समान अवसर की राह में रोड़ा सीसैट, आपत्तियों पर विचार करे यूपीएससी

यदि इस देश की सिविल सेवा को समावेशी बनाना है तो सीसैट से जुड़ी समस्याओं का समाधान अनिवार्य है। फिलहाल सीसैट का पेपर पूरी तरह विज्ञान एवं अंग्रेजी वालों के पक्ष में है। इसलिए हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषा माध्यम वाले युवा मुख्य परीक्षा में पहुंच ही नहीं पाते।

By TilakrajEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 08:12 AM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 08:12 AM (IST)
समान अवसर की राह में रोड़ा सीसैट, आपत्तियों पर विचार करे यूपीएससी
सीसैट से संबंधित आपत्तियों पर विचार करे यूपीएससी

डा. विजय अग्रवाल। सीसैट यानी सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट पेपर 2011 में अपने जन्म से ही घोर विवादों से घिरा रहा है, जिसे संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) ‘सामान्य ज्ञान द्वितीय’ कहना पसंद करता है। हालांकि, इस दौरान इसमें दो बदलाव किए गए हैं। आरंभ में इसके प्राप्तांक कुल प्राप्तांकों में जुड़ते थे, लेकिन 2015 से इसे 33 प्रतिशत न्यूनतम स्कोर के साथ केवल क्वालिफाइंग पेपर कर दिया गया। दूसरा यह कि इसके 80 वस्तुनिष्ठ प्रश्नों में भाषा ज्ञान के नाम पर जो सात-आठ प्रश्न अंग्रेजी भाषा पर पूछे जाते थे, उन्हें समाप्त कर दिया गया, लेकिन क्या इन दो सुधारों के बाद बात बन गई? नहीं। इस नए पेपर ने कुछ ऐसा कर दिया है कि कुल प्रशासकों के लगभग तीन-चौथाई पद विज्ञान के तथा लगभग आधे पद इंजीनियर्स के लिए सुरक्षित हो गए हैं। यदि इस देश की सिविल सेवा को समावेशी बनाना है तो इस पेपर से जुड़ी समस्याओं का समाधान अनिवार्य है।

फिलहाल सीसैट का पेपर पूरी तरह विज्ञान एवं अंग्रेजी वालों के पक्ष में है। इसलिए हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषा माध्यम वाले युवा मुख्य परीक्षा में पहुंच ही नहीं पाते। आंकड़े भी इसे सही साबित कर रहे हैं। 2010 में मुख्य परीक्षा में पहुंचने वाले कुल 11,859 प्रतियोगियों में हिंदी माध्यम वाले विद्यार्थी लगभग 4,200 थे। यह संख्या सीसैट के लागू होते ही 2011 में गिरकर कुल 11,230 में से 1,682 रह गई। यह संख्या गिरते-गिरते पिछले साल कुल 11,467 में मात्र 571 हो गई। प्रश्न उठता है कि यदि इस गिरावट के लिए सीसैट जिम्मेदार नहीं है तो इसके लिए जिम्मेदार कारणों की तलाश की जानी चाहिए। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि ये आंकड़े आयोग के ‘सेम प्लेइंग फील्ड’ के समानतामूलक अनिवार्य सिद्धांत की धज्जियां उड़ाते मालूम पड़ रहे हैं।

हालांकि, सीसैट तथा सामान्य अध्ययन के प्रश्न-पत्रों में पूछे जाने वाले सवालों के स्तर के बारे में आयोग कहता है कि ‘उनका उत्तर देने की अपेक्षा एक सामान्य पढ़े-लिखे व्यक्ति से की जाती है’, लेकिन जब आप सीसैट के प्रश्नों को पढ़ेंगे तो वे बाउंसर बाल की तरह लगेंगे। हिंदी भाषा का अनुवाद इतना मशीनी और भ्रष्ट होता है कि हिंदी के अच्छे-अच्छे जानकारों को पसीना आ जाए। ऐसी स्थिति में क्वालिफाइंग 33 प्रतिशत स्कोर करना नाकों चने चबाना हो जाता है। ऐसे में यही निष्कर्ष निकल रहा है कि यह पेपर इंजीनियर्स (गणित) के पक्ष में है। कई ऐसे युवा हैं, जो सामान्य अध्ययन प्रथम में 72 प्रतिशत अंक लेकर आए, लेकिन सीसैट में 31 प्रतिशत पर रुक गए।

