Maharashtra Government : कुछ न कर पाने की हताशा इस सरकार को कब तक चैन से चलने देगी

Maharashtra Government पवार का सीधा प्रहार उद्धव पर है जिन्होंने कुछ दिन पहले कहा था कि यलगार परिषद मामले की जांच NIA द्वारा अपने हाथ में लिए जाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 19 Feb 2020 12:35 PM (IST) Updated:Wed, 19 Feb 2020 11:54 PM (IST)
Maharashtra Government : कुछ न कर पाने की हताशा इस सरकार को कब तक चैन से चलने देगी
Maharashtra Government : कुछ न कर पाने की हताशा इस सरकार को कब तक चैन से चलने देगी

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। शरद पवार को यलगार परिषद मामले की जांच राज्य पुलिस के हाथ से निकलकर एनआइए के हाथ में जाने का बड़ा अफसोस होता दिख रहा है। इसके लिए वह मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भी कोस रहे हैं। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री हैं कि छाछ भी फूंक-फूंककर पी रहे हैं। वह ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहते कि भविष्य में कांग्रेस-राकांपा से बात बिगड़ने पर उन्हें पछताना पड़े।

‘यलगार परिषद’ मामले को भी ‘मालेगांव’ बनाने की राह: दरअसल शरद पवार 31 दिसंबर, 2017 की शाम को पुणे में हुए ‘यलगार परिषद’ मामले को भी ‘मालेगांव’ बनाने की राह पर चल चुके थे। उस मामले को हिंदू आतंकवाद का रंग भी महाराष्ट्र पुलिस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की अलीबाग में हुई उस बैठक के बाद ही दिया था, जिसे संबोधित करते हुए शरद पवार ने कहा था कि आतंक के हर मामले में एक वर्ग को ही निशाना बनाया जाना उचित नहीं है। उसके बाद ही एटीएस ने ‘दूसरे वर्ग’ को भी निशाने पर लेना शुरू कर दिया। यह बात और है कि एनआइए द्वारा मालेगांव कांड की जांच करने के बाद एटीएस की जांच में आरोपी बनाए गए सभी लोगों को क्लीन चिट मिल गई, लेकिन तब तक कई लोग कई वर्ष की जेल काट चुके थे।

जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव में शुरू हुई थी हिंसा: यलगार परिषद मामले में आरोपी बनाए गए सभी 17 लोग वाम रुझान के कार्यकर्ता हैं। 31 दिसंबर, 2017 की शाम पुणे में पेशवाओं का निवास रहे शनिवारवाड़ा के बाहर इस परिषद का आयोजन सीपीआइ (एम) की मदद से हुआ था। पुलिस का आरोप है कि इस परिषद में दिए गए भड़काऊ भाषणों के फलस्वरूप ही अगले दिन एक जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव में हिंसा शुरू हुई। इस हिंसा में एक व्यक्ति की जान गई और लाखों की संपत्ति का नुकसान हुआ। इसके बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी के फलस्वरूप शुरू हुई जांच के तार सीपीआइ (एम) एवं इससे जुड़े कार्यकर्ताओं तक पहुंचे। इनमें वाम रुझान वाले सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, सोमा सेन, अरुण परेरा, वरनन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज एवं वरवर राव जैसे नाम शामिल हैं।

नक्सल-आतंकी संबंधों की गुत्थी भी सुलझ सकती है: पुलिस का कहना है कि ये पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या जैसी किसी बड़ी घटना की साजिश रच रहे थे। इसी कड़ी में दो नाम आनंद तेलतुंबड़े एवं गौतम नौलखा के भी हैं, जिनकी अग्रिम जमानत की अर्जी मुंबई उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी है। वाम रुझान वाले इन्हीं कार्यकर्ताओं की पहचान देश में अर्बन नक्सल के रूप में होती है। माना जाता है कि यही वर्ग गहन वनों में रहनेवाले आदिवासियों को नक्सली समूहों के रूप में प्रेरित-पोषित करता है। गौतम नौलखा पर तो कश्मीरी आतंकवादियों से भी मिले होने का आरोप है। यलगार परिषद मामले की जांच एनआइए के हाथ में जाने के बाद अब न सिर्फ गौतम नौलखा पर शिकंजा कस सकता है, बल्कि नक्सल-आतंकी संबंधों की गुत्थी भी सुलझ सकती है।

एसआइटी से जांच कराने की सिफारिश की: राज्य में सरकार बदलने के बाद से ही यलगार परिषद के समर्थक राहत की उम्मीद लगाए बैठे थे। कांग्रेस-राकांपाशिवसेना की महाराष्ट्र विकास आघाड़ी सरकार बनने के बाद से ही यलगार परिषद मामले की जांच फिर से करवाने की मांग उठनी शुरू हो गई थी। इसी मांग का समर्थन करते हुए राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखकर यलगार परिषद मामले की एसआइटी से जांच कराने की सिफारिश की, लेकिन उद्धव ने उस पत्र पर कोई टिप्पणी नहीं लिखी। कुछ दिन बाद केंद्रीय जांच एजेंसी एनआइए ने यलगार परिषद मामले की जांच अपने हाथ में लेने की पहल कर दी। अब शरद पवार के पास खीझ उतारने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं बचा है। उनका कहना है कि किसी अपराध की जांच राज्य सरकार के दायरे में आती है। महाराष्ट्र सरकार का यलगार परिषद मामले को केंद्रीय जांच एजेंसी को सौंपना संवैधानिक रूप से गलत है।

शरद पवार की खीझ!: पवार का सीधा प्रहार उद्धव ठाकरे पर है, जिन्होंने कुछ दिन पहले ही कहा था कि यलगार परिषद मामले की जांच एनआइए द्वारा अपने हाथ में लिए जाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। पवार की खीझ का एक बड़ा कारण यह भी है कि साझे की सरकार में गृहमंत्रालय उनकी पार्टी के पास रहते हुए भी यह मामला उनकी मर्जी के विरुद्ध एनआइए के हाथ में चला गया। जबकि इस साझा सरकार के शिल्पकार भी वही माने जाते हैं। उनकी पार्टी ने सोच समझकर ही गृहमंत्रालय अपने पास रखा था। इसके बावजूद कुछ न कर पाने की हताशा इस सरकार को कब तक चैन से चलने देगी, कहा नहीं जा सकता।

[ब्यूरो प्रमुख, मुंबई]

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