कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति और अंध मोदी विरोध भारतीय लोकतंत्र के लिए हितकारी नहीं
कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति और अंध मोदी विरोध के कारण वह सफल नहीं हुई। यदि कांग्रेस ने अपना रुख-रवैया नहीं बदला तो वह खुद के साथ बाकी विपक्ष को भी कमजोर करेगी और यह भारतीय लोकतंत्र के लिए हितकारी नहीं होगा।
[ संजय गुप्त ]: कोविड महामारी के बीच में संसद के अल्पकालीन मानसून सत्र के दौरान सरकार ने अप्रत्याशित रूप से कहीं अधिक विधेयक पारित कराकर संसदीय कामकाज का एक नया रिकॉर्ड बनाया। इन विधेयकों के जरिये कृषि और श्रम सुधारों का रास्ता साफ हुआ, लेकिन इस सत्र को इसके लिए भी जाना जाएगा कि इस दौरान राज्यसभा में हद से ज्यादा हंगामा हुआ और उसके चलते आठ विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया। इन सांसदों का निलंबन इसलिए हुआ, क्योंकि उन्होंने उप सभापति से अभद्रता की, नियम पुस्तिका फाड़ी, माइक तोड़े और मेज पर चढ़कर नारेबाजी भी की। उन्होंने निलंबन के आदेश को मानने से भी इन्कार किया और फिर खुद को पीड़ित बताने के लिए संसद परिसर में धरने पर बैठ गए। सांसदों के अमर्यादित आचरण की निंदा सभी को करनी चाहिए, अन्यथा सदन में अभद्र व्यवहार करने वालों को बल ही मिलेगा।
कांग्रेस के यू टर्न का मकसद किसानों को बरगलाकर राजनीतिक रोटियां सेंकना
समय से पहले खत्म हुए संसद के इस सत्र में कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने कृषि सुधार विधेयकों पर सबसे अधिक आपत्ति जताई। यह आपत्ति इसलिए विचित्र है, क्योंकि एक समय खुद कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र के जरिये वही करने का वादा किया था, जो मोदी सरकार ने किया। इस यू टर्न का मकसद किसानों को बरगलाकर राजनीतिक रोटियां सेंकना है।
पंजाब में कांग्रेस ने कृषि विधेयकों को इतना तूल दिया कि शिरोमणि अकाली दल दबाव में आ गया
पंजाब में कांग्रेस ने इस मसले को इतना तूल दिया कि भाजपा का सहयोगी शिरोमणि अकाली दल दबाव में आ गया और उसने केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर को इस्तीफा देने को कह दिया, जबकि पहले सुखबीर सिंह बादल इन विधेयकों को सही ठहराते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगा रहे थे। अकाली दल को दबाव में देखकर कांग्रेस ने पंजाब, हरियाणा के उन किसान संगठनों को बरगलाना शुरू किया, जो आढ़तियों और बिचौलियों के असर में कृषि विधेयकों को लेकर सशंकित थे। इसी के साथ संसद में भी उसने तीखे तेवर अपनाए। इन तेवरों का ही दुष्परिणाम राज्यसभा में विपक्ष के अशोभनीय आचरण के रूप में दिखा। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल यह जानते हुए भी कृषि विधेयकों का विरोध कर रहे हैं कि मंडियों के जरिये कृषि उपज बेचने की पुरानी व्यवस्था में किसानों का अहित हो रहा था। विपक्ष की ऐसी राजनीति यही बताती है कि वह मुद्दाविहीन हो चुकी है।
मोदी सरकार के फैसले का विरोध करना कांग्रेस का ध्येय बन गया
कांग्रेस 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से ही अपनी रीति-नीति के जरिये यह दिखा रही है कि उसे उन मसलों की परख नहीं जिन पर राजनीति की जानी चाहिए। ऐसा लगता है कि सरकार के प्रत्येक फैसले का विरोध करना ही कांग्रेस का ध्येय बन गया है। इस ध्येय को पूरा करने के लिए वह मनमाने आरोप लगाने और लोगों को गुमराह करने से भी नहीं चूकती। सोशल मीडिया पर उसका व्यवहार किसी परिपक्व राजनीतिक दल जैसा नहीं रह गया है। सोशल मीडिया के जरिये लोगों को गुमराह करने के लिए वह छल-कपट और झूठ का सहारा भी लेने लगी है। खुद राहुल गांधी कई बार ऐसे ट्वीट करते हैं, जो तथ्यों से परे होते हैं। राफेल सौदे, नागरिकता संशोधन कानून पर कांग्र्रेस का रवैया यही बताता है कि वह किस तरह झूठ के सहारे राजनीति करना पसंद कर रही है।
