हिंदी दिवस: हिंदी भारत के मन का संगीत है, करोड़ों भारतीयों की मातृभाषा है, क्षेत्रीय भाषाओं की बहन है

हिंदी दिवस पर राजभाषा को वास्तविक सम्मान दिलाने का संकल्प लेना चाहिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 14 Sep 2020 06:15 AM (IST) Updated:Mon, 14 Sep 2020 06:15 AM (IST)
हिंदी दिवस: हिंदी भारत के मन का संगीत है, करोड़ों भारतीयों की मातृभाषा है, क्षेत्रीय भाषाओं की बहन है
हिंदी दिवस: हिंदी भारत के मन का संगीत है, करोड़ों भारतीयों की मातृभाषा है, क्षेत्रीय भाषाओं की बहन है

[ हृदयनारायण दीक्षित ]: भाषा सर्वोत्तम मानवीय सृजन है। संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान की संवाहक है। सभी राष्ट्र अपनी भाषाओं के सम्मान और समृद्धि के लिए सजग हैं। भारत इसका अपवाद है। हिंदी भारत के मन का संगीत है। करोड़ों भारतीयों की मातृभाषा है। क्षेत्रीय भाषाओं की सगी बहन है। संविधान में राजभाषा है। बावजूद इसके हिंदी को उसका उचित सम्मान नहीं मिला। यही याद दिलाने के लिए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस का आयोजन होता है। साल में एक दिन हिंदी का, शेष 364 दिन अंग्रेजी का वर्चस्व। अंग्रेजी ग्लोबल है। हिंदी लोकल है, लेकिन लोकल के लिए वोकल के भाव का अभाव है।

एशिया; 48 देशों की भाषा अंग्रेजी नहीं है, यूरोप; 40 की भाषा अंग्रेजी नहीं है, फिर भी अंग्रेजी विश्वभाषा

धारणा है कि अंग्रेजी के अभाव में उन्नति असंभव है, लेकिन एशिया के 48 देशों की राजभाषा अंग्रेजी नहीं है। अजरबैजान की भाषा अजेरी है। आर्मेनिया की आर्मेनियन, इजराइल की हिब्रू, ईरान की फारसी, ओमान, सऊदी अरब, सीरिया, इराक, जार्डन, यमन, बहरीन, कतर, कुवैत आदि की भाषा अरबी है। चीन, ताइवान की मंदारिन, कोरिया की कोरियाई, श्रीलंका की सिंहली एवं तमिल, कंबोडिया की खमेर, अफगानिस्तान की पश्तो और तुर्की की तुर्की है। द. अमेरिका के 12 देशों में से 9 की भाषा स्पेनिश और ब्राजील की पुर्तगाली है। इसी तरह यूरोप के 46 देशों में से 40 की भाषा अंग्रेजी नहीं है। डेनमार्क की डेनिश, रूस की रूसी, स्वीडन की स्वीडिश, ऑस्ट्रिया, जर्मनी की जर्मन, इटली की इटैलियन, ग्रीस की ग्रीक, फ्रांस की फ्रेंच, स्पेन की स्पेनिश है। सिर्फ ब्रिटेन की भाषा अंग्रेजी है। अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी अंग्रेजी मूल भाषा नहीं है। बावजूद इसके अंग्रेजी विश्वभाषा है। 

पृथ्वी पर हिंदुस्तान ऐसा देश है जहां मातृभाषा के बजाय अंग्रेजी पढ़ाई-लिखाई जाती है: गांधी जी

मूलभूत प्रश्न है कि अंग्रेजी न अपनाने वाले देशों और खासकर जापान, जर्मनी, इटली, फ्रांस, इजरायल आदि की इतनी तरक्की कैसे हुई? सभी देश मातृभाषा को वरीयता देते हैं, लेकिन भारत नहीं। गांधी जी ने लिखा, ‘पृथ्वी पर हिंदुस्तान ही एक ऐसा देश है जहां मां-बाप अपने बच्चों को मातृभाषा के बजाय अंग्रेजी पढ़ाना-लिखाना पसंद करेंगे।’ संविधान सभा (14 सितंबर 1949) ने हिंदी को राजभाषा बनाया, लेकिन 15 वर्ष तक अंग्रेजी में राजकाज चलाने का ‘परंतुक’ भी जोड़ा। अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने समापन भाषण में कहा, ‘हमने संविधान में अंग्रेजी के स्थान पर भारतीय भाषा (हिंदी) को अपनाया है।’ एनजी आयंगर ने हिंदी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव रखा। 15 बरस तक अंग्रेजी जारी रखने का कारण बताया, ‘हम अंग्रेजी को एकदम नहीं छोड़ सकते।... यद्यपि सरकारी प्रयोजनों के लिए हमने हिंदी को अभिज्ञात किया, फिर भी हमें यह मानना चाहिए कि आज वह समुन्नत भाषा नहीं है।’

नेहरू ने कहा था- हमें अपनी ही भाषा को अपनाना चाहिए

भाषा विज्ञानी मातृभाषा को अभिव्यक्ति की स्वाभाविक भाषा बताते हैं। तब मातृभाषा में शोध-अनुसंधान भी सहज क्यों नहीं हो सकते? पं. नेहरू ने संविधान सभा में कहा, ‘हमने अंग्रेजी इसलिए स्वीकार की कि वह विजेता की भाषा थी। इस कारण नहीं कि वह महत्वपूर्ण भाषा है। अंग्रेजी कितनी ही महत्वपूर्ण क्यों न हो, हम उसे सहन नहीं कर सकते। हमें अपनी ही भाषा को अपनाना चाहिए।’

