भारत को नीचा दिखाने की साजिश, वी-डेम की यह हास्यास्पद एवं भ्रामक रिपोर्ट तिरस्कार की है हकदार

पिछले लोकसभा चुनाव के विशेष संदर्भ मे देश की चुनावी प्रक्रिया को कठघरे में खड़ा करना इस रिपोर्ट का सबसे आपत्तिजनक पहलू है। देश के संविधान और चुनावी इतिहास का सम्मान करने वाले प्रत्येक भारतीय को कई कारणों के आधार पर इस निष्कर्ष की कड़ी निंदा करनी चाहिए।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Thu, 08 Apr 2021 10:37 PM (IST) Updated:Thu, 08 Apr 2021 10:59 PM (IST)
भारत को नीचा दिखाने की साजिश, वी-डेम की यह हास्यास्पद एवं भ्रामक रिपोर्ट तिरस्कार की है हकदार
अजीबोगरीब दावा करती है वी-डेम की रिपोर्ट

[ए. सूर्यप्रकाश]। यदा-कदा कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारत के खिलाफ विमर्श खड़ा करने का काम करती हैं। बीते दिनों यही कुत्सित प्रयास किया स्वीडन की वी-डेम नामक संस्था ने। गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय से संबद्ध यह संस्था हर साल एक डेमोक्रेसी रिपोर्ट जारी करती है। वर्ष 2021 की अपनी रिपोर्ट में उसने लोकतंत्र को लेकर भारत की रैंकिंग घटा दी। वी-डेम के अनुसार 2010 में भारत एक चुनावी लोकतंत्र था, जो अब चुनावी अधिनायकवाद में तब्दील हो गया है। इस रिपोर्ट में भारत पर कुछ अतिरंजित आरोप लगाए गए। वह देश में चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहती है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत की धज्जियां उड़ीं, जिससे देश चुनावी अधिनायकवाद की गर्त में चला गया। वी-डेम के अनुसार भारत अब पाकिस्तान जितना ही निरंकुश है, जबकि पाकिस्तान एक इस्लामिक गणतंत्र है, जहां कोई गैर- मुस्लिम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे पदों पर नहीं पहुंच सकता। इतना ही नहीं, इस रिपोर्ट में भारत को बांग्लादेश से भी खराब बताया गया है।

पिछले लोकसभा चुनाव के विशेष संदर्भ मे देश की चुनावी प्रक्रिया को कठघरे में खड़ा करना इस रिपोर्ट का सबसे आपत्तिजनक पहलू है। देश के संविधान और चुनावी इतिहास का सम्मान करने वाले प्रत्येक भारतीय को कई कारणों के आधार पर इस निष्कर्ष की कड़ी निंदा करनी चाहिए। वी-डेम को लगता है कि भारत में केवल एक ही दल है और अन्य दल कोई मायने नहीं रखते। यह बिल्कुल हास्यास्पद है, क्योंकि देश में भाजपा के अलावा करीब 44 राजनीतिक दल सत्ता में भागीदार हैं। तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, तेलंगाना राष्ट्र समिति, बीजू जनता दल और वाइएसआर कांग्रेस ने गत लोकसभा चुनाव के दौरान अपने-अपने राज्यों की अधिकांश सीटों पर जीत हासिल की थी।

2014 के आम चुनाव के बाद कई राज्यो का जनादेश भाजपा के खिलाफ गया

वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अगले ही साल हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीती थीं। वामपंथी केरल में जीते। बंगाल में ममता की तृणमूल को भारी जीत हासिल हुई। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का परचम लहराया। कई राज्यों का जनादेश भाजपा के खिलाफ गया। ऐसे में जब कोई हमारी चुनावी प्रक्रिया पर प्रश्न उठाए तो भारतीयों को ऐसा करने वालों की ईमानदारी पर सवाल अवश्य उठाने चाहिए।

अजीबोगरीब दावा करती है वी-डेम की रिपोर्ट 

वी-डेम की रिपोर्ट यह अजीबोगरीब दावा भी करती है कि भारतीय नागरिकों के हाथ से ‘आजादी’ फिसल रही है। फ्रीडम हाउस नामक एक अमेरिकी संस्था की रिपोर्ट ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड’ भी उसके सुर से सुर मिलाती है। उसके अनुसार भारत में राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता का क्षरण हो रहा है। यदि ऐसा है तो भाजपा विरोधी दर्जनों पार्टियां, जिनमें मुस्लिम और ईसाई केंद्रित राजनीतिक दल भी शामिल हैं, को चुनावों में इतनी सीटें कैसे मिल रही हैं? राजनीतिक बंदिशों से यह कैसे संभव होता? अगर आपको ऐसे दावों के खोखले होने के सुबूत चाहिए तो दिल्ली सीमा से सटे गाजीपुर जाइए, जहां कुछ किसान महीनों से विरोध-प्रदर्शन जारी रख एक बड़े हाईवे को बाधित किए हुए हैं।

