भारत को अपनी संप्रभुता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए चीन पर किसी भी तरह की निर्भरता नहीं चाहिए

भारत को हरेक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना हम सबका राष्ट्रीय कर्तव्य है। शत्रु देश पर तो आंशिक निर्भरता भी आहतकारी ही होती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 06 Jul 2020 12:57 AM (IST) Updated:Mon, 06 Jul 2020 12:57 AM (IST)
भारत को अपनी संप्रभुता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए चीन पर किसी भी तरह की निर्भरता नहीं चाहिए
भारत को अपनी संप्रभुता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए चीन पर किसी भी तरह की निर्भरता नहीं चाहिए

[ हृदयनारायण दीक्षित ]: आत्मनिर्भरता सर्वोच्च राष्ट्रीय अभिलाषा है। इसमें स्वाधीनता और राष्ट्रीय स्वाभिमान की प्रतिभूति है। आत्मनिर्भर राष्ट्र ही संप्रभुता, स्वाभिमान और स्वाधीनता का आनंद पाते हैं। चीन से सीमा विवाद के बीच भारत में आत्मनिर्भरता का प्रश्न तेजी के साथ चर्चा का विषय बना है। प्रधानमंत्री मोदी ने मई में ही देश को आत्मनिर्भर बनाने के अभियान की शुरुआत कर दी थी, फिर लद्दाख में सीमा विवाद के बाद चीन से क्षुब्ध भारत के लोगों ने चीनी वस्तुओं का बहिष्कार शुरू किया।

आत्मनिर्भरता आह्वान के बीच सरकार ने 59 चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया 

इसमें आत्मनिर्भरता का ही आह्वान है। इस आह्वान के बीच सरकार ने टिकटॉक, वीचैट आदि 59 चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा, लोक व्यवस्था एवं संप्रभुता की चुनौती के मद्देनजर ये प्रतिबंध लगाए गए। इन प्रतिबंधों का जोरदार स्वागत भी हुआ, लेकिन भारत को आत्मनिर्भर बनाने के महत्वाकांक्षी अभियान को असंभव बताने वाले भी कम नहीं हैं। मूलभूत प्रश्न है कि क्या हम भारत के 133 करोड़ लोग आत्मनिर्भर स्वाभिमानी राष्ट्र के लिए संकल्पबद्ध नहीं हो सकते? क्या हम शत्रुता का बर्ताव करने वाले चीन की आर्थिक जकड़न से मुक्त होने को तैयार-तत्पर हैं?

भारत और चीन का द्विपक्षीय व्यापार करीब 100 अरब डॉलर का है

चीन की आर्थिक जकड़न बेशक गंभीर है। भारतीय आयात का 14 प्रतिशत चीन का है। इनमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मोबाइल फोन, दवाओं के रसायन आदि प्रमुख हैं। वे सस्ते हैं। इसलिए लोकप्रिय हैं। भारत और चीन का द्विपक्षीय व्यापार करीब 100 अरब डॉलर का है, पर इसमें 75 अरब डॉलर का माल भारत खरीदता है। कहा जा रहा है कि ऐसे व्यापार में भारत के हजारों व्यापारियों, श्रमिकों और लाखों उपभोक्ताओं के हित जुड़े हैं। ऐसी बातें आत्मनिर्भरता की राष्ट्रीय आकांक्षा के विरुद्ध हैं। यह मान लिया गया है कि भारत की क्षमता और प्रतिभा कमजोर है, लेकिन कोविड-19 के खिलाफ संघर्ष में पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट यानी पीपीई का बड़ी संख्या में निर्माण उत्साह पैदा करने वाला है।

महामारी के पहले देश में पीपीई का निर्माण न के बराबर था, अब 5 लाख प्रतिदिन बनाए जा रहे हैं

महामारी के पहले देश में पीपीई का निर्माण न के बराबर था। अभी लगभग 5 लाख प्रतिदिन बनाए जा रहे हैं। पीपीई को तकनीकी टेक्सटाइल कहा जाता है। भारत करीब 16 अरब डॉलर के तकनीकी टेक्सटाइल का आयात करता रहा। ऐसे उत्पाद बनाकर आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ा जा सकता है। भारत ने दुनिया को हाइड्रोक्सिक्लोरोक्विन उपलब्ध कराई। हमारी आयुर्वेदिक दवाएं भी विश्व का आकर्षण बन सकती हैं। ऐसे भारतीय उत्पादों के लिए ही प्रधानमंत्री ने ‘वोकल फॉर लोकल’ का नारा दिया है। 

चीन की कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति का संचालन कॉरपोरेट करते हैं

चीन की कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति का संचालन कॉरपोरेट करते हैं। बीते साल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना नीति पत्र जारी किया था। इसमें कहा गया था कि चीन की कंपनियां चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और शी चिर्नंफग के विचार को प्रसारित करने का काम करेंगी। भारत के औद्योगिक घरानों को किसी भी दल ने पार्टी विचारधारा के प्रसार का काम नहीं सौंपा। चीनी कंपनियां अपने र्आिथक कारोबार के साथ कम्युनिस्ट राजनय का काम भी करती हैं। यह माक्र्सवाद का पूंजीवादी संस्करण है।

