महिलाओं को लेकर बदले मानसिकता, तभी साकार हो पाएगा एक आदर्श समाज का सपना

देश के कई इलाकों में आज भी खाप पंचायतों का वर्चस्व है। जहां पुरुषों को अपनी नजर और नजरिया बदलने की जरूरत है वहां महिलाओं के कपड़ों और मोबाइल के उपयोग को लेकर हो रही चर्चा व्यर्थ है।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Wed, 23 Jun 2021 11:49 AM (IST) Updated:Wed, 23 Jun 2021 11:49 AM (IST)
महिलाओं को लेकर बदले मानसिकता, तभी साकार हो पाएगा एक आदर्श समाज का सपना
महिलाओं को लेकर मानसिकता बहदलने से ही साकार होगा आदर्श समाज का सपना

 [देवेंद्रराज सुथार] बीते दिनों उत्तर प्रदेश महिला आयोग की सदस्य मीना कुमारी द्वारा लड़कियों के मोबाइल प्रयोग को लेकर दिए गए बयान के बाद उनकी खासी आलोचना हुई। इससे पहले भी देश में सक्रिय कई खाप पंचायतों द्वारा आधी आबादी को लेकर ऐसी अनर्गल टिप्पणियां और फरमान जारी होते रहे हैं। कुछ दिन पहले राजस्थान के धौलपुर जिले में बल्दियापुर गांव में ऐसा ही एक मामला देखने को मिला था। वहां पंच पटेलों ने लड़कियों के जींस व टॉप पहनने तथा मोबाइल रखने पर यह कहकर पाबंदी लगाई कि इससे मान-मर्यादा टूटने के साथ ही संस्कारों पर प्रहार हो रहा है। हालांकि वहां की लड़कियों ने पंचों के निर्देश को मानने से इन्कार कर एकदम सही किया।

दरअसल देश के कई इलाकों में आज भी खाप पंचायतों का वर्चस्व है। ये पंचायतें समाज व जाति के हिसाब से बनी हुई हैं। इनके नियमों का पालन करना अनिवार्य है। नियम तोड़ने पर सजा और जुर्माने का प्रविधान भी है। इनके कारण आज भी कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह और अन्य तमाम बुराइयां हमारे समाज में बदस्तूर कायम हैं। हालांकि, कन्या भ्रूण हत्या और बाल विवाह पर कानून सख्त हुआ है, लेकिन उन्हें अक्सर अपनी सुविधा से तोड़ा-मरोड़ा जाता है। जहां बेटियां अपनी मेहनत, काबिलियत, हुनर, जज्बे और साहस के साथ आगे बढ़ रही हैं, तो वहीं उनके निर्बाध एवं समग्र विकास में कई सामाजिक कुरीतियां बाधक बनी हुई हैं। सच तो यह है कि पहनावे से कभी मर्यादाएं नहीं टूटतीं और आज के तकनीकी युग में आप किसी को मोबाइल से दूर भी नहीं कर सकते।

कोरोना महामारी में मोबाइल शिक्षा का अहम साधन साबित हुआ है। इससे लाखों छात्रओं ने घर बैठे ऑनलाइन शिक्षा हासिल की और लगातार कर रही हैं। इसी तरह आप पुरुषों की खराब नीयत के कारण लड़कियों को घूंघट में नहीं रख सकते। सोचना होगा कि जहां नजर और नजरिया बदलने की जरूरत है, वहां महिलाओं के पहनावे में बदलाव या उनसे मोबाइल छीनने से क्या काम चल जाएगा? रूढ़िवादी व दकियानूसी मानसिकता से ग्रसित लोग तो चाहेंगे ही कि उनकी सोच के अधीन रहकर ही नई पीढ़ी जीवन बसर करे, लेकिन नई पीढ़ी का खोखली एवं पुरानी मान्यताओं के साथ जीवन जीना संभव नहीं है। उनके तौर-तरीके बदले हुए हैं। इन हालातों में पंचों को जमाने के साथ चलना सीखना होगा। उन्हें यह समझना होगा कि समाज और देश उनके बनाए गए नियमों पर नहीं, बल्कि संविधान के अनुरूप चलेगा। जब तक ऐसी पंचायतें अपने ज्ञान और अनुभव से समाज को दिशा दें, तब तक तो ठीक है, लेकिन जब इस तरह बेतुके फैसले देने पर आमादा हो जाएं, तो उन्हें भंग कर देना ही बेहतर होगा। तभी एक आदर्श समाज का सपना साकार हो पाएगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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