भारत-रूस शिखर बैठक ने दिखाई दिया दोनों की दोस्ती का नायाब उदाहरण, बढ़ा दोनों में विश्‍वास

अमेरिका-रूस के जटिल रिश्तों के बावजूद भारत-रूस संबंधों में गहराई बनी हुई है तो यह मोदी सरकार की सफलता है। इस बैठक से जहां एक तरफ दोनों का एक दूसरे पर विश्‍वास बढ़ा है वहीं दोस्‍ती का एक नया अध्‍याय भी लिखा गया है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 09 Dec 2021 11:50 AM (IST) Updated:Thu, 09 Dec 2021 11:50 AM (IST)
भारत-रूस शिखर बैठक ने दिखाई दिया दोनों की दोस्ती का नायाब उदाहरण, बढ़ा दोनों में विश्‍वास
मोदी और पुतिन ने मिलकर दोस्‍ती का नया अध्‍याय लिखा

डा. सुधीर सिंह। हाल में संपन्न भारत-रूस शिखर बैठक ने दोनों देशों की दोस्ती का नायाब उदाहरण पेश किया। इसमें भाग लेने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन खासतौर से दिल्ली आए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हैदराबाद हाउस में उनकी अगुआई की। दिनभर चली बैठकों में प्रधानमंत्री मोदी ने जहां भारत-रूस दोस्ती को अनूठी और एक-दूसरे की संवेदनाओं का ध्यान रखने वाली बताया, वहीं राष्ट्रपति पुतिन ने भारत को बड़ी शक्ति और विश्वसनीय दोस्त करार दिया।

बैठकों में द्विपक्षीय रक्षा संबंधों, अफगानिस्तान, आतंकवाद, एशिया प्रशांत और कोरोना महामारी की चुनौतियों से लेकर अंतरिक्ष एवं विज्ञान के क्षेत्र में नए सहयोग के मुद्दे पर बातचीत हुई। साथ ही दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में 28 समझौतों पर हस्ताक्षर भी किए गए। इससे पहले दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों की अलग-अलग बैठकें हुईं। उसके बाद इन चारों की टू प्लस टू व्यवस्था के तहत पहली संयुक्त बैठक हुई। अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती रणनीतिक साङोदारी और चीन के साथ रूस के लगातार मजबूत होते सामंजस्य के बावजूद मोदी और पुतिन ने इस शिखर बैठक के जरिये वैश्विक स्तर पर एक मजबूत राजनीतिक संकेत दिया।

शीत युद्ध के बाद वैश्विक राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन आया है। पुराने दोस्त सामान्य दोस्त रह गए हैं और पुराने प्रतिद्वंद्वी भी कई मामलों में अच्छे मित्र बन गए हैं। शीत युद्ध की समाप्ति तक रूस भारत का सबसे विश्वसनीय सहयोगी रहा। शीत युद्धोत्तर काल में इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कोरोना कालखंड के पिछले दो वर्षो में राष्ट्रपति पुतिन की यह दूसरी विदेश यात्रा थी। जून 2021 में वह अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन के साथ शिखर बैठक करने के लिए स्विट्जरलैंड गए थे। उनका भारत आना इसलिए भी अहम है, क्योंकि उन्होंने चीन का भी अपना दौरा कोरोना महामारी के कारण रद कर दिया था। साफ है कि भारत आकर उन्होंने चीन को भी संदेश दिया।

हाल के दशकों में अमेरिका के साथ भी भारत के संबंध काफी तेजी से गहरे हुए हैं। क्वाड सहित अनेक बहुपक्षीय एवं द्विपक्षीय मंचों के माध्यम से इसमें काफी गहराई आई है। क्वाड का सदस्य होने के बाद भी भारत ने रूस से अपनी दोस्ती आगे बढ़ाकर यही साबित किया कि उसकी अपनी स्वतंत्र विदेश नीति है।

