चालबाज चीन को लेकर दलाई लामा ने अपने पद को केवल आध्यात्मिक मामलों तक सीमित कर दिया

कोरोना वायरस छोड़कर पड़ोसी देशों को तंग कर और भारत-चीन सीमा विवाद को एक घिनौना रूप देकर चीन सरकार ने लगभग पूरी दुनिया को अपने खिलाफ कर लिया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 06 Jul 2020 12:23 AM (IST) Updated:Mon, 06 Jul 2020 12:23 AM (IST)
चालबाज चीन को लेकर दलाई लामा ने अपने पद को केवल आध्यात्मिक मामलों तक सीमित कर दिया
चालबाज चीन को लेकर दलाई लामा ने अपने पद को केवल आध्यात्मिक मामलों तक सीमित कर दिया

[ विजय क्रांति ]: लद्दाख में भारत और चीन के बीच हिंसक भिड़ंत ने दोनों देशों के आपसी तनाव को एक नया आयाम दे दिया है। तिब्बत की धरती का इस्तेमाल करके किए गए इस अमानवीय चीनी व्यवहार ने तिब्बत और उसके निर्वासित शासक दलाई लामा को बरसों बाद अंतरराष्ट्रीय चर्चा का भी केंद्र बना दिया है। भारत की पूर्व विदेश सचिव और चीन में भारतीय राजदूत रह चुकीं निरुपमा राव ने दलाई लामा को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत-रत्न देने का सुझाव दिया है और साथ ही चीन और तिब्बत के बारे में भारतीय नीति पर नए सिरे से विचार करने की सलाह दी है। इसके पहले 20 मई को अमेरिकी संसद में रखे गए एक प्रस्ताव में तिब्बत को एक अलग और स्वतंत्र देश घोषित करने की मांग की जा चुकी है।

अगले अवतार के बारे में केवल दलाई लामा कार्यालय के फैसले मान्य होंगे, चीन के नहीं

इसी साल 30 जनवरी को अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेसेंटेटिव्स यानी प्रतिनिधि सभा ने बिल नंबर एचआर-4331 पारित करके चीन सरकार को साफ शब्दों में बता दिया कि दलाई लामा के अगले अवतार के बारे में उसे किसी भी तरह का कोई फैसला करने का अधिकार नहीं है और उनके अगले अवतार के बारे में केवल दलाई लामा कार्यालय के फैसले मान्य होंगे। इस प्रस्ताव की एक खासियत यह भी थी कि रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के तल्ख रिश्तों के बावजूद यह प्रस्ताव 22 के मुकाबले 392 मतों से पारित हुआ। 16 सांसद अनुपस्थित रहे।

दलाई लामा की गिनती दुनिया के सबसे लोकप्रिय और सम्मानित व्यक्तियों में होती है

दलाई लामा एक ऐसे देश के निर्वासित शासक हैं जिसका न तो दुनिया के राजनीतिक नक्शे पर कोई जिक्र बचा है और न धर्मशाला से चलने वाली उनकी निर्वासित सरकार को किसी देश ने मान्यता दी है। उनके पीछे खड़े तिब्बती शरणार्थियों की संख्या भी सीमित है जो भारत, नेपाल और भूटान के अलावा लगभग 30 देशों में फैले हुए हैं। इसके बावजूद पिछले पांच-छह दशकों से उनकी गिनती दुनिया के सबसे लोकप्रिय और सम्मानित व्यक्तियों में होती है। उनकी इस लोकप्रियता का राज उनकी सादगी और अहिंसा, करुणा और सार्वभौमिक जिम्मेदारी का विचार है जिसने उन्हें महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला के समकक्ष बैठा दिया है।

दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार समेत 150 से ज्यादा अवार्ड मिल चुके हैं

उनके विचारों और व्यक्तित्व के कारण उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार, टैम्पलटन अवार्ड, मैग्सेसे अवार्ड और अमेरिका के कांग्रेसनल-गोल्ड-मैडल समेत 150 से ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। यूरोप और अमेरिका में उनकी लोकप्रियता का यह आलम है कि हर साल 10 मार्च यानी चीन से मुक्ति की तिब्बती जन क्रांति की सालगिरह पर तिब्बत का झंडा फहराया जाता है। दलाई लामा के सम्मान में दुनिया की 20 संसद तिब्बत के समर्थन में 50 से ज्यादा प्रस्ताव पारित कर चुकी हैं।

