Analysis: नए वोट बैंक के निर्माण ने किया कमाल, युवाओं ने पीएम मोदी को फिर दिलाई बंपर जीत

इस चुनाव में मोदी ने दो नए वोट बैंक बनाए एक महिलाओं का और दूसरा पहली दफा मतदान करने वालों का जो एक नए भारत का सपना साकार करना चाहते हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Sat, 25 May 2019 04:32 AM (IST) Updated:Sat, 25 May 2019 04:32 AM (IST)
Analysis: नए वोट बैंक के निर्माण ने किया कमाल, युवाओं ने पीएम मोदी को फिर दिलाई बंपर जीत
Analysis: नए वोट बैंक के निर्माण ने किया कमाल, युवाओं ने पीएम मोदी को फिर दिलाई बंपर जीत

यशवंत देशमुख। इस जनादेश की तमाम व्याख्याएं होंगी, लेकिन यह मूलत: विपक्ष की नकारात्मकता के खिलाफ है। भारत बहुत आशावादी देश है, मगर बीते पांच साल से यहां एक तबका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खुन्नस के चलते निराशावादी माहौल बनाने में जुटा था। इसमें असहिष्णुता से लेकर अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर जैसा माहौल बनाया गया उससे आम आदमी आक्रोशित होता गया। इसकी परिणति चुनाव नतीजों में हुई। लोगों ने मोदी को कर्मठता से काम करते हुए देखा।

ऐसे में एक बात स्पष्ट थी कि आप निजी तौर पर भले ही मोदी को नापसंद करें, लेकिन उन पर अकर्मण्यता का आरोप नहीं लगा सकते। मोदी के राजनीतिक और वैचारिक विरोधी उन पर तरह-तरह के लांछन लगाते आए हैं, लेकिन उनके कट्टर से कट्टर विरोधी ने भी कभी उन पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाए। मोदी के खिलाफ चाहे जो आरोप चस्पां हो जाए, लेकिन भ्रष्टाचार का लेबल नहीं लग सकता, मगर कांग्रेस ने राफेल को लेकर ‘चौकीदार चोर है’ का नारा गढ़कर यही गलती की।

जब भी आप कोई मुकाबला जीतना चाहते हैं तो अपनी कमजोरी को ढंकते हुए विरोधी की कमजोर कड़ी को निशाना बनाते हैं, लेकिन कांग्रेस ने उल्टा किया। भ्रष्टाचार को लेकर निशाने पर रही कांग्रेस और गांधी परिवार ने अपना यही कमजोर पक्ष उजागर करके प्रतिद्वंदी के सबसे मजबूत पक्ष यानी ईमानदार छवि पर प्रहार किया। इसका प्रतिकूल परिणाम सामने आना ही था।

नरेंद्र मोदी हमेशा से एक राष्ट्रपति शैली वाला चुनाव चाहते थे। ऐसे में मोदी पर लगातार हमला करके विपक्ष ने उनकी यह मुराद भी पूरी कर दी। मोदी को हराने का यही तरीका था कि विपक्ष 543 सीटों पर उनसे मुकाबला करता। गठबंधन सहयोगियों को साधा जाता। तीन महीने पहले विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस के पास महागठबंधन बनाने का सुनहरा मौका था।

मध्य प्रदेश में बहुमत न मिलने पर सपा और बसपा ने उसे समर्थन दिया। कांग्रेस थोड़ा दिल बड़ा करती और उनके एक-एक सदस्य को ही वहां राज्यमंत्री का दर्जा देती तो इससे गठबंधन धर्म के लिहाज से एक सकारात्मक संदेश जाता। फिर उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के सामने मांग रखती कि देखिए मध्य प्रदेश में हमने आपको सहभागी बनाया और यहां आप हमें अपने गठबंधन में शामिल करिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। थोड़ी सी सत्ता मिलते ही कांग्रेस के तेवर बदल गए। उसमें यह भावना घर कर गई कि हम बड़े दल हैं और हमें छोटी पार्टियों की कोई जरूरत नहीं।

सच्चाई यह थी कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस हांफते-हांफते ही जीती थी और वह भी पंद्रह साल के सत्ता विरोधी रुझान के बाद। लगता है कांग्रेस ने समझ लिया कि उसने बहुत बड़ा राजनीतिक चमत्कार कर दिया। इस दौरान कांग्रेस नरेंद्र मोदी और अमित शाह को लगातार अहंकारी बताती रही। अब जरा गठबंधन के मोर्चे पर भाजपा की रणनीति से कांग्रेस के रुख की तुलना कर लीजिए।

बिहार में जदयू को साथ जोड़ने के लिए भाजपा ने अपनी जीती हुई सीटों के साथ भी समझौता कर लिया। मोदी और भाजपा के खिलाफ विपक्ष के किसी भी नेता ने इतने कड़वे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया होगा जितना उद्धव ठाकरे और शिवसेना ने किया, फिर भी मोदी और शाह ने सभी बातों को किनारे रख उनके साथ गठजोड़ को अंतिम रूप दिया।

