खतरनाक रूप लेता नशे का कारोबार, तालिबान के सत्ता में काबिज होने के बाद बढ़ा ड्रग्स की तस्करी का खतरा

नशीले पदार्थो और खासकर अफीम की तस्करी में तालिबान भी माहिर है जो हाल में अफगानिस्तान की सत्ता पर बंदूक के बल पर काबिज हुआ है। तालिबान दशकों से अफगानिस्तान में अफीम की खेती करता आ रहा है। वह अफीम की तस्करी दुनिया भर में करता है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 08:08 AM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 09:10 AM (IST)
खतरनाक रूप लेता नशे का कारोबार, तालिबान के सत्ता में काबिज होने के बाद बढ़ा ड्रग्स की तस्करी का खतरा
नशीले पदार्थो और खासकर अफीम की तस्करी में तालिबान भी माहिर है (फाइल फोटो)

संजय गुप्त : यह सर्वविदित है कि विश्व में जो तमाम आतंकी संगठन हैं, वे अपने वित्त पोषण के लिए कई तरह की गैर कानूनी गतिविधियों का सहारा लेते हैं। इनमें प्रमुख है नशीले पदार्थो की तस्करी। नशीले पदार्थो और खासकर अफीम की तस्करी में तालिबान भी माहिर है, जो हाल में अफगानिस्तान की सत्ता पर बंदूक के बल पर काबिज हुआ है। तालिबान दशकों से अफगानिस्तान में अफीम की खेती करता आ रहा है। वह अफीम की तस्करी दुनिया भर में करता है। इसमें उसका साथ देती है पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ। अफगानिस्तान में दुनिया की करीब 85 फीसदी अफीम की खेती होती है। वहां तालिबान के सत्ता में काबिज होने के बाद ड्रग्स की तस्करी का खतरा और बढ़ गया है।

अफीम और खासकर हेरोइन की लत बहुत जल्दी लगती है। एक बार जिसे यह लत लग जाती है, उसके लिए उससे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता है। ज्यादातर मामलों में हेरोइन के लती हमेशा के लिए बर्बाद हो जाते हैं। इसी कारण इसे युवा पीढ़ी को तबाह करने वाले नशे के तौर पर जाना जाता है। मुश्किल यह है कि नशीले पदार्थो का काला कारोबार बढ़ता चला जा रहा है। गरीब देश हों या फिर विकासशील अथवा विकसित देश, कोई भी नशीले पदार्थो की तस्करी से अछूता नहीं है। भारत किस तरह नशीले पदार्थो के तस्करों के निशाने पर है, इसका उदाहरण है पिछले दिनों गुजरात के कच्छ में मुंद्रा बंदरगाह पर हेरोइन की तीन हजार किलोग्राम की खेप पकड़ा जाना। इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 21 हजार करोड़ रुपये बताई जा रही है। इसे टेल्कम पाउडर बताकर मंगाया गया था। इसे अफगानिस्तान से ईरान के रास्ते गुजरात के तट पर लाया गया। इससे यही पता चलता है कि हेरोइन के तस्कर कितने दुस्साहसी हैं और उनके लिए उसकी तस्करी करना कितना आसान है? माना जा रहा है कि हेरोइन की इस खेप को भारत लाने के पीछे तालिबान और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ का हाथ है। आइएसआइ यह काम पहले भी करती रही है। वह भारत में आतंकवाद के साथ नशीले पदार्थो की तस्करी को भी बढ़ावा दे रही है, ताकि यहां के युवाओं को पथभ्रष्ट करने के साथ नाकारा बनाया जा सके।

मुंद्रा बंदरगाह पर हेरोइन की बड़ी खेप पकड़े जाने से यह भी स्पष्ट होता है कि तालिबान अपने वित्तीय स्रोतों के लिए एक बार फिर अफीम की तस्करी का सहारा ले रहा है और इसमें पाकिस्तान उसकी मदद कर रहा है। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि जहां अफगानिस्तान में अफीम की बड़े पैमाने पर खेती होती है, वहीं उससे हेरोइन बनाने का काम पाकिस्तान में आइएसआइ के संरक्षण में होता है। वहीं से उसे दुनिया के दूसरे देशों में भेजा जाता है। जाहिर है कि तालिबान और आइएसआइ की मिलीभगत से ही नशीले पदार्थो का काला कारोबार दुनिया भर में हो रहा है।

