कोरोना ने बदला शिक्षा देने का तरीका: कोरोना तो चला जाएगा, लेकिन शिक्षा का स्वरूप पहले जैसा नहीं रह जाएगा

देखना है कि नई शिक्षा नीति का मसौदा कार्य रूप में किस तरह व्यावहारिक धरातल पर उतरता है। सबसे जरूरी है कि शिक्षा की आधार संरचना में निवेश किया जाए। कोरोना जाएगा पर शिक्षा का स्वरूप पहले जैसा नहीं रह जाएगा और उस स्थिति के लिए तैयारी जरूरी है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 07 Jul 2021 04:54 AM (IST) Updated:Wed, 07 Jul 2021 04:54 AM (IST)
कोरोना ने बदला शिक्षा देने का तरीका: कोरोना तो चला जाएगा, लेकिन शिक्षा का स्वरूप पहले जैसा नहीं रह जाएगा
आनलाइन शिक्षा से जुड़े लोगों की बदलती आदतें अब तकनीकी व्यवस्था में उलझ रही हैं।

[ गिरीश्वर मिश्र ]: कोविड महामारी का सबसे गहन प्रभाव देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन को लेकर दिख रहा है, जो मानव संसाधन के निर्माण के साथ ही युवा भारत की सामथ्र्य से भी जुड़ा हुआ है। महामारी के चलते स्वास्थ्य रक्षा की दृष्टि से तात्कालिक कदम के रूप में शैक्षिक संस्थानों को प्रत्यक्ष भौतिक संचालन से मना कर दिया गया, फिर कक्षा की पढ़ाई और परीक्षाएं जहां भी संभव थीं, आभासी (वर्चुअल) माध्यम से शुरू की गईं। करीब डेढ़ साल से यह हलचल जारी है। इसमें संदेह नहीं कि बौद्धिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास के लिए शिक्षा केंद्र में विद्यार्थी की भौतिक उपस्थिति महत्वपूर्ण होती है, पर महामारी के कारण विद्यालय की अवधारणा ही बदल गई। तमाम विद्यार्थी आनलाइन प्रवेश, आनलाइन शिक्षा और आनलाइन परीक्षा को बाध्य हुए। शिक्षा केंद्र विद्यार्थी और शिक्षक से भौतिक रूप से दूर तो हुए ही, उनके विकल्प में मोबाइल या लैपटाप की स्क्रीन पर लगातार घंटों बैठने से परेशानियां भी होने लगीं। सच तो यह है कि शिक्षा पाने का प्रेरणादायी अनुभव उबाऊ होने लगा।

आनलाइन कक्षा की प्रकृति में अध्यापक-छात्र के बीच अंत:क्रिया अस्वाभाविक और असहज

दरअसल आभासी माध्यम पर आनलाइन कक्षा की प्रकृति में अध्यापक-छात्र के बीच होने वाली अंत:क्रिया अस्वाभाविक और असहज होती है। उसमें विद्यार्थी की सक्रिय भागीदारी और शिक्षक द्वारा दिए जाने वाले फीडबैक कृत्रिम होते हैं। लिहाजा विद्यार्थी की प्रतिभा को प्रदर्शित करने के अवसर कम होते जाते हैं। वहीं वास्तविक परिस्थितियों में शिक्षक के समक्ष विद्यार्थी की उपस्थिति होने में अनुशासन के अभ्यास का भी अवसर मिलता है। इससे एक सामाजिक परिस्थिति बनती है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नैतिकता का पाठ पढ़ाती है। इसके उलट आनलाइन कक्षा में कोताही की गुंजाइश अधिक हो गई है। इन सबसे शिक्षा की स्वीकृत परिभाषा, ढांचा और प्रक्रिया ही बदल गई। बहरहाल यह तकनीकी बदलाव सिर्फ डिलीवरी के तरीके से ही नहीं जुड़ा है, बल्कि दुनिया और खुद से जुड़ने और अनुभव करने के नजरिये से भी जुड़ा हुआ है। सीखने की प्रक्रिया को कंप्यूटर के की-बोर्ड को आपरेट करने तक सीमित करना विद्यार्थियों को सीखने और समझने की शैलियों में विविधता की भी अनदेखी कर रहा है। आज एक बंधा-बंधाया तकनीक-नियंत्रित ढांचा उनके ऊपर थोप दिया गया है। उसी में बंधकर ही उनका सीखना-पढ़ना हो रहा है। ऐसा करने से उनकी कल्पनाशीलता, प्रयोग और सृजन के अवसर पर एक तरह से ग्रहण लग गया है। इन सबके बीच सूचना ही ज्ञान और अनुभव का पर्याय बनती जा रही है। हालांकि ऐसे आशावादी लोग भी हैं, जो अब यह विश्वास करने लगे हैं कि भविष्य में सब कुछ आनलाइन हो जाएगा। वे उसे ही एकमात्र विकल्प मान बैठे हैं। देखा जाए तो यह कल्पना दूर की कौड़ी है। इस तरह की सोच शिक्षा को उसके मुख्य प्रयोजन से दूर ले जाने वाली है। दूसरी ओर कुछ यथास्थितिवादी शिक्षाविद् भी हैं, जो शिक्षा के पारंपरिक ढांचे को ही ठीक समझते हैं। हालांकि शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वालों में अधिकांश लोग आनलाइन और आफलाइन, दोनों तरीकों के मिले-जुले रूप को ही बेहतर मानते हैं। वे बदलते वैश्विक परिदृश्य में नई तकनीकों का लाभ लेते हुए शिक्षा की संवादमूलक मानवीय प्रक्रिया को स्वाभाविक और मानवता का हितैषी मानते हैं।

