रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता, निर्यातक की भूमिका में नज़र आता भारत

भू-सामरिक वैश्विक परिदृश्य में भविष्य की चुनौतियों से मुकाबले के लिए भारत को इजरायल जैसे राष्ट्र से सीख लेते हुए प्रौद्योगिकी एवं नवोन्मेष के क्षेत्र में सफल होने के लिए अनुसंधान एवं विकास पर अत्यधिक निधि खर्च करने की आवश्यकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 12:57 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 12:57 PM (IST)
रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता, निर्यातक की भूमिका में नज़र आता भारत
भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के रास्ते पर तीव्रता से चल उठा है।

डॉ. प्रदीप कुमार राय। राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मसलों के लिए जब हम अन्य शक्तिशाली राष्ट्रों पर निर्भर रहते हैं तो प्राय: अत्यधिक मूल्य भुगतान के बावजूद भी हमें दोयम दर्जे की सैन्य तकनीकी प्राप्त होती है। साथ ही प्रौद्योगिकी स्थानांतरण से भी वंचित रह जाते हैं। इस प्रकार राष्ट्र राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के प्रति निरंतर कमजोर होता चला जाता है। आज के अत्याधुनिक परिवेश में जहां युद्ध में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ड्रोन तकनीकी में क्रांति, रोबोटिक्स का बढ़ता चलन, नैनो तकनीकी दक्षता एवं सूचना तथा संचार के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन हो रहे हैं तब हम पुरानी पीढ़ी के आयुधों को रखकर शुतुरमुर्गीय आचरण का ही परिचय देंगे। जाहिर है आधुनिक सैन्य उपकरणों में आत्मनिर्भरता के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन के साथ नेक्स्ट जेनरेशन तकनीक पर आज कार्य करने की महती आवश्यकता है।

इसी क्रम में भारत सरकार ने आयुध निर्माणी बोर्ड के पुनर्गठन के दो दशकों से लंबित प्रस्ताव को मंजूरी दी है। दरअसल आयुध निर्माणी बोर्ड 41 कारखानों, नौ प्रशिक्षण संस्थानों, तीन क्षेत्रीय विपणन केंद्रों और चार क्षेत्रीय सुरक्षा नियंत्रकों का एक समूह है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की तरफ से पुनर्गठन के फैसले के उपरांत 41 आयुध कारखानों को अब 100 फीसद सरकारी नियंत्रण वाली रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के सात उपक्रमों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा।

आयुध एवं निरस्त्रीकरण में अनुसंधान के लिए समर्पित वैश्विक संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिप्री) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत सऊदी अरब के बाद दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है। वहीं 2016-2020 के दौरान वैश्विक हथियारों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी महज 0.2 फीसद रही है। इस प्रकार यह 24वां सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश है। चूंकि अब भारत द्वारा आत्मनिर्भरता पर अधिक जोर दिया जा रहा है। लिहाजा आयुध आयात में भी निरंतर कमी देखी जाने लगी है।

तीसरे विश्व के राष्ट्रों के लिए यह एक दुर्लभ कार्य है। भारत में अब तक निवेश के बाद रिटर्न की गारंटी नहीं होती थी, क्योंकि विदेशी कंपनियां हमसे बेहतर सैन्य उपकरण बनाती थीं। हम प्रतिस्पर्धा में पीछे छूट जाते थे। कई विदेशी कंपनियां तो सैकड़ों साल से आयुध निर्माण कर रही हैं। उनकी अपेक्षा भारतीय कंपनियां नई हैं, फिर भी भारत सरकार के संकल्प से परिस्थितियां बदल रही हैं। इसरो द्वारा एक ही साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित करना इसका परिचायक है। आज हमारे देश की अनेक सरकारी कंपनियां विश्व स्तर के हथियार बना रही हैं। भारत विश्व के कई देशों को रक्षा सामग्री निर्यात कर रहा है। अभी हाल में ही सरकार ने कुल 156 रक्षा उपकरणों के निर्यात की मंजूरी दी है, ताकि मित्र देशों में भारतीय हथियारों के निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके। इसमें आकाश, ब्रह्मोस तथा नाग जैसे प्रक्षेपास्त्रों के निर्यात करने का भी फैसला सम्मिलित है।

भारत दो मोर्चो पर शत्रु राष्ट्रों से घिरा हुआ है। वे दोनों परस्पर लामबंद भी हैं। चीन का रक्षा बजट भारत की अपेक्षा तीन गुने से भी ज्यादा है तथा उसकी सैनिक क्षमता भी बहुत बड़ी है। इस भू-सामरिक वैश्विक परिदृश्य में भविष्य की चुनौतियों से मुकाबले के लिए भारत को इजरायल जैसे राष्ट्र से सीख लेते हुए प्रौद्योगिकी एवं नवोन्मेष के क्षेत्र में सफल होने के लिए अनुसंधान एवं विकास पर अत्यधिक निधि खर्च करने की आवश्यकता है। यह सुखद है कि अब भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के रास्ते पर तीव्रता से चल उठा है।

[सुरक्षा एवं रणनीतिक विश्लेषक]

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