कोविड-19 की वैक्‍सीन पर जमकर हो रही सियासत, फ्री वैक्‍सीन दिलवाने का वादा करने की लगी होड़

कोविड-19 की वैक्सीन का जमकर राजनीतिकरण हो रहा है। ऐसा करना राजनीति के नजरिये से तो गलत है ही हमारे सामाजिकबोध के दृष्टिकोण से भी यह एक विकृति होगी। ऐसे में लग रहा है कि इसके लिए जैसे चुनाव का इंतजार करना होगा।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 29 Oct 2020 07:55 AM (IST) Updated:Thu, 29 Oct 2020 07:55 AM (IST)
कोविड-19 की वैक्‍सीन पर जमकर हो रही सियासत, फ्री वैक्‍सीन दिलवाने का वादा करने की लगी होड़
बिहार में कोविड-19 की वैक्‍सीन फ्री में देने का वादा किया गया है।

विजय कपूर। बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणापत्र में फ्री कोरोना वैक्सीन का वादा किया है। हालांकि इसके बाद से अन्य राजनीतिक दलों समेत अनेक राज्यों में इस पर बयानबाजी तेज हो गई है। कई अन्य राज्य सरकारों ने भी इसे फ्री करने की बात कही है। वैसे भी केंद्र सरकार के एक मंत्री द्वारा इस बारे में घोषणा के बाद से उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी जरूरतमंदों को यह वैक्सीन फ्री में दी जाएगी।

आज जब भारत सहित पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है तो ऐसे में वैक्सीन का राजनीतिकरण करना राजनीति के नजरिये से तो गलत है ही, हमारे सामाजिकबोध के दृष्टिकोण से भी यह एक विकृति होगी। वास्तव में वैक्सीन वितरण के संदर्भ में आवश्यकता एक राष्ट्रीय नीति की है, इसलिए इसे एक राज्य के चुनाव से जोड़ देने पर जो हंगामा हुआ, वह स्वाभाविक था। क्योंकि इससे यह संदेश जा रहा था कि मानो वैक्सीन के लिए अन्य राज्यों को अपने यहां चुनाव होने का इंतजार करना होगा? क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है कि मुफ्त वैक्सीन सिर्फ बिहार के निवासियों को मिले, बाकी भारतीयों को नहीं? वैक्सीन वायदा ऐसी पृष्ठभूमि में किया गया है, जब कोविड वैक्सीनडिलीवरी को अप्रमाणित डिजिटल सिस्टम से जोड़ने पर पहले ही चिंताएं व्यक्त की जा रही थीं।

वैसे भी अभी कोविड वैक्सीन आई नहीं है तो फिर इस पर जमकर सियासत क्यों हो रही है? बिहार में वैक्सीन से बढ़त लेने की कोशिश में तमिलनाडु, कर्नाटक और मध्य प्रदेश भी मुफ्त वैक्सीन के रथ पर सवार हो गए हैं। गौरतलब है कि बिहार चुनावों के लिए भाजपा का घोषणापत्र जारी करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जैसे ही बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए कोविड वैक्सीन उपलब्ध होगी, तो बिहार में प्रत्येक व्यक्ति का मुफ्त टीकाकरण किया जाएगा। इस बात की जब चौतरफा आलोचना हुई तो सफाई देनी पड़ी कि सभी कार्यक्रमों की तरह केंद्र मामूली दाम पर राज्यों को वैक्सीन उपलब्ध कराएगा। यह राज्यों को तय करना होगा कि वे वैक्सीन मुफ्त देंगे या कीमत लेकर। स्वास्थ्य चूंकि राज्य का विषय है, इसलिए बिहार भाजपा ने तय किया है कि वह वैक्सीन मुफ्त में देगी।

लेकिन इस सफाई ने विवाद की आग को ठंडा करने के बजाय अधिक भड़का दिया, क्योंकि सवाल उठने लगा कि क्या भाजपा अपने पैसे से वैक्सीन देगी? भाजपा की इस सफाई में सबसे चिंताजनक संकेत यह है कि हर राज्य की वैक्सीन वितरण व्यवस्था अलग व अपनी होगी, यानी इस संदर्भ में कोई राष्ट्रीय नीति या योजना नहीं होगी। राष्ट्रीय योजना के अभाव में कोविड से जंग कमजोर पड़ सकती है। तथ्य यह है कि पहले चरण में अधिकतर लोगों को वैक्सीन नहीं मिलेगी। ऐसे में लोगों को यह विश्वास दिलाने की जरूरत है कि क्रमानुसार उनका भी नंबर आएगा।

