छोटे उद्योगों को सहारा दे सरकार: कोरोना के कारण छोटे उद्यमों के नुकसान की भरपाई हो, ताकि वजूद बचा रहे

कोविड महामारी के कारण यूरोपीय संघ के करीब 50 प्रतिशत छोटे उद्यम एक साल के भीतर दम तोड़ देंगे। अपने देश के हालात भी इससे बहुत अलग नहीं हैं। छोटे उद्योग कई बड़े फायदों की सौगात देते हैं सबसे ज्यादा रोजगार सृजन करते हैं। उन्हेंं बचाना आवश्यक है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 20 Apr 2021 12:25 AM (IST) Updated:Tue, 20 Apr 2021 01:01 AM (IST)
छोटे उद्योगों को सहारा दे सरकार: कोरोना के कारण छोटे उद्यमों के नुकसान की भरपाई हो, ताकि वजूद बचा रहे
कोविड महामारी के कारण छोटे उद्योगों को हुए नुकसान की भरपाई करनी चाहिए।

[ भरत झुनझुनवाला ]: अंतरराष्ट्रीय सलाहकार फर्म मैकिंजी के एक हालिया अध्ययन के अनुसार कोविड महामारी के कारण यूरोपीय संघ के करीब-करीब 50 प्रतिशत छोटे उद्यम एक साल के भीतर दम तोड़ देंगे। अपने देश के हालात भी इससे बहुत अलग नहीं हैं। छोटे उद्योग कई बड़े फायदों की सौगात देते हैं, जैसे वही सबसे ज्यादा रोजगार सृजन करते हैं। ऐसे में उन्हेंं बचाना आवश्यक है। इसके लिए उनके समक्ष पैदा संकट के कारणों की पड़ताल कर उपाय तलाशने होंगे। उनकी मुश्किलों की एक बड़ी वजह ऊंची लागत का होना है। लागत ऊंची होने के मुख्य रूप से चार कारण हैं। इनमें पहला कारण सूचना की उपलब्धता का है। जैसे कानपुर के उद्यमी को हैदराबाद के बाजार में माल बेचना हो तो उसका आवाजाही का खर्च तो बड़े उद्यमी के बराबर आता है, लेकिन उसकी बिक्री उतनी अधिक नहीं होती। मिसाल के तौर पर वह एक लाख का माल बेचेगा तो बड़ा उद्यमी एक करोड़ का और आवाजाही की लागत उसी अनुरूप समायोजित हो जाती है। दूसरा कारण मानव संसाधन से संबंधित है। बड़े उद्योगों में मार्केटिंग, फाइनेंस, एकाउंटिंग इत्यादि के लिए अलग-अलग और दक्ष लोग होते हैं। छोटे उद्यमी को ये सब कार्य स्वयं करने होते हैं और उसमें उतनी दक्षता भी नहीं होती। तीसरा कारण कर अनुपालन का है। कई अध्ययनों के अनुसार जीएसटी के नियमों के अनुपालन का अतिरिक्त बोझ छोटे उद्यमियों पर ज्यादा आता है, क्योंकि बड़े उद्यमी पहले ही चार्टर्ड एकाउंटेंट से लैस रहते हैं, जिनके जरिये वे अनुपालन आसानी से करा लेते हैं। चौथा कारण डिजिटल तकनीक के आगमन का है, जो वर्तमान युग में विशेष महत्व रखती है।

बड़े उद्यमियों की उत्पादन लागत कम होती जा रही, उत्पाद भी आसानी से बेचते हैं

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआइ जैसी तकनीक के माध्यम से बड़े उद्यमियों की उत्पादन लागत कम होती जा रही है। साथ ही वे संपूर्ण विश्व में अपने उत्पाद भी आसानी से बेच लेते हैं। इंटरनेशनल ट्रेड सेंटर के अनुसार 2017 में विश्व की 10 बड़ी इंटरनेट कंपनियों का बाजार मूल्य 3.3 ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर था, जबकि उस उस वर्ष भारत की कुल जीडीपी करीब 2.7 ट्रिलियन डॉलर के आसपास थी। इन कंपनियों द्वारा अपने चहेते उत्पादकों को सहारा दिया जाता है। जैसे यदि किसी प्लेटफॉर्म ने किसी बड़े उद्यमी से अनुबंध कर लिया तो उसके प्लेटफॉर्म पर उस बड़े उद्यमी का माल अधिक बिकेगा और छोटे उद्यमियों को प्रवेश कम मिलेगा। इसलिए सरकार को इन बड़े प्लेटफॉर्म को विभाजित करना चाहिए, ताकि उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण किसी एक प्लेटफॉर्म पर देश की अर्थव्यवस्था और छोटे उद्योगों का भविष्य निर्भर न हो जाए। अपने देश में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग यानी सीसीआइ को इस दिशा में पर्याप्त अधिकार हैं। सरकार को उनका उपयोग करना चाहिए।

