किसानों की आय को दोगुना करने के संकल्प को पूरा करने के लिए नए कृषि कानूनों पर सही से अमल जरूरी

इस कानून से ग्रामीण क्षेत्रों में वेयरहाउस कोल्ड स्टोरेज खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों आदि के आने से जहां किसानों को फायदा होगा बुनियादी अवसंरचना में इजाफा होगा वहीं ग्रामीण इलाकों में रोजगार के नए अवसर खुलेंगे। ग्रामीणों को आर्थिक आजादी मिलने जा रही है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 24 Oct 2020 06:20 AM (IST) Updated:Sat, 24 Oct 2020 06:20 AM (IST)
किसानों की आय को दोगुना करने के संकल्प को पूरा करने के लिए नए कृषि कानूनों पर सही से अमल जरूरी
नए कृषि कानूनों से ग्रामीणों को आर्थिक आजादी मिलने जा रही है।

[ डॉ. सत्यपाल सिंह ]: सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश की 60 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है, परंतु जिंदगी के आंकड़े बताते हैं कि देश और दुनिया की शत-प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। क्या कोई अन्न, फल, सब्जी, दाल, दूध आदि के बिना जिंदा रह सकता है? मोदी सरकार ने 28 फरवरी, 2016 को पहली बार किसानों की आय को 2022 तक दोगुनी करने की साहसिक घोषणा की थी। इसी दिशा में उन्होंने स्वामीनाथन कमेटी की न्यूनतम समर्थन मूल्य संबंधी सिफारिशों को लागू किया। यह अवश्य मतभेद का विषय है कि कृषि लागत और मूल्य आयोग द्वारा लागत मूल्य की गणना करते समय सभी निवेश इनपुट का सही मूल्यांकन किया गया या नहीं? अब ग्रामीण कल्याण के उद्देश्य से मोदी सरकार ने तीन नए कृषि कानून बनाए हैं। कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अधिनियम, 2020 के तहत किसानों को अपनी उपज बेचने की आजादी दी गई है। वे उत्पादों को अधिकृत मंडियों के अतिरिक्त जिले, राज्य या देश में किसी भी स्थान पर भेजने को स्वतंत्र होंगे। यह समझ से बाहर है कि इस प्रावधान से किसी को आपत्ति क्यों है?

मंडियों में व्याप्त भ्रष्टाचार से किसान आजादी मिलने के बाद भी आजाद न हो पाया

किसानों को छोड़कर जितने भी उत्पादक हैं उन्हेंं यह आजादी है कि वे अपने उत्पाद को देश और दुनिया में जहां चाहे बेच सकते हैं और अपने डीलर बना सकते हैं, पर किसान तो देश को आजादी मिलने के बाद भी आजाद न हो पाया। मंडियों में किसानों पर लगने वाले उपकर, आढ़तियों एवं मंडी-समितियों में व्याप्त भ्रष्टाचार के बारे में किसे नहीं मालूम? सबको मालूम है कि क्यों अधिकारी मंडियों में अपनी नियुक्ति कराने के लिए नेताओं के चक्कर काटते हैं? आज जब ऐसे लोगों के स्वार्थों पर चोट पड़ी है तो वे किसानों को भ्रमित कर उनके कंधों पर बंदूक चला रहे हैं।

नए कानूनों में मंडियां खत्म नहीं होंगी, समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म नहीं होगी

नए कानूनों से किसान सीधे व्यापारियों से जुड़ सकेंगे। उन्हेंं अपने उत्पाद के लिए कोई उपकर नहीं देना होगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य और कृषि उत्पाद समितियों के बारे में जो भ्रम लोग फैला रहे हैं, उसके बारे में स्वयं प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री बार-बार यह स्पष्ट कर चुके हैं कि न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म होगी, न सरकारी खरीद बंद होगी और न ही कृषि उत्पाद बाजार समिति (मंडियां) खत्म की जाएगी। वहां व्यापार पूर्ववत चलता रहेगा।

किसान फसल की बुआई के पूर्व भी निर्यातक के साथ करार कर सकेगा

कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम, 2020 के तहत किसान फसल की बुआई के पूर्व भी किसी भी व्यापारी, कंपनी, निर्यातक के साथ करार कर सकेगा। वह अपने उत्पाद का दाम फसल आने से पहले भी निर्धारित कर सकता है। बाजार में उत्पाद का दाम कम हो तो भी करार के हिसाब से व्यापारी को भुगतान करना होगा। यदि दाम बढ़ते हैं तो व्यापारी को न्यूनतम मूल्य के साथ कुछ अतिरिक्त लाभ किसान को देना होगा। आखिर किसान का पक्ष लेने वाले इतने अच्छे कानून का कोई विरोध किस आधार पर कर सकता है?