पाकिस्तान इस काले कारोबार में इसलिए भी लिप्त है, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था भी खस्ताहाल है। तालिबान जबसे अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुआ है, तबसे उसके लिए विश्व समुदाय को यह समझाना मुश्किल हो रहा है कि वह सुधर गया है। उसे अपनी सत्ता के संचालन के लिए कहीं से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिल रही है। हैरानी नहीं कि उसे हेरोइन की तस्करी आसान रास्ता आसान लगा हो। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि अब अफगानिस्तान से नशीले पदार्थो की तस्करी में तेजी आएगी। इसका कारण वहां अन्य आतंकी गुटों का भी सक्रिय होना है।

अब जब अफगानिस्तान से नशीले पदार्थो की आवक बढ़ने की आशंका बढ़ गई है, तब भारत को चेत जाना चाहिए। भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि पंजाब में पहले से ही पाकिस्तान के जरिये नशीले पदार्थो की तस्करी हो रही है। हालांकि अमरिंदर सिंह ने पंजाब की सत्ता संभालते समय पाकिस्तान से होने वाली नशे की तस्करी पर रोक लगाने का वादा किया था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका। वहां के युवा नशे के लती बनते जा रहे हैं। पंजाब के अलावा पूवरेत्तर राज्यों में भी तस्करी के जरिये नशीले पदार्थ आ रहे हैं। माना जाता है कि म्यांमार के जरिये ऐसा हो रहा है। भारत में नशीले पदार्थो की तस्करी एक पुरानी समस्या है, लेकिन मुंद्रा बंदरगाह पर हेरोइन की बड़ी खेप पकड़े जाने पर राहुल गांधी ने ट्वीट कर केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उनके ट्वीट के बाद अन्य कांग्रेसी नेता भी सक्रिय हो गए। यह सस्ती राजनीति के अलावा और कुछ नहीं, क्योंकि देश में पहली बार नशीले पदार्थो की खेप नहीं पकड़ी गई।

यह ठीक है कि मुंद्रा बंदरगाह पर हेरोइन की बड़ी खेप पकड़े जाने के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियां चेत गई हैं, लेकिन यह मानना सही नहीं होगा कि इससे नशीले पदार्थो की तस्करी थम जाएगी। हो सकता है कि हेरोइन की तीन हजार किलोग्राम खेप भारत भेजने वाला गिरोह सावधान हो गया हो, लेकिन ऐसे कई गिरोह और होंगे। यह भी तय है कि उन्हें तालिबान नेताओं के साथ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों का भी समर्थन हासिल होगा। वैसे तो पूरे विश्व में नशे के कारोबार को तोड़ने के लिए नारकोटिक्स एजेंसियां हैं, लेकिन उनके तमाम प्रयासों के बावजूद नशीले पदार्थो का काला कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है। हर देश के नेता इस बात को मानते आए हैं कि इस काले कारोबार की कमर तोड़ी जानी चाहिए, लेकिन उनके प्रयासों के बाद भी ऐसा नहीं हो पा रहा है। अब जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है तो पूरे विश्व के कान खड़े हो जाने चाहिए।

इन दिनों न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक हो रही है। इसमें शामिल होने के अलावा भारतीय प्रधानमंत्री ने दुनिया के कई देशों के शासनाध्यक्षों से मुलाकात की। इन मुलाकात में तालिबान के कट्टरपंथ पर भी चर्चा हुई, लेकिन बेहतर होगा कि अफगानिस्तान में आतंक के उभार के साथ वहां से होने वाले नशे के कारोबार पर भी बात हो और इस दौरान इस पर ध्यान दिया जाए कि तालिबान अपने वित्त पोषण के लिए अफीम की खेती को बढ़ावा न देने पाए। ऐसे किसी उपाय से ही तालिबान विश्व समुदाय की बात सुनेगा। यदि विश्व समुदाय को तालिबान को सही राह पर लाना है तो उसके लिए यह आवश्यक है कि वह अफीम की खेती पर तालिबान की निर्भरता खत्म करने के लिए सक्रिय हो। जब वह आर्थिक रूप से कमजोर होगा तभी अपने कट्टर सोच बदलने के लिए विवश होगा। 

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]

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