चीनी माल छोड़कर स्वदेशी अपनाने के आत्मनिर्भर अभियान पर कुछ लोग सवाल उठा रहे

पहले कम्युनिस्टों का ध्येय पूंजीवाद का खात्मा था। वे कहते थे कि पूंजीवाद रस्सी का उत्पादन करेगा। हमें बेचेगा। हम उसे उसी की रस्सी पर लटकाकर फांसी देंगे। चीनी पूंजीपति फांसी का अर्थ जानते हैं। सो कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता बन गए। भारत में चीनी माल के सहारे कम्युनिस्ट नीति भी आती है। सस्ता, लेकिन चालू माल खरीदने की लत भी आती है। आश्चर्य है कि चीनी माल छोड़कर स्वदेशी अपनाने के आत्मनिर्भर अभियान पर कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं।

शत्रु देश पर किसी भी तरह की निर्भरता कमजोरी होती है

आत्मनिर्भरता ही एकमेव मार्ग है। इसका विकल्प नहीं है। स्वाभिमान इसकी आधारभूमि है। शत्रु देश पर किसी भी तरह की निर्भरता कमजोरी होती है। भारत चीन के संबंध सामान्य नहीं हैं। भारत विवादों के शांतिपूर्ण निस्तारण का इच्छुक है। भारत की अंतरराष्ट्रीय हैसियत बड़ी है। चीन की हैसियत विवादों में है। भारत को अपनी संप्रभुता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए चीन पर किसी भी तरह की निर्भरता नहीं चाहिए। आत्मनिर्भर भारत ही अजेय भारत हो सकता है। आत्मनिर्भरता के तमाम क्षेत्र हैं। यहां ज्ञान, दर्शन और शोध की आत्मनिर्भरता है। र्आिथक आत्मनिर्भरता भी है।

अंतरिक्ष अभियानों में भारत की कुशलता विश्व के लिए आश्चर्यजनक है

अंतरिक्ष अभियानों में भारत की कुशलता विश्व के लिए आश्चर्यजनक है। इसरो ने क्रायोजेनिक इंजन न मिलने पर खुद बनाया। भारत में हर तरह की क्षमता है। अगर हम अपने बलबूते अंतरिक्ष अभियान सफलता से चला सकते हैं तो चीनी र्आिथक जकड़न से मुक्ति का अभियान चलाने में कठिनाई क्या है?

आजादी आंदोलन में स्वदेशी की गूंज, मेड इन इंग्लैंड का जोर था फिर भी विदेशी माल का बहिष्कार

स्वाधीनता आंदोलन में स्वदेशी की गूंज थी। तब मेड इन इंग्लैंड वस्तुओं का जोर था। फिर भी विदेशी माल का बहिष्कार प्रतिष्ठा का प्रतीक बना। कठिनाइयां तब भी थीं। विदेशी वस्त्र लुभावन थे। भारतीय उत्पाद उनकी तुलना में कमतर थे, लेकिन ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने के लिए ऐसा बहिष्कार अनिवार्य था। चीनी माल का त्याग चीनी आर्थिक जकड़न से मुक्ति का अभियान है। भारत-पाक युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने खाद्यान्न की कमी अनुभव की। उन्होंने सप्ताह में एक दिन उपवास की अपील की। देश ने संयम किया। भारत के लोग राष्ट्रहित में सभी प्रकार के त्याग और संयम में सिद्ध हैं। 1967-68 में भारत ने खाद्यान्न आत्मनिर्भरता का लक्ष्य तय किया। कृषि को समृद्ध करने का निर्णय लिया। हरित क्रांति हळ्ई। भारत में अब खाद्यान्न आत्मनिर्भरता है। राष्ट्र का संकल्प अनूठा है।

चीन को आर्थिक शिकस्त देना बड़ा काम नहीं, चीनी माल का बहिष्कार आमजनों की अभिव्यक्ति है

चीन को आर्थिक शिकस्त देना बड़ा काम नहीं है। भारत के लोग हर तरह से सक्षम हैं। चीनी माल का बहिष्कार आमजनों के गुस्से की अभिव्यक्ति है। कुछ लोग कहते हैं कि सरकार स्वयं ही चीन से माल आना क्यों नहीं बंद करती, लेकिन भारत ने विश्व व्यापार के तहत अपनी अर्थव्यवस्था खोले रखने का आश्वासन दे रखा है। सामान्यत: सरकारें ऐसा अनुबंध नहीं तोड़ सकतीं। चीनी जकड़न से मुक्ति का अभियान हम सबका है। भारतीय उद्योगपतियों को शोध और श्रमिक प्रशिक्षण पर जोर देना चाहिए। तकनीक के सदुपयोग पर भी ध्यान देना चाहिए। शोध और अनुसंधान का काम बेशक खर्चीला है, समय भी लगता है, लेकिन आत्मनिर्भरता जरूरी है। आत्मनिर्भरता ही सुख, स्वाधीनता और संप्रभुता की गारंटी है। भारत को हरेक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना हम सबका राष्ट्रीय कर्तव्य है। पर निर्भरता हमेशा त्रासद होती है। शत्रु देश पर तो आंशिक निर्भरता भी आहतकारी ही होती है।

( लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं )

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