आनलाइन शिक्षा से जुड़े लोगों की बदलती आदतें अब तकनीकी व्यवस्था में उलझ रही

आज की आनलाइन शिक्षा से जुड़े लोगों की बदलती आदतें अब तकनीकी व्यवस्था में उलझ रही हैं। नतीजा यह हो रहा है कि अब ध्यान देने, सोचने और आत्मसात करने की जगह डाउनलोड और अपलोड करने, गूगल सर्च करने, स्क्रीन शेयर करने और पीपीटी तैयार करने जैसे कंप्यूटरी कौशल के अभ्यास और प्रबंधन के रूटीन को स्थापित करने में ज्यादा समय बीत रहा है। इंटरनेट से जुड़ते हुए देश और काल, दोनों का अनुभव बदल जाता है। साइबर स्पेस में भ्रमण अद्भुत होता है। सूचना का प्रवाह जिस वेग से बढ़ रहा है वह चौंकाने वाला है। इसमें जानकारियां तत्काल बासी हो जा रही हैं। बुद्धि और विवेक की जगह तकनीक की बढ़ती प्रतिष्ठा का चरम कृत्रिम बुद्धि में प्रतिफलित हो रहा है। वस्तुत: तकनीक मानव मूल्यों की जगह नहीं ले सकती। सब कुछ मशीन के हाथों सुपुर्द करना दुर्भाग्यपूर्ण होगा।

विद्यार्थियों की शिक्षा समस्या उनकी आर्थिक असुरक्षा से जुड़ी हुई है

यह साफ जाहिर है कि कोविड महामारी की मार समाज के विभिन्न वर्गों पर एक जैसी नहीं पड़ी है। आनलाइन शिक्षा के जरूरी संसाधनों की व्यवस्था के लिए आर्थिक साधन सबके पास न होने से उस तक पहुंच एक ऐसे डिजिटल डिवाइड को जन्म दे रही है, जो संपन्न परिवार से आने वाले विद्यार्थियों और कमजोर वर्ग के विद्यार्थियों के बीच की खाई को और ज्यादा बढ़ाने वाली है। हम यह न भूलें कि वंचित और कमजोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा समस्या उनकी आर्थिक असुरक्षा से जुड़ी हुई है, जिसका प्रभावी नीतिगत समाधान अभी तक नहीं हो सका है। आनलाइन पढ़ाई की उपलब्धता की स्थिति में पूरे देश में बड़ी विविधता है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

नई शिक्षा नीति भी आनलाइन पाठ्यक्रम के उपयोग को बढ़ावा देती है

हालांकि नई शिक्षा नीति भी आनलाइन पाठ्यक्रम के उपयोग को बढ़ावा देती है। इससे विद्यार्थी अपनी रुचि के कुछ पाठ्यक्रमों की दूसरी संस्थाओं से भी आनलाइन पढ़ाई कर सकेगा। इस प्रस्तावित लचीली शिक्षा व्यवस्था में छात्र-छात्राओं को अपनी रुचि, प्रतिभा और सृजनात्मकता को निखारने का अवसर मिल सकेगा। इस तरह की पढ़ाई से मिलने वाले क्रेडिट स्वीकार्य होंगे और डिग्री की पात्रता से जुड़ जाएंगे। देखना है कि नई शिक्षा नीति का मसौदा कार्य रूप में किस तरह व्यावहारिक धरातल पर उतरता है। इसके लिए सबसे जरूरी है कि शिक्षा की आधार संरचना में निवेश किया जाए। कोरोना जाएगा, पर उसके बाद शिक्षा का स्वरूप पहले जैसा नहीं रह जाएगा और उस स्थिति के लिए तैयारी जरूरी है।

( लेखक पूर्व कुलपति एवं पूर्व प्रोफेसर हैं )

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