भारत को मुक्त व्यापार से बाहर आकर घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने की ठोस नीति अपनानी चाहिए

आधुनिक तकनीकों का आयात किया जाए ताकि देश तकनीकी रूप से पीछे न रह जाए और घरेलू प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया जाए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 28 Jan 2020 02:26 AM (IST) Updated:Tue, 28 Jan 2020 02:26 AM (IST)
भारत को मुक्त व्यापार से बाहर आकर घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने की ठोस नीति अपनानी चाहिए
भारत को मुक्त व्यापार से बाहर आकर घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने की ठोस नीति अपनानी चाहिए

[ डॉ. भरत झुनझुनवाला ]: बजट का एक प्रमुख विषय विदेशी व्यापार का होता है। बजट में सरकार तय करती है कि विदेशों से आयातित हो रहे माल पर कितना आयात कर लगाया जाए और विदेशों से आ रहे निवेश को कितनी सहूलियत दी जाए। इस विषय पर आज हमारे सामने दो विरोधाभासी विकल्प उपलब्ध हैं। यदि हम मुक्त व्यापार को अपनाते हैं तो हमें आयात कर घटाना होगा और विदेशी निवेश को सहूलियतें देनी होंगी। इसके विपरीत यदि हम मानते हैं कि घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने से लाभ होगा तो हम आयात कर बढ़ाएंगे और घरेलू पूंजी को बाहर जाने से रोकने का प्रयास करेंगे। खुले व्यापार के पक्ष में चीन का उदाहरण सामने है।

भारत को मुक्त व्यापार को अपनाना चाहिए जैसा कि चीन ने किया

1995 में विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ की स्थापना के समय चीन इस संस्था का सदस्य नहीं था। बड़ी मशक्कत के बाद चीन उसका सदस्य बना। चीन के आर्थिक विकास में डब्ल्यूटीओ ने चार चांद लगाए। इसीलिए अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग मानता है कि हमें मुक्त व्यापार को अपनाना चाहिए जैसा कि चीन ने किया। हालांकि विचारणीय यह भी है कि चीन के आर्थिक विकास का स्नोत मुक्त व्यापार है या घरेलू बचत?

चीन के आर्थिक विकास का मुख्य स्नोत डब्ल्यूटीओ न होकर घरेलू बचत दर है

2008 में हमारी घरेलू बचत दर 37 प्रतिशत थी और चीन की 51 प्रतिशत। घरेलू बचत उस रकम को बोलते हैं जिसकी हम खपत न करके निवेश करते हैं। वर्तमान में भारत की घरेलू बचत दर घटकर 31 प्रतिशत और चीन की घटकर 46 प्रतिशत हो गई है। चीन की तुलना में हम ज्यादा खपत और निवेश कम कर रहे हैं। मेरे खयाल से चीन के आर्थिक विकास का मुख्य स्नोत डब्ल्यूटीओ की सदस्यता न होकर यही घरेलू बचत दर है। इसके अन्य प्रमाण भी उपलब्ध हैं।

चीन ने खुले व्यापार को पुरजोर तरीके से अपनाया जबकि भारत ने कम ही अपनाया

जर्मनी की बर्तल्स्मान संस्था द्वारा डब्ल्यूटीओ के 25 वर्षों के प्रभाव का आकलन किया गया। उनके अनुसार भारत और चीन, दोनों पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। चीन की जनता के जीवन स्तर में डब्ल्यूटीओ का योगदान मात्र 0.65 प्रतिशत रहा है जबकि भारत में 2.68 प्रतिशत। यह महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि चीन ने खुले व्यापार को पुरजोर तरीके से अपनाया जबकि भारत ने कम ही अपनाया है।

भारत की घरेलू बचत दर कम होने के बावजूद चीन की तुलना में जीवन स्तर में सुधार अधिक हुआ

दोनों देशों के निर्यात में वृद्धि अवश्य हुई है, लेकिन उसका असर जनता के जीवन स्तर पर भारत में अधिक पड़ा है। अत: कम विदेशी व्यापार से जीवन स्तर में अधिक सुधार हुआ। इसलिए अधिक विदेशी व्यापार को चीन की जनता के जीवन स्तर में सुधार का कारण नहीं बताया जा सकता। उसका वास्तविक कारण चीन की घरेलू बचत दर है। भारत की घरेलू बचत दर कम होने के बावजूद हमारी जनता के जीवन स्तर में सुधार अधिक हुआ है, क्योंकि हमने मुक्त व्यापार को कम अपनाया है।

चीन और अमेरिका को डब्ल्यूटीओ के दायरे से बाहर जाकर द्विपक्षीय समझौते की जरूरत क्यों पड़ी

चीन को मुक्त व्यापार से कम लाभ होने का दूसरा प्रमाण यह है कि इसी माह चीन ने अमेरिका के साथ एक द्विपक्षीय समझौता किया। चीन ने अमेरिका को आश्वासन दिया है कि वह अमेरिका से कुछ वस्तुओं का आयात बढ़ाएगा। इसके बदले में अमेरिका ने कहा है कि वह चीन से आयातित होने वाली वस्तुओं पर लगाए आयात कर को घटाएगा। इस बीच बड़ा सवाल यही है कि इन देशों को डब्ल्यूटीओ के दायरे से बाहर जाकर द्विपक्षीय समझौते की जरूरत क्यों पड़ी?

