खतरा न बनने पाए कोरोना का नया रूप, इसकी रोकथाम के लिए करने होंगे ये पांच उपाय

अन्य देशों के मुकाबले भारत किसी भी वैरिएंट से निपटने के लिए कहीं अधिक सतर्क है फिर भी ओमिक्रोन से मुकाबले के लिए पूरी तैयारी आवश्यक है। कई देशों ने इससे बचाव के लिए ट्रैवल बैन लगाने का फैसला लिया है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 02 Dec 2021 09:00 AM (IST) Updated:Thu, 02 Dec 2021 09:09 AM (IST)
खतरा न बनने पाए कोरोना का नया रूप, इसकी रोकथाम के लिए करने होंगे ये पांच उपाय
ओमिक्रोन से बचाव के लिए पांच उपाय करने जरूरी

सृजन पाल सिंह। कोरोना वायरस का नया वैरिएंट ओमिक्रोन पूरी दुनिया के लिए चिंता का सबब बन गया है। सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में पहचाने गए इस वैरिएंट में कुल 50 म्युटेशन यानी बदलाव हुए हैं। कोरोना वायरस में यह अब तक का सबसे बड़ा म्युटेशन है। इन म्युटेशन में से 30 स्पाइक प्रोटीन में हुए हैं। स्पाइक प्रोटीन असल में मानव शरीर में प्रवेश के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला वायरस का हिस्सा होता है। यह चिंता की बात है, क्योंकि अधिकांश वैक्सीन वायरस पर कारगर होने के लिए स्पाइक प्रोटीन को ही लक्ष्य करती हैं। अब यह पता लगाने की दिशा में अध्ययन हो रहे हैं कि क्या ओमिक्रोन वायरस में कुछ हद तक वैक्सीन को धोखा देने की क्षमता है या नहीं?

इस खबर का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इसके ‘बाइंडिंग डोमेन’ में 10 म्युटेशन हो चुके हैं। बाइंडिंग डोमेन वह हिस्सा होता है, जिससे वायरस स्वयं को मानव कोशिका से जोड़ लेता है। इस साल अप्रैल और मई के दौरान हमने जिस डेल्टा वैरिएंट का सामना किया था, उसमें ऐसे मात्र दो ही म्युटेशन हुए थे। यह ओमिक्रोन को कोरोना के अन्य किसी भी प्रकार के स्वरूप की तुलना में कहीं अधिक तेजी से फैलने वाला भयानक रूप से संक्रामक बनाता है। दक्षिण अफ्रीका से मिल रहे शुरुआती संकेतों से यह आशंका सही साबित हो रही है। हालांकि इस मोर्चे पर अब तक की बड़ी राहत यही है कि डेल्टा की तुलना में ओमिक्रोन के लक्षण कम गंभीर दिख रहे हैं।

ओमिक्रोन की दस्तक यही स्थापित करती है कि यह संसार अभी कोरोना वायरस पर पूर्ण विजय प्राप्त करने से दूर है। यह भी सही है कि वैक्सीन हमें रक्षा कवच प्रदान किए हुए है। कुछ ही महीनों के भीतर हम कोविड-19 से बचाव के लिए टैबलेट भी बना लेंगे। फिर भी वायरस की अपनी ही एक चाल है और उसकी यह राह न केवल अत्यंत अप्रत्याशित, अपितु अत्यधिक तीव्र भी है। इसी साल अप्रैल में इस वायरस से हमारा सबसे भयंकर सामना हुआ था। तब भारत में फैले डेल्टा वायरस ने हमारी पूरी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को तहस-नहस कर दिया था। उस लहर से हम जैसे-तैसे उबर गए हों, लेकिन उस दौरान सड़कों पर आक्सीजन के लिए मचे कोहराम और परिवारों पर वज्रपात कर देने वाली मौतों की अंतहीन तस्वीरों को शायद ही लोग भुला सकेंगे। वैसी तस्वीरें कभी दोहराई नहीं जानी चाहिए। कभी भी नहीं।

फिलहाल तो हम स्वयं को खुशकिस्मत कह सकते हैं कि ओमिक्रोन अभी हमसे हजारों मील दूर है और हमारे पास इस बार तैयारी करने का काफी समय है। अपनी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत करने के लिए हमें इस अवसर को गंवाना नहीं चाहिए। ऐसी भरी-पूरी आशंका है कि तमाम प्रतिरोध और सावधानी बरतने के बावजूद ओमिक्रोन भारत की सीमा में दाखिल हो सकता है। इस दौरान अगर हमने इससे निपटने की तैयारी कर ली तो हम उसकी आशंकित लहर पर अंकुश लगा सकेंगे। इसके लिए पांच स्तरों पर कार्रवाई आवश्यक है।