आज जरूरत इस बात की है कि केंद्र व राज्य मिलकर टीकाकरण योजना बनाएं, खासकर इस वजह से भी कि प्रत्येक राज्य की अपनी आíथक समस्याएं हैं। देश की अर्थव्यवस्था पहले ही चिंता का विषय है।

महामारी के कारण अर्थव्यवस्था पहले से ही बुरे दौर से गुजर रही है। ऐसे में हम टीकाकरण के मामले में दूसरे देशों से पिछड़ने का खतरा मोल नहीं ले सकते। अन्य देश अपने हितों को अधिकतम साधने के लिए वैक्सीन राष्ट्रवाद की नीति अपनाए हुए हैं। लिहाजा वैक्सीन वितरण जटिल चुनौती है, जिसमें अगर नागरिकों की कठिन समस्याओं के समाधान हेतु लोकलुभावने वादे करते हुए पॉपुलिस्ट दृष्टिकोण अपनाया जाएगा तो चुनौतियां पहले से अधिक जटिल हो जाएंगी।

सरकार की महत्वाकांक्षी योजना यह है कि वैक्सीन वितरण की ठोस व्यवस्था सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी एनडीएचएम यानी नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन को सौंप दिया जाए। पहली नजर में यह बात अच्छी प्रतीत होती है कि एक केंद्रीय एजेंसी, जो नागरिकों के मेडिकल इतिहास का रिकॉर्ड रखती है, वह वैक्सीन वितरण व उसके नतीजों को ट्रैक करने के लिए एकदम सही है। लेकिन इसमें पहली चिंता का विषय यह है कि एनडीएचएम को इसी वर्ष 15 अगस्त को लांच किया गया और वह भी पायलट आधार पर सिर्फ छह केंद्र शासित प्रदेशों में। इसलिए उसे इस समय पूरे देश की जिम्मेदारी देना ठीक नहीं है।

दूसरा यह कि पहले चरण में लगभग 30 करोड़ लोगों के टीकाकरण का अनुमान है, इस वैक्सीन वितरण के विशाल प्रयास में बिना भरोसे वाले आइटी नेटवर्क से अवरोध उत्पन्न हो सकते हैं। इसमें शक नहीं कि पब्लिक हेल्थकेयर में एनडीएचएम उपयोगी हो सकता है। वह डॉक्टरों को रोगियों का मेडिकल इतिहास प्रदान कर सकता है, अनावश्यक रिपीट टेस्ट से बचा सकता है और शोध के लिए डिजिटल हेल्थ डाटा उपलब्ध करा सकता है। लेकिन नवगठित एनडीएचएम, जिसने अभी अपनी उपयोगिता सिद्ध नहीं की है, उसे वैक्सीन वितरण जैसी प्रक्रिया में झोंक देना खतरा भरा हो सकता है।

ध्यान रहे कि कोविड को नियंत्रित करने के लिए टीकाकरण उन क्षेत्रों में भी होना है, जिनमें इंटरनेट कनेक्टिविटी भरोसे के लायक नहीं है। यह सही है कि एनडीएचएम के विशिष्ट आइडी कार्ड को टीकाकरण के लिए आवश्यक नहीं किया गया है, लेकिन टीकाकरण को डाटा एंट्री से जोड़ देना, नेटवर्क व तकनीकी समस्याओं को अनदेखा करना है जो एक तलाशने पर दर्जनों मिल सकती हैं, आधार कार्ड में गलतियां, गरीब नागरिकों को राशन न मिलना आदि सब खराब डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण ही होते हैं। इन्हें दुरुस्त करना होगा। (ईआरसी)

वैक्सीन वितरण के सिलसिले में एक राष्ट्रीय नीति का होना जरूरी है, जिसमें यह स्पष्ट हो कि इसकी कितनी खुराक उपलब्ध होगी और किसको वरीयता एवं सब्सिडी दी जाएगी

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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