वायरस की वैक्सीन का जरूरतमंदों तक वितरण कोरोना संकट के गर्भ से निकले साल की सबसे बड़ी चुनौती

वायरस की वैक्सीन का जरूरतमंदों तक वितरण इस साल की सबसे प्रमुख चुनौती होने जा रही है। इसमें यह ध्यान रखना होगा कि वह तबका इसकी खुराक से वंचित न रह जाए जो अपनी आवाज उठाने में सक्षम नहीं है। हमें एक संवेदनशील वैक्सीन वितरण प्रणाली बनानी होगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 10 Jan 2021 11:49 PM (IST) Updated:Mon, 11 Jan 2021 12:17 AM (IST)
वायरस की वैक्सीन का जरूरतमंदों तक वितरण कोरोना संकट के गर्भ से निकले साल की सबसे बड़ी चुनौती
कोरोना महामारी ने आदमी को 'सामाजिक मानुष’ से जैविक प्राणि बना दिया।

[ बद्री नारायण ]: नए साल के भी दस दिन गुजर गए हैं। इस दौरान बीते साल के लेखाजोखा और नए साल के संदर्भ में सुझावों पर काफी कुछ बातें हो चुकी हैं। चूंकि बीता वर्ष कई मायनों में असामान्य, अप्रत्याशित और असाधारण रहा है तो वह अपने साथ कुछ अलहदा किस्म की चुनौतियां इस नए साल के लिए विरासत में छोड़ गया है जिनसे निपटने के लिए कुछ बातें बार-बार दोहराना भी आवश्यक है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछला पूरा साल कोरोना वायरस और उससे उपजी कोविड-19 महामारी की भेंट चढ़ गया जिससे देश-दुनिया में शायद ही कोई क्षेत्र अछूता रहा हो। वहीं इस साल की अच्छी बात यही है कि इसका आगाज कोरोना वैक्सीन की राहत देने वाली खबर के साथ हुआ है। अब उसके वैक्सीनेशन का खाका भी खींचा जा रहा है, लेकिन उसके साथ-साथ तमाम अन्य चुनौतियां भी हैं जिन्हेंं अनदेखा नहीं किया जा सकता।

देश के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती समाज को सहज गति में लौटाना

फिलहाल भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती तो समाज को उसकी सहज गति में लौटाना है। अर्थात वायरस जनित खतरों एवं भय से समाज की मनोवैज्ञानिक मुक्ति। मेलजोल एवं साक्षात संवाद की पुन: वापसी जो भारतीय समाज की थाती रही है। परस्पर सहयोग एवं समर्थन की चाह हमारे समाज की दूसरी बड़ी विशिष्टता रही है। हमें उसे सक्रिय रूप से सामने लाने की स्थिति का निर्माण करना होगा। यही भाव भारतीय समाज की प्राण शक्ति है। इन्हेंं फिर से संजीवनी प्रदान करनी होगी। हालांकि इसमें कुछ समय लग सकता है तो प्रयासों की गति बनाए रखनी होगी। कोरोना वायरस ने हमें आत्मकेंद्रित बनाया है जो भारतीय समाज की मूल प्रवृत्ति के विपरीत है। इसने हमें दुनिया से काटकर आभासी दुनिया के तिलस्मी ताले में कैद कर दिया है। आभासी दुनिया यूं तो सम्मिलन एवं संवाद का जनतांत्रिक माध्यम प्रतीत होती है, किंतु गहराई से देखें तो यह न यथार्थ है न कल्पना, वरन एक अफीमची उड़ान जैसी है जो हमें बाजार की गलियों तक पहुंचाती है। यह हमें आत्मकेंद्रित बनाकर आत्मरति से भर देती है जो समाज में होने का सघन अहसास देते हुए भी हमें समाज से काटती जाती है। जैसा कि पश्चिम में हुआ है यह आभासी दुनिया धीरे-धीरे हमें उपभोक्ता में बदल हमारे समाजों को मार डालती है। ऐसे में इस तिलिस्म से बाहर निकलना हमारे लिए इस साल की दूसरी बड़ी चुनौती होगी।

कोरोना महामारी ने आदमी को 'सामाजिक मानुष’ से जैविक प्राणि बना दिया

इस महामारी ने हमें ‘सामाजिक मानुष’ से मात्र एक जैविक प्राणि बना दिया है। देह की चिंता में छूने-छुआने को लेकर जो संदेह इस वायरस ने पैदा किया है उससे मुक्ति पानी होगी, ताकि आदमी की जैविक मानुष से पुन: सामाजिक मानुष के रूप में वापसी हो सके। इसके लिए सरकार एवं जनता के बीच संवाद को गहन बनाना होगा। यह संवाद मात्र मीडिया के माध्यम से करने के बजाय साक्षात रूप में करना कहीं बेहतर होगा। इसके लिए सत्तापक्ष-विपक्ष को साथ आना होगा। उन्हेंं फेसबुक-ट्विटर की दुनिया से निकलकर जनता के बीच पहुंचना होगा। इस प्रकार भारतीय राजनीति के साक्षात जनसंवाद की वापसी भी इस साल की एक अहम चुनौती होगी।