सबसे पहले सरकार को तत्काल सभी अस्पतालों का नवीनतम-अद्यतन आक्सीजन आडिट कराना चाहिए। डेल्टा वैरिएंट के दौरान इलाज के लिए लोग बड़े शहरों की ओर उमड़ रहे थे, जिससे स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था धराशायी होने के कगार पर पहुंच गई थी। हमें ग्रामीण अस्पतालों में भी आक्सीजन आपूर्ति की निगरानी के लिए डिजिटल डैशबोर्ड बनाना ही होगा। वैसे तो हम पहले ही आक्सीजन के व्यापक उत्पादन और आपूर्ति की चेन तैयार कर चुके हैं। इस व्यवस्था को परखा जाए कि अगर मरीजों की संख्या अचानक बढ़ी तो यह तैयारी कितनी कारगर होगी।

दूसरा, दवाओं के भंडारण और उनकी सप्लाई चेन को सुरक्षित करना होगा। हमें वह दौर भी याद है जब रेमडेसिविर जैसी जरूरी दवा की 20 गुने से भी अधिक दाम पर कालाबाजारी हो रही थी। इस बार इस स्थिति से आसानी से बचा जा सकता है। हम जानते हैं कि कोविड में क्या काम करता है और क्या नहीं? जिला स्तर के अधिकारियों को तहसील स्तर पर सप्लाई और भंडारण व्यवस्था का पता लगा लेना चाहिए। यही मेडिकल आक्सीजन सिलेंडरों और कंसंट्रेटर के लिए किया जाना चाहिए। हमें अभी ही यह मालूम होना चाहिए कि जरूरत के वक्त राहत कहां मिलेगी?

तीसरा, विदेश से आने वाले यात्रियों की आवाजाही को पूरी तरह खोलने पर भी भारत को सतर्क रहना होगा। ओमिक्रोन आएगा तो दूसरे देशों से ही आएगा। ऐसे में अगर हम बाहर से आने वालों की सख्त निगरानी करते हैं तो शायद इस वैरिएंट के आने को कुछ समय तक टाल सकते हैं। जितने समय तक हम ओमिक्रोन को टाल सकेंगे, उतना ही बेहतर ढंग से हम उसके व्यवहार को समझने और उसे हराने का तरीका जान पाएंगे।

चौथा, भारत को अपने बल पर देखना होगा कि ओमिक्रोन वैरिएंट के खिलाफ वैक्सीन कितनी प्रभावी है? परखना होगा कि कोविशील्ड और स्वदेशी कोवैक्सीन कोरोना के इस नए स्वरूप के खिलाफ कैसा काम करती हैं? अगर यह वैरिएंट हमारे देश में आता है तो हमें वैक्सीन की मांग में बढ़ोतरी के लिए तैयार रहना होगा। यह सुनिश्चित करना होगा कि वैक्सीन का पर्याप्त स्टाक समय से कर लिया जाए।

पांचवां और अंतिम उपाय जागरूकता से जुड़ा है। यह एक जन अभियान है। अगर आप नए साल पर विदेश घूमने की योजना बना रहे हैं तो उसे टालने के बारे में सोचिए। अगर आपने अब भी वैक्सीन नहीं ली है, तो अविलंब ले लीजिए। अगर आप अब भी तय नहीं कर पा रहे तो कोविड के खिलाफ अपनी एंटीबाडी की जांच कराएं। शारीरिक दूरी, मास्क पहनने और हाथ धोने जैसे आसान कदमों को अपनाएं। हमें अर्थव्यवस्था या कामकाज को बंद करने की जरूरत नहीं, लेकिन अनावश्यक जोखिम से अवश्य ही बचना होगा। सावधानी ही कोरोना वायरस से सबसे अच्छा बचाव है।

दुनिया के तमाम देशों के मुकाबले भारत किसी भी वैरिएंट से निपटने के लिए कहीं अधिक तैयार है। हमारे साथ अब वह स्थिति नहीं रही, जब डेल्टा ने हमें चौंका दिया था। फिर भी हमें लापरवाह नहीं होना है। ओमिक्रोन को पूरी गंभीरता से लेना होगा। हमें याद रखना होगा कि ओमिक्रोन फिर से म्यूटेट हो सकता है। बिल्कुल वैसे जैसा हमने मार्च में डबल म्युटेशन होते देखा था। महामारी कम हुई है, लेकिन खत्म नहीं हुई है और भारत को सतर्क रहना चाहिए। डेल्टा ने हमें जो सबक सिखाए हैं, उन्हें कभी नहीं भूलना है।

(लेखक कलाम सेंटर के सीईओ हैं)

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