Virtual Platforms For Conferences: रीयल सत्ता के लिए वर्चुअल ही सहारा बनता दिखाई दे रहा है सबको

आजकल खासा चर्चा में है यह शब्द। बच्चे वर्चुअल क्लासेज ले रहे हैं। मंत्री जी वर्चुअल मीटिंग ले रहे हैं। और तो और अब रैलियां भी इसी से करने की तैयारी है। चुनावी साल है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 06 Jun 2020 12:16 PM (IST) Updated:Sat, 06 Jun 2020 12:19 PM (IST)
Virtual Platforms For Conferences: रीयल सत्ता के लिए वर्चुअल ही सहारा बनता दिखाई दे रहा है सबको
Virtual Platforms For Conferences: रीयल सत्ता के लिए वर्चुअल ही सहारा बनता दिखाई दे रहा है सबको

बिहार, आलोक मिश्रVirtual Platforms For Conferences: बदलाव तो भई लाया है कोरोना। खूब बदलाव लाया है। इस बदलाव से ही उगा है एक शब्द वर्चुअल। आजकल खासा चर्चा में है यह शब्द। बच्चे वर्चुअल क्लासेज ले रहे हैं। मंत्री जी वर्चुअल मीटिंग ले रहे हैं। और तो और, अब रैलियां भी इसी से करने की तैयारी है। चुनावी साल है। पता नहीं आगे हालात क्या होंगे? इसलिए सारे दल इसी से जनता को साधने में जुट गए हैं। प्रैक्टिस तो पहले से चालू है, लेकिन विधिवत फीता सात तारीख को कटेगा। इस दिन गृहमंत्री अमित शाह भाजपा की निचली परत तक वर्चुअली चुनावी बिगुल फूंकेंगे। मुख्यमंत्री का भी छह दिनी अभियान इसी दिन शुरू हो रहा है और विपक्षी राजद भी रविवार को ही शाह के जवाब में थाली-लोटा पिटवाने की तैयारी में जोर-शोर से जुटा है। सभी का कनेक्शन वर्चुअल ही नीचे से जुड़ा है। कुल मिलाकर इस बार वर्चुअल मुलम्मे में लिपटा दिखाई देगा रीयल चुनाव।

बिहार की रैलियां हमेशा से ही चर्चा में रही हैं। एक उत्सव की तरह होती हैं यहां रैलियां। अब तो वे दिन नहीं रहे, नहीं तो रैली के एक-दो दिन पहले ही मेला लग जाया करता था। पूड़ी-कचौरी छनती थी और नाच-गाने का प्रबंध भी रहता था। समय बदला तो यह सब तो नहीं रहा, लेकिन रौनक बदस्तूर बनी रही। इस बार कोरोना ने यह भी छीन ली है। कम से कम अभी तो यही दिखाई दे रहा है। भविष्य क्या होगा, नहीं मालूम, लेकिन सभी को लगने लगा है कि भीड़ इकट्ठा करना मुश्किल होगा। इसलिए वाट्सएप, फेसबुक लाइव, जूम मीटिंग जैसे विकल्प सहारा बन गए हैं पार्टयिों के। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मन की बात में भाजपा ने रिहर्सल कर लिया है। भाजपा का दावा है कि उसमें साढ़े तीन लाख जुड़े थे बिहार से। अब सात को वर्चुअल रैली तय की गई है अमित शाह की। पहले एक लाख की करने की घोषणा थी। अब मोदी से बड़ी करने का दावा किया जा रहा है। इसे सफल बनाने के लिए स्थानीय टीम जोर-शोर से जुट गई है, लेकिन इस जुटान और पहले की जुटान में फर्क है। इस बार न साधन के जुगाड़ की मशक्कत, न स्टेज का झंझट। न भीड़ के लिए जिम्मा और न ही खाने का इंतजाम, बस करना है तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को जुड़ने के लिए लिंक मुहैया कराना और उन्हें जुड़वाना। सबकुछ बैठे-बैठे।

सहयोगी जदयू की कमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संभाले हैं। कोरोना के दौरान वर्चुअल ही वे नीचे तक अपने कार्यकर्ताओं से जुड़े रहे। उनका निगरानी तंत्र इसी से सक्रिय रहा। अब सात से छह दिन वर्चुअल ही उनका भी अभियान चलेगा। वे बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को आंदोलित करेंगे। सत्तापक्ष की इस तैयारी का जवाब विपक्ष भी पूरी तरह से देने को तैयार है। कुछ दिनों पहले गोपालगंज में हुए तिहरे हत्याकांड को लेकर गोपालगंज कूच की जिद करके अपने ऊपर मुकदमा लगवा बैठे राबड़ी और तेजस्वी भी जान गए हैं कि भीड़ इकट्ठी करना उलटा पड़ सकता है। इसलिए राजद ने भी वाट्सएप ग्रुप के जरिये टीम को जोड़ने की मुहिम छेड़ रखी है। सात को जवाब में उसके कार्यकर्ता पूरे प्रदेश में लोटा-थाली बजा बिगुल फूंकेंगे। इसके लिए वर्चुअल ही सहारा है। इसके विपरीत केवल कांग्रेस ही अभी परंपरागत तौर-तरीका अपनाए है। धरना देकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराए है, लेकिन देर-सबेर आना उसको भी इसी पैटर्न पर है। ये रैलियां भले ही वर्चुअल हों, लेकिन चुनाव में खर्च का हिसाब इसका भी लेगा आयोग। बस, हिसाब में नाम बदले होंगे।

भले ही चार हजार के ऊपर संक्रमितों की संख्या हो गई हो बिहार में, लेकिन सूबा इससे उबरता नजर आ रहा है। अनलॉक-1 में सड़कों पर पहले जैसी भीड़ हो गई है। प्रवासी श्रमिकों की गाड़िया आनी बंद हो गई हैं। ट्रेनें चलने लगी हैं। क्वारंटाइन सेंटर समेटे जा रहे हैं। जो 15 के बाद एक भी दिखाई नहीं देंगे। जांच में तेजी लाने के लिए रैंडम जांच पर जोर है, यानी पांच लोगों का एक साथ सैंपल जांचा जाने लगा है। अगर सैंपल पॉजिटिव आता है तो सभी की जांच कर पता लगाया जाएगा, नहीं तो सब बरी। इससे जांच में पांच गुना वृद्धि हो गई। आइसोलेशन बेड चालीस हजार तक करने का लक्ष्य है। इस तरह आहिस्ता-आहिस्ता कोरोना से किनारा कर जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है। आगे चुनाव हैं, जो टलते दिखाई नहीं दे रहे। नवंबर को ज्यादा दिन बचे भी नहीं हैं। सभी की मजबूरी है कील-कांटे दुरुस्त करना। इसलिए रीयल सत्ता के लिए वर्चुअल ही सहारा बनता दिखाई दे रहा है सबको।

[आलोक मिश्र स्थानीय संपादक, बिहार]

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