वर्तमान में अमेरिका-रूस के संबंध काफी तनावपूर्ण हैं। यूक्रेन के सवाल पर वे और भी खराब हो सकते हैं, लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद भारत-रूस संबंध लगातार बढ़ रहे हैं। एशिया की भू-राजनीतिक परिस्थितियों में भारत-अमेरिका के गहराते संबंधों में अंतर्निहित कारकों को रूस भी समझ रहा है। राष्ट्रपति पुतिन का वर्तमान दौरा इस सच्चाई को रेखांकित कर रहा है। अमेरिका-रूस के बीच जटिल होते संबंधों के बावजूद भारत-रूस के संबंधों की गहराई मोदी सरकार की कूटनीतिक सफलताओं में मील का पत्थर है।

2018 में भारत-रूस ने एस-400 मिसाइल प्रणाली खरीदने पर समझौता किया था। इसी प्रणाली को रूस से लेने के कारण अमेरिका ने अपने नाटो सहयोगी तुर्की पर तमाम प्रतिबंध लगाए, पर भारत के मामले में वह नरमी बरतता दिख रहा है। रूस अब इस प्रणाली को भारत को सौंपने वाला है। चीन एस-400 मिसाइल प्रणाली को भारत को देने से खफा है। उसे लगता है कि भारत इसे चीन की सीमा के पास तैनात करेगा। इस प्रणाली को हासिल करने बाद भारत की सैन्य ताकत बढ़ जाएगी। भारत 400 किलोमीटर तक के दायरे में किसी भी हमले का मुंहतोड़ जबाव देने में और अधिक ताकत प्राप्त कर लेगा। यह स्पष्ट है कि इस मामले में रूस ने चीन की चिंता की परवाह नहीं की।

अफगानिस्तान के मामले में पहले रूस-भारत के बीच थोड़े मतभेद थे, लेकिन अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद की हरकतों ने रूस को सशंकित किया है। पिछले महीने नई दिल्ली में अफगानिस्तान पर आयोजित हुई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की शिखर बैठक में भाग लेकर रूस ने इस मामले पर भारत के साथ अपने हितों की एकरूपता को रेखांकित किया। तालिबान के शासन में आने के कारण अफगानिस्तान में अव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। रूस और भारत के लिए यह सामूहिक चिंता है। वैसे तो रूस-चीन के बीच पिछले कई वर्षो से दोस्ती रही है, लेकिन सुदूर पूर्व साइबेरिया के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता बनी रहेगी।

हालांकि चीन ने रूस के साथ इस क्षेत्र में सीमा समझौता कर लिया है, पर रूस इससे चिंतित है कि विशाल भू-भाग होते हुए भी यहां रूसी जनसंख्या एक करोड़ से भी कम है। रूस के ऊर्जा समृद्ध इस पूर्वी इलाकों के लिए भारत की महत्वाकांक्षी परियोजना है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 में ब्लादिवोस्तक में भारत की एक्ट फार ईस्ट नीति की घोषणा करते हुए इस क्षेत्र में कई परियोजनाओं के लिए एक अरब डालर की लाइन आफ क्रेडिट की घोषणा की थी। इन परियोजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है। पुतिन के वर्तमान दौरे में भी इस पर अनेक सहमतियां बनी हैं।

भारत-रूस पुराने सहयोगी रहे हैं। राष्ट्रीय हितों की एकरूपता उन्हें फिर से संबंधों को गहराने के लिए प्रेरित कर रही है। तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद भारत-रूस संबंध काफी मधुर रहे हैं। पिछले कुछ दशक में दुनिया कई बुनियादी बदलावों और विभिन्न तरह के भू-राजनीतिक समीकरणों का गवाह बनी है, लेकिन भारत-रूस के रिश्ते करीब-करीब एक जैसे बने हुए हैं। दोनों देशों के बीच रणनीतिक साङोदारी भी मजबूत हो रही है।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)

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भारत-रूस के बीच मजबूत होती रणनीतिक साङोदारी।

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