Ambedkar Jayanti 2021: राजनीतिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले संविधान शिल्पी डॉ. आंबेडकर एक व्यक्ति नहीं, वरन एक संकल्प थे

समाज सुधारक राजनीतिज्ञ दार्शनिक लेखक चिंतक और संविधान शिल्पी डॉ. भीमराव आंबेडकर की विरासत को आगे बढ़ाने का कार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने किया है। यह डॉ. आंबेडकर ही थे जिन्होंने देश में लेबर वेलफेयर कमेटी के गठन की शुरुआत की। बाबासाहब को उनकी जयंती पर शत-शत नमन।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 14 Apr 2021 09:40 AM (IST) Updated:Wed, 14 Apr 2021 09:46 AM (IST)
Ambedkar Jayanti 2021: राजनीतिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले संविधान शिल्पी डॉ. आंबेडकर एक व्यक्ति नहीं, वरन एक संकल्प थे
समाज सुधारक, चिंतक और संविधान शिल्पी बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर। फाइल

रामदास आठवले। देश के बहुसंख्यक समाज के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले संविधान शिल्पी बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर एक व्यक्ति नहीं, वरन एक संकल्प थे। वह अपने आप में अनूठी संस्था थे। वह राजनीतिक और सामाजिक दोनों तरह के जीवन में लोकतंत्र के हिमायती रहे। ऐसे विराट पुरुष, समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, लेखक, चिंतक डॉ. भीमराव आंबेडकर की विरासत को अगर किसी सरकार ने आगे बढ़ाने का कार्य किया तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की एनडीए सरकार है।

यूं तो डॉ. आंबेडकर की विचारधारा मानने वाले लोग बहुत पहले से ही संविधान दिवस मनाते रहे, पर पहली बार वर्ष 2015 में मोदी सरकार ने उनकी 125वीं जयंती वर्ष के रूप में 26 नवंबर, 2015 से संविधान दिवस मनाने की पहल की। बाबासाहब ने दिल्ली के जिस 26, अलीपुर रोड हाउस में छह दिसंबर, 1956 को आखिरी सांस ली थी, वहां नरेंद्र मोदी सरकार ने ही राष्ट्रीय स्मारक बनवाया। प्रधानमंत्री मोदी ने दिसंबर 2017 में आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर राष्ट्र को समíपत किया था। यह सेंटर समावेशी विकास एवं संबंधित सामाजिक-आíथक मामलों के लिए एक थिंक-टैंक के रूप में कार्य कर रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में डॉ. आंबेडकर के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण स्थानों को तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। डॉ. आंबेडकर से जुड़े पांच प्रमुख स्थानों को मोदी सरकार ‘पंचतीर्थ’ बना रही है-चाहे दिल्ली में अलीपुर में जहां डॉ. आंबेडकर का निधन हुआ, वहां राष्ट्रीय स्मारक बनाने की बात हो या फिर मध्य प्रदेश के महू स्थित जन्मस्थल में सुविधाओं को बढ़ाने की बात, मुंबई में इंदु मिल, नागपुर में दीक्षा भूमि और लंदन में उनके मकान को खरीदकर मेमोरियल का रूप देने की पहल हो। केंद्र सरकार ने डिजिटल लेन-लेन को बढ़ावा देने के लिए भीम एप बनाकर भी डॉ. आंबेडकर को सम्मान दिया। मोदी सरकार की सामाजिक सहायता की योजनाएं भी डॉ. आंबेडकर की सोच से ही प्रेरित हैं। जनधन, उज्ज्वला योजना, स्वच्छ भारत मिशन, बीमा योजना, प्रधानमंत्री आवास, सौभाग्य, आयुष्मान भारत आदि योजनाएं उनकी बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की भावना से संचालित हैं। इन योजनाओं से अनुसूचित वर्ग की गरीब आबादी के जीवन में परिवर्तन आया है।

