सुधारी जाए स्वास्थ्य बीमा की सेहत, लागू हो ‘वन नेशन वन हेल्थ बीमा पालिसी'

जनस्वास्थ्य बीमा अभी कई विसंगतियों से भरा है। उससे सबक लेकर वन नेशन-वन हेल्थ पालिसी बनाई जाए स्वास्थ्य बीमा में शामिल हो सभी बीमारियों का इलाज। भारत में जनस्वास्थ्य बीमा असल में भयंकर विसंगतियों से भरा मामला है। बुनियादी संकट सरकार की नीतियों में एकरूपता के अभाव का है।

By TilakrajEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 08:28 AM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 08:28 AM (IST)
सुधारी जाए स्वास्थ्य बीमा की सेहत, लागू हो ‘वन नेशन वन हेल्थ बीमा पालिसी'
भारत में जनस्वास्थ्य बीमा असल में भयंकर विसंगतियों से भरा मामला है

डा. अजय खेमरिया। युष्मान भारत योजना के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 16.20 करोड़ भारतीय परिवारों को आयुष्मान बीमा कार्ड जारी किए गए है और अब तक दो करोड़ लोगों का इलाज इस योजना के तहत किया जा चुका है। सरकार ने 24,683 करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि गरीबों के इलाज पर इस मद में खर्च की है। करीब 60 करोड़ नागरिक इन बीमा कार्डों के जरिये बीमित हैं। नि:संदेह आयुष्मान एक बड़ा नीतिगत कदम है, लेकिन कोरोना संक्रमण जैसी आपदाओं ने जनस्वास्थ्य क्षेत्र में तमाम विसंगतियों को रेखांकित किया है। जन स्वास्थ्य बीमा भी एक ऐसा ही मसला है, जो मोदीकेयर (आयुष्मान) जैसी बड़ी योजना के बाद भी हमारे नीति निर्धारकों से विमर्श का आग्रह करता है। कोविड की बात करें तो आयुष्मान योजना के तहत 20.32 लाख नमूनों की जांच की गई और 7.08 लाख मरीज अस्पताल में भर्ती हुए, जबकि कुल संक्रमित मरीजों का आंकड़ा लगभग 3.5 करोड़ है और मौतों की संख्या 4.5 लाख। यानी महज दो फीसद कोरोना पीड़ितों के लिए आयुष्मान योजना में इलाज मिला। सवाल है कि देश के 23 हजार संबद्ध अस्पतालों वाली इस योजना के तहत कोरोना का इलाज समुचित संख्या में क्यों नही किया जा सका? इसके जवाब मुश्किल नहीं हैं। बुनियादी संकट सरकार की नीतियों में एकरूपता के अभाव का है।

भारत में जनस्वास्थ्य बीमा असल में भयंकर विसंगतियों से भरा मामला है। कोरोना के सबक के रूप में आज आवश्यकता है ‘वन नेशन वन हेल्थ बीमा पालिसी।’ सरकार को हर आदमी का बीमा कराने की अपनी जबाबदेही पूरी करनी होगी। मोदीकेयर जैसा बड़ा कदम उठाने वाली सरकार थोड़ा प्रयास कर प्रत्येक भारतीय को इंग्लैंड, अमेरिका, ब्राजील और अन्य विकसित देशों की तरह प्रामाणिक स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध करा सकती है। करीब 60 करोड़ नागरिक तो आयुष्मान योजना में कवर किए ही जा चुके हैं। वहीं 13 करोड़ लोग ईएसआइ के दायरे में हैं, जिसे बढ़ाकर 20 करोड़ किए जाने पर श्रम मंत्रलय आगे बढ़कर काम कर रहा है। केंद्र सरकार के कार्मिकों के लिए सीजीएचएस का प्रविधान है। राज्य सरकारें भी अपने कर्मचारियों के लिए कुछ न कुछ स्वास्थ्य बीमा का प्रविधान करती ही हैं। यहां आवश्यकता है सभी योजनाओं को एकीकृत करके लागू करने की।

