शिक्षा को चाहिए तकनीक का सहारा: एडु-टेक नीति से शिक्षा को सही गति मिलने के साथ ही सबको मिलेगी गुणवत्तापरक शिक्षा

एडु-टेक नीति देश की शिक्षा तकनीक को पंख लगाने में सक्षम है। इससे सबको समान रूप से गुणवत्तापरक शिक्षा मिलनी सुनिश्चित हो सकेगी। छात्रों में सीखने की प्रक्रिया तेज होगी शिक्षा की लागत में कमी आएगी और शिक्षकों के समय का बेहतर उपयोग हो सकेगा। अंतत शैक्षिक उत्पादकता बढ़ेगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 12 Jul 2021 04:45 AM (IST) Updated:Mon, 12 Jul 2021 04:45 AM (IST)
शिक्षा को चाहिए तकनीक का सहारा: एडु-टेक नीति से शिक्षा को सही गति मिलने के साथ ही सबको मिलेगी गुणवत्तापरक शिक्षा
एडु-टेक नीति की अनिवार्यता 21वीं सदी की आवश्यकता

[ अमिताभ कांत ]: देश में स्कूली शिक्षा इन दिनों कठिन चुनौतियों का सामना कर रही है। हालांकि यह क्षेत्र कोविड-19 महामारी से पहले भी पढ़ाई के विकट संकट से जूझ रहा था। तब दस साल की उम्र वाले दो में से एक बच्चे में पढ़ने की बुनियादी दक्षता की कमी थी। महामारी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है, क्योंकि 15.5 लाख स्कूल भौतिक रूप से बंद हो गए हैं। इससे 24.8 करोड़ से अधिक छात्र एक वर्ष से अधिक समय तक कक्षीय पठन-पाठन से वंचित हैं। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया है कि स्कूलों के बंद हो जाने के चलते प्राथमिक विद्यालयों के 82 से 92 प्रतिशत छात्रों ने कम से कम एक गणितीय और भाषा कौशल खो दिया है। यह स्थिति शिक्षा में तकनीक को एकीकृत करने की आवश्यकता पर बल दे रही है। इससे हर बच्चे की शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी। यद्यपि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने रेडियो और टेलीविजन कार्यक्रमों, लाइव व्याख्यानों के साथ-साथ ऑनलाइन एप्लीकेशंस के माध्यम से दूरस्थ शिक्षा और अध्ययन की निरंतरता बनाए रखने के लिए कई प्रयोग किए हैं, परंतु इस दिशा में अभी भी कुछ चुनौतियां बनी हुई हैं। शिक्षा की र्वािषक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर)-2020 से पता चला है कि घरेलू स्तर पर लगभग 60 प्रतिशत छात्रों के पास ही टेलीविजन और स्मार्टफोन की सुविधा उपलब्ध है।

एडु-टेक नीति की अनिवार्यता 21वीं सदी की आवश्यकता

ऐसे में एक एडु-टेक (तकनीक संचालित शिक्षा) नीति की अनिवार्यता तेजी से स्पष्ट होती जा रही है, ताकि प्रत्येक बच्चे को 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुकूल बनाया जा सके। वैसे हमारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 शिक्षा के हर स्तर पर तकनीक को एकीकृत करने की बात करती है। इसके लिए एक स्वायत्त निकाय के रूप में राष्ट्रीय शिक्षा प्रौद्योगिकी मंच (एनईटीएफ) की स्थापना करने की परिकल्पना भी की गई है। वास्तव में भारत तकनीक आधारित संरचना, बिजली और सस्ती इंटरनेट कनेक्टिविटी तक पहुंच के साथ इस दिशा में छलांग लगाने के लिए तैयार है, जिसे डिजिटल इंडिया जैसे प्रमुख कार्यक्रमों और शिक्षा मंत्रालय की पहल से प्रोत्साहन मिल रहा है। इसके तहत स्कूली शिक्षा के लिए डिजिटल अवसंरचना (दीक्षा) नामक ओपन सोर्स लर्निंग प्लेटफॉर्म तैयार किया गया है, जो दुनिया की सबसे बड़ी शिक्षा प्रबंधन सूचना प्रणालियों (ई-एमआइएस) में से एक है। इसमें प्रत्यक्ष रूप से व्यापक संभावनाएं नजर आ रही हैं।