दलितों की शिक्षा पर बाबासाहब जोर देते रहे। धनाभाव में कोई छात्र शिक्षा से वंचित न रहे, मोदी सरकार इसका ख्याल रख रही है। केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए पोस्ट मैटिक छात्रवृत्ति योजना के बजट को बढ़ाया है। पिछले वित्तीय वर्ष में पोस्ट मैटिक छात्रवृत्ति योजना के लिए हमारे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रलय ने 4,000 करोड़ रुपये जारी किए हैं। केंद्र सरकार ने वर्ष 2025-26 तक इस मद में 35,534 करोड़ रुपये जारी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। केंद्र सरकार इस दौरान अनुसूचित वर्ग के चार करोड़ युवाओं को लाभान्वित करने के मिशन के साथ काम कर रही है।

14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू में एक गरीब हिंदू महार जाति के परिवार में जन्मे डॉ. आंबेडकर का बचपन भले कठिनाई में बीता हो, लेकिन उन्होंने अपनी सोच और व्यक्तित्व पर इसका विपरीत असर नहीं पड़ने दिया। डॉ. आंबेडकर ने हमेशा सकारात्मक सोच रखी। वह जीवन में संघर्ष नहीं, समन्वय पर जोर देते रहे। आज कुछ राजनीतिक दल सियासी फायदे के लिए दलितों को अलगाववाद के रास्ते पर धकेलना चाहते हैं। ऐसे दलों से दलितों को सावधान रहना होगा। देश में दलित उद्धार डॉ. आंबेडकर के बताए रास्ते पर चलने से ही होगा, न कि अलगाववाद के रास्ते पर आगे बढ़ने से।

डॉ. आंबेडकर का जीवन सामाजिक न्याय दिलाने के लिए संघर्षो से भरा रहा। 1927 में उन्होंने छुआछूत के खिलाफ जंग छेड़ी। पेयजल के सार्वजनिक संसाधनों को उस वक्त अछूत माने जाने वाले वर्ग के लिए भी खुलवाया। मंदिरों में अछूतों को प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिए भी वे संघर्षरत रहे। डॉ. आंबेडकर ने देश के संवैधानिक व्यवस्था में अहम भूमिका निभाई। आजाद भारत के बाद बनी नेहरू सरकार में वह पहले कानून मंत्री रहे। स्वतंत्र भारत के नए संविधान के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया। बाबासाहब सिद्धांतों और उसूलों के पक्के थे। यही वजह रही कि समान नागरिक संहिता के पक्षधर रहे बाबासाहब ने वर्ष 1951 में हिंदू कोड बिल के मसौदे को संसद में रोके जाने से नाराज होकर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। साफ है बाबासाहब सच्चे भारत रत्न थे।

डॉ. आंबेडकर को ‘द आíकटेक्ट ऑफ लेबर रिफॉर्म्स’ कहना भी गलत न होगा, क्योंकि उन्होंने देश में बड़े श्रम सुधारों की नींव रखी। दरअसल बाबासाहब वर्ष 1942 से 1946 तक वायसराय की कार्यकारी परिषद यानी ब्रिटिश-भारत कैबिनेट में श्रम मंत्री रहे। तब उन्होंने कई श्रम सुधारों को अमलीजामा पहनाया। ब्रिटिश-भारत सरकार की कैबिनेट का सदस्य होने के कारण बाबासाहब को देश का पहला श्रम मंत्री भी कह सकते हैं। यह बाबासाहब ही थे, जिन्होंने खदानों के अंदर असुरक्षित माहौल में महिलाओं के काम करने पर प्रतिबंध लगाया। पहले महिलाएं कोयले की खदानों के अंदर भी काम करती थीं। बाबासाहब ने कोयला खदानों के अंदर महिलाओं के काम को प्रतिबंधित करने के लिए कानून बनाया। जिसके बाद महिलाओं के लिए खदानों के बाहर काम करने की सुविधा हुई। इतना ही नहीं, उन्होंने देश में महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश का कानून भी ड्राफ्ट किया था। 

[आरपीआइ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं भारत सरकार में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री]

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