सतत् विकास में हो सबकी प्रभावी भूमिका, धारणीय विकास को लेकर चर्चा की जरूरत

इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले करीब तीन दशकों से जारी वैश्वीकरण की नीति पर आगे बढ़ने के कारण देश ने अनेक क्षेत्रों में कामयाबी हासिल की है। लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। उपभोक्तावाद चरम पर पहुंच चुका है।

By Shashank PandeyEdited By: Publish:Tue, 22 Dec 2020 09:51 AM (IST) Updated:Tue, 22 Dec 2020 09:51 AM (IST)
सतत् विकास में हो सबकी प्रभावी भूमिका, धारणीय विकास को लेकर चर्चा की जरूरत
वैश्वीकरण नीति की समीक्षा की जरूरत। फोटो: दैनिक जागरण)

लालजी जायसवाल। विश्व के अनेक देशों ने वर्ष 2030 तक विश्व का परिदृश्य बदलने के उद्देश्य से सतत विकास के लक्ष्यों को अपनाया है। हालांकि धारणीय विकास का ढांचा एक जटिल आवश्यकता है, परंतु यह कुछ विशेष लक्ष्यों की पूíत के लिए वरदान भी है। धारणीय यानी सतत विकास को सैद्धांतिक रूप में तो अपना लिया गया है, लेकिन व्यावहारिक रूप को अपनाने में हम आज भी लक्ष्य से कोसों दूर हैं। विकास का व्यावहारिक लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब हम अपने संसाधनों का संरक्षण करेंगे।

ध्यातव्य है कि भारत सरकार सतत विकास लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध है, क्योंकि भारत नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को वर्ष 2022 तक 1,75,000 मेगावॉट से बढ़ाकर 2030 तक 4,50,000 मेगावॉट करने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। पिछले दिनों गुजरात के कच्छ में धारणीय विकास के लिए अनेक बड़े प्रयास किए गए। उनमें में विलवणीकरण संयंत्र और एक हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा पार्क शामिल हैं।

अपने विस्तृत तटवर्ती क्षेत्र का उपयोग करते हुए गुजरात में कच्छ के मांडवी में प्रस्तावित विलवणीकरण संयंत्र के साथ समुद्री जल को पीने के पानी में बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। यह संयत्र 10 करोड़ लीटर प्रतिदिन की क्षमता के साथ नर्मदा ग्रिड व अपशिष्ट जल शोधन बुनियादी ढांचे के पूरक के रूप में गुजरात में जल सुरक्षा की स्थिति को मजबूत बनाएगा। यह देश में टिकाऊ और सस्ते जल संसाधन संरक्षण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।

उल्लेखनीय है कि गुजरात के कच्छ जिले में हाइब्रिड अक्षय ऊर्जा पार्क देश का सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन पार्क होगा। उम्मीद तो यह भी की जा रही है कि यहां नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन 30 गीगावॉट तक पहुंचेगा। लगभग 72,600 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस पार्क में पवन और सौर ऊर्जा संचय के लिए एक समíपत हाइब्रिड पार्क क्षेत्र विकसित होगा।

इसके साथ ही पवन ऊर्जा पार्क की गतिविधियों के लिए भी यहां एक विशेष क्षेत्र होगा। इससे पहले नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में देश में अब तक की सबसे बड़ी समझी जाने वाली मध्य प्रदेश के रीवा की सोलर परियोजना है, जिसमें 250-250 मेगावॉट की तीन सौर उत्पादन इकाइयां शामिल हैं। ये तीनों सौर इकाइयां धारणीय विकास के लक्ष्य की पूíत में व्यापक सहयोग कर रही हैं। इस परियोजना से लगभग 15 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर कार्बन उत्सर्जन कम होने की उम्मीद है। इन दिनों, जब समूचा विश्व कोरोना महामारी से प्रभावित है, तब सतत विकास के लक्ष्यों की चर्चा चारों ओर हो रही है।

पूर्व में ऐसे कई उदाहरण मिल सकते हैं, जब इसे अपनाने के बारे में प्रोत्साहित किया गया था। वर्ष 1908 में गांधीजी ने हमें धारणीय विकास का मार्ग दिखाया था। अपने हंिदू स्वराज में उन्होंने भौतिक वस्तुओं और सेवाओं के लिए हमारी खोज को देखते हुए मानव के भविष्य के लिए खतरे को रेखांकित भी किया था। उन्होंने कहा था कि प्रकृति हमें अपनी आवश्यकता की पूíत के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराती है, लेकिन लालच को पूरा करने के लिए नहीं। लेकिन आज मनुष्य का लालच धारणीय विकास को विकृत करता जा रहा है और जीवनशैली से धारणीयता पृथक होती जा रही है। आज मनुष्य के जीवन में उपभोक्तावाद का जहर इतना घुल चुका है कि वह प्रकृति के संसाधनों को पूरी सीमा तक उपयोग करना चाहता है, भले इसका परिणाम समूची मानवता को भुगतना पड़े।