कोरोना संकट से आहत विकास के लिए कई चुनौतियां सामने हैं

कोरोना संकट से आहत भारतीय समाज की मूल गति की पुन: प्राप्ति के साथ-साथ भारतीय समाज के विकास के लिए भी कई चुनौतियां हमारे सामने हैं। इनमें से पहली बड़ी चुनौती है आर्थिक सुधारों को जनसंवादों के साथ ऐसे प्रस्तावित किया जाए, ताकि उनका सही अर्थ लोगों तक पहुंचे। सत्ता एवं नीति निर्माण में संवाद अगर ठीक ढंग से न हो तो अनेक लाभकारी नीतियां निष्प्रभावी होकर रह जाती हैं। यह नए कृषि कानूनों के संदर्भ में अधिक प्रासंगिक है। इस साल की अगली चुनौती राष्ट्रीय शिक्षा नीति को त्वरित एवं ठीक ढंग से लागू करने की भी है। इसे लागू करते वक्त शिक्षा क्षेत्र के प्रशासकों को इसके ढांचागत पक्ष के साथ ही नैतिक पक्ष पर भी ध्यान रखना होगा, ताकि इसका लाभ समाज के हाशिये पर बसे समूहों तक समान रूप से पहुंच सके। क्रियान्वयन की यह प्रक्रिया दोहरी होगी-एक तो सरकारी प्रयास और दूसरा जन प्रभाव।

वंचितों तक विकास का लाभ और बेहतर ढंग से पहुंचे

भारत में 1990 के बाद जो नवउदारवादी विकास की दिशा बनी है, उसने देश में समृद्धि की गति तेज की है। विकास का लाभ धीरे-धीरे नीचे तक पहुंच रहा है, किंतु इसने विषमता भी बढ़ाई है। ऐसे में हमारे समक्ष एक चुनौती यह भी है कि किस प्रकार अमीरी एवं गरीबी की खाई चौड़ी न हो। हमें सुनिश्चित करना होगा कि इस वर्ष वंचितों तक विकास का लाभ और बेहतर ढंग से पहुंचे। मोदी सरकार वंचितों तक विकास का लाभ पहुंचाने के लिए तमाम नीतियां तो बना ही रही है और डायरेक्ट कैश ट्रांसफर से अनेक फायदे उन तक सीधे पहुंच भी रहे हैं, किंतु भारतीय वंचितीकरण एवं गरीबी पर यह प्रहार मात्र सरकारी प्रयासों से प्रभावी नहीं हो सकता। इसके लिए स्वयं गरीबों एवं वंचितों में आगे बढ़ने की चाह हमें पैदा करनी होगी। साथ ही ऐसा माहौल बनाना होगा कि समाज के सक्षम एवं समृद्ध वर्ग अपने लाभों का एक भाग अत्यंत सुनियोजित ढंग से उन तक पहुंचा पाएं। कॉरपोरेट सीएसआर को वंचितों तक पहुंचाना होगा।

देश में फ्लाईओवर एवं सड़कों का बिछा जाल

इन दिनों देश में फ्लाईओवर एवं सड़कों का संजाल देखकर मन हर्षित होता है। सूरीनाम में बसे एक भारतवंशी मित्र पिछले दिनों भारत आए तो उन्होंने कहा, ‘मैं करीब 30 वर्ष बाद भारत आया हूं। आज का भारत देखकर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। इतनी अच्छी सड़कें, चमकते बाजार देखकर हम हीनता की ग्रंथि से मुक्त होते हैं। हमारे पुरखे गरीब थे जो भारत छोड़कर गए। अब यहां जो गरीब हैं, वे भी इन फ्लाईओवर पर गाड़ी दौड़ाएं, मॉल में जा पाएं, यह सब हमें करना होगा।’

वायरस की वैक्सीन का जरूरतमंदों तक वितरण इस साल की सबसे प्रमुख चुनौती

वायरस की वैक्सीन का जरूरतमंदों तक वितरण इस साल की सबसे प्रमुख चुनौती होने जा रही है। इसमें यह ध्यान रखना होगा कि वह तबका इसकी खुराक से वंचित न रह जाए जो अपनी आवाज उठाने में सक्षम नहीं है। हमें एक संवेदनशील वैक्सीन वितरण प्रणाली बनानी होगी। साथ ही हमें आत्मनिर्भर बनते हुए कोरोना से हुए नुकसान की भरपाई की दिशा में भी उन्मुख होना होगा। स्मरण रहे कि यह सामान्य वर्ष नहीं है, बल्कि कोरोना संकट के गर्भ से निकला साल है। अत: चुनौतियां बड़ी हैं तो उनसे निपटने की चाह भी सशक्त हो।

( लेखक जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, प्रयागराज के निदेशक हैं ) 

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