एडु-टेक नीति के चार प्रमुख उद्देश्य

एडु-टेक नीति के चार प्रमुख उद्देश्य जैसे-वंचित समूहों की शिक्षा तक पहुंच प्रदान करना, शिक्षण, अध्ययन और मूल्यांकन की प्रक्रियाओं को सक्षम बनाना, शिक्षक प्रशिक्षण को सुगम बनाना, शासन की प्रणालियों-नियोजन, प्रबंधन और निगरानी की प्रक्रियाओं में सुधार करना होना चाहिए। इस पर आगे बढ़ने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। जैसे-तकनीक एक उपकरण है, रामबाण नहीं। इसका उपयोग अध्ययन की सेवा में होना चाहिए। इसके लिए एक योजना बनाई जानी चाहिए। इसके बगैर डिजिटल संरचना प्रदान करने में जोखिम है। तकनीक स्कूलों को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती है या शिक्षकों की जगह नहीं ले सकती है। यह शिक्षक बनाम तकनीक नहीं, बल्कि शिक्षक और तकनीक है। तकनीकी समाधान तभी प्रभावशाली होते हैं जब इन्हें शिक्षकों द्वारा अपनाया जाता है और प्रभावी ढंग से इनका लाभ उठाया जाता है।

भारत में एडु-टेक का बाजार तेजी से बढ़ रहा

वैसे भी आज भारत में एडु-टेक का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। इस क्षेत्र में अभी 4,500 से अधिक स्टार्ट-अप काम कर रहे हैं। इनका कुल बाजार मूल्य करीब 70 करोड़ डॉलर है। अगले 10 वर्षों में इसका आकार 30 अरब डॉलर पर पहुंच जाने का अनुमान है। जमीनी स्तर अरुणाचल प्रदेश के नामसाई जिले में ‘हमारा विद्यालय’ और असम का ‘करियर मार्गदर्शन’ पोर्टल छात्रों की पढ़ाई में सहायक बनकर उभर रहे हैं। गुजरात में ‘समर्थ’ लाखों शिक्षकों को ऑनलाइन माध्यम से प्रशिक्षित कर रहा है। झारखंड का ‘डिजीसाथ’ अभिभावकों-शिक्षकों-छात्रों के संबंधों में मजबूती ला रहा है। हिमाचल प्रदेश की ‘हर घर पाठशाला’ बच्चों को डिजिटल शिक्षा प्रदान कर रही है। उत्तराखंड का सामुदायिक रेडियो ‘बाइट’ प्रारंभिक पठन को बढ़ावा दे रहा है। मध्य प्रदेश का ‘डिजीएलईपी’ विद्यालयों में शैक्षणिक सामग्री वितरित कर रहा है। केरल की ‘अक्षरवृक्षम पहल’ बच्चों का कौशल विकास कर रही है।

एडु-टेक को बढ़ावा देने के लिए कई मोर्चों पर एकसाथ कदम उठाने की आवश्यकता

देश में एडु-टेक को बढ़ावा देने के लिए कई मोर्चों पर एकसाथ कदम उठाने की आवश्यकता है। सबसे पहले देश में एडु-टेक की पहुंच और प्रभाव का आकलन करने के लिए एक खाका तैयार किया जाना चाहिए। इसके अंतर्गत अवसंरचना, शासन, शिक्षकों एवं छात्रों की चुनौतियों की पहचान की जानी चाहिए। लघु से मध्यम अवधि में, इन चुनौतियों को दूर करने के लिए सभी हितधारकों (छात्र, शिक्षक, स्थानीय समुदाय, प्रशासक, क्षेत्र विशेषज्ञ) को शामिल करते हुए नीति निर्माण और योजनाएं बनाई जानी चाहिए। सार्वजनिक-निजी भागीदारी का मॉडल इसमें सहायक हो सकता है। देश में मौजूद डिजिटल खाई को पाटने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। दीर्घ अवधि में, जब सभी योजनाएं पूरे देश में एकसमान रूप से जमीन पर उतर जाएं तो सभी शैक्षणिक सामग्रियों का भंडारण और समय-समय पर उनका परिष्करण करते रहना चाहिए।

शिक्षा को तकनीक के सहारे की जरूरत

कुल मिलाकर आज शिक्षा को तकनीक के सहारे की जरूरत है। एडु-टेक नीति देश की शिक्षा तकनीक को पंख लगाने में सक्षम है। इससे सबको समान रूप से गुणवत्तापरक शिक्षा मिलनी सुनिश्चित हो सकेगी। छात्रों में सीखने की प्रक्रिया तेज और अच्छी होगी, शिक्षा की लागत में कमी आएगी और शिक्षकों के समय का बेहतर उपयोग हो सकेगा। इन सबसे अंतत: शैक्षिक उत्पादकता बढ़ेगी।

( लेखक नीति आयोग के सीईओ हैं )

chat bot
आपका साथी