किसान को अनिश्चितता का जोखिम नहीं उठाना होगा

इस कानून के कारण किसान को अनिश्चितता का जोखिम नहीं उठाना होगा। करार के अनुसार किसान को उन्नत बीज, खाद, कृषि उपकरण और तकनीक उपलब्ध हो सकेगी। किसान और व्यापारी (कंपनी) के बीच किसी भी विवाद के लिए एसडीएम (उपजिलाधिकारी) के स्तर पर 30 दिनों में निपटारा करने की व्यवस्था की गई है। इस पर कुछ लोगों द्वारा किसानों के मन में शंका पैदा की जा रही है कि अनुबंधित कृषि करारों में उनका पक्ष किसी व्यापारी या कंपनी के मुकाबले कमजोर होगा। यह भी कहा जा रहा है कि छोटे किसान कैसे अनुबंध खेती कर पाएंगे और विवाद की स्थिति में तो सिविल कोर्ट अच्छे होंगे। क्या हम इससे अनजान हैं कि सिविल कोर्ट में केस निपटने में दशकों लग जाते हैं? अदालतों में कंपनियां या व्यापारी अच्छे वकील करके किसानों के पक्ष को कमजोर कर सकते हैं, जबकि स्थानीय स्तर पर एसडीएम किसान को प्रत्यक्ष सुनकर जल्द एवं सही न्याय कर पाएगा।

कृषि उत्पाद खरीदने के तीन दिनों के भीतर व्यापारी को किसान को भुगतान करना होगा

नए कानून के अनुसार करार होने के बाद कृषि उत्पाद खरीदने के तीन दिनों के भीतर व्यापारी को किसान को भुगतान करना होगा। कंपनियों एवं व्यापारियों के इस क्षेत्र में आने पर किसानों के सामने बहुत सारे विकल्प होंगे। व्यापारी खरीदे हुए उत्पादों यथा अनाज, फल, सब्जी इत्यादि को अच्छे दामों पर बेच सकेंगे। हमारे यहां प्याज, लहसुन, भिंडी, टमाटर आदि का लागत मूल्य दो से सात रुपये प्रति किलो पड़ता है, पर वे स्थानीय बाजारों में लगभग 30 रुपये प्रति किलो बिकते हैं। यदि व्यापारी किसान को 15 रुपये प्रति किलो का भाव देता है तो हम अंदाजा लगा सकते हैं कि किसानों को कितना लाभ होगा। यदि व्यापारी उत्पाद को विदेशी बाजार में बेचने की व्यवस्था कर लेता है तो उसे और भी लाभ होगा। हमारे कुछ कृषि उत्पाद ऐसे हैं यथा आम, सरसों का तेल, बथुआ, टमाटर, दालें, जिनके स्वाद का कोई मुकाबला नहीं है। एक अच्छा व्यापारी जहां अच्छे दाम कमा सकता है, वहीं किसान को भी अतिरिक्त लाभ देने के साथ विदेशी मुद्रा भी कमा सकता है।

नए कृषि कानूनों से ग्रामीणों को आर्थिक आजादी मिलने जा रही

आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम, 2020 के तहत उत्पादों का वितरण, आपूर्ति भंडारण करने की स्वतंत्रता से बड़े किसानों, व्यापारियों को जहां लाभ होगा, वहीं अर्थव्यवस्था को भी प्रोत्साहन मिलेगा। पहले स्टॉक की सीमा होने से बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश करने से घबराती थीं। इस कानून से ग्रामीण क्षेत्रों में वेयरहाउस, कोल्ड स्टोरेज, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों आदि के आने से जहां किसानों को फायदा होगा, बुनियादी अवसंरचना में इजाफा होगा, वहीं ग्रामीण इलाकों में रोजगार के नए अवसर खुलेंगे। किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने का जो संकल्प है, उसे पूरा करने के लिए इन नए किसान कानूनों का सही ढंग से क्रियान्वयन होना आवश्यक है। इन नए कृषि कानूनों से ग्रामीणों को आर्थिक आजादी मिलने जा रही है। 

( लेखक भाजपा के लोकसभा सदस्य हैं )

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