यदि कोई सहयोगी दल इसका एक प्रतिशत भी राहुल गांधी के साथ करता तो कांग्रेस कभी उससे गठजोड़ नहीं करती। भाजपा ने अन्य दलों को ऐसे ही साधा। भाजपा में जीतने की जो इच्छा है और उसके तहत योजनाएं बनाने और उन्हें मूर्त रूप देने का जो जज्बा है उसका कोई जोड़ नहीं। नतीजों से भी यह पुष्टि हो रही है।

यह भी उल्लेखनीय है कि पूरे पांच साल तक नरेंद्र मोदी की रेटिंग कभी भी कमजोर नहीं रही। जनवरी से हम रोजाना उनकी अप्रूवल रेटिंग का आकलन कर रहे थे। बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पीएम मोदी की रेटिंग 50 से चढ़कर 68 तक पहुंच गई। इसके बाद चर्चा हुई कि पीएम मोदी को इसका बहुत फायदा हुआ। फिर छह हफ्ते बाद जब इसमें कुछ गिरावट आई तो हमारी रेटिंग के आधार पर खबरें छपीं कि मोदी की रेटिंग में भारी गिरावट आई। मगर इस तथ्य को अनदेखा किया गया कि उनकी रेटिंग 50 से नीचे नहीं गई।

इसकी तुलना राहुल गांधी की रेटिंग से करें जो पूरा जोर लगाने के बावजूद सात-आठ से ऊपर जाने के लिए जद्दोजहद करती रही। मगर इसकी कहीं कोई चर्चा नहीं हुई। वहीं मोदी की रेटिंग घटकर 50 पर आ जाना कुछ लोगों के लिए बड़ी खबर बनी। चुनाव में बेरोजगारी भी एक बड़ा मुद्दा था। हमने जमीन पर जब इस बारे में बात की तो लोगों ने इसे एक बड़ी समस्या तो माना, लेकिन अधिकांश लोगों ने यह भी कहा कि इसका समाधान भी मोदी ही कर सकते हैं।

यह नया भारत है। आकांक्षी भारत है। युवा मतदाताओं का भारत है। इस जनादेश ने सबसे बड़ा संदेश यही दिया है कि मोदी ने दो नए वोट बैंक बना लिए हैं-एक महिलाओं का और दूसरा पहली दफा मतदान करने वाले युवाओं का। सत्तर साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि महिलाओं ने पुरुषों के बराबर मतदान किया। यह बहुत बड़ी बात है। महिलाओं में राजनीतिक जागरूकता के लिए उज्ज्वला योजना को तो श्रेय दिया जाता है, लेकिन इस दृष्टिकोण से शौचालय योजना की चर्चा कम होती है।

यह योजना केवल साफ-सफाई के लिए नहीं, बल्कि उससे कहीं बढ़कर है। ग्रामीण भारत में महिलाओं के साथ यौन दुव्र्यवहार की सबसे अधिक घटनाएं तब होती हैं जब वे शौच के लिए बाहर निकलती हैं। ऐसे में घर में शौचालय बनना उनके लिए बड़ी राहत साबित हुआ। इसका अनुमान तब लगा था जब हम अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्लोबस्कैन के लिए एक सर्वेक्षण कर रहे थे। इसमें शौचालय ग्रामीण महिलाओं की गरिमा और सम्मान के प्रतीक के रूप में सामने आया।

बीते पांच साल के दौरान देश में करीब आठ करोड़ नए मतदाता जुड़े जो कुल मतदाताओं का दस प्रतिशत हैं। 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो यह तबका स्कूल में था। मोदी ने तभी से उनसे जुड़ाव रखना शुरू किया। कभी मन की बात में परीक्षा के तनाव और दबाव से दूर रहने का मंत्र दिया या एक्जाम वॉरियर जैसी पहल की। उनकी इस मार्गदर्शक भूमिका ने भी इन नए मतदाताओं के मानस को प्रभावित किया। पहले किसी नेता ने ऐसा नहीं किया। परिणामस्वरूप इन दस प्रतिशत मतदाताओं का तकरीबन 60 फीसद मत भाजपा को मिला।

मोदी ने इस चुनाव में जाति और तमाम अन्य धारणाओं को ध्वस्त किया। इससे भाजपा अखिल भारतीय स्वरूप ग्रहण कर रही है। पिछले चुनाव में पूरब में सीमित पहुंच रखने वाली पार्टी ने इस बार पूर्वोत्तर, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में दमदार प्रदर्शन किया। दक्षिण में कर्नाटक पर पूरी तरह काबिज होकर और तेलंगाना में कुछ पैठ बनाकर उसने केरल और तमिलनाडु में प्रवेश की जमीन भी तैयार कर ली है। अगले चुनाव में इन राज्यों में भी भाजपा को मिलने वाली कामयाबी पर किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए।

  (लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं सी-वोटर के संस्थापक-संपादक हैं) 

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