वी-डेम ने नॉर्वे को दिया तीसरा स्थान 

पिछले वर्ष की तरह इस साल भी डेनमार्क, स्वीडन और नॉर्वे वी-डेम के लोकतंत्र सूचकांक में शीर्ष पर विराजमान हैं। ऐसे में जरा इन देशों के संविधान की पड़ताल कर भारत के साथ उनकी तुलना की जाए। डेनमार्क का संविधान चर्च को महत्ता देते हुए सुनिश्चित करता है कि राज्य उसे हरसंभव सहयोग दे। यानी यह राज्य का दायित्व है कि वह डेनमार्क में चर्च की वित्तीय और अन्य प्रकार से मदद करे। इस सूची में स्वीडन दूसरे पायदान पर है। यहां का संविधान राजा द्वारा सदैव ईसाई मत को प्रोत्साहित करने की वकालत करता है। यहां तक कि राजकुमार और राजकुमारी को विवाह के लिए सरकारी अनुमति आवश्यक होती है। वी-डेम ने नॉर्वे को तीसरा स्थान दिया है। यहां का संविधान भी कहता है कि राजा को धार्मिक मत को सदैव वरीयता देनी होगी।

हास्यास्पद है वी-डेम की यह रिपोर्ट 

इनके उलट भारत, जो प्राचीन सभ्यता से ही पंथनिरपेक्ष रहा है और जिसके संविधान की प्रस्तावना में ही इसका उल्लेख है, वह इस संस्था की दृष्टि में लोकतंत्र ही नहीं है और उसे 97वें स्थान पर रखा गया है। पंथनिरपेक्षता के अतिरिक्त धर्म एवं राज्य के बीच विभाजन और विधि के समक्ष समता जैसे सिद्धांत भी उपरोक्त तीनों देशों के संविधान से नदारद हैं। वे भारत की तरह गणतंत्र भी नहीं, जहां राष्ट्रप्रमुख निर्वाचित होता है। अद्र्ध लोकतंत्र सेनेगल, ईसाई सिद्धांतों को आधार मानने वाला पापुआ न्यू गिनी और रोमन कैथोलिक धर्म को संवैधानिक रूप से सहयोग देने वाले अर्जेंटीना जैसे देश इस सूची में भारत से ऊपर हैं। इस रिपोर्ट के हास्यास्पद होने की कल्पना इसी तथ्य से की जा सकती है कि इसमें उस मालदीव को भारत से ऊपर स्थान दिया गया है, जिसका संविधान कहता है कि केवल मुस्लिम ही देश के नागरिक बन सकते हैं।

बुर्किनाफासो में अभी भी जारी है दास प्रथा

वी-डेम और फ्रीडम हाउस की तरह फ्रांसीसी एनजीओ रिपोर्टर्स विदाउट फ्रीडम (आरएसएफ) ने प्रेस की स्वतंत्रता के पैमाने पर अफ्रीकी राष्ट्र बुर्किनाफासो को 36वें स्थान पर रखा है, जबकि भारत को 142वां स्थान दिया है। यह तब है जब अमेरिकी विदेश विभाग यह कह चुका है कि बुर्किनाफासो में अभी भी दास प्रथा जारी है, जिसके सबसे बड़े शिकार वहां के बच्चे होते हैं।

भारत से कथित बेहतर इन देशों के संविधानों की पड़ताल कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि एक आदर्श लोकतंत्र में आठ आधारभूत अवयव अवश्य होने चाहिए अभिव्यक्ति एवं अंत:करण की स्वतंत्रता से जुड़ी अक्षुण्ण प्रतिबद्धता, पंथनिरपेक्षता को लेकर असंदिग्ध प्रतिबद्धता, धर्म एवं राज्य में पृथक्करण, सरकार का गणतांत्रिक स्वरूप, विधि के समक्ष समता का अधिकार (जो भारतीय संविधान के अनु. 14 में है), प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार (जो हमें अनु. 21 के तहत प्राप्त है), लैंगिक समानता और सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार। भारत में ये सभी आठ तत्व विद्यमान हैं, परंतु भारत से ऊपर रखे गए तमाम कथित लोकतंत्रों में इनका अभाव है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे गतिशील एवं जीवंत लोकतंत्र है। यह विश्व का सबसे विविधता भरा और उदार देश भी है। ऐसे में भारतीय नागरिकों के लिए आवश्यक है कि वे ऐसी हास्यास्पद एवं भ्रामक रपटों का उसी भाव से तिरस्कार करें, जिसकी वे हकदार हैं।

(लेखक लोकतांत्रिक विषयों के जानकार एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं) 

[लेखक के निजी विचार हैं]

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