सुधार की मांग करती शिक्षा-परीक्षा: अगले वर्ष 12वीं की परीक्षा कराने के लिए क्या हमारा तंत्र कहीं और बेहतर तरीके से तैयार नहीं होना चाहिए था?

आमूलचूल परिवर्तन वाले प्रस्तावों के पीछे आधारभूत विचार यही है कि छात्रों को तनाव से मुक्ति वाला परिवेश प्रदान किया जाए। इस बीच यह स्मरण रहे कि बेचैनी की सबसे बड़ी वजह अनिश्चितता होती है। अकादमिक परिदृश्य से संदेह के बादल अभी तक छंटे नहीं हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 15 Jul 2021 04:50 AM (IST) Updated:Thu, 15 Jul 2021 04:50 AM (IST)
सुधार की मांग करती शिक्षा-परीक्षा: अगले वर्ष 12वीं की परीक्षा कराने के लिए क्या हमारा तंत्र कहीं और बेहतर तरीके से तैयार नहीं होना चाहिए था?
छात्र के लिए 12वीं की बोर्ड परीक्षा सबसे महत्वपूर्ण

[ तरुण गुप्त ]: पिछले एक-डेढ़ साल के कोरोना काल में जीवन का शायद ही कोई अन्य पहलू इतने नाटकीय रूप से प्रभावित हुआ हो, जितना प्रभाव इस दौरान शिक्षा के क्षेत्र पर पड़ा है। कोविड महामारी ने स्कूल और कॉलेज के जीवन को एकदम बदलकर रख दिया है। कोरोना वायरस की भयावहता ने पारंपरिक शिक्षा एवं परीक्षाओं की राह बाधित की हुई है। परंपरावादी इससे मायूस हैं। ऑनलाइन शिक्षा की स्थिति आदर्श तो नहीं, परंतु परिस्थितियों को देखते हुए फिलहाल सबसे उपयुक्त विकल्प लगती है। वैसे भी ऑनलाइन शिक्षण एवं मूल्यांकन की पद्धतियां अभी विकास के चरण में हैं। शिक्षा तंत्र के विभिन्न स्तरों पर चर्चा जारी है कि इसमें कोई कारगर प्रणाली विकसित की जाए। इस पर आए सुझाव कुछ चिंताएं भले ही दूर करते हैं, किंतु कई प्रश्न भी उठाते हैं। इससे यही प्रतीत होता है कि अहम मुद्दे अनसुलझे ही हैं।

छात्र के लिए 12वीं की बोर्ड परीक्षा सबसे महत्वपूर्ण होती है

भारतीय स्कूली छात्र के लिए 12वीं की बोर्ड परीक्षा सबसे महत्वपूर्ण होती है। यही परीक्षा उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश की सबसे स्वीकार्य कसौटी भी है। कोविड के कारण जहां इस साल 12वीं की परीक्षा रद कर दी गई वहीं अगले सत्र के लिए उसका प्रारूप बदल दिया गया। प्रस्तावित परीक्षा दो चरणों में होगी। ऑनलाइन परीक्षा की स्थिति में मूल्यांकन में आंतरिक आकलन और पूर्व परीक्षाओं को भी जोड़ा जा रहा है, मगर स्नातक कक्षाओं में प्रवेश के लिए 12वीं के परिणाम की महत्ता कम नहीं हुई है। यह बिंदु हमें देश में स्नातक कक्षाओं में प्रवेश की वास्तविक समस्या से साक्षात्कार कराता है। कुछ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए भारी दबाव है। उनमें जितने आवेदन आते हैं, उस अनुपात में प्रवेश देना असंभव है। इसका परिणाम निकलता है आसमान छूती कटऑफ सूची में। हर साल कुछ सबसे वांछित कॉलेजों में प्रवेश के लिए अर्हता सूची के 98 प्रतिशत या उससे भी अधिक के बेतुके स्तर पर जाने के समाचार आते हैं। मिसाल के तौर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी प्रतिष्ठित कॉलेज में अंग्रेजी ऑनर्स में प्रवेश के इच्छुक छात्र को 12वीं कक्षा में न केवल अंग्रेजी, बल्कि गणित, भौतिकी और अपने अन्य विषयों में भी 98 फीसद अंक लाने होंगे। इस तंत्र से मार खाए कुछ साधनसंपन्न छात्र स्नातक के लिए विदेश चले जाते हैं। असल में प्रतिभा पलायन का अभिशाप स्कूली शिक्षा की समाप्ति के साथ ही शुरू हो जाता है।

उच्च शिक्षा के लिए हमें और गुणवत्तापरक संस्थान चाहिए

उच्च शिक्षा के लिए हमें और गुणवत्तापरक संस्थान चाहिए, जहां औसत अंक पाने वाले मध्यम प्रतिभा वाले छात्रों के लिए भी गुंजाइश हो। वर्तमान परिदृश्य में एक छात्र को प्रवेश मिलता है तो सैकड़ों वंचित रह जाते हैं। इसमें हमारे छात्रों की आकांक्षाएं पूरी नहीं हो सकतीं। नए कॉलेजों के साथ यह भी उतना आवश्यक है कि वे छोटे और मझोले शहरों में हों ताकि देश भर के छात्रों का जमावड़ा कुछ र्चुंनदा मेट्रो शहरों में लगने की प्रवृत्ति पर लगाम लग सके। इसमें दूरस्थ डिजिटल शिक्षा पथप्रदर्शक साबित हो सकती है। कनेक्टिविटी और सक्षमता जैसी चुनौतियों के बावजूद ऑनलाइन माध्यम में शिक्षा का कायाकल्प करने की अकूत संभावनाएं हैं।