ऐसे युवा सैकड़ों नहीं, कई हजारों में होते हैं, जो प्रथम प्रश्न-पत्र में कट आफ मार्क्‍स से 15-15 प्रतिशत अधिक होने के बावजूद मुख्य परीक्षा तक नहीं पहुंच पाते। जबकि ज्ञान का सही परीक्षण करने वाला पेपर यही होता है। न्यूनतम 33 प्रतिशत का स्कोर ही गलत मालूम पड़ता है। पिछले वर्ष अनुसूचित जाति के लिए प्रथम पेपर का कट आफ 34.36 प्रतिशत था। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए यह इससे थोड़ा अधिक 38.76 प्रतिशत रहा। क्या इसके साथ सीसैट के क्वालिफाइंग मार्क्‍स 33 प्रतिशत का कोई तालमेल है? दिव्यांगों के लिए प्रथम प्रश्न-पत्र का कट आफ मार्क्‍स 20.41 प्रतिशत रहा। क्या इनके लिए भी सीसैट का न्यूनतम 33 प्रतिशत रखना न्यायपूर्ण मालूम पड़ता है? मुख्य परीक्षा में सामान्य अंग्रेजी के क्वालिफाइंग मार्क्‍स 25 प्रतिशत और सामान्य भाषा के लिए 30 प्रतिशत हैं। इनमें निगेटिव मार्किग नहीं है। सीसैट में निगेटिव मार्किग होने के बावजूद यह 33 प्रतिशत है। क्यों? मुख्य परीक्षा के निबंध, सामान्य अध्ययन के चार और वैकल्पिक विषयों के दो प्रश्न-पत्रों में न्यूनतम पासिंग मार्क्‍स 10 प्रतिशत रखे गए हैं, जबकि सीसैट में यह 33 प्रतिशत हैं। सामान्य अध्ययन प्रथम प्रश्न-पत्र का 2016 में कट आफ 58 प्रतिशत था, जो पिछले वर्ष घटकर 46.26 प्रतिशत हो गया। यह 12 प्रतिशत की गिरावट है, लेकिन तब भी प्रतियोगी सफल हुए।

जाहिर है न्यूनतम प्राप्तांक प्रश्नों की प्रकृति पर निर्भर होता है। सीसैट में इस तरह के लचीलेपन की कोई गुंजाइश नहीं। सामान्यतया स्कूलों-कालेजों में पासिंग मार्क्‍स 33 प्रतिशत ही होते हैं, लेकिन उनका बहुत निश्चित पाठ्यक्रम होता है और निगेटिव मार्किग भी नहीं होती।

सीसैट गैर अंग्रेजीभाषी युवाओं के मन में जिस तरह आक्रोश का भाव पैदा कर रहा है, उसे देखते हुए इस पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है। इसके लिए कुछ सुझाव हैं। पहला, क्वालिफाइंग मार्क्‍स को वर्तमान 33 प्रतिशत से घटाकर अधिकतम 25 प्रतिशत तक किया जाए, ताकि अन्य विषयों के अच्छे प्रतियोगियों को भी मुख्य परीक्षा में बैठने का अवसर मिल सके। दूसरा, प्रश्नों के स्तर को सामान्य किए जाने की आवश्यकता है। तीसरा, हिंदी-अनुवाद से संबद्ध है। इस भाषा को गूगल से मुक्त कराकर समझने लायक बनाया जाए। चौथा, हो सके तो इस पेपर को ही समाप्त कर दिया जाए।

यदि इसे आवश्यक समझा ही जाता है तो इस तरह के कुछ प्रश्नों को सामान्य ज्ञान प्रथम के प्रश्न-पत्र में रखा जा सकता है। यह व्यवस्था पहले भी थी। इसके परीक्षण के लिए मुख्य परीक्षा का भी उपयोग किया जा सकता है। पहले मुख्य परीक्षा के सामान्य ज्ञान द्वितीय प्रश्न-पत्र के 300 अंकों में 60 अंक इसी से संबद्ध होते थे। इनके अलावा प्रारंभिक परीक्षा में ही सामान्य ज्ञान के द्वितीय पेपर में अन्य विषयों से संबंधित प्रश्नों को शामिल करते हुए कुछ प्रश्न सीसैट के भी रखे जा सकते हैं। अब जब सीसैट पर आपत्तियों पर विचार किया जा रहा है तब यूपीएससी को समझना होगा कि मौजूदा व्यवस्था समान अवसर की राह में बाधक बन रही है।

(लेखक पूर्व प्रशासनिक अधिकारी हैं)

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