चीन-अमेरिका समझौता खुले व्यापार का लाभ लेने के लिए नहीं, स्वार्थों से कहीं अधिक प्रेरित है

यदि चीन का मुक्त व्यापार मंत्र ही सही है तो चीन अपने आयात कर घटाकर संपूर्ण विश्व से आयातों को बढ़ा सकता था, लेकिन डब्ल्यूटीओ की बहुराष्ट्रीय व्यवस्था के अंतर्गत व्यापार को संचालित करने के स्थान पर इन दोनों देशों ने द्विपक्षीय समझौता किया है। यह समझौता खुले व्यापार का लाभ हासिल करने के लिए नहीं, बल्कि अमेरिका और चीन के सामरिक स्वार्थों से कहीं अधिक प्रेरित है। या फिर हम कह सकते हैं कि उन्होंने खुले व्यापार को उपयुक्त नहीं माना, इसीलिए उन्होंने सभी देशों के लिए खुले व्यापार को अपनाने के बजाय आपस में खोलने तक सीमित रखा है। इसका अर्थ हुआ कि डब्ल्यूटीओ की व्यवस्था में मुक्त व्यापार लाभप्रद नहीं रह गया है। प्रत्येक देश को अपनी स्थिति एवं अपने हितों के अनुसार उन खास देशों से विदेश व्यापार को बढ़ाना चाहिए जिससे उन्हें परस्पर लाभ होता दिखे। इस तरह देखें तो मुक्त व्यापार का सिद्धांत अनुपयुक्त हो गया है।

डब्ल्यूटीओ से बाहर आ जाने पर भारत को कोई नुकसान नहीं

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की जयश्री सेनगुप्ता के अनुसार भारत के कई देशों विशेषकर आसियान देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते हो चुके हैं। यानी डब्ल्यूटीओ से बाहर आ जाने पर भारत को कोई विशेष नुकसान नहीं। इसके कई कारण हैं।

द्विपक्षीय समझौते कर भारत अपने व्यापार को अपेक्षित दिशा में ले जा सकता है

पहला यह कि आसियान की तर्ज पर हम दूसरे प्रमुख देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते कर अपने व्यापार को अपेक्षित दिशा में ले जा सकते हैं।

डब्ल्यूटीओ से बाहर निकलकर भारत चिन्हित उद्योगों को संरक्षण दे सकता है

दूसरा यह कि डब्ल्यूटीओ से बाहर निकलकर हम अपने चिन्हित उद्योगों को संरक्षण दे सकेंगे। छोटे उद्योगों को इसका सबसे अधिक लाभ मिलेगा। इससे रोजगार के अवसर सृजित होंगे और अर्थव्यवस्था में जमीनी स्तर पर मांग बढ़ेगी जो वृद्धि दर को तेजी देने का काम करेगी।

डब्ल्यूटीओ से बाहर निकलकर हमें पेटेंट एक्ट के मकड़जाल से मिलेगी मुक्ति

डब्ल्यूटीओ से बाहर निकलकर हमें मौजूदा पेटेंट एक्ट के मकड़जाल से भी मुक्ति के रूप में तीसरा फायदा मिलेगा। हम विदेशी कंपनियों के उत्पादों की नकल करके उन्हें यहां भी बना सकेंगे। इससे देसी कंपनियों के लिए अवसर बढ़ेंगे और रॉयल्टी की मद में देश से बाहर जा रही रकम बचेगी।

पर्यावरण के मोर्चे पर चीन के सस्ते माल पर भारी आयात कर लगाकर उसके आयात को रोक सकते हैं

इसका चौथा लाभ पर्यावरण के मोर्चे पर मिलेगा। असल में खुले व्यापार में उसकी जीत होती है जो अपने पर्यावरण को सर्वाधिक नष्ट करता है। जैसे चीन ने अपनी नदियों और हवा को प्रदूषित करने की पूरी छूट दे दी। चीन के सस्ते उत्पादों की एक वजह यह भी है। पर्यावरण की इस क्षति से चीन में उत्पादन लागत कम आती है और वह विश्व व्यापार में आगे है। यदि हम डब्ल्यूटीओ से बाहर आते हैं तो हम चीन के सस्ते माल पर भारी आयात कर लगाकर उसके आयात को रोक सकेंगे। तब हमें भी अपने पर्यावरण को नष्ट करके सस्ता माल बनाने की होड़ में पड़ने की जरूरत नहीं होगी।

हमारी सेवाओं के निर्यात पर डब्ल्यूटीओ से बाहर आने का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा

पांचवां कारण यह है कि भविष्य में विश्व व्यापार का विस्तार मुख्य रूप से सेवा क्षेत्र में होगा। यह क्षेत्र मूल रूप से डब्ल्यूटीओ से बाहर है। इसीलिए हमारी सेवाओं के निर्यात पर डब्ल्यूटीओ से बाहर आने का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इन फायदों को देखते हुए देश को डब्ल्यूटीओ से बाहर आकर संरक्षणवाद की नीति अपनानी चाहिए। इसी के साथ आधुनिक तकनीकों का आयात किया जाए ताकि देश तकनीकी रूप से पीछे न रह जाए और घरेलू प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया जाए। इससे हम विश्वस्तरीय उत्पाद बनाने के साथ ही घरेलू उद्योगों को संरक्षण भी दे सकेंगे।

( लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं )

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