शेष आबादी जो इन योजनाओं के दायरे से बाहर है, के लिए भी कुछ किया जाए। इसमें देश का मध्यम एवं निम्न मध्यमवर्गीय तबका शामिल है। बेहतर होगा सरकार देश में अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा का कानून लेकर आए और एक ही योजना में सभी नागरिकों को शामिल किया जाए। जो सक्षम हैं, उनके लिए प्रीमियम का प्रविधान हो। आयुष्मान, ईएसआइ की तरह सभी केंद्रीय एवं राज्य सरकारों के कर्मचारियों को अनिवार्य बीमा उपलब्ध कराया जा सकता है। उनके वेतन से प्रीमियम की व्यवस्था भी आसान है। इसी तरह सभी निजी नियोजकों के लिए अपने कार्मिकों से राष्ट्रव्यापी एकीकृत बीमा का अनुपालन अनिवार्य किया जा सकता है।

आज से 20 साल पहले निजी क्षेत्र के लिए खोले जाने के बाबजूद स्वास्थ्य बीमा आम आदमी के लिए हितकर साबित नही हुआ। इसके मूल में एकरूपता का अभाव है। मसलन निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों में प्रीमियम की समरूपता न होना। आयुष्मान 918 बीमारी पैकेज का प्रविधान करता है, मगर डेंगू, चिकनगुनिया और जापानी बुखार जैसी कई बीमारियों के लिए आयुष्मान कोई व्यवस्था नहीं करता। कैंसर जैसी बीमारी के लिए लोगों को अपनी हेल्थ पालिसी में कैंसर टाप अप कराने पड़ते हैं।

भारतीय बीमा क्षेत्र मरीज के अस्पताल में भर्ती होने यानी उसके गंभीर हालत पर ही प्रतिपूर्ति की प्रक्रिया आरंभ करता है। यदि कोई बीमित व्यक्ति ओपीडी में जाकर जांच या उपचार कराता है तो उसके लिए बीमा का कोई लाभ नहीं। भारत में 572 मेडिकल कालेज हैं, लेकिन निजी कालेज आयुष्मान, सीजीएचएस या ईएसआइ के बीमाधारकों का इलाज नहीं करते। इसकी वजह जांच, उपचार और सर्जरी की दरों में एकरूपता न होना है। उदाहरण के लिए अपेंडिक्स आपरेशन में ईएसआइ तीन हजार रुपये की व्यवस्था करता है, लेकिन निजी अस्पतालों में इसका खर्चा 10 हजार से अधिक आता है। वस्तुत:13 करोड़ लोगों के कवरेज वाले ईएसआइ के चंद अस्पतालों को छोड़कर कहीं भी एमआरआइ, डायलिसिस और सीटी स्कैन जैसी सुविधाएं नही हैं। स्पष्ट है कि भारतीय जन स्वास्थ्य बीमा समावेशी नहीं है और न ही प्रामाणिकता से काम कर पा रहा है।

सरकार ने आयुष्मान भारत पर बड़ी रकम खर्च की है, मगर उसमें विसंगतियां हैं। सबसे पहले ओपीडी और भर्ती के प्रविधान को समाप्त करना होगा। सार्वभौमिक बीमा की अवधारणा के अनुरूप सभी बीमारियों के इलाज को बीमा का हिस्सा बनाना होगा। ब्रिटिश नेशनल हेल्थ सर्विस में यही है। इससे बीमारियों को बार-बार अधिसूचित करने का झंझट नहीं रहेगा। साथ ही देश के हर स्वास्थ्य संस्थान को इसके अनिवार्य दायरे में लाना चाहिए ताकि बीमित व्यक्ति को बीमारी की स्थिति में उपचार के लिए अधिसूचित अस्पताल के लिए न भटकना पड़े।

सार्वभौम बीमा कवरेज के तहत उपचार की दरें व्यावहारिक और एक समान बनाई जानी चाहिए, जो एक नियत समय पर पुनरीक्षित भी होती रहें। बीमा को लक्ष्य केंद्रित बनाने के लिए सरकार को यह कदम भी उठाना चाहिए कि सभी मेडिकल कालेजों की पीजी सीट्स कालेज की जगह उस क्षेत्र की पीएचसी, सीएचसी या वेलनेस सेंटर से अटैच कर दी जाएं। उनके स्नातकोत्तर विद्यार्थी इन सेंटर्स पर काम करें और केवल थियरी के लिए कालेज जाएं। इससे ग्रामीण इलाकों में हर वक्त पेशेवर चिकित्सक उपलब्ध रहेंगे, जो मोदीकेयर जैसी पहल को परिणामोन्मुखी बनाने में सहायक होंगे।

(लेखक लोक नीति विश्लेषक हैं)

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