यक्ष के आखिरी प्रश्न का सटीक उत्तर : महाभारत में वर्णित यक्ष का संदर्भ यहां दिया जा सकता है। दरअसल यक्ष के अंतिम प्रश्न का उत्तर सटीक बैठता है कि प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि मृत्यु होना तय है, फिर भी उसे लगता है कि कदाचित उसकी मृत्यु नहीं होगी और इस तरह से वह जीवन के इस वास्तविक तथ्य से स्वयं को भ्रमित रखता है। इसी वजह से हम अपना विनाश तो कर ही रहे हैं, आने वाली पीढ़ी के लिए भी विनाश का गहरा कुंड तैयार कर रहे हैं।

गौरतलब है कि आज का युग आíथक संवृद्धि और प्रतिस्पर्धा का युग है, जिसमें विकसित और विकासशील देशों में केवल आíथक वृद्धि पर ही ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। लेकिन भारत ही एक ऐसा देश है, जो प्रकृति, पर्यावरण और विकास को एकसाथ संतुलित करने पर जोर दे रहा है। लेकिन ध्यातव्य है कि धारणीय विकास के दो प्रमुख शत्रु भी हैं, एक आíथक संवृद्धि की होड़ और दूसरा जनसंख्या वृद्धि। इसी का परिणाम है कि आज धारणीय विकास बाधित हो रहा है और समय-समय पर मनुष्य को प्रकृति का कोपभाजन भी होना पड़ रहा है, क्योंकि प्रकृति का दोहन करना मनुष्य अपना अधिकार मान बैठा है।

प्रकृति में आज ऐसी कोई वस्तु नहीं जिसका मानव ने व्यापार न किया हो, फिर वह चाहे हवा हो अथवा पानी। उसका यही लालच आज समस्त मानव जाति के लिए काल बनकर विश्व में लाखों लोगों की जान ले चुका है। मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए किया होता तो ठीक था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मनुष्य ने प्रकृति को अपना गुलाम बनाना चाहा। बस्तियां बसाने बाबत जंगल काटे, खेती के लिए जमीन की आवश्यकता बढ़ने पर जंगलों में आग लगाई, प्राकृतिक संसाधनों का स्वामी बनने और अपनी जीवनशैली को आरामदेह बनाने के लिए नई सामग्रियों की तलाश के लिए खनन किया, स्वामित्व के आधार पर पानी का भरपूर दोहन भी किया, निरंतर जनसंख्या वृद्धि और उससे जनित प्रभावों से प्रदूषण को फैलाया। इंसान अपनी आवश्यकता का दायरा लगातार बढ़ाता रहा। इसी क्रम में उसने विभिन्न उद्योगों को स्थापित किया, जिसमें से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ नदियों में प्रवाहित कर नदी जीव विविधिता को नष्ट किया। इस प्रकार अपनी इन करतूतों से प्रकृति के कार्यो में मनुष्य ने सदैव व्यवधान पैदा किया है।

प्रकृति को पराजित करने का भ्रम

ऐसा करते-करते मनुष्य को यह भरोसा हो गया था कि उसने प्रकृति को पूरी तरह पराजित कर दिया है। इन सभी प्रकृति विरोधी कार्यो से हम आर्थि संवृद्धि तो दे सकते हैं, लेकिन धारणीय विकास से मनुष्य मोहताज ही रहेगा और इसकी भरपाई मनुष्य को समय-समय पर जीव-जंतुओं तथा पर्यावरण के विनाश से करना होगा। गौरतलब है कि देश पर्यावरणीय सुरक्षा बाबत लगातार कदम उठा रहा है, जिसका प्रमाण, भारत में वनों के क्षेत्रफल का निरंतर बढ़ना है। लेकिन अभी भी जन भागीदारी और जागरूकता की कमी होने के कारण धारणीयता विकास लक्ष्य में बाधा उत्पन्न हो रही है।

वैश्वीकरण की हो समीक्षा

क्या आज ऐसा नहीं लगता कि हम आíथक प्रगति की इमारत, एक विस्फोटक पदार्थ पर निíमत कर रहे हैं? आज का समय घरघोर उपभोक्तावाद का है, जिसकी वजह से मनुष्य अपना स्वत्व खोता चला जा रहा है और हमारा केवल आíथक केंद्रण मात्र हो रहा है। आज यह समीक्षा करने का दौर है कि आखिर हकीकत में वैश्वीकरण ने हमें क्या प्रदान किया है?

अगर हम ऐसा करते हैं तो स्पष्ट हो जाएगा कि वैश्वीकरण केवल घातक ही सिद्ध हुआ है। वैश्वीकरण ने ओजोन परत क्षरण, भूमंडलीय तापन, नदियों का संकुचन, वायु समेत अनेक किस्म के प्रदूषण और झूठी आíथक वृद्धि, झूठी प्रतिस्पर्धा और झूठे अहंकार तथा ढेर सारे मानव विनाशक वायरस के अलावा और कुछ भी नहीं दिया है। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि इस कोरोना जैसी अनेक विनाशक महामारियों ने मानव के लिए अनेक बार शिक्षा के पदचिन्ह भी छोड़े हैं।

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