महामारी के दौर में बौद्धिक संपदा अधिकारों और टीका मिलने के तरीकों में होगा बदलाव

COVID-19 Vaccination आज अमेरिका ब्रिटेन समेत तमाम विकसित देशों के पास पर्याप्त वैक्सीन हैं जबकि भारत समेत अधिकांश विकासशील देशों में इसका अभाव है। यह असमानता खत्म होनी चाहिए। महामारी की गंभीरता के अनुरूप इसका समाधान निकालना ही चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 12:34 PM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 12:45 PM (IST)
महामारी के दौर में बौद्धिक संपदा अधिकारों और टीका मिलने के तरीकों में होगा बदलाव
वैक्सीन के समान वितरण के लिए वैक्सीन मैत्री जैसे द्विपक्षीय कार्यक्रमों को सफल माना गया है।

सचिन चतुर्वेदी। COVID-19 Vaccination अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और उनके प्रशासन ने भारतीय उम्मीदों के अनुकूल एक व्याहारिक फैसला लेते हुए वर्ष 1995 से चले आ रहे बौद्धिक संपदा अधिकार नियम के संबंध में ऐतिहासिक कदम उठाया है। यह एक ऐसा फैसला है जिस पर पूरी दुनिया उम्मीद लगाए बैठी थी। यह कुछ उसी तरह का कदम है जैसी भूमिका एचआइवी संकट के समय नेल्सल मंडेला ने निभाई थी।

बाइडन प्रशासन के फैसले के बाद गेंद अब विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की ट्रिप्स परिषद की अध्यक्षता कर रहे नार्वे के राजदूत डैगफिन सोरली के पाले में हैं। इस फैसले से बौद्धिक संपदा अधिकारों और सबको टीका मिलने के तरीकों में बदलाव होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने अमेरिका के फार्मास्युटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरर्स (पीएचआरएम) जैसे निजी उद्योग समूहों के हितों की जगह जनहित को चुना है। यह उद्योग समूह प्रमुख रुप से अमेरिकी नीतियों को प्रभावित करते हैं। पीएचआरएम दवा उद्योग मुख्य रूप से वह व्यापार समूह है जो अपने हितों के लिए दबाव बनाने का काम करता है।

बाइडन प्रशासन के इस कदम ने भारत और दक्षिण अफ्रीका के विश्व व्यापार संगठन में उस प्रस्ताव को प्रत्यक्ष समर्थन दिया है, जो कोविड टीकों के लिए बौद्धिक संपदा सुरक्षा की छूट का समर्थन करता है। पेटेंट प्रतिबंध हटाने का मतलब है कि कोई भी कंपनी या सरकार, पेटेंट नियमों के जोखिम के बिना कोविड वैक्सीन का निर्माण कर सकेगी। इसके तहत पेटेंट धारक द्वारा कानूनी चुनौतियों का जोखिम नहीं होगा। भारत और दक्षिण अफ्रीकी नेतृत्व द्वारा दिए गए ऐतिहासिक प्रस्ताव पर दो अक्टूबर 2020 को विश्व व्यापार संगठन की सामान्य परिषद में इस बिंदु पर चर्चा की गई। बाद में इस प्रस्ताव को अफ्रीकी समूह के देशों समेत तमाम अल्प विकसित देशों के समूह (एलडीसी) का भी समर्थन मिला। उम्मीद है कि इसे डब्ल्यूटीओ सदस्यों द्वारा स्वीकार कर लिया जाएगा। इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव के साथ भारत और दक्षिण अफ्रीका ने उस स्थिति को भी रोकने की कोशिश की है जिसमें मेडेकिंस सैंस फ्रंटियर्स (एमएसएफ) ने अपने न्यूमोकोकल वैक्सीन को लेकर फाइजर को चुनौती दी थी। फाइजर के पास पेटेंट होने की वजह से, उसने एसके बायोसाइंस द्वारा वैक्सीन के वैकल्पिक संस्करण के विकास को बाधित कर दिया था, जिसमें एक न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) विकसित की गई थी।

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ने सही कहा है कि महामारी के दौरान वैक्सीन की अफोर्डेबिलिटी और संचय करने की क्षमता ने ‘नैतिक पतन’ को करीब ला दिया है। अमीर देश अपनी पूरी आबादी की तुलना में कई गुना अधिक वैक्सीन सुरक्षित कर चुके हैं। ब्रिटेन के पास अपनी आबादी को तीन बार टीका लगाने के लिए पर्याप्त खुराक है। इसी तरह अमेरिका चार बार अपनी आबादी को कवर कर सकता है और कनाडा के पास भी उसकी आबादी की जरूरत से कहीं ज्यादा वैक्सीन उपलब्ध है। जबकि कई गरीब देशों को वैक्सीन की एक भी डोज नहीं मिली है।

वैक्सीन के समान वितरण के लिए वैक्सीन मैत्री जैसे द्विपक्षीय कार्यक्रमों को सफल माना गया है। हाल ही में स्वीडन सरकार ने कम आय वाले देशों में कोविड वैक्सीन की 10 लाख खुराक देने की घोषणा की है। टीका असमानता को बढ़ाने में सप्लाई चेन में व्यवधान की भी अहम भूमिका है जो लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा रहा है। भारत में यह समझाने के लिए लगातार प्रयास किए गए हैं कि क्यों दूसरों के साथ वैक्सीन साझा करना भारत की सेवा और करुणा की परंपरा का हिस्सा है। हालांकि खुद भारत को ऐसी सोच का फायदा उत्तरी गोलार्ध के कई देशों से नहीं मिला है। ऐसा लगता है कि मानवीय नैतिक मूल्य राष्ट्रवाद के आगे धराशायी हो गए हैं। इस तरह के हालात के बीच ट्रिप्स छूट केवल पहला कदम है। हमें सप्लाई चेन को तुरंत मजबूत करते हुए ज्यादा से ज्यादा जगहों पर वैक्सीन उत्पादन की क्षमता विकसित करने की आवश्यकता है। इसके लिए बड़े पैमाने पर पूंजी की जरूरत है।

टीके का निर्माण अत्यधिक जटिल और उन्नत प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल वाली प्रक्रिया है। इसके लिए विशेष सुविधाओं, कौशल और उन्नत बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है। कच्चे माल तक पहुंच एक और महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे अमेरिका को भी निरंतर आधार पर ध्यान में रखना होगा। हालांकि महत्वपूर्ण यह है कि अब बिना किसी देरी के विश्व व्यापार संगठन को बाइडन प्रशासन के प्रस्ताव को अपनाना चाहिए। डब्ल्यूएचओ द्वारा बनाए गए प्लेटफॉर्म के माध्यम से जहां भी आवश्यक हो प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ इसका पालन किया जाना चाहिए। विश्व व्यापार संगठन के नेतृत्व को यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम, स्विट्जरलैंड और जापान के साथ मिलकर काम करना होगा, जिन्होंने भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव का विरोध किया था। मानवता के हित को देखते हुए डब्ल्यूटीओ और उसके सदस्यों के लिए पेटेंट और उनसे होने वाले मुनाफे की जगह इस समय वैश्विक स्तर पर आम जन के स्वास्थ्य को तरजीह देना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र ने इस संदर्भ में उचित कदम उठाया है जो इस समय नितांत आवश्यक है। महामारी की गंभीरता के अनुरूप इसका समाधान निकालना ही चाहिए।

[महानिदेशक, रिसर्च एंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज]

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