देश में प्रत्येक राज्य का अपना शिक्षा बोर्ड है

भारतीय स्कूल प्रणाली में कई शिक्षा बोर्ड हैं। प्रत्येक राज्य का अपना बोर्ड है। सीबीएसई जैसा एक अखिल भारतीय बोर्ड भी है। विभिन्न बोर्ड में न केवल पाठ्यक्रम, बल्कि परीक्षा एवं मूल्यांकन के पैमाने भी अलग हैं, जबकि उनके छात्र उच्च शिक्षा के लिए समान सीटों पर प्रतिस्पर्धा करते हैं। कुछ राज्य बोर्ड मूल्यांकन के लिए कहीं सख्त मापदंड अपनाते हैं, जहां सबसे मेधावी छात्र भी 90 प्रतिशत से अधिक अंकों के लिए संघर्ष करते हैं। इसके उलट सीबीएसई में शत प्रतिशत अंक प्राप्त करना भी हैरत में नहीं डालता। ऐसे में प्रत्येक बोर्ड में पर्सेंटाइल सिस्टम बराबरी वाली व्यवस्था बनाएगा। यह छात्रों के सापेक्ष प्रदर्शन को दर्शाता है। इसके तहत संभव है कि सख्त मूल्यांकन वाले किसी बोर्ड के 80 फीसद अंकों को भी सीबीएसई जैसे उदार बोर्ड के 90 फीसद से अधिक वरीयता दी जाए। कई विकसित देशों में इसका व्यापक उपयोग जारी है। दुर्भाग्यवश इस आवश्यक मानकीकरण या बराबरी की व्यवस्था को अभी भारत में आजमाया जाना शेष है।

सीबीएसई ने छात्रों के मूल्यांकन का नया तरीका तलाशा

महामारी के कारण पारंपरिक बोर्ड परीक्षाओं के रद होने की स्थिति में सीबीएसई ने छात्रों के मूल्यांकन का नया तरीका तलाशा है। दो चरणों वाली परीक्षा के साथ ही आंतरिक मूल्यांकन और पूर्व परीक्षाओं के प्रदर्शन के आधार पर 12वीं बोर्ड परीक्षाओं का प्रस्तावित प्रारूप निष्पक्ष और न्यायोचित नहीं लगता। छात्र किसी पूर्व परीक्षा के मुकाबले 12वीं बोर्ड परीक्षा में कहीं अधिक परिश्रम और बेहतर प्रदर्शन करते हैं। नई व्यवस्था में आंतरिक मूल्यांकन पर स्कूली पूर्वाग्रह हावी होकर पूरी प्रक्रिया को विरुपित भी कर सकते हैं।

सीबीएसई ने पाठ्यक्रम में कटौती और प्रश्न पत्र प्रारूप में की परिवर्तन की पेशकश

सीबीएसई ने पाठ्यक्रम में कटौती और प्रश्न पत्र प्रारूप में परिवर्तन की पेशकश की है। परीक्षाएं वास्तव में छात्र के ज्ञान, समझ और अभिव्यक्ति के भाव को परखने के लिए होती हैं। नई प्रस्तावित योजना के बहु-विकल्पीय प्रश्नों में अभिव्यक्ति तो निश्चित रूप से नहीं परखी जा सकेगी। एक कटु सत्य यह है कि अधिकांश प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय सीबीएसई को उच्च मानकों के अनुरूप नहीं पाते। ऐसे में नई व्यवस्था से उसकी प्रतिष्ठा और घटेगी।

हम मान सकते हैं कि 2020-21 असामान्य साल रहा, लेकिन अगले वर्ष 12वीं की परीक्षा आयोजित कराने के लिए क्या हमारा तंत्र कहीं और बेहतर तरीके से तैयार नहीं होना चाहिए था? महामारी ने भले ही प्रत्यक्ष परीक्षा की राह रोक दी हो, लेकिन ऐसी स्थिति में भी ऑनलाइन मूल्यांकन प्रस्तावित व्यवस्था से कहीं बेहतर होता। यदि संसाधनहीन छात्रों को इसके लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने में कुछ धनराशि खर्च भी करनी पड़े तो यह राज्य द्वारा किया गया सार्थक खर्च होगा। इसमें प्रश्न पत्रों को रचनात्मक रूप से तैयार करना होगा, क्योंकि यह ओपन बुक परीक्षा जैसी होगी। साथ ही गड़बड़ियों को रोकने के लिए नकल रोधी सॉफ्टवेयर और निगरानी के अन्य तौर-तरीकों की मदद ली जा सकती है। ऐसा प्रचलन कई विकसित देशों में बहुत आम है।

आमूलचूल परिवर्तन वाला प्रस्ताव

इन आमूलचूल परिवर्तन वाले प्रस्तावों के पीछे आधारभूत विचार यही है कि छात्रों को तनाव से मुक्ति वाला परिवेश प्रदान किया जाए। इस बीच यह स्मरण रहे कि बेचैनी की सबसे बड़ी वजह अनिश्चितता होती है। अकादमिक परिदृश्य से संदेह के बादल अभी तक छंटे नहीं हैं। यदि हमने तत्परता से प्रभावी कदम नहीं उठाए तो शिक्षा-दीक्षा की गुणवत्ता के साथ समझौता होना तय है। चीजों को सरल बनाने के उत्साह में क्या हम मूल तत्व की अनदेखी तो नहीं कर रहे हैं?

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