यदि वोहरा समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई हुई होती तो आज देश को ड्रग माफिया से मुक्ति मिल गई होती

वर्ष 1993 में एनएन वोहरा समिति ने देश में ड्रग्स कारोबार की भी विस्तृत जांच की थी लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने रिपोर्ट पर कार्रवाई के बजाय उसे दबा दिया।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 15 Sep 2020 06:20 AM (IST) Updated:Tue, 15 Sep 2020 06:20 AM (IST)
यदि वोहरा समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई हुई होती तो आज देश को ड्रग माफिया से मुक्ति मिल गई होती
यदि वोहरा समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई हुई होती तो आज देश को ड्रग माफिया से मुक्ति मिल गई होती

[ सुरेंद्र किशोर ]: सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध हालत में मौत को लेकर चर्चा में आईं अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती पर आरोप है कि उन्होंने वर्जित नशीले उत्पादों को खरीदा-बेचा। यह नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज एक्ट, 1985 के दायरे में आता है। सवाल है कि क्या मुंबई पुलिस को यह नहीं पता था कि मायानगरी में ड्रग्स का कारोबार होता है? सच जो भी हो, यह किसी से छिपा नहीं कि ड्रग्स के व्यापक कारोबार का मामला देश की सुरक्षा के लिए कहीं अधिक गंभीर है।

ड्रग्स की बिक्री से आए पैसे आतंकियों के पास भी जाते रहे

विडंबना यह है कि इस काले कारोबार को खत्म करने के लिए वैसे प्रयास नहीं होते, जैसे आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य हैं। इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि कांग्रेस की सरकारों ने आजादी के बाद से ही भ्रष्टाचार और आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मामलों को कभी गंभीरता से नहीं लिया। इस संबंध में समय-समय पर जो भी संवेदनशील रिपोर्ट आर्ईं, उनमें से अधिकतर को उसने जाहिर करने से इन्कार किया। उसके कुपरिणाम अब सामने आ रहे हैं। इसका ताजा नमूना देश के अन्य हिस्सों के साथ मुंबई में जारी ड्रग्स कारोबार है। इस कारोबार की अनदेखी तब हो रही है, जब इसके प्रमाण हैं कि ड्रग्स की बिक्री से आए पैसे आतंकियों के पास भी जाते रहे हैं।

ड्रग्स कारोबार पर बनी वोहरा समिति की रपट पर कार्रवाई के बजाय उसे दबा दिया गया

वर्ष 1993 में एनएन वोहरा समिति ने देश में ड्रग्स कारोबार की भी विस्तृत जांच की थी। उसने देश को इस समस्या से मुक्त करने के लिए कई उपाय भी सुझाए थे, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने वोहरा समिति की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई के बजाय उसे दबा दिया। इस रपट के अनुसार, ‘बंबई सिटी पुलिस और बंबई के अपराध जगत के बीच साठगांठ के बारे में सीबीआइ ने 1986 में एक रिपोर्ट तैयार की थी। सीबीआइ द्वारा नए सिरे से अध्ययन कराया जाना उपयोगी होगा। यह कभी नहीं कराया गया।

धनशक्ति का इस्तेमाल गुंडों का नेटवर्क विकसित करने के लिए किया जाता है: वोहरा रिपार्ट

वोहरा समिति ने अपनी रपट में यह भी लिखा था, ‘संगठित अपराधी सिंडिकेट/माफिया आमतौर पर स्थानीय स्तर पर छोटे-छोटे अपराध करके अपनी गतिविधियां शुरू करता है। बड़े शहरों में ये अपराध मुख्यत: अवैध रूप से शराब बनाने, संगठित रूप से सट्टा चलाने से संबंधित होते हैं। जिन शहरों में बंदरगाह हैं, वे वहां पहले तस्करी करते हैं और आयातित सामान बेचते हैं। बाद में धीरे-धीरे मादक पदार्थों और नशीली दवाओं के व्यापार में संलिप्त हो जाते हैं। बड़े शहरों में इन तत्वों की आय का प्रमुख साधन भू-संपदा भी होती है। इस प्रकार अर्जित धनशक्ति का इस्तेमाल वे नौकरशाहों और नेताओं के साथ संपर्क बनाने के लिए करते हैं, ताकि अपनी गतिविधियां बेरोकटोक चालू रख सकें। इस धनशक्ति का इस्तेमाल गुंडों का नेटवर्क विकसित करने के लिए किया जाता है, जिसका इस्तेमाल राजनीतिज्ञों द्वारा भी चुनावों के दौरान किया जाता है।’

