India China News: भारत को नीतियों में लाना होगा बदलाव, चीन का तिब्बत के प्रति दुर्व्यवहार लाना होगा सामने

India China News चीन की विस्तारवादी नीति को दुनिया को तथ्यों के साथ दिखाना होगा तभी जाकर विश्व में चीन के विरुद्ध माहौल तैयार किया जा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 07 Jul 2020 09:24 AM (IST) Updated:Tue, 07 Jul 2020 03:28 PM (IST)
India China News: भारत को नीतियों में लाना होगा बदलाव, चीन का तिब्बत के प्रति दुर्व्यवहार लाना होगा सामने
India China News: भारत को नीतियों में लाना होगा बदलाव, चीन का तिब्बत के प्रति दुर्व्यवहार लाना होगा सामने

कौशल किशोर। India China News देश-दुनिया में व्याप्त महामारी और तालाबंदी के बीच अनेक कारणों से कई देशों में उथल-पुथल कायम है। चीन की विस्तारवादी नीति के कारण उसकी सीमा से सटे हुए अनेक देश, और उसकी भौगोलिक सीमा से दूर बसे हुए कई देश की उसकी विस्तारवादी नीतियों से येन-केन प्रकारेण प्रभावित होते रहे हैं। इस बीच चीन में उभरने वाले कोरोना वायरस के संक्रमण का दायरा तेजी से फैल रहा है। इसके साथ दुनिया लगातार दो अलग-अलग ध्रुवों की ओर खिंच रही है। ड्रैगन का प्रकोप हांगकांग से लेकर ताइवान और वियतनाम तक में देखा जा रहा है। इसने हिंद महासागर, प्रशांत और दक्षिण चीन सागर को भी नहीं बख्शा।

वर्ष 1947 में भारत-चीन सीमा की लंबाई चार हजार किमी से कुछ अधिक ही थी। वर्ष 1962 युद्ध के बाद भारत अक्साई चिन से हाथ धो बैठा। इस युद्ध के बाद डिफेंस डिक्शनरी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) नामक एक नया शब्द शामिल हो गया। जम्मू और कश्मीर के संदर्भ में सरकार का रुख स्पष्ट करने के क्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अक्साई चीन का जिक्र संसद में करते हैं। सचमुच 3,488 और 4,056 के बीच का फासला कम नहीं है।

अब थोड़ा पीछे चलते हैं। गंगा बेसिन में महात्मा बुद्ध ने बनारस के पास सारनाथ में उपदेश देना शुरू किया। बौद्ध धर्म भारत की मुख्य भूमि से गायब होने के बाद हिमालय की चोटियों से घिरे तिब्बत में फिर से प्रकट हुआ। लोकल शांग-शुंग संस्कृति और बॉन धर्म के साथ उनके समर्थकों ने एक नया बौद्ध धर्म विकसित किया। तिब्बत के पठार पर ही चीन की यलो रिवर बेसिन की हान संस्कृति और गंगा बेसिन की संस्कृतियों का मिलन होता है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूंजीवादी और साम्यवादी दोनों ही अपने साम्राज्यवादी मंसूबों के लिए तिब्बत में जमीन तलाशने लगे थे। दलाई लामा ने अपनी जीवनी में लिखा है कि अमेरिका की सहायता तिब्बती स्वतंत्रता की बहाली के लिए वास्तविक समर्थन के बजाय उनकी कम्युनिस्ट विरोधी नीतियों का प्रतिबिंब ही थी।

हाल ही में तिब्बत की निर्वासित सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री रिनपोछे के साथ हुई चर्चा में तिब्बत की ऊंची जमीन पर एक साथ बुद्ध और गांधी को उतारने की वकालत से पहले वह पुरानी परंपरा की अंतिम पीढ़ी और मैक मोहन लाइन का जिक्र करते हैं। गांधी के अवसान के करीब एक दशक बीतने पर उनके अनुयायियों ने वर्ष 1958 में अखिल भारतीय पंचायत परिषद की स्थापना की थी। ग्राम सभा के इस सर्वोच्च संस्था के साथ जुड़ाव के कारण कई बातें पता चलती हैं। तिब्बत में मानसरोवर झील के पास स्थित मनसर गांव 1962 के युद्ध तक भारतीय खजाने को राजस्व देता था। सीमा के पास कई गांवों में भारतीय और चीनी लोगों के बीच सामानों का आदान-प्रदान वस्तु विनिमय प्रणाली के तहत होता था। इस तरह का लेन-देन लालच पर केंद्रीत मांग के बजाय जरूरत पर आश्रित अर्थव्यवस्था को ही दर्शाता है।

भारत की आजादी के बाद 1954 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई के साथ हुए पंचशील समझौते के बाद हिंदी चीनी भाई भाई जैसे नारे को अभिव्यक्ति मिली। पर वैश्वीकरण के युग में यह चीनी तुष्टिकरण की नीति में बदल गई। महज दशक भर भी नहीं हुए थे पंचशील समझौते को कि चीन बहुत कुछ भूल गया। वह यह भी भूल गया कि कुछ वर्ष पहले ही 1938 में भारतीय डॉक्टरों के एक दल ने घायल चीनी सैनिकों को बचाने के लिए चीन की यात्रा की थी।

इस बीच भारत के कई बुद्धिजीवी दलाई लामा को शीर्ष नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित करने का सुझाव देते हैं। यह सुझाव व्यावहारिक कहा जा सकता है। इस सूची में कुछ और नाम जोड़े जा सकते हैं। कुल मिलाकर भारत को चीन के प्रति अपनी वर्तमान नीति में व्यापक बदलाव लाते हुए तिब्बत के प्रति किए गए चीन के दुर्व्यवहार को दुनिया के सामने लाना होगा। चीन की विस्तारवादी नीति को दुनिया को तथ्यों के साथ दिखाना होगा, तभी जाकर विश्व में चीन के विरुद्ध माहौल तैयार किया जा सकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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