देश में एक भाषा और एक लिपि रखना जरूरी 

सेठ गोविंद दास ने कहा कि हजारों वर्ष से यहां एक संस्कृति है। देश में एक भाषा और एक लिपि रखना जरूरी है। हम 15 वर्षों में अंग्रेजी की जगह हिंदी ले आना चाहते हैं या 15 वर्ष बाद भी नहीं? अलगू राय शास्त्री ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत गई, अब भाषा भी भारतीय होनी चाहिए। हम एक राष्ट्र हैं, हमारी एक भाषा है। वीआर घुलेकर ने हिंदी को मातृभाषा-राष्ट्रभाषा बताया और कहा अंग्रेजी के नाम पर 15 बरस का पट्टा लिखने से राष्ट्र का हित नहीं होगा। अंग्रेजी वीरों की भाषा नहीं है, वैज्ञानिकों की भी नहीं। इस सभा में तीन दिन बहस हुई। हिंदी राजभाषा बनी।

हिंदी केवल भाषा ही नहीं, यह देश की विविधता को जोड़ती है 

नेहरू ने अंग्रेजी को विजेता की भाषा बताया। 1947 के बाद हिंदी भी विजेता की भाषा थी। अंग्रेज जीते, अंग्रेजी लाए, हम स्वाधीनता संग्राम जीते, हिंदी क्यों नहीं लाए? स्वाधीनता संग्राम की भाषा हिंदी थी, पर कांग्रेस अंग्रेजी को वरीयता देती रही। गांधी जी ने कहा, ‘अंग्रेजी ने हिंदुस्तानी नेताओं के मन में घर कर लिया है। मैं इसे देश और मनुष्यत्व के प्रति अपराध मानता हूं।’ स्वभाषा के बिना संस्कृति निष्प्राण होती है। स्वसंस्कृति के अभाव में राष्ट्र अपना अंतस, प्राण और तेज खो देते हैं। हिंदी सृजन, संवाद और सामाजिक पुनर्गठन की भाषा है। हिंदी केवल भाषा ही नहीं है। यह देश की विविधता को जोड़ती है। उसके पास दुनिया की सर्वोत्तम भाषा संस्कृत का उत्तराधिकार है। हिंदी में अनेक क्षेत्रीय बोलियों के समन्वय संस्कार भी हैं। हिंदी अपने दम पर बढ़ी है। ज्ञान-विज्ञान और समाज विज्ञान के सभी अनुशासनों में हिंदी में उच्च कोटि का साहित्य है।

हिंदी से किसी भी भारतीय भाषा की प्रतियोगिता नहीं

बाजार उद्यम की भाषा हिंदी है। हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं का विकास जरूरी है। हिंदी से किसी भी भारतीय भाषा की प्रतियोगिता नहीं है। हालांकि कभी-कभी तमिल, कन्नड़ जैसे भाषिक क्षेत्रों से हिंदी विरोध की आवाजें उठती हैं। ये आवाजें उठाने वाले भूल रहे हैं कि हिंदी का विरोध सभी भारतीय भाषाओं को कमजोर करता है। अंग्रेजी ने हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं की शक्ति घटाई है। राजभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं की प्रतियोगिता अंग्रेजी से ही है। प्रत्येक भाषा के विशिष्ट संस्कार होते हैं।

अंग्रेजी भारतीय संस्कृति की भाषा नहीं है

अंग्रेजी के साथ देश में अंग्रेजी संस्कार भी आए। अंग्रेजी भारतीय संस्कृति की भाषा नहीं है। इससे सांस्कृतिक क्षति हुई है। हिंदी, तमिल, कन्नड़ आदि भाषाओं में प्रवाहित संस्कार भारतीय ही हैं। भारतीय भाषाओं के संस्कार राष्ट्रीय एकता बढ़ाते हैं।

शिक्षा नीति में मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा देने का उल्लेख

प्रधानमंत्री मोदी की मन की बात हिंदी में प्रसारित होती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के लिए उम्मीदें बढ़ी हैं। सरकार भारतीय भाषाओं में शिक्षण के लिए तत्पर है और रोजगार के अवसरों के लिए भी। शिक्षा नीति में मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा देने का उल्लेख भी है। सभी क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षण की भी व्यवस्था की जानी है। भाषा शिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने की बात महत्वपूर्ण है, लेकिन भाषा प्रसार, उपयोग और राजभाषा के प्रति निष्ठा संवर्धन का काम अकेले सरकार ही नहीं कर सकती।

अंग्रेजी से कोई बैर नहीं, लेकिन हमारी अपनी मातृभाषा की अवहेलना नहीं होनी चाहिए

हम भारत के लोगों को स्वयं ही अंग्रेजी की ग्रंथि से मुक्त होने का निश्चय करना होगा। एक भाषा के रूप में अंग्रेजी से कोई बैर नहीं, लेकिन हमारी अपनी मातृभाषा की अवहेलना नहीं होनी चाहिए। अंग्रेजी श्रेष्ठता की हमारी हीनग्रंथि ने भारी सांस्कृतिक क्षति की है। हिंदी दिवस पर राजभाषा को वास्तविक सम्मान दिलाने का संकल्प लेना चाहिए।

( लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं )

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