सीएए के विरोध में कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय को सड़कों पर उतारा
नागरिकता संशोधन कानून पर कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों का बेजा विरोध तब अपनी हद पार करता दिखा, जब उन्होंने मुस्लिम समुदाय को सड़कों पर उतारना शुरू कर दिया। यह कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की नकारात्मक राजनीति का ही नतीजा रहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दिल्ली यात्रा के समय भीषण दंगे भड़क उठे। इसमें कोई दोराय नहीं कि ये दंगे केवल मोदी सरकार को नीचा दिखाने के लिए सुनियोजित साजिश के तहत भड़काए गए।
कोविड के कारण जीएसटी से हासिल होने वाला कर राजस्व में आई कमी
केवल कृषि विधेयकों पर ही विपक्ष ने विरोध के नाम पर विरोध की नीति नहीं अपना रखी है। कई अन्य मसलों पर भी वह इसी नीति पर चल रहा है। बतौर उदाहरण जीएसटी की क्षतिपूर्ति का मामला। जीएसटी कानून बनने के बाद केंद्र ने राज्यों को यह आश्वासन दिया था कि यदि उनके कर राजस्व में कमी आएगी तो पांच वर्षों तक केंद्र उसकी भरपाई करेगा। जिस समय यह कानून बना, उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि पूरा विश्व महामारी की चपेट में आएगा और उद्योग-व्यापार महीनों तक ठप हो जाएंगे। कोविड के कारण यही हुआ और उसके चलते जीएसटी से हासिल होने वाले राजस्व में राष्ट्रीय स्तर पर कमी आई है। यदि जीएसटी लागू नहीं हुआ होता और अभी वैट व्यवस्था ही प्रभावी होती तो क्या विपक्ष शासित राज्य यह कहते कि उसके वैट-राजस्व में कमी की भरपाई केंद्र करे?
सरकार के खिलाफ निराधार दुष्प्रचार में जुटी कांग्रेस
आखिर इसका क्या मतलब कि कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्ष शासित राज्य जीएसटी में कमी की भरपाई के लिए उस विकल्प को अस्वीकार करने पर अड़े हैं, जो केंद्र उन्हें उपलब्ध करा रहा है? विपक्ष का ऐसा रवैया सकारात्मक नहीं कहा जा सकता। चूंकि सबसे ज्यादा नकारात्मकता कांग्रेस दिखा रही है इसलिए उसका असर अन्य विपक्षी दलों पर भी पड़ रहा है। कोई भी दल सत्ता में हो, वह हर मामले में सौ प्रतिशत सही नहीं हो सकता। यह भी तय है कि विभिन्न विषयों पर सत्तापक्ष और विपक्ष में मतभेद होंगे ही, पर यदि विपक्ष सकारात्मक रवैया अपनाकर सत्तापक्ष की गलतियों को इंगित करने के बजाय उसके खिलाफ निराधार दुष्प्रचार में जुट जाएगा तो फिर सरकार भी अपना रवैया बदलने से इन्कार ही करेगी।
कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति और अंध मोदी विरोध के चलते वह सफल नहीं हुई
राष्ट्रीय हितों की रक्षा एवं लोकतंत्र के भले के लिए सत्तापक्ष के साथ विपक्ष का भी मजबूत और सकारात्मक होना जरूरी है, पर आज कांग्रेस केवल गांधी परिवार के हित को सर्वोपरि रख रही है। वामदल सिमट चुके हैं और बाकी बची क्षेत्रीय पार्टियां, तो वे राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर संकुचित दृष्टिकोण अपनाए हुए हैं। तमिलनाडु में हिंदी एवं नई शिक्षा नीति और बंगाल में केंद्र सरकार के करीब-करीब हर फैसले का विरोध इसी कारण देखने को मिलता है। यदि विपक्ष राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर सकारात्मक भूमिका निभाने के बजाय सस्ती राजनीति करेगा तो वह न तो अपना हित कर सकता है और न ही जनता का। यह ठीक है कि कांग्रेस ने कई बार विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की है, लेकिन उसकी नकारात्मक राजनीति और अंध मोदी विरोध के कारण वह सफल नहीं हुई। यदि कांग्रेस ने अपना रुख-रवैया नहीं बदला तो वह खुद के साथ बाकी विपक्ष को भी कमजोर करेगी और यह भारतीय लोकतंत्र के लिए हितकारी नहीं होगा।
[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]
[ लेखक के निजी विचार हैं ]