कोरोना संक्रमण की देशव्यापी दूसरी लहर में कर संग्रह पर नहीं पड़ा ज्यादा असर

कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान आर्थिक गतिविधियां पिछले साल की तुलना में कम प्रभावित हुई हैं। इस दौर में भी प्रत्यक्ष और परोक्ष कर की वसूली में वृद्धि हुई है।। हालांकि आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होने की वजह से पिछले महीने जीएसटी संग्रह कम रहा था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 17 Jun 2021 10:35 AM (IST) Updated:Thu, 17 Jun 2021 10:35 AM (IST)
कोरोना संक्रमण की देशव्यापी दूसरी लहर में कर संग्रह पर नहीं पड़ा ज्यादा असर
मौसम विभाग की नई पहल से कृषि के लिए वर्षा पर आधारित इन राज्यों की आíथक सूरत काफी बदल जाएगी।

सतीश सिंह। कोरोना की दूसरी लहर से अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने के बावजूद चालू वित्त वर्ष में अब तक प्रत्यक्ष कर संग्रह पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में लगभग दोगुना रहा। अग्रिम कर भुगतान की पहली किस्त के जमा होने से पहले ही कर संग्रह में शानदार वृद्धि दर्ज की गई। अग्रिम कर जमा करने से इसमें और भी इजाफा होने की संभावना है। हालांकि आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होने की वजह से पिछले महीने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह कम रहा था।

इस साल 11 जून तक रिफंड के बाद शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह 1.62 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल के समान अवधि के 0.87 लाख करोड़ रुपये से 85 प्रतिशत अधिक है। वहीं, यह वर्ष 2019-20 की समान अवधि के मुकाबले 33 प्रतिशत ज्यादा रहा। उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2019-20 में समान अवधि के दौरान 1.22 लाख करोड़ रुपये कर संग्रह हुआ था। प्रत्यक्ष कर संग्रह में आयकर और निगमित कर दोनों शामिल होते हैं। प्रत्यक्ष कर संग्रह में वृद्धि के कारण प्रत्यक्ष कर विवाद समाधान योजना ‘विवाद से विश्वास’, कम कर रिफंड, अनुपालन और प्रवर्तन में सुधार आदि हैं।

सकल कर संग्रह 1.93 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 54 प्रतिशत अधिक है। वैसे, रिफंड 17 प्रतिशत घटकर 31,000 करोड़ रुपये रहा। पिछले साल इस दौरान 37,300 करोड़ रुपये का रिफंड करदाताओं को दिया गया था। ‘विवाद से विश्वास’ योजना के तहत मार्च तक सीबीडीटी को 54,005 करोड़ रुपये मिले थे। हालांकि कोरोना की दूसरी लहर के मद्देनजर इस योजना के तहत भुगतान की अवधि को 30 जून कर दिया गया था।

मुंबई में कर संग्रह 80 प्रतिशत बढ़कर 48,000 करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल इस दौरान 27,000 करोड़ रुपये रहा था। दिल्ली में कर संग्रह 67 प्रतिशत बढ़कर 20,000 करोड़ रुपये रहा। पिछले साल समान अवधि में दिल्ली में 12,000 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष कर प्राप्त हुआ था। इसी तरह चेन्नई में प्रत्यक्ष कर संग्रह में 120 प्रतिशत और पुणो में 150 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस बीच निर्यात में मजबूती और कंपनियों द्वारा लागत में कटौती से प्रत्यक्ष कर में तेजी आई है। वैसे, प्रत्यक्ष कर में तेजी का एक बड़ा कारण आíथक गतिविधियों में पिछले साल के मुकाबले देशव्यापी लाकडाउन नहीं लगाए जाने के कारण प्रत्यक्ष कर संग्रह पर ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना भी है।

जीएसटी संग्रह मई में आठ महीनों में सबसे कम 1.02 लाख करोड़ रुपये रहा था। हालांकि मई महीने में देश का निर्यात पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 67.3 प्रतिशत बढ़कर 32.2 अरब डॉलर रहा। वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान देश में अप्रत्यक्ष कर संग्रह 12 प्रतिशत बढ़कर 10.7 लाख करोड़ रुपये रहा। यह तेजी जीएसटी में आठ प्रतिशत कमी आने के बाद भी रही है। इससे पिछले वर्ष परोक्ष कर संग्रह 9.54 लाख करोड़ रुपये रहा था। सीमा शुल्क और पेट्रोल एवं डीजल पर कर बढ़ाए जाने तथा दूसरी छमाही में इसकी खपत में कुछ तेजी आने के कारण परोक्ष कर संग्रह के आंकड़े बेहतर रहे हैं। वित्त वर्ष 2020-21 के पहले नौ महीनों में इस मद में केंद्र सरकार को 2.6 लाख करोड़ रुपये मिले।

कर संग्रह 9.89 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से 8.2 प्रतिशत अधिक रहा। हालांकि कर के कुछ मामले अटके होने की वजह से आंकड़े बाद में बदल सकते हैं, लेकिन यह बदलाव सकारात्मक होने का अनुमान है। परोक्ष कर संग्रह में तेजी आने के कारण वित्त वर्ष 2021 में कुल कर संग्रह 20.16 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो पिछले वित्त वर्ष के 20.05 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े से कुछ अधिक रहा। गौरतलब है कि प्रत्यक्ष कर संग्रह में 10 प्रतिशत कमी आने के बाद भी कुल कर संग्रह अधिक रहा है। परोक्ष कर में जीएसटी, उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क आते हैं। वित्त वर्ष 2021 में सीमा शुल्क के रूप में 1.32 लाख करोड़ रुपये वसूले गए, जो पिछले वित्त वर्ष के 1.09 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 21 प्रतिशत अधिक है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर (बकाये) से होने वाला संग्रह भी आलोच्य अवधि के दौरान 58 प्रतिशत बढ़कर 3.91 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया।

प्रत्यक्ष और परोक्ष कर में इजाफा होने के बीच एक अच्छी खबर यह है कि भारतीय मौसम विभाग (आइएमडी) ने इस साल मानसून के बढ़िया रहने का अनुमान लगाया है। फिलवक्त, आइएमडी माहवार और क्षेत्रवार आधार पर जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर के लिए सटीक पूर्वानुमान नहीं दे रहा है। इसके अलावा, मानसूनी बारिश पर निर्भर राज्यों, जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड के लिए भी अलग से वर्षा के पूर्वानुमान आइएमडी द्वारा नहीं दिए जा रहे हैं। इन सूचनाओं के अभाव की वजह से कृषि कार्यो को लेकर योजना तैयार करने एवं प्रशासनिक स्तर पर प्रबंधन ठीक से नहीं किया जा रहा है। देश के इन राज्यों में कृषि कार्य पूरी तरह मानसून पर निर्भर है। हालांकि, अब मौसम विभाग की नई पहल से कृषि के लिए वर्षा पर आधारित इन राज्यों की आíथक सूरत काफी बदल जाएगी।

इस साल मानसून के बेहतर रहने और आइएमडी द्वारा मासिक आधार पर मौसम के पूर्वानुमान की घोषणा करने से भी अर्थव्यवस्था के मजबूत होने की आस बंधी है, क्योंकि जून से सितंबर महीने तक हर महीने पूर्वानुमान उपलब्ध होने से कृषि कार्यो की योजना तैयार करने में प्रशासकों और किसानों को मदद मिलेगी।

[आर्थिक मामलों के जानकार]

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