अगर दलाई लामा इतने लोकप्रिय हैं तो उनके प्रति चीन का गुस्सा और नफरत भी कम नहीं

अगर दलाई लामा इतने लोकप्रिय हैं तो उनके प्रति चीन का गुस्सा और नफरत भी कम नहीं है। कुछ साल पहले तक दलाई लामा की यात्रा को लेकर दुनिया भर की सरकारों पर चीन सरकार का आगबबूला होना उन्हें और भी लोकप्रिय बना देता था, लेकिन चीन की बढ़ती आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक शक्ति के कारण अब कई सरकारें दलाई लामा को वीजा देने से भी कतराने लगी हैं।

चीनी धमकियों के जवाब में नोबेल विजेताओं ने सम्मेलन को ही रद कर दिया था

कुछ साल पहले दक्षिण अफ्रीका में नोबेल विजेताओं के सम्मेलन के सवाल पर चीनी धमकियों के आगे वहां की सरकार ने दलाई लामा को वीजा जारी करने से मना कर दिया। जवाब में नोबेल विजेताओं ने सम्मेलन को ही रद कर दिया। तिब्बत के भीतर भी दलाई लामा की लोकप्रियता का यह हाल है कि वहां की तीन पीढ़ियां वहां आए दिन होने वाले चीन विरोधी प्रदर्शनों में उनके समर्थन में नारे लगाती हैं। पिछले कुछ साल में चीन से तिब्बत की मुक्ति और दलाई लामा की वापसी की मांग करते हुए 153 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं। 

चीन ने अब धर्म को औजार बनाकर तिब्बती जनता को संतुष्ट करने का अभियान शुरू किया

तिब्बती व्यवस्था में एक दलाई लामा की मृत्यु के बाद उनका अवतार लेने वाले बच्चे को खोजकर उसे उनका पद दिया जाता है। चीनी शासक इस फिराक में हैं कि वर्तमान दलाई लामा की मृत्यु के बाद अगले अवतारी बच्चे को चुनने का अधिकार केवल चीन सरकार को मिले। तिब्बती जनता की धार्मिक आस्थाओं को नष्ट करने के चार दशक के लंबे असफल प्रयासों के बाद चीन ने अब धर्म को औजार बनाकर तिब्बती जनता को संतुष्ट करने का अभियान शुरू किया है। 1992 और 1994 में कम्युनिस्ट पार्टी की निगरानी में कर्मा पा और पंचेन लामा के अवतारों को खोजने और उनका अभिषेक करके वह अगले दलाई लामा की खोज की रिहर्सल भी कर चुका है।

अवतारी लामा के पुनर्जन्म को मान्यता देने का अधिकार केवल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को है

2007 में चीन सरकार ने ऑर्डर-5 नाम से एक नया कानून बना दिया जिसके अनुसार दलाई लामा समेत किसी भी अवतारी लामा के पुनर्जन्म को मान्यता देने का अधिकार केवल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को ही होगा। इस कानून का हवाला देकर चीन आज दुनिया भर में दावा करता फिर रहा है कि वर्तमान दलाई लामा की मृत्यु के बाद अगले अवतार को चुनने का अधिकार केवल कम्युनिस्ट पार्टी को होगा।

चालबाज चीन को लेकर दलाई लामा ने अपने पद को केवल आध्यात्मिक मामलों तक सीमित कर दिया

चीन की इन चालों को भोथरा करने के लिए दलाई लामा ने 2012 में अपने सभी राजनीतिक अधिकार तिब्बत के निर्वाचित सिक्योंग (प्रधानमंत्री) और संसद को देकर अपने पद को केवल आध्यात्मिक मामलों तक सीमित कर दिया। ऐसा करके उन्होंने तिब्बत की निर्वासित सरकार और उसके अधिकारों को अपने जीवनकाल की सीमाओं से मुक्त करके उसे अनंतकाल का जीवन दे दिया है।

सीमा विवाद को घिनौना रूप देकर चीन ने पूरी दुनिया को अपने खिलाफ कर लिया

कोरोना वायरस छोड़कर, पड़ोसी देशों को तंग कर और भारत-चीन सीमा विवाद को एक घिनौना रूप देकर चीन सरकार ने लगभग पूरी दुनिया को अपने खिलाफ कर लिया है। ऐसे में अगर भारत सरकार दलाई लामा को भारत-रत्न से सम्मानित करने का फैसला करती है तो इससे पूरी दुनिया को चीन के खिलाफ लामबंद होने का एक प्रभावशाली प्रतीक भी मिल जाएगा और नई दिल्ली को बीजिंग के आक्रामक तेवरों की धार को कुंद करने का अवसर भी मिलेगा।

( लेखक तिब्बत मामलों के विशेषज्ञ और सेंटर फॉर हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट के चेयरमैन हैं )

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