छोटे औद्योगिक संगठनों का अपने सदस्यों से गहरा संबंध

यूरोपीय संघ के छोटे उद्योगों को वैश्विक बाजार में समर्थन देने की गाइड बुक में सुझाव दिया गया है कि यदि ट्रेनिंग, रिसर्च, सूचना उपलब्ध कराना और उनके क्लस्टर बनाने जैसे कार्य छोटे उद्योगों के संगठनों के माध्यम से किए जाएं तो उससे सफलता मिलेगी। छोटे औद्योगिक संगठनों का अपने सदस्यों से गहरा संबंध रहता है और उन्हेंं पूरी जानकारी रहती है कि उनके सदस्यों को किस प्रकार की ट्रेनिंग चाहिए। वही ट्रेनिंग यदि सरकारी अधिकारी निर्धारित करते हैं तो वह अक्सर सही नहीं बैठती। औद्योगिक संगठनों को समझ रहती है कि उनके सदस्यों के लिए किस देश में कैसे उत्पाद बेचने की संभावना अधिक है और उसके लिए किन सूचनाओं की जरूरत है। क्लस्टर बनाने में भी औद्योगिक संगठनों की समझ अच्छी होती है, पर क्लस्टर यदि बनारसी साड़ी बनाने वालों के संगठन द्वारा स्थापित किया जाए तो सफल होगा, क्योंकि उन्हेंं पता होगा कि किस सुविधा की कितनी जरूरत है। मसलन कंप्यूटर की जरूरत है या विदेशी मेले में माल का डिस्प्ले करने की या फिर वेबसाइट बनाने की?

सरकार छोटे उद्योगों को पर्याप्त वित्तीय सहायता दे

इस संदर्भ में भारत सरकार की नीति विपरीत दिशा में चलती दिखती है। पहले छोटे उद्योगों के बोर्ड में छोटे उद्योगों के संगठनों का प्रतिनिधित्व अधिकतम होता था। हाल में सरकार ने इसमें छोटे उद्योगों के संगठनों का प्रतिनिधित्व लगभग समाप्त करके नेताओं और अधिकारियों को उसका सदस्य बना दिया है, जिन्हेंं संबंधित विषय की जानकारी कम ही होती है। यह परिपाटी बदली जाए। इसके साथ ही सरकार छोटे उद्योगों को पर्याप्त वित्तीय सहायता दे, जिससे वे अपने सदस्यों को ट्रेनिंग दे सकें, रिसर्च कर सकें, सूचना उपलब्ध करा सकें और क्लस्टर बनाकर डिजिटल युग में आगे बढ़ सकें।

कोविड महामारी के कारण छोटे उद्योगों को हुए नुकसान की भरपाई करनी चाहिए

दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के अध्ययन के अनुसार ब्राजील में छोटे उद्योगों के श्रमिकों के वेतन का एक हिस्सा कुछ समय के लिए सरकार द्वारा दिया जा रहा है। कनाडा और न्यूजीलैंड में तीन माह के लिए ऐसा किया जा रहा है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि कोविड महामारी के कारण छोटे उद्योगों को हुए नुकसान की अल्पकाल के लिए भरपाई भी करनी चाहिए, ताकि उनका वजूद बचा रहे और कोविड संकट समाप्त होने के बाद वे अपना कार्य शुरू कर सकें। तमाम ऐसे छोटे उद्योग हैं, जो रोज कमाते-खाते हैं। उनके लिए कोविड संकट को पार करना कठिन है।

छोटे उद्योगों को ऋण तब फलदायी होता है, जब बाजार में मांग हो

केंद्र सरकार की नीतिगत दिशा इससे अलग है। सरकार का पूरा दबाव है कि छोटे उद्योगों को अधिक मात्रा में ऋण उपलब्ध हो। यह नीति तो सही है, पर ऋण तब फलदायी होता है, जब बाजार में मांग हो। फिलहाल मांग नहीं है। ऐसे में छोटे उद्यमी ऋण का उपयोग संकट के समय अपनी खपत बनाए रखने के लिए करेंगे। इससे फौरी संकट तो टल जाएगा, पर खस्ताहाल बाजार में उनका धंधा नहीं चलेगा। वे कर्ज के भार से दबते जाएंगे। इसलिए सरकार को छोटे उद्यमियों को कर्ज पर सब्सिडी देने के स्थान पर उतनी ही रकम अन्य मदों में प्रत्यक्ष देनी चाहिए।

देसी प्लास्टिक उद्योग संकट से जूझ रहा, कच्चे माल पर आयात कर कम करना होगा

अंतिम मसला आयात करों का है। छोटे उद्योग अक्सर आयातित कच्चे माल का उपयोग करके उत्पाद तैयार करते हैं। जैसे प्लास्टिक का जर्किन। यह कार्य तब संभव है जब उन्हेंं प्लास्टिक सस्ता उपलब्ध हो और सस्ते जर्किन का आयात भी न हो। इसके लिए कच्चे माल पर आयात कर कम और उत्पादित तैयार माल पर आयात कर अधिक करना होगा, परंतु भारत सरकार की मौजूदा नीति इसके उलट है। इस कारण देसी प्लास्टिक उद्योग संकट से जूझ रहा है। कुछ यही स्थिति अन्य उद्योगों की है। जाहिर है कि यह परिदृश्य बदलना होगा।

( लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं )

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