वोहरा रिपार्ट को ठंडे बस्ते में डाले जाने के चलते मुंबई समेत कई जगह ड्रग्स माफिया का ‘राज’ चल रहा

कहा जा सकता है कि इस रिपार्ट को ठंडे बस्ते में डाले जाने के कारण ही आज मुंबई समेत देश के कई हिस्सों में ड्रग्स माफिया का ‘राज’ चल रहा है। यहां यह भी याद रहे कि उद्धव ठाकरे सरकार में कांग्रेस भी शामिल है। वोहरा समिति ही नहीं, कांग्रेस ने 1967 में इंटेलिजेंस ब्यूरो की उस रपट को भी दबा दिया था, जिसमें देश के कुछ राजनीतिक दलों को अवैध तरीके से विदेशी पैसे मिलने की बात लिखी थी। दरअसल जब 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस सात प्रमुख राज्यों में हार गई तो उसे चिंता हुई। उसे लगा कि हमें चुनाव में हराने में विदेशी शक्तियों का हाथ है।

वोहरा रिपार्ट ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में छपने के बाद संसद में भारी हंगामा हुआ

इंदिरा गांधी सरकार ने जांच का काम आइबी को सौंपा। उसने अपनी रपट में लिखा कि कांग्रेस सहित कई दलों के नेताओं को चुनाव के लिए विदेश से पैसे मिले हैं। तत्कालीन केंद्र सरकार ने उस रपट को दबा दिया, पर वह रपट ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में छप गई। उसके बाद संसद में भारी हंगामा हुआ। कुछ सदस्यों ने रपट सार्वजनिक करने मांग की, लेकिन 1967 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री यशवंत राव चव्हाण ने संसद में कह दिया कि जिन दलों और नेताओं को विदेश से धन मिला है, उनके नाम जाहिर नहीं किए जा सकते, क्योंकि इससे अनेक दलों के हितों को क्षति होगी।

नेता अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारे? भले देश के पैरों पर कितनी भी कुल्हाड़ियां पड़ें!

यदि उस समय विदेशी धन पाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो गई होती तो शायद उसी समय हालात पर काबू पा लिया गया होता। वास्तव में उसके बाद से ही चुनावों में बड़े पैमाने पर देसी-विदेशी नाजायज धन का इस्तेमाल होने लगा था। कोई अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारे? भले देश के पैरों पर कितनी भी कुल्हाड़ियां पड़ें! याद रहे कि उस रपट के अनुसार कांग्र्रेस के कुछ नेताओं ने एक कम्युनिस्ट देश और कुछ अन्य ने पूंजीवादी देशों से पैसे लिए थे।

1962 में चीन से हार की जांच के लिए बनी हैंडरसन ब्रुक्स-भगत समिति को भी दबा दिया गया

1962 में चीन के हाथों अपमानजनक हार के कारणों की जांच के लिए देश में हैंडरसन ब्रुक्स-भगत समिति बनी। उसने अपनी रपट तैयार की, लेकिन उसे भी तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने दबा दिया था, क्योंकि उसके प्रकाशन से नेहरू की छवि बिगड़ने वाली थी।

सेना के पास हथियारों की भारी कमी को मनमोहन सरकार ने सेना प्रमुख वीके सिंह की अनसुनी की

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी तत्कालीन सेना प्रमुख वीके सिंह ने सरकार को लिखा था कि हमारी सेना के पास हथियारों की भारी कमी है। इस कमी को देखते हुए तब सेना ने रक्षा मंत्रालय के जरिये वित्त मंत्रालय को एक विशेष प्रस्ताव भेजा था कि उस इलाके में सेना को आधुनिक हथियारों तथा साजोसामान से सुसज्जित करने के लिए 50 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है। मकसद चीन से लगती सीमा पर भारतीय सेना को मजबूत बनाना था। उस प्रस्ताव को अस्वीकार करने के साथ ही वित्त मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय से यह एक अजीब सवाल भी पूछा था कि क्या कुछ साल बाद भी सीमा पर चीन से खतरा आज की तरह ही बरकरार रहेगा। कुछ साल बाद क्या हुआ, यह दुनिया देख रही है।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )

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