चुनौती को अवसर में बदले भारत, 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' से बन सकती है बात

दुनिया के अधिकांश देशों की तरह आज भारत भी एक साथ कई आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के प्रोत्साहन से इसे अवसर में बदला जा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 08 Jul 2020 09:25 AM (IST) Updated:Wed, 08 Jul 2020 09:25 AM (IST)
चुनौती को अवसर में बदले भारत, 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' से बन सकती है बात
चुनौती को अवसर में बदले भारत, 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' से बन सकती है बात

डॉ. अजय कुमार। भागी वर्तमान महामारी से पैदा हुई तमाम आर्थिक समस्याओं और हाल में चीन सीमा पर भारतीय सेना के जवानों के साथ हुई हिंसक झडप में हमारे बीस सैनिकों के शहीद होने के बाद से समूचे देश में चीन के प्रति आक्रोश पनप रहा है। इस संकट ने देश को आत्मनिर्भर बनने की रणनीति अपनाने पर जोर दिया है। आज देश भर में जनता चीन के सामानों का विरोध करने के लिए मुखर हो गई है और वह चाहती है कि यदि उसे चीन निर्मित वस्तुओं का स्थानापन्न उपलब्ध कराया जाए तो वह चीन की वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद हमारे देश में विकास के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया गया, जिसमें व्याप्त लाइसेंस राज, नौकरशाही, लालफीताशाही और भ्रष्टाचार ने देश की अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे खोखला कर दिया। पिछली सदी के आखिरी दशक के शुरुआती दौर में वैश्वीकरण की प्रक्रिया अपनाई गई, परिणामस्वरूप विकास के नए दरवाजे जरूर खुले, लेकिन इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि कई क्षेत्रों में भारत विदेशी उत्पादों पर आश्रित होता चला गया।

वर्ष 2000 के बाद चीन ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया का सबसे ज्यादा फायदा उठाकर दुनिया के बाजारों को अपने सस्ते माल से पाट दिया। भारत भी चीन के सस्ते सामानों से अछूता नहीं रहा और वह चीन के लिए एक बडा बाजार बन गया। वर्ष 2004 से 2014 में यूपीए सरकार के दौर में भारत में भी चीनी निवेश में काफी वृद्धि हुई। चीन ने सुनियोजित तरीके से इस्तेमाल की गई रणनीति अपनाकर धीरे-धीरे टायर, खिलौना, पटाखे, त्यौहार के सजावटी और तमाम अन्य उत्पादों से भारतीय बाजारों पर भी वर्ष 2000 के पश्चात कब्जा करने की कोशिश शुरू कर दी और इसमें वह काफी हद तक सफल भी हुआ।

इससे भारतीय शिल्प बाजार को सर्वाधिक नुकसान हुआ, जहां छोटे-छोटे घरेलू उत्पाद बनाए जाते थे। चीनी उत्पादों के सस्ते होने के कारण भारतीय शिल्प बाजार में वस्तुओं का निर्माण धीरे-धीरे बंद होने लगा। इसी प्रकार देश के तमाम लघु उद्योग-धंधे भी धीरे-धीरे बंद होने लगे और भारतीय बाजार चीन का डंपिंग यार्ड बन गया। घरेलू उत्पादों से आगे बढ़कर यह सिलसिला तकनीक आधारित सेवाओं, दूरसंचार, बैंकिंग और फार्मा जैसे क्षेत्रों में भी पहुंच गया। आखिरकार वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद केंद्र सरकार ने मेक इन इंडिया के माध्यम से आत्मनिर्भर होने की दशा में एक निर्णायक पहल की। स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की राह पर ले जाने की प्रधानमंत्री ने जो दिशा दिखाई, उसको लेकर न केवल व्यापारी, उद्योगपति, बल्कि जनता के स्तर पर भी काफी उत्साहजनक प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।

इस बीच कोविड महामारी को लेकर वैश्विक स्तर पर दुनिया भर के देशों का चीन से भरोसा उठने लगा है। अनेक कंपनियां चीन में निवेश करने से कतरा रही हैं। जो कंपनियां चीन में काम कर रही हैं वे भी वहां से निकलने की जुगत में हैं। ऐसे में भारत उन्हें एक अच्छा विकल्प नजर आ रहा है। लेकिन चीन से निकलने वाली तमाम कंपनियों को भारत में बेहतर माहौल मिले, इसके बारे में भी सरकार को सोचना होगा, अन्यथा ये कंपनियां भारत न आकर, कहीं और भी जा सकती हैं। आज देश भर में उठा चीन विरोधी स्वर भारत के लिए एक अवसर है। सरकार को इस मौके को हाथ से नहीं गंवाना चाहिए। जापान और दक्षिण कोरिया जैसी विश्व की बड़ी आर्थिक ताकतें, चीन की नीतियों और कारगुजारियों से तंग आकर भारत, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों में अपनी यूनिट शिफ्ट करने पर विचार कर रही हैं। अमेरिकी भारत स्ट्रैटेजिक और पार्टनरशिप फोरम के अनुसार लगभग 200 अमेरिकी कंपनियों ने चीन से भारत में अपनी उत्पादन इकाई स्थापित करने पर विचार करना आरंभ कर दिया है।

कृषि क्षेत्र में व्यापक अवसर : आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत खेती को देश भर में व्यापक रूप से प्रोत्साहन दिया जा सकता है। इसके लिए अनाज का बेहतर संग्रहण करने व उसे अधिक दिनों तक गुणवत्तायुक्त बनाए रखने के लिए अधिक संख्या में कोल्ड स्टोरेज का निर्माण और फसल कटाई के उपरांत के प्रबंधन जैसे उपायों को अमल में लाकर कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जा सकता है। माइक्रोफूड इंटरप्राइजेज क्षेत्र को विधिवत करने और 10 हजार करोड़ रुपये के आवंटन से डेयरी प्रोसेसिंग, हर्बल खेती और मधुमक्खी पालन के क्षेत्रों के विकास में भी सहायता मिलेगी। चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध लगने की स्थिति में भारतीय कृषि उत्पादों को वैश्विक बाजार में अपनी पकड़ बनाने का अच्छा अवसर मिल सकता है। कोविड-19 संकट में कई आर्थिक शक्तियां भारतीय खाद्य पदार्थों और कृषि उत्पादों को एक विकल्प के रूप में देख रही हैं। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत चीन का विकल्प बन सकता है। इसके लिए भारत को अपनी विनिर्माण क्षमता बढ़ानी होगी। उदारीकरण के चलते भारत ने कई क्षेत्रों में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है।

वैश्विक सोच के साथ स्थानीय गतिविधियां : हमें यह भी समझना होगा कि आत्मनिर्भर होने का मतलब अपने ही दायरे में खुद को समेटना नहीं है, बल्कि वैश्विक सोच के साथ स्थानीय गतिविधियों को संपन्न करना इसका व्यापक अर्थ है। बिना भारतीय हितों से समझौता किए, अंतरराष्ट्रीय सहयोग की भावना रखकर काम करना इसका अर्थ है। शुरुआती दौर में कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना भी करना पड़े, लेकिन देश हित के लिए एक दीर्घकालीन लक्ष्य मानकर हमें इस कार्य को हर हाल में अंजाम देना होगा। यह काम अपनेआप में मुश्किल जरूर हो सकता है, नामुमकिन नहीं।

[एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]

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