होता है। यही नहीं, आज भी दिल्ली में जितने विकास कार्यो के कारण धूल उड़ रही है, वह यहां की सेहत ही खराब कर रही है, भले ही इसे भविष्य के लिए आवश्यक कहा जा रहा हो। यदि वास्तव में दिल्ली की हवा को साफ रखना है तो इसकी कार्य योजना का आधार सार्वजनिक वाहनों का दायरा बढ़ाने के साथ महानगर की जनसंख्या कम करने के लिए कड़े कदम भी होना चाहिए। दिल्ली में सरकारी स्तर के कई सौ ऐसे कार्यालय हैं, जिनका संसद या मंत्रलयों के करीब होना कोई जरूरी नहीं। इन्हें एक साल के भीतर दिल्ली से दूर ले जाने के कड़वे फैसले के लिए कोई भी तंत्र तैयार नहीं दिखता।

इसके अलावा सरकारी कार्यालयों के समय और बंद होने के दिन अलग-अलग किए जा सकते हैं। स्कूली बच्चों को अपने घर के तीन किमी के दायरे में ही प्रवेश देने, एक ही कॉलोनी में विद्यालय खुलने-बंद होने के समय अलग-अलग कर सड़क पर यातायात प्रबंधन किया जा सकता है। आजकल वैसे भी स्कूल-कॉलेज समेत अधिकांश शिक्षण संस्थान बंद हैं और ऑनलाइन कक्षाएं जारी हैं। हालांकि छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं व्यावहारिक विकल्प कतई नहीं है, लेकिन प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी वाले दिनों में करीब एकाध माह तक बड़े बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था को स्थायी बनाया जा सकता है। छोटे बच्चों के लिए भी मजबूरन ऐसा किया जाना चाहिए।

प्रदूषण से निपटने के एकीकृत उपायों के तौर पर एक सटीक उपाय शहर को कम से कम पांच-छह जोन में बांटकर, यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रत्येक जोन में रहने वाले व्यक्ति का आवास और कार्यस्थल दोनों ही उसी जोन में हो। वैसे भी दिल्ली एनसीआर की बात करें तो यहां नोएडा में रहने वाला व्यक्ति गुरुग्राम तक, उत्तरी दिल्ली में रहने वाला फरीदाबाद तक नौकरी के लिए आता-जाता है, जिससे परिवहन प्रणाली पर व्यापक दबाव पड़ता है। ऐसे में इस योजना को अमलीजामा पहनाते हुए प्